Tuesday, October 23, 2012

एक विचार

अटल-आडवाणी-जोशी दरअसल संघ के स्वयंसेवक पहले थे। बीजेपी नेता बाद में। शुरुआती विरोध के बाद सर्वस्वीकार्य हो गए। क्या संघ अपने किसी ऐसे स्वयंसेवक को प्रचारक के तौर पर बीजेपी में नहीं निकाल सकता जिसने दरअसल त्याग का जीवन जिया हो। बेदाग हो और कम से कम 2 पीढ़ियों से जिसका ठीक संवाद हो और आगे की एक पीढ़ी से तरीके से संवाद करने लायक हो। रकम से राजनीति होती है इसे ध्वस्त करने वाला हो। ये स्थापित कर सके कि राजनीति ठीक रही तो, रकम तो, आती ही रहती है।

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