महंगाई पर मुश्किल में आ रही नरेंद्र मोदी की सरकार के वित्त
मंत्री अरुण जेटली
ने महंगाई पर बैठक के बाद कहाकि राज्यों को जमाखोरों से सख्ती से निपटने
के लिए कहा गया है। सिर्फ 4-5 अनाज-सब्जी
की कीमतें ही तेजी से बढ़ीं हैं। और ये सब जमाखोर कमजोर
मॉनसून की आशंका से कर रहे हैं। जिससे फसल खराब या कम होने
की स्थिति में वो इसका ज्यादा से ज्यादा फायदा
उठा सकें।
महंगाई से कैसे निपटा जाए, इसे
अच्छे से समझने के लिए सरकार में बैठकों की सिलसिला चल
रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सभी संबंधित
मंत्रालयों से महंगाई से निपटने की योजना पूछी है। और खुद नरेंद्र
मोदी की इस पर किस कदर नजर है कि वित्त मंत्री के साथ वाणिज्य मंत्री
निर्मला सीतारमन, कृषि
मंत्री राधा मोहन सिंह, खाद्य
मंत्री रामविलास
पासवान और महंगाई से संबंधित दूसरे मंत्रियों के साथ वाली बैठक में
प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा भी मौजूद थे। इसी बैठक के
बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ये भी बताया कि जिन 22 वस्तुओं के दामों
में तेज उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है उस पर वो सीधे नजर रखेंगे। साथ ही
केंद्र सरकार ने राज्यों से कहा है कि वो जरूरी सामानों को एपीएमसी एक्ट
से बाहर करें जिससे ये वस्तुएं खुले बाजार में बेची जा सकें। इसके अलावा
केंद्र सरकार, राज्य
सरकारों के जरिए 50 लाख
टन चावल खुले बाजार में बेचेगी। जिससे कीमतों पर काबू किया
जा सके। ये वो फैसले हैं जो कोई भी सरकार महंगाई
बढ़ने पर लेती है और इसका असर ये होता है कि कुछ समय में महंगाई काबू में आ जाती है या यूं कहें कि फिर से कीमतें
बढ़ाने के लिए जमाखोर, बिचौलिए कीमतें कुछ कम करा देते हैं। अब
इस बात का मतलब क्या ये हुआ कि सरकार किसी काम की ही नहीं है।
या सिर्फ दिखाने के लिए है। तो निजी तौर पर मैं यही
मानता हूं कि कम से कम अनाज, सब्जी, फल की महंगाई के मामले
में सरकार सिर्फ दिखावा ही करती है। असल काम तो जमाखोर, बिचौलिए,
कारोबारी ही करते हैं।
मैं क्यों ये बात कह रहा हूं इसे समझने के लिए ताजा-ताजा और तेजी से महंगी हुई प्याज की बात कर लेते हैं। इसके विश्लेषण से जो आंसू निकलेंगे उससे आंखें साफ होंगी और महंगाई की असल वजह भी साफ-साफ समझ में आ जाएगी। 13 जून के बाद अचानक बड़ी तेजी में प्याज के दाम बढ़े और देश भर की मंडियों से खबरें आने लगीं कि प्याज के दामों में जबर्दस्त तेजी आ गई है। वजह ये कि कमजोर मॉनसून यानी कम बारिश की आशंका से खसलों का उत्पादन कम होगा और इसीलिए प्याज कारोबारियों ने प्याज की आवक बाजार में कम कर दी है। इसी बीच एक और खबर आई कि नासिक की थोक मंडी में मजदूरों ने मजदूरी करीब दस प्रतिशत बढ़ाने की मांग पर हड़ताल कर दी है। ये हड़ताल भी दो दिन चली। और इसकी वजह से देश भर की मंडियों में प्याज के भाव करीब चालीस प्रतिशत तक बढ़ गए। आम तौर पर बारिश से पहले यानी रबी सीजन में ही प्याज की करीब 60% फसल होती है। मोटे तौर पर ये माना जा रहा है कि इस साल जिस तरह से बेमौसम बारिश, आंधी चली है। उससे प्याज की फसल को नुकसान होगा। लेकिन, ये नुकसान किसी भी हाल में 15-20 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होगा। यानी जो फसल खेत में होगी उसका भी बीस प्रतिशत ही नुकसान होगा। जबकि, बारिश के मौसम में इस्तेमाल होने वाली प्याज वही होती है जो, पहले से ही स्टोरेज में रख दी जाती है। अब अगर इस अनुमान को सही मानें तो रबी सीजन में होने वाली प्याज तो सुरक्षित ही है। और बारिश में जिस प्याज का नुकसान होना है, उसका असर तो सर्दियों में दिखना चाहिए। लेकिन, इसका असर गर्मियों में ही हो रहा है। और ये असर जमाखोरों की वजह से हो रहा है। ये इसलिए क्योंकि, 2013-14 में देश में 192 लाख टन प्याज का उत्पादन हुआ है। ये पिछले साल से चौदह प्रतिशत ज्यादा है। 2012-13 में 168 लाख टन प्याज का उत्पादन हुआ था। आम तौर पर देश भर में प्याज की हर महीने की खपत औसत आठ लाख टन की होती है। इस लिहाज से साल भर की प्याज की खपत करीब 100 लाख टन की हुई। अब अगर करीब 100 लाख टन यानी कुल उत्पादन की पचास प्रतिशत प्याज की ही खपत होनी है तो फिर प्याज कीमतें लोगों के आंसू क्यों निकाल रही है। और बची हुई करीब सौ टन प्याज कहां गई। तो इसका जवाब ये है कि करीब 40 लाख टन प्याज सरकारी गोदामों में ही रखी हुई है। इस इसलिए सरकार रखती है कि प्याज कीमतें बढ़ने पर इसकी सप्लाई बढ़ाकर कीमतों पर काबू किया जा सके। और इस प्याज के भंडारण में कोई दिक्कत भी नहीं है। लेकिन, असल दिक्कत बाकी बची तीस से पैंतीस लाख टन प्याज को लेकर है। ये वो प्याज है जो माना जाता है कि जमाखोरों और बिचौलियों के पास है। और जब प्याज की सप्लाई में किसी वजह से कमी होती है या फिर मौसम के खराब होने की आशंका होती है तो यही बिचौलिए सामान्य सप्लाई को रोककर प्याज की कीमतें बढ़ा देते हैं और इस बार भी यही हुआ है। इस साल प्याज का निर्यात भी पिछले साल के मुकाबले कम हुआ है। वित्तीय वर्ष 2013-14 में प्याज का निर्यात साढ़े तेरह लाख टन से कुछ ज्यादा ही रहा है। जबकि, 2012-13 में 18 लाख टन से ज्यादा प्याज का निर्यात हुआ था। अब अगर 2013-14 यानी मार्च में खत्म हुए वित्तीय वर्ष में प्याज का उत्पादन चौदह प्रतिशत बढा है और निर्यात करीब पचीस प्रतिशत घटा है। तो इसका सीधा मतलब हुआ कि घरेलू बाजार में ज्यादा प्याज होना चाहिए। और मांग-आपूर्ति के सामान्य सिद्धांति के अनुसार प्याज सस्ता होना चाहिए। अब अगर फिर भी प्याज महंगा है तो इसका सीधा सा मतलब ये हुआ कि या तो सरकार के गोदामों में जरूरत से ज्यादा प्याज का भंडार है या फिर जमाखोरों के गोदामों में। दोनों ही स्थितियों में ये पूरी तरह सरकार की प्रशासनिक कमजोरी को ही दिखाता है। इसके लिए मॉनसून तो बिल्कुल दोषी नहीं है। मोटे तौर पर प्याज की आपूर्ति के मामले में देश को सबसे बड़ा हिस्सा महाराष्ट्र ही उपलब्ध कराता है। महाराष्ट्र में देश की कुल प्याज की करीब 38% उत्पादन होता है। इसलिए नासिक की लासलगांव मंडी की थोड़ी सी आहट भी प्याज के भाव आसमान पर चढ़ा देती है। लेकिन, सच्चाई यही है कि फिलहाल महाराष्ट्र की लासलगांव मंडी के अलावा वाशी की एपीएमसी मार्केट हो या फिर देश की दूसरी मंडियां, सभी जगह कम से कम चार से पांच महीने का प्याज का भंडार मौजूद है। इसके अलावा कर्नाटक करीब 12% , गुजरात 10%, बिहार 7%, मध्य प्रदेश 7%, आंध्र प्रदेश 5%, हरियाणा और राजस्थान में 3-3% प्याज का उत्पादन होता है। इसके अलावा देश के दूसरे राज्य करीब 15 प्रतिशत प्याज का उत्पादन करते हैं। लेकिन, सबसे बड़ी बात यही है कि उत्पादन इस देश में फिलहाल समस्या नहीं है। और ये सिर्फ प्याज के लिए नहीं है। साल 2006 से लगभग हर साल गेहूं, चावल का रिकॉर्ड उत्पादन हो रहा है। लेकिन, इसके बाद भी यूपीए के दूसरे शासनकाल में लगभग लगातार महंगाई आम जनता को झेलनी पड़ी है। इसके बाद भी यूपीए की सरकार ने रिकॉर्ड उत्पादन वाले अनाजों को सस्ते में उपलब्ध कराने के बजाय वोटों के लिए खाद्य सुरक्षा बिल पर काम किया। इसकी वजह से सरकार ने जरूरत से कहीं बहुत ज्यादा अनाज खरीदकर अपने गोदामों में रख लिया है। उदाहरण देखिए सरकार गोदाम के मालिक फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के गोदामों में इस समय कितना अनाज उपलब्ध है सुनकर हैरान हो जाएंगे। फूड कॉर्फोरेशन ऑफ इंडिया के गोदामों में छे करोड़ बीस लाख टन से ज्यादा गेहूं, चावल रखा हुआ है। इसके अलावा करीब सवा करोड़ टन धान भी रखा हुआ है। दालें और दूसरे अनाज से भी सरकारी भंडार भरे हुए हैं। और ये भी जानना जरूरी है कि सकारी गोदाम में जितना अतिरिक्त अनाज रखा है वो हमारी कुल जरूरत से भी चार गुना ज्यादा है। अब अगर इसके बाद भी देश को महंगाई झेलनी पड़ रही है तो इसे क्या कहेंगे। हो सकता है कि इस बार कम बारिश से चावल, मक्का, सोयाबीन, कपास की फसल कम हो। लेकिन, इसके बाद भी देश को महंगाई के संकट का सामना नहीं करना चाहिए। क्योंकि, हमारे सरकारी गोदामों में सब भरा पूरा है। नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं। और चुनाव के समय अपने भाषणों में वो एक बात कहते थे कि रियल टाइम कमोडिटी के आंकड़े होने चाहिए। इसका मतलब मैं जो समझ पाया हूं कि देश में किसी अनाज, फल, सब्जी की कितनी उपलब्धता है। और कितनी खपत हुई। इसके बाद कितनी जरूरत निर्यात की है। ये सब देश की जनता को साफ-साफ पता हो। इसके आगे ये कि किस मंडी से कितने लोगों की जरूरत पूरी होती है और वहां पर कितनी आपूर्ति होनी चाहिए। इसी के आधार पर कीमतें भी सामान्य रह सकती है। प्रधानमंत्री जी अब अगर आपकी बात का मतलब यही है तो इसे तुरंत अमल में लाइए। पेट्रोलियम उत्पादों की महंगाई से थोड़ा आराम से निपटिए क्योंकि, उससे निपटना तो तुरंत आपके हाथ में है भी नहीं। ज्यादा आयात के आधार पर तय होगा। और बेवजह सब्सिडी के फॉर्मूले से पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस की महंगाई घटाने के बजाय लंबे समय की अच्छी ऊर्जा नीति तैयार कीजिए। यकीन मानिए महंगाई इस देश से भाग खड़ी होगी।
मैं क्यों ये बात कह रहा हूं इसे समझने के लिए ताजा-ताजा और तेजी से महंगी हुई प्याज की बात कर लेते हैं। इसके विश्लेषण से जो आंसू निकलेंगे उससे आंखें साफ होंगी और महंगाई की असल वजह भी साफ-साफ समझ में आ जाएगी। 13 जून के बाद अचानक बड़ी तेजी में प्याज के दाम बढ़े और देश भर की मंडियों से खबरें आने लगीं कि प्याज के दामों में जबर्दस्त तेजी आ गई है। वजह ये कि कमजोर मॉनसून यानी कम बारिश की आशंका से खसलों का उत्पादन कम होगा और इसीलिए प्याज कारोबारियों ने प्याज की आवक बाजार में कम कर दी है। इसी बीच एक और खबर आई कि नासिक की थोक मंडी में मजदूरों ने मजदूरी करीब दस प्रतिशत बढ़ाने की मांग पर हड़ताल कर दी है। ये हड़ताल भी दो दिन चली। और इसकी वजह से देश भर की मंडियों में प्याज के भाव करीब चालीस प्रतिशत तक बढ़ गए। आम तौर पर बारिश से पहले यानी रबी सीजन में ही प्याज की करीब 60% फसल होती है। मोटे तौर पर ये माना जा रहा है कि इस साल जिस तरह से बेमौसम बारिश, आंधी चली है। उससे प्याज की फसल को नुकसान होगा। लेकिन, ये नुकसान किसी भी हाल में 15-20 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होगा। यानी जो फसल खेत में होगी उसका भी बीस प्रतिशत ही नुकसान होगा। जबकि, बारिश के मौसम में इस्तेमाल होने वाली प्याज वही होती है जो, पहले से ही स्टोरेज में रख दी जाती है। अब अगर इस अनुमान को सही मानें तो रबी सीजन में होने वाली प्याज तो सुरक्षित ही है। और बारिश में जिस प्याज का नुकसान होना है, उसका असर तो सर्दियों में दिखना चाहिए। लेकिन, इसका असर गर्मियों में ही हो रहा है। और ये असर जमाखोरों की वजह से हो रहा है। ये इसलिए क्योंकि, 2013-14 में देश में 192 लाख टन प्याज का उत्पादन हुआ है। ये पिछले साल से चौदह प्रतिशत ज्यादा है। 2012-13 में 168 लाख टन प्याज का उत्पादन हुआ था। आम तौर पर देश भर में प्याज की हर महीने की खपत औसत आठ लाख टन की होती है। इस लिहाज से साल भर की प्याज की खपत करीब 100 लाख टन की हुई। अब अगर करीब 100 लाख टन यानी कुल उत्पादन की पचास प्रतिशत प्याज की ही खपत होनी है तो फिर प्याज कीमतें लोगों के आंसू क्यों निकाल रही है। और बची हुई करीब सौ टन प्याज कहां गई। तो इसका जवाब ये है कि करीब 40 लाख टन प्याज सरकारी गोदामों में ही रखी हुई है। इस इसलिए सरकार रखती है कि प्याज कीमतें बढ़ने पर इसकी सप्लाई बढ़ाकर कीमतों पर काबू किया जा सके। और इस प्याज के भंडारण में कोई दिक्कत भी नहीं है। लेकिन, असल दिक्कत बाकी बची तीस से पैंतीस लाख टन प्याज को लेकर है। ये वो प्याज है जो माना जाता है कि जमाखोरों और बिचौलियों के पास है। और जब प्याज की सप्लाई में किसी वजह से कमी होती है या फिर मौसम के खराब होने की आशंका होती है तो यही बिचौलिए सामान्य सप्लाई को रोककर प्याज की कीमतें बढ़ा देते हैं और इस बार भी यही हुआ है। इस साल प्याज का निर्यात भी पिछले साल के मुकाबले कम हुआ है। वित्तीय वर्ष 2013-14 में प्याज का निर्यात साढ़े तेरह लाख टन से कुछ ज्यादा ही रहा है। जबकि, 2012-13 में 18 लाख टन से ज्यादा प्याज का निर्यात हुआ था। अब अगर 2013-14 यानी मार्च में खत्म हुए वित्तीय वर्ष में प्याज का उत्पादन चौदह प्रतिशत बढा है और निर्यात करीब पचीस प्रतिशत घटा है। तो इसका सीधा मतलब हुआ कि घरेलू बाजार में ज्यादा प्याज होना चाहिए। और मांग-आपूर्ति के सामान्य सिद्धांति के अनुसार प्याज सस्ता होना चाहिए। अब अगर फिर भी प्याज महंगा है तो इसका सीधा सा मतलब ये हुआ कि या तो सरकार के गोदामों में जरूरत से ज्यादा प्याज का भंडार है या फिर जमाखोरों के गोदामों में। दोनों ही स्थितियों में ये पूरी तरह सरकार की प्रशासनिक कमजोरी को ही दिखाता है। इसके लिए मॉनसून तो बिल्कुल दोषी नहीं है। मोटे तौर पर प्याज की आपूर्ति के मामले में देश को सबसे बड़ा हिस्सा महाराष्ट्र ही उपलब्ध कराता है। महाराष्ट्र में देश की कुल प्याज की करीब 38% उत्पादन होता है। इसलिए नासिक की लासलगांव मंडी की थोड़ी सी आहट भी प्याज के भाव आसमान पर चढ़ा देती है। लेकिन, सच्चाई यही है कि फिलहाल महाराष्ट्र की लासलगांव मंडी के अलावा वाशी की एपीएमसी मार्केट हो या फिर देश की दूसरी मंडियां, सभी जगह कम से कम चार से पांच महीने का प्याज का भंडार मौजूद है। इसके अलावा कर्नाटक करीब 12% , गुजरात 10%, बिहार 7%, मध्य प्रदेश 7%, आंध्र प्रदेश 5%, हरियाणा और राजस्थान में 3-3% प्याज का उत्पादन होता है। इसके अलावा देश के दूसरे राज्य करीब 15 प्रतिशत प्याज का उत्पादन करते हैं। लेकिन, सबसे बड़ी बात यही है कि उत्पादन इस देश में फिलहाल समस्या नहीं है। और ये सिर्फ प्याज के लिए नहीं है। साल 2006 से लगभग हर साल गेहूं, चावल का रिकॉर्ड उत्पादन हो रहा है। लेकिन, इसके बाद भी यूपीए के दूसरे शासनकाल में लगभग लगातार महंगाई आम जनता को झेलनी पड़ी है। इसके बाद भी यूपीए की सरकार ने रिकॉर्ड उत्पादन वाले अनाजों को सस्ते में उपलब्ध कराने के बजाय वोटों के लिए खाद्य सुरक्षा बिल पर काम किया। इसकी वजह से सरकार ने जरूरत से कहीं बहुत ज्यादा अनाज खरीदकर अपने गोदामों में रख लिया है। उदाहरण देखिए सरकार गोदाम के मालिक फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के गोदामों में इस समय कितना अनाज उपलब्ध है सुनकर हैरान हो जाएंगे। फूड कॉर्फोरेशन ऑफ इंडिया के गोदामों में छे करोड़ बीस लाख टन से ज्यादा गेहूं, चावल रखा हुआ है। इसके अलावा करीब सवा करोड़ टन धान भी रखा हुआ है। दालें और दूसरे अनाज से भी सरकारी भंडार भरे हुए हैं। और ये भी जानना जरूरी है कि सकारी गोदाम में जितना अतिरिक्त अनाज रखा है वो हमारी कुल जरूरत से भी चार गुना ज्यादा है। अब अगर इसके बाद भी देश को महंगाई झेलनी पड़ रही है तो इसे क्या कहेंगे। हो सकता है कि इस बार कम बारिश से चावल, मक्का, सोयाबीन, कपास की फसल कम हो। लेकिन, इसके बाद भी देश को महंगाई के संकट का सामना नहीं करना चाहिए। क्योंकि, हमारे सरकारी गोदामों में सब भरा पूरा है। नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं। और चुनाव के समय अपने भाषणों में वो एक बात कहते थे कि रियल टाइम कमोडिटी के आंकड़े होने चाहिए। इसका मतलब मैं जो समझ पाया हूं कि देश में किसी अनाज, फल, सब्जी की कितनी उपलब्धता है। और कितनी खपत हुई। इसके बाद कितनी जरूरत निर्यात की है। ये सब देश की जनता को साफ-साफ पता हो। इसके आगे ये कि किस मंडी से कितने लोगों की जरूरत पूरी होती है और वहां पर कितनी आपूर्ति होनी चाहिए। इसी के आधार पर कीमतें भी सामान्य रह सकती है। प्रधानमंत्री जी अब अगर आपकी बात का मतलब यही है तो इसे तुरंत अमल में लाइए। पेट्रोलियम उत्पादों की महंगाई से थोड़ा आराम से निपटिए क्योंकि, उससे निपटना तो तुरंत आपके हाथ में है भी नहीं। ज्यादा आयात के आधार पर तय होगा। और बेवजह सब्सिडी के फॉर्मूले से पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस की महंगाई घटाने के बजाय लंबे समय की अच्छी ऊर्जा नीति तैयार कीजिए। यकीन मानिए महंगाई इस देश से भाग खड़ी होगी।
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