भविष्य तकनीक का है और तकनीक ही तय करेगी कि भविष्य का नेता कौन होगा। भविष्य का नेता देश हो या व्यक्ति, सबकुछ तकनीक पर ही निर्भर करेगा। यह कोई रहस्य नहीं है, अब यह बहुत स्पष्ट तौर पर स्थापित होता हुआ दिख रहा है और इसीलिए दुनिया की बदलती भूराजनैतिक परिस्थितियों में हर देश ख़ुद की स्थिति मज़बूत रखने के लिए तकनीक पर सबसे ज़्यादा निवेश कर रहा है, लेकिन देशों के बीच चल रही तकनीक की दौड़ में अचानक कंपनियाँ ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गई हैं और, इसका सबसे बड़ा उदाहरण विश्व के सामने तब आया, जब अमेरिकी चुनावों के दौरान ही तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का खाता पहले ट्विटर ने बंद किया और उसके बाद फ़ेसबुक और दूसरी कंपनियों ने भी सर्वशक्तिमान अमेरिका के सर्वशक्तिमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को शक्तिहीन, असहाय बना दिया। तकनीकी कंपनियों की ताक़त का इससे बड़ा प्रदर्शन इससे पहले कभी नहीं हुआ था। इससे पहले अमेरिकी हितों को सुरक्षित रखने के लिए दुनिया के दूसरे देशों में अमेरिकी तकनीकी कंपनियों के ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से काम करने या कहें कि उस देश में काम करते हुए भी ख़ुद को अमेरिकी क़ानूनों के तहत ही जवाबदेह बताती रहीं। और, चाइनीज़ तकनीक कंपनियाँ तो उससे भी आगे निकल गईं। दुनिया भर में चीनी तकनीकी कंपनियों के बढ़ते प्रभाव के बीच सरकारों के काम में दख़लंदाज़ी की ख़बरें भी आईं और बाद में पता चला कि हर चीनी कंपनी की जवाबदेही चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति होती है और उसे उन नियमों के तहत काम करना पड़ता है। भारत की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने की नीयत से चीनी सेनाएँ जब बलवान में घुसीं तो भारतीय सैनिकों ने प्रतिकार किया और खूनी संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए और अपुष्ट सूत्रों के मुताबिक़ चीनी सेना के क़रीब 100 सैनिक मारे गए। भारत में चीन के प्रति वैसे ही बहुत अविश्वास रहा है और ज़मीन से सटे होने और भारतीय भूमि पर अवैध क़ब्ज़े की भी वजह से भारतीयों में ग़ुस्सा और तीखी प्रतिक्रिया दिखी और इसकी परिणति टिकटॉक और दूसरे कई चीनी एप पर रोक के साथ हुई। भारत ने सिग्नलिंग और दूसरे संवेदनशील कामों से चीनी कंपनियों को बाहर कर दिया और अभी भारत ने 5जी के ट्रायल से चीनी तकनीकी कंपनियों को बाहर कर दिया है, लेकिन हमने इस तरह से दुनिया की दूसरी कंपनियों को कभी नहीं देखा। वामपंथी पार्टियों के लगातार अमेरिकी विद्वेष के बावजूद बहुतायत भारतीयों के मन में कभी भी अमेरिकी कंपनियों को लेकर दुर्भावना नहीं जागी, लेकिन ट्विटर की हरकतों से पहली बार ऐसा होता दिख रहा है।
ट्विटर के प्रति वैसे भी बहुतायत भारतीयों की धारणा यही है कि ट्विटर लगातार भारत में वैचारिक तौर पर वामपंथ के साथ मिलकर राष्ट्रवादी विमर्श को कमतर साबित करने में सहयोगी रहा है और इसका एक बड़ा प्रमाण तब देखने को मिला जब, ट्विटर के सीईओ जैक डोरसी भारत आए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अभद्र तरीक़े से मिले जबकि, राहुल गांधी के साथ मिलते हुए मित्रवत दिखे और उससे भी ज़्यादा चुभने वाली बात यह रही कि बिना किसी संदर्भ के smash brahminical patriarchy का प्लेकार्ड लेकर खड़े हो गए। और, उस आधार पर भारत में वामपंथियों ने ब्राह्मणों, राष्ट्रवादियों और राजनीतिक तौर पर भारतीय जनता पार्टी के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी मज़ाक़ बनाने की कोशिश की। हालाँकि, इसमें यह बात ध्यान रखना ज़रूरी है कि सोनिया गांधी न भारतीय हैं और न ही ब्राह्मण, लेकिन उनके मन मस्तिष्क में किसी भी भारतीय से ज़्यादा पितृसत्तात्मक व्यवस्था हावी है और यही वजह है कि राहुल गांधी के बार-बार असफल होने के बावजूद सोनिया गांधी ने अपनी बेटी को कांग्रेस पार्टी की कमान नहीं सौंपी। सन्दर्भ के लिए यह समझना ज़रूरी था। उसके बाद जैक डोरसी ने बाक़ायदा माना कि ट्विटर में कम करने वाले ज़्यादातर लोग वामपंथी विचार से प्रभावित हैं और भारत में ट्विटर की पॉलिसी प्रमुख ने तो बाक़ायदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अभद्र टिप्पणी भी की थी। सत्ता के साथ लंबे समय से जुड़े रहे और मुख्य धारा में संपादक रहे बहुत से लोग इसी दौर में मीडिया से बाहर होते सोशल मीडिया पर ठिकाना ढूँढ रहे थे और ट्विटर और दूसरे सोशल मीडिया उनके लिए स्वाभाविक पसंद बन गए। एक समय में फ़ेसबुक पर भाजपा समर्थक होने के आरोप लगे और आंखी दास को फ़ेसबुक छोड़ना पड़ा, लेकिन उसके बाद भारत में काम कर रही अमेरिकी तकनीकी कंपनियों पर यह आरोप लगने लगा कि विपक्षी भूमिका में यह अमेरिकी कंपनियाँ काम कर रही हैं। कमजोर होते विपक्ष के लिए यह तकनीकी कंपनियाँ, डूबते को तिनके का सहारा से कहीं बहुत ज़्यादा थीं। और, अमेरिकी कंपनियों के लिए ख़ुद को लोकतांत्रिक दिखाने का इससे बेहतर तरीक़ा भला क्या हो सकता था। दुनिया के सबसे लोकतंत्र में लोकतंत्र की बुलंद आवाज़ बनने के बहाने अमेरिकी कंपनियों ने भारत सरकार के, भारत की ज़मीन के क़ायदे क़ानून मानने से ही इनकार कर दिया। यहाँ तक कि संसद की स्थाई समिति के सामने भी फ़ेसबुक, ट्विटर के प्रमुख आने से भरसक बचते रहे।
2019 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद हताश विपक्ष पूरी तरह से तकनीकी कंपनियों की शरण में चला गया और वैचारिक तौर पर वामपंथी प्रभावित ट्विटर ने उसे सहारा दिया। उसका चरम भारतीय जनता पार्टी के मुख्य प्रवक्ता साबित पात्रा सहित कई भाजपा नेताओं के ट्वीट को मैनीपुलेटेड मीडिया टैग करने से हुआ। कांग्रेस ने भी बाक़ायदा अमेरिकी स्थिति ट्विटर के शिकायत निवारण मंच को चिट्ठी लिख दी। अब दिल्ली पुलिस पूछ रही है कि अगर कांग्रेस टूलकिट मैनीपुलेटेड मीडिया है तो इसका आधार हमें भी बताइए, जिससे यह जाँच आगे बढ़ सके, लेकिन ट्विटर के इंडिया प्रमुख मनीष माहेश्वरी ने इसका जवाब तक नहीं दिया और जब दिल्ली पुलिस ने ट्विटर के दिल्ली, गुरुग्राम कार्यालयों पर जाकर नोटिस दी तो उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले के तौर पर पेश किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की समर्थकों और राष्ट्रीय विमर्श के पैरोकारों का लगता है कि भारत में डोनाल्ड ट्रम्प की ही तरह 2024 आते ट्विटर ज़्यादा आक्रामक हो जाएगा और यही वजह है कि टिकटॉक की ही तरह ट्विटर पर भी प्रतिबंध की माँग उठ रही है। इससे पहले व्हाट्सएप की निजता नीति भी आरोपों के घेरे में थी और अब व्हाट्सएप ने दिल्ली उच्च न्यायालय में सरकार के स्रोत जानने की कोशिश को ही व्हाट्सएप उपयोग करने वालों की निजता पर हमला करार देने की कोशिश की है। अमेरिकी तकनीकी कंपनियाँ पहली बार भारत में इस तरह से जनता का भरोसा खो रही हैं। स्वदेशी सोशल मीडिया एप्स से लेकर स्वदेशी तकनीकी कंपनियों को तैयार करने की बात ज़ोर से होने लगी है। भारत ने कई मोर्चों पर आगे बढ़ने की कोशिश भी की है। गूगल मैप के मुक़ाबले मूव एप इसका एक शानदार उदाहरण है। भारत विश्व की पाँच महाशक्तियों में शामिल हो रहा है और ऐसे में कोई कंपनी भारत की सरकार को अपनी शर्तों पर चलाने की कोशिश करे, यह ख़तरनाक है। वैसे भी भारत के सामने चीन की बड़ी चुनौती पहले से है। भारत सरकार को फूंक फूंककर कदम उठाने की ज़रूरत है, लेकिन लोकतांत्र के भले के लिए और लोकतंत्र में भारतीयों का भरोसा बना रहे, इसके लिए ज़रूरी है कि विदेशी तकनीकी कंपनियों को बताया जाए कि अब लोकतंत्र की लक्ष्मण रेखा पार हो रही है और इसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बर्दाश्त नहीं कर सकता। इसमें देर होने से लोकतंत्र पर भरोसा कमजोर होगा ही और यह देश की सुरक्षा के साथ समझौता करना भी होगा।
(यह लेख https://hindi.moneycontrol.com/news/country/whatsapp-against-indian-gov-in-india-narendra-modi-should-stop-social-media-companies_267331.html पर छपा है)
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ReplyDeleteBahut hi achha analysis. I agree with you.
ReplyDelete👍👍👍
ReplyDeleteBahut shaandaar lekh
ReplyDeleteApology for writing comments in English! Dear Harsh Vardhanji, I am following you for last two months. I have impressed with your political knowledge and unbiased - to anyone - analysis of and comments. I am in agreement with the contents of your present article. Indian Government take strong and immediate action against these arrogant foreign companies.
ReplyDeleteGod bless you. Keep on with your honest mission!
Prem Kulleen from Zambia