चाचा नेहरू की जीवन पर आधारित कार्यक्रम में शामिल अमोली |
किसी
एक दिन भारत में हिंदी दिवस होता है। हालांकि, ये बेहद शर्मनाक है कि हिंदुस्तान
में हिंदी दिवस मनाया जाता है। लेकिन, मनाया जाता है क्या करिएगा। खैर, दिवसों में
रिश्ते हों, प्यार हो या फिर भाषा, उसकी अहमियत कितनी होती है ये सब साबित हो चला
है। हम सब हिंदी के लोगों के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही होती है कि आखिर किस तरह से
तेज दौड़ती भाषा के साथ अपनी हिंदी को भी मजबूत बनाए रखें। अकसर इसे लेकर कई तरह
के भाव आते रहते हैं। कभी गर्व, कभी पिछड़ने के खतरे का डर। ये भी लगता है कि हिंदी
को मजबूत करने का तरीका क्या कोई निकाल पाएगा या सिर्फ चिंता करते रहेंगे और सचमुच
सिर्फ दिवस में ही हिंदी न रह जाए। खैर, मैं ये भी मानता हूं कि ये डर निर्मूल है
और हिंदी की इज्जत बनी रहेगी। लेकिन, एक तरीका भी अभी दिखा है हिंदी की इज्जत
बढ़ाने का। बिटिया के स्कूल का सालाना दिवस था। एनुअल डे को लेकर बिटिया भी
उत्साहित थी। हम भी। क्योंकि, अमोली इसमें चाचा नेहरू वाले कार्यक्रम में शामिल भी
हो रही थी। एपीजे स्कूल नोएडा के अच्छे स्कूलों में है। कई बार बेटी की टीचरों से
अंग्रेजी की वजह से बात करने में असुविधा भी होती है। लेकिन, समय के साथ तो चलना
ही होगा।
एपीजे
स्कूल के साथ अच्छी बात ये है कि पूरी तरह से आधुनिक शिक्षा के साथ परंपरा भी
जुड़ी रहती है। अतिआधुनिकता से ग्रसित नहीं लगता ये विद्यालय। ऑडीटोरियम में हम
पहुंचे तो खचाखच भरा हुआ था। एपीजे के फाउंडर डॉक्टर सत्य पॉल की बेटी जो, अब
प्रेसिडेंट हैं उनकी सफलता की कहानी के वृत्तचित्र से मैं थोड़ा परेशान हुआ। फिर
लगा कि जब इतनी बड़ी संस्था बनाई है तो उसका श्रेय लेना तो बनता ही है। नोएडा,
ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस वे अथॉरिटी के चेयरमैन रमारमण कार्यक्रम के मुख्य
अतिथि थे और जाने माने कार्टूनिस्ट सुधीर तैलंग विशिष्ट अतिथि। इसके अलावा एपीजे
स्कूल के ही तीन बच्चे जो इस समय अपनी कामयाबी साबित कर चुके हैं, उन्हें भी स्कूल
बुलाकर सम्मानित कर रहा था।
एपीजे स्कूल के सालाना कार्यक्रम की शुरुआत शिव नृत्य के साथ |
कार्यक्रम की शुरुआत शिव नृत्य के साथ हुई। उसके बाद
शानदार कव्वाली और फिर महात्मा गांधी, रवींद्र नाथ टैगोर और चाचा नेहरू के जीवन पर
प्रस्तुत बच्चों का कार्यक्रम। सब शानदार था। अच्छी बात ये भी पता चली कि स्कूल के
हाउस- रेड, ग्रीन, यलो टाइप न होकर गांधी, टैगोर जैसे सचमुच के बड़े और अनुकरणीय
लोगों के नाम पर हैं। एपीजे स्कूल की प्रेसिडेंट सुषमा बर्लिया ने अच्छी बातें
लेकिन, पूरी तरह से पहले से तैयार अंग्रेजी में पढ़ीं। मुख्य अतिथि रमारमण की बारी
आई तो उन्होंने सलीके से हिंदी में अपनी पूरी बात रखी। और पूरा प्रेक्षागृह रमारमण
की बातों को बड़े ध्यान से सुन रहा था। हो ये भी सकता है कि रमारमण जी की अंग्रेजी
बहुत अच्छी न हो इसलिए वो हिंदी में बोले हों। लेकिन, इतने सालों का एक आईएएस
अधिकारी इतनी अंग्रेजी तो सीख ही लेता है। और नहीं तो वो लिखी अंग्रेजी पढ़कर तो काम
चला ही सकते थे। लेकिन, जिस तरह से उन्होंने हिंदी भाषा का विस्तार उन लोगों के
बीच में किया जो, अपने बच्चों को अंग्रेजी में पारंगत देखना चाहते हैं, वो काबिले
तारीफ है। उसी जमात में मैं भी शामिल हूं। तीन बच्चे जो एपीजे के पढ़े हुए थे। आशीष
खन्ना, शिवम तेवतिया और सौम्या पांडेय। उन्हें भी स्कूल ने सम्मामित किया। आशीष
विश्व बैंक में और शिवम आईएएस है। दोनों ने अंग्रेजी भाषा में ही अपनी बात रखी। सौम्या
पांडेय भी आईआरएस हैं। और सौम्या ने जितनी अंग्रेजी बोली उससे साफ समझ में आया कि
सौम्या की अंग्रेजी काफी अच्छी है। फिर वो एपीजे की ही पढ़ी-लिखी है तो अंग्रेजी
कम आने जैसी बात तो हो ही नहीं सकती। लेकिन, सौम्या ने ज्यादातर बातचीत दिल से की।
तो जाहिर है भारतीयों के दिल की भाषा तो हिंदी ही हो सकती है। यही तरीका है हिंदी
को स्थापित करने का। जो भी ऊंची जगहों पर पहुंचें वो, अंग्रेजी में भी विद्वान हों
लेकिन, जहां बच्चों-देश के भविष्य को भाषाबोध कराना है हिंदी में बोलें। ये प्रयास
सारे हिंदी दिवसों, सरकारी योजनाओं, हिंदी की चिंताओं से ज्यादा बेहतर प्रयास
होगा। अनुकरणीय लोगों को सोचना चाहिए कि बच्चों को अनुकरण करने के लिए वो अपना
रुतबा, प्रभाव, प्रयास ही दे रहे हैं या फिर अपनी भाषा भी। बस बात बन जाएगी। रमारमण
जी और सौम्या पांडेय दोनों को मेरी तरफ से बधाई।
बढ़िया लेखन। सही कहा आपने हिंदुस्तान में हिन्दी दिवस मनाना बेहद शर्मनाक है।
ReplyDeleteनई कड़ियाँ : समीक्षा - यूसी ब्राउज़र 9.5 ( Review - UC Browser 9.5 )
कवि प्रदीप - जिनके गीतों ने राष्ट्र को जगाया
शुक्रिया नामराशि!
Deletevery good and reasonable poem
ReplyDeleteअरे वाह यह तो वाकई बहुत ही अच्छा सुझाव है आपका लेकिन बड़े पद पर बैठे लोग इस बात पर विचार करें तब ना...फिर चाहे वो नेता हों या अभिनेता। बोलते सब अँग्रेजी ही हैं।
ReplyDeleteइसके लिए जो ऊंची जगहों पर भी हिंदी बोल रहे हैं उनका सम्मान हम आप मिलकर बढ़ाएं दूसरे प्रेरित होंगे
Deleteयही क्या कम है कि हम और आप हिन्दी में ही लिख पढ़ रहे हैं।
ReplyDeleteइस कम को ज्यादा करना है प्रवीण जी :)
Deleteरमारमण और सौम्या जी को हमारी ओर से भी बधाई और आभार । सच है कि ऐसे प्रयासों से तस्वीर बदली जा सकती है
ReplyDeleteनिश्चित तौर पर
Deleteबहुत ही अनुकरणीय प्रसंग है । वास्तव में जब हिन्दी भाषी लोग आधुनिक दिखने के प्रलोभन में अँग्रेजी में बात करते हैं तो वे दिल से नही दिमाग से बोल रहे होते हैं । हृदय की भाषा तो मातृभाषा ही होसकती है । अपनी बात कहने के लिये उसी का प्रयोग होना चाहिये ।
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