Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्य किसी के विरोध या किसी की प्रतिक्रिया में नहीं हुआ है। यह पूर्ण रूप से हिन्दू समाज को संगठित करने का कार्य हैं और हिन्दू ही क्यों, इसकी व्याख्या डॉक्टर जी ने संघ की स्थापना के समय ही कर दी थी। आज भी बहुत से लोगों को यह भ्रम होता है और इसलिए उसको समझना भी आवश्यक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत जी ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में कहा। संघ के शताब्दी वर्ष में तीन दिनों की व्याख्यानमाला का यह पहला दिन था। संघ कार्य की स्पष्टता करते हुए उन्होंने बहुत विस्तार से इसी विषय पर बात की कि, हिन्दू कौन, हिंदू राष्ट्र क्यों, हिन्दू कहेंगे तो क्या दूसरे लोग छूट जाएंगे। लगभग सवा घंटे के अपने उद्बोधन में डॉक्टर मोहन भागवत ने बड़ी स्पष्टता से कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक स्वयंसेवी संगठन है लेकिन उस स्वयंसेवी संगठन का जितना तीखा विरोध हुआ, जितना कटु विरोध हुआ और जितना झूठा विरोध हुआ, उतना किसी और का नहीं हुआ। इसके बावजूद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सबको अपने साथ लेकर चलने की भावना से कार्य करता है। चालीस वर्ष पहले संघ का विरोध करने वाले आज संघ के साथ हैं। यह सामान्य बात नहीं और ये इसलिए सफल हो पाया है क्योंकि संघ का जो मूल सिद्धांत है कि हिन्दू समाज का मतलब सम्पूर्ण भारत की बात। हिन्दू चार तरह के हैं। पहले- जो हिन्दू हैं, जानते हैं और उस पर गौरव करते हैं। दूसरे- जो जानते हैं कि, हिन्दू हैं, लेकिन गौरव नहीं करते। तीसरे- जो जानते हैं, लेकिन मानते नहीं हैं और चौथे- जो जानते ही नहीं हैं कि, वो हिन्दू हैं। देश में ऐसे लोग हैं जिनको हिंदू नाम पर आपत्ति होती है जबकि हिन्दू नाम कोई हमने तय नहीं किया था। विश्व ने हमें हिन्दू नाम दिया, उसी नाम से पहचाना। कमाल की बात यह कि हिंदू नाम से एतराज़ करने वाले हिंदवी मान लेते हैं , भारतीय मान लेते हैं। हमें इससे कोई दिक़्क़त नहीं है। हिन्दू मानो, हिंदवी मानो, भारतीय मानो। जिस नाम से भी मानो, लेकिन हिन्दू अर्थात् भारत भूमि पर गर्व करने वाला। हिन्दू होने की यही छोटी सी परिभाषा है और इसीलिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शुरू करते डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार ने कहा कि, हम मनुष्य का निर्माण करेंगे और मनुष्य हर कार्य करेगा इसीलिए हम ये भी कहते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कुछ नहीं करता, लेकिन उसके स्वयंसेवक कुछ नहीं छोड़ते। आज स्वयंसेवक समाज के हर क्षेत्र में अच्छा कार्य कर रहे हैं। स्वयंसेवक जो अच्छा कर रहा है, उसका पूरा क्रेडिट उनका है। संघ का कोई क्रेडिट नहीं है। कुछ गड़बड़ हुआ तो उसका डिसक्रेडिट संघ का भी है क्योंकि, स्वयंसेवक संघ से निकला, उसका प्रोडक्ट है और अच्छे काम के लिए संघ सभी की मदद करता है सिर्फ़ स्वयंसेवकों के नहीं। हमने ऐसे ढेरों उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। यह प्रश्न भी उठता है कि, हम स्वयंसेवक पर कितना नियंत्रण रखते हैं। इसका उत्तर है, बिलकुल नहीं। स्वयंसेवक स्वतंत्र है, स्वायत्त है और इसके आगे उसे स्वावलंबी होना है, लेकिन आचार-विचार, संस्कार ये ठीक रहे स्वयंसेवक का, इस पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ध्यान देता है। तीस चालीस वर्ष पहले संघ के जो धुर विरोधी थे वो आज संघ के अपने लगते हैं, लेकिन संघ के लिए उस समय भी अपने थे। अपने देश का ज़िम्मा हम सबका है किसी नेता, किसी पार्टी, किसी सरकार के भरोसे हम देश को नहीं छोड़ सकते हैं। किसी को ठेका नहीं दे सकते। ये हमने बहुत ख़राब सीख लिया कि किसी को ठेका दे देंगे। ऐसे हम विश्व गुरु नहीं बन सकते। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की परिकल्पना जब डॉक्टर जी ने रखी थी तो उसके मूल में ही था किसी भी तरह से हम जब अपनी भूमिका का निर्वाह करें। वह भूमिका जो स्वामी विवेकानंद और स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने आगे बढ़ायी थी।
प्रश्न अक्सर पूछा जाता है कि भारत हिंदू राष्ट्र क्यों हिंदू राष्ट्र इसलिए क्योंकि यहाँ सबके लिए न्याय समान है। पंथ, क्षेत्र, भाषा के आधार पर किसी के साथ अन्याय नहीं होता है। हिंदू होने का मतलब ही देश के साथ प्रेम और वसुधैव कुटुम्बकम की भावना, उसी से हिंदू बनता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ १०० वर्ष का हो गया और शताब्दी वर्ष में नए क्षितिज की बात क्यों इसका उत्तर संघ की प्रार्थना में ही है। संघ कार्य की सार्थकता भारत के विश्व गुरु बनाने में है। स्वामी विवेकानंद कहते थे हर राष्ट्र की अपनी भूमिका है, भारत की भी अपनी भूमिका है। परतंत्रता से मुक्ति के लिए स्वतंत्र होने के लिए अलग अलग धाराएं राजनीतिक तौर पर इंडियन नेशनल कांग्रेस से निकलीं। इंडियन नेशनल कांग्रेस से निकलकर राजनीतिक क्षेत्र में अलग अलग लोगों ने कार्य किया। एक वर्ग वह भी था, जिसे लगता था कि, समाज में बहुत सी कुरीतियां हैं, उसे सुधारना सबसे पहले करना होगा। उस समय संघ ने मनुष्य निर्माण तय किया। संघ का कार्य मनुष्य निर्माण का है, बेहतर भारत के निर्माण का है। संघ ने १०० वर्ष पूर्व तो तय किया, उसे हम बहुत हद तक आज होते हुए देख रहे हैं। कई बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर अलग-अलग तरह के प्रश्न उठते हैं। डॉक्टर जी अपने बाल्यकाल से ही स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा रहे वन्देमातरम आंदोलन 1905-06 में जब चला तो उसमें जैसे कोई स्कूल निरीक्षक विद्यालय निरीक्षक आता था तो बच्चे खड़े होकर वंदेमातरम् बोलते थे। उसे वंदेमातरम आंदोलन कहा गया। बाल्यकाल में हेडगेवार जी ने उसमें नेतृत्व की भूमिका निभाई। बाद में समझौता हुआ कहा कि यह स्थिति बहुत दिन नहीं चलेगी। छात्रों से कहा गया कि शिक्षक कहेंगे कि, आप लोग जो कर रहे थे वो ठीक नहीं था, बच्चे अपनी गलती मानेंगे और इसके लिए अपनी मुंडी हिला देंगे, लेकिन हेडगेवार जी और उनके साथ एक और विद्यार्थी ने इसे भी स्वीकार नहीं किया। उन्होंने कहा कि वन्दे मातरम यानी भारत माता की जय यानी अपनी मातृभूमि की पूजा, उसके लिए क्यों गलती मानना। इसके बाद मेडिकल की पढ़ाई के लिए हेडगेवार जी को कलकत्ता जाना हुआ तो वहाँ पर अनुशीलन समिति के सदस्यों और देश के बड़े क्रान्तिकारियों के संपर्क में आए और मेडिकल की पढ़ाई पूर्ण करने के बाद बर्मा मैं उनको नौकरी का प्रस्ताव होने के बावजूद वहाँ नहीं गए। उनके परिवारवालों ने विवाह प्रस्ताव रखा तो उन्होंने कहा कि यह जन्म सिर्फ़ भारत माता की सेवा के लिए है। अपना सुख अगले जन्म में देखेंगे और इसीलिए हम डॉक्टर जी को जन्मजात देशभक्त कहते हैं। 1920 में स्वतंत्रता आंदोलन में डॉक्टर जी एक वर्ष के लिए जेल गए। उसके पाँच वर्ष पश्चात् राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य शुरू किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य शुरू होने के लगभग पाँच वर्षों के पश्चात जंगल सत्याग्रह में शामिल होने के लिए सरसंघचालक की पदवी छोड़ी और दूसरे व्यक्ति को सरसंघचालक नियुक्त किया। जंगल सत्याग्रह का हिस्सा बने पुनः जेल गए, एक वर्ष बाद लौटे और फिर से सर संघचालक की पदवी ली। देश के बड़े क्रांतिकारियों से डॉक्टर जी के निजी सम्बन्ध थे। राजगुरु को अकोला और नागपुर में भूमिगत रखने में डॉक्टर जी की बड़ी भूमिका थी। शुरू में उनको नागपुर में भूमिगत रखा और जब लगा कि अंग्रेजों के निशाने पर वो आएँगे तो उनको अकोला भेज दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक मात्र लक्ष्य है, देश बड़ा हो, हमारे देश की, भारत माता की अग्रगण्य भूमिका हो। देश को बड़ा करने के लिए क्या करना होगा। समाज परिवर्तन करना होगा समाज में गुणात्मक परिवर्तन करना होगा। रवींद्रनाथ ठाकुर स्वदेशी समाज में लिखते हैं कि हमें स्थानीय नायक तैयार करने होंगे। सम्पूर्ण हिन्दू समाज का संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसीलिए करता है और हिंदू नाम लगाने वालों को देश के प्रति ज़िम्मेदार होना ही होगा सब अपने रास्ते चले और सब एक दूसरे का सम्मान करें। अगर ऐसा कोई सोचता है तो वो हिन्दू है। इसमें कोई भ्रम नहीं होना चाहिए हम किसी के विरोध में उत्पन्न हुए हैं। एक बार गुरु जी से एक स्वयंसेवक ने कहा कि हमारे गाँव में तो न तो मुस्लिम हैं और न ईसाई तो हमें शाखा लगाने की आवश्यकता है क्या। गुरुजी ने कहा कि हमें शाखा लगाने की आवश्यकता भारत के लिए, देश के लिए है। सन्दर्भ देते हुए भागवत जी ने कहा कि हर व्यक्ति थोड़ा बहुत व्यायाम करता ही है। मॉर्निंग वॉक तो करता ही है। क्या इसलिए करता है कि, किसी से जाकर झगड़ा करना है, उससे मारपीट करना है। वह व्यायाम अपने शरीर को स्वस्थ करने के लिए करता है और इसीलिए जो शाखा लगानी है, उसके पीछे एकमात्र उद्देश्य सम्पूर्ण हिन्दू समाज को एक करना है और विश्व में जो भारत की दो अग्रगण्य भूमिका है, उसके लिए स्वयं को तैयार करना है।