हर्ष वर्धन त्रिपाठी
बजट से ठीक पहले टीवी चैनलों पर प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि बढ़ाने की ख़बरों का अनुमान अधिकतर रिपोर्टर और विश्लेषक करने लगे थे। 6000 रुपये से बढ़ाकर 10000 रुपये देने की बात कहते विश्लेषक बता रहे थे कि, पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों में नाराज़ किसानों को संतुष्ट करने के लिए मोदी सरकार ऐसा कर सकती है। हालाँकि, मुझे पूरा भरोसा था कि, मोदी सरकार के बजट में ऐसी लोकलुभावन घोषणा नहीं होने वाली है और मेरा मानना है कि, यह अर्थशास्त्र के लिहाज़ से बेहद ख़राब होता और इससे राजनीतिक लाभ भी बमुश्किल मिलता है। अच्छा हुआ कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण क्षणिक चुनावी लाभ के लोभ में नहीं फँसे और किसानों के हाथ में जाने वाली रक़म बढ़ाने के बजाय किसानों को मज़बूत करने वाले निर्णय लिए। कृषि क़ानूनों को वापस लेने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यह बड़ी चुनौती है कि, किस तरह से देश के 90 प्रतिशत से अधिक छोटे और सीमांत किसानों के हित वाले कृषि क़ानूनों को लागू करें। सीधे तौर पर उन कृषि क़ानूनों को लागू करने जोखिम भरा है, इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसी रास्ते पर चले, जिसके लिए उनकी पहचान है। और, वह रास्ता है, लंबे समय में बेहतर परिणाम देने वाले फ़ैसलों को बिना झिझक लागू करना।
कर्जमाफी, सब्सिडी और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में बढ़ोतरी जैसे शब्द बजट में सुनने को नहीं मिले तो किसान नेताओं ने कहाकि, मोदी सरकार ने उनसे आंदोलन का बदला लिया है। अब सवाल यही है कि, क्या इस बजट में किसानों के लिए कुछ भी नहीं है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों से आंदोलन करने का बदला लिया है। इसका जवाब बजट में किए गए 5 बड़े ऐलानों से स्पष्ट हो जाता है। पहला- एमएसपी पर ख़रीद, दूसरा- पराली जलाने से रोकने पर सरकार की प्रतिबद्धता, तीसरा- आधुनिक ड्रोन तकनीक के ज़रिये किसानों की फसल का अनुमान लगाने, भूमि रिकॉर्ड पुख़्ता करने और खेती से जुड़ी दूसरी आवश्यकताओं की पूर्ति करना, चौथा- गंगा के किनारे-किनारे 5 किलोमीटर के दायरे में रसायन रहित प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना और पाँचवां- खेती से जुड़े स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए नाबार्ड के ज़रिये आर्थिक सहयोग देकर नौजवान किसानों को आधुनिक कृषि बाज़ार तैयार करने के लिए प्रेरित करना। बजट में वित्त मंत्री ने बताया कि 2 लाख 37 हज़ार करोड़ रुपये सरकारी खरीद से किसानों के खाते में सीधे पहुँचे हैं और इससे एक करोड़ तिरसठ लाख किसानों को लाभ हुआ है। अगले वित्तीय वर्ष के लिए बजट में ढाई लाख करोड़ रुपये एमसएसपी खरीद के लिए सरकार ने प्रावधान कर दिया है। अब किसानों के सामने स्पष्टता है कि, सरकार कितने की ख़रीद एक अप्रैल 2022 से 31 मार्च 2023 तक करने जा रही है, इससे किसानों के लिए अपनी फसल उसी लिहाज से उगाने का अवसर है। एमएसपी वाली उपज देश भर में ढाई लाख करोड़ रुपये की ही खरीदी जानी है। अब किसान चाहें तो इसके लिहाज़ से गेहूं और धान के अतिरिक्त दूसरी उपज की योजना तैयार कर सकते हैं। पराली का उपयोग थर्मल पावर प्लांट में करने की सरकार की घोषणा से किसानों को भी लाभ मिलेगा और पर्यावरण भी बेहतर हो सकेगा। बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पांच से सात प्रतिशत बायोमास पेलेट थर्मल पावर प्लांट में उपयोग की बात कही है। कृषि में ड्रोन का उपयोग किसानों के लिए चमत्कारिक तौर पर लाभकारी हो सकता है। कम लागत में खेती से जुड़ी आवश्यकताओं की पूर्ति ड्रोन के ज़रिये हो सकेगी। अब तक गंगा के किनारे के कछार खेती के लिहाज से बहुत उपयोगी नहीं रहे हैं, लेकिन रसायन रहित प्राकृतिक खेती के ज़रिये इन क्षेत्रों में रहने वाले किसानों को लाभ मिल सकता है। और, खेती के स्टार्टअप नाबार्ड के ज़रिये बढ़ावा देने का बजट का एलान नौजवानों को खेती के क्षेत्र में नये प्रयोग करने के लिए प्रेरित करेगा। कृषि क़ानूनों को बिना लागू किए सरकार डिजिटल खेती को बढ़ावा देकर दरअसल, कृषि क़ानूनों के लाभ किसानों को देना चाहती है, लेकिन इन पाँचों एलानों से अलग खेती-किसानी के लिए प्राणवायु एलान है केन-बेतवा नदी को जोड़ने की परियोजना को धरातल पर उतारने के लिए बजट में किया गया 1400 करोड़ रुपये का प्रावधान।
केन-बेतवा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 13 ज़िलों में किसानों और खेतों के लिए संजीवनी का काम करेगी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसका सपना देखा था। अब मोदी सरकार उस सपने को हक़ीक़त में बदलने जा रही है। केन का पानी बेतवा में लाने की यह योजना बुंदेलखंड के किसानों का जीवन बदल देगी। बुंदेलखंड में जल संकट इतना गहरा है कि, यहाँ की महिलाओं के लोकगीत में, गगरी न फूटे, खसम मरि जाये, सुनने को मिलता है। उस बुंदेलखंड को जल संकट से उबारने के लिए नरेंद्र मोदी की सरकार ने लगातार काम किया है और अब केन-बेतवा परियोजना वहाँ के लोगों और किसानों के लिए बहुत बड़ी सौग़ात है। वर्ष 2021 बीतते मोदी सरकार ने जिस तरह से उत्तर प्रदेश के क़रीब तीस लाख किसानों के खेतों में पानी पहुँचाने वाली सरयू राष्ट्रीय नहर परियोजना पूरी की है, उससे मोदी सरकार पर इस तरह की परियोजना को पूरा करने का भरोसा बढ़ा है। केन-बेतवा परियोजना पर क़रीब पैंतालीस हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है और इसे आठ वर्षों में पूरा किया जाना है। परियोजना पूरी होने के बाद 9 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित हो सकेगी, 62 लाख लोगों को पीने का पानी मिल सकेगा। केन-बेतवा परियोजना को तेज़ी से लागू करने के अलावा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पाँच नदियों को जोड़ने के लिए परियोजना रिपोर्ट तैयार करने का भी एलान किया है। दमनगंगा-पिंजाल, तापी-नर्मदा, गोदावरी-कृष्णा, कृष्णा-पेन्नार और पेन्नार-कावेरी नदियों को जोड़ने की विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने का एलान मोदी सरकार ने किया है। अराजक कृषि क़ानून विरोधी आंदोलन की वजह से भले नरेंद्र मोदी ने आधुनिक कृषि क़ानूनों को वापस ले लिया, लेकिन इस बजट से स्पष्ट हो गया है कि, मोदी सरकार किसानों की मूलभूत समस्याओं को दूर करने पर निरंतर काम करती रहेगी और, किसानों को सरकार के भरोसे नहीं आत्मनिर्भर होने की दिशा में मज़बूत करने के निर्णय लेती रहेगी।
(यह लेख आज दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में छपा है)
सटीक विश्लेषण ..
ReplyDeleteजय-जय