आज से नवरात्रि शुरू हो रही है। और ये नवरात्रि का पता तो पंचांग से ही चलता है। पंचांग को पोंगापंथी साबित करने की कोशिश जमकर हुआ। यहां तक कि सभी भारतीय
पारम्परिक तथ्यों को भी अवैज्ञानिक साबित करके खारिज करने की कोशिश बरसों से खूब
हुई। अब जरा नए साल को ही देखिए। भारतीय नववर्ष की बात करें तो देश भर में भारतीय
नववर्ष मौसम चक्र, फसल
चक्र के बदलाव के साथ बदल जाता है। जिस पंचांग को हम पोंगापन्थी मान लेते हैं। उस
पंचांग के लिहाज से हर मौसम की पक्की वाली जानकारी होती है। यहां तक कि मौसम के
बदलने के आज के मौसम विज्ञान जैसी पक्की सूचना भी वहां होती है। दिसम्बर-जनवरी या
फिर मार्च-अप्रैल से वो बात कहां पक्की होती है। लेकिन, दुनिया में पसर गया
और वैज्ञानिक ग्रहों, तथ्यों के आधार पर होने वाली भारतीय काल गणना के आधार को ही खारिज कर
दिया गया। साल, महीने
के बाद इसी तरह दिन की बात भी करें, तो दफ्तर की छुट्टी के लिहाज से रविवार से हफ्ता शुरू हो गया। लेकिन, सामान्य समझ के
लिहाज से देखें, तो कोई
भी दिन क्यों हुआ, इसका
कोई पक्का तर्क तो है नहीं, सिवाय रविवार को चर्च जाने के। जबकि, भारतीय एकादश,
द्वादश या फिर महीने की बजाय शुक्ल और कृष्ण पक्ष
की बात, सबमें
विज्ञान है। दुर्भाग्य ये कि पश्चिम के भारतीय संस्कृति को भोथरा करने की साजिश को
भारत सत्ताश्रय पर पल रहे वामपंथी विद्वानों ने और मजबूती से मदद दी। ऐसी कि आज
भारतीय परिवारों में पंचांग होते ही नहीं। और बहुत कुछ नुकसान पोंगापंथियों ने भी
किया जो, पंचांग
देखकर दिन, तिथि
बताने का ठेका बस अपने पास रखा। देखिए समय बदल रहा है, काफी कुछ बदलेगा।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
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