Sunday, February 06, 2022

उत्तर प्रदेश में भाजपा की राह पश्चिम से अधिक पूरब में कठिन है

हर्ष वर्धन त्रिपाठी



 उत्तर प्रदेश में पहले और दूसरे चरण के चुनाव पश्चिमी उत्तर प्रदेश से शुरू हो रहे हैं।सबकी नज़रें पहले और दूसरे चरण के मतदान पर हैं क्योंकि, इसी से पूरे प्रदेश का माहौल बनेगा, ऐसा माना जा रहा है। पहले-दूसरे चरण के मतदान वाली विधानसभा सीटों पर मुसलमान मतदाताओं की संख्या बहुत अधिक होने और अखिलेश यादव के साथ जयंत चौधरी के आने से यह प्रश्न बड़ा होता जा रहा है कि, भारतीय जनता पार्टी की मुश्किल कितनी बढ़ेगी। यही वजह है कि, स्वयं अमित शाह ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मोर्चा सँभाल लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 31 जनवरी से वर्चुअल रैली के बाद अब 7 फ़रवरी को बिजनौर में पहली सभा करने जा रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी पूरी ताक़त लगा दी है। यह सब इसके बावजूद है कि, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने टिकट बहुत सलीके से बाँटा है। जहां ख़राब रिपोर्टी मिली, बिना हिचके विधायकों के टिकट काटे, लेकिन पूरब में भारतीय जनता पार्टी ऐसा कर पाती नहीं दिख रही है। जिन विधायकों के प्रति जनता में और विशेषकर भाजपा के कार्यकर्ताओं में आक्रोश है, उनका टिकट भी भारतीय जनता पार्टी नहीं काट पाई है। और, प्रयागराज की उत्तरी विधानसभा जैसी सीटें हैं, जहां समय से प्रत्याशी नहीं घोषित कर पाई है। जौनपुर में दूसरे दलों से आकर जीते प्रत्याशियों के ख़िलाफ़ माहौल होने के बावजूद उनका टिकट नहीं काट पाई। जौनपुर, मऊ, आज़मगढ़ और ग़ाज़ीपुर में ओमप्रकाश राजभर का भी प्रभाव कई विधानसभा क्षेत्रों में है। ऐसे में  भारतीय जनता पार्टी के लिए पश्चिम से अधिक मुश्किल राह पूरब में दिख रही है। टिकट बँटवारे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ना के बराबर चली है। 

दूसरी पार्टियों से आकर भाजपा से विधायक बने नेताओं ने भाजपा कार्यकर्ताओं को ही पाँच वर्षों तक किनारे रखा और इसकी वजह से कार्यकर्ताओं का आक्रोश है, लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्या के पार्टी छोड़ने के बाद बने माहौल के बाद भाजपा ने पूरब में कम विधायकों के टिकट काटे। अब भारतीय जनता पार्टी को पूरब में ओमप्रकाश राजभर के साथ मुसलमान मतों की गोलबंदी की काट के तौर पर मोदी-योगी का नाम ही दिख रहा है। मुख़्तार अंसारी पर हुई कार्रवाई ने हिन्दू मतदाताओं को एकजुट किया है तो यह भी सच है कि, मऊ, ग़ाज़ीपुर और आज़मगढ़ में मुस्लिम मतदाता भाजपा को हराने के लिए पूरी ताक़त समाजवादी पार्टी और ओमप्रकाश राजभर के गठजोड़ के साथ आँख मूँदकर खड़े होते दिख रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी की अब पूरी कोशिश है कि, चुनाव पूरी तरह से मोदी-योगी पर हो जाए तो 2017 वाली गोलबंदी उसके साथ जाए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मोटे तौर पर जातीय गोलबंदी में भी भाजपा को कोई ख़ास नुक़सान नहीं हुआ है। जाटों की जिस नाराज़गी की बात जा रही है तो अजित सिंह के विरोध में होने की वजह से उतनी दूसरी तो पहले से ही थी। अब कृषि क़ानून विरोधी आंदोलन की वजह से भले जाट राजनीति का तड़का भाजपा के विरुद्ध लगता दिख रहा हो, लेकिन अमित शाह ने और स्थानीय स्तर पर डॉ संजीव बालियान जैसे जाट नेताओं ने भाजपा की समीकरण साध दिया है। समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों के भड़काऊ बयानों ने भी भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में काम किया है, लेकिन पूरब में फ़िलहाल ऐसी कोई सहूलियत भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में नहीं दिख रही है। 

भारतीय जनता पार्टी को पूर्वांचल में भरोसा पार्टी की सबसे बड़ी ताक़त नरेंद्र मोदी पर ही है। काशी से नरेंद्र मोदी का जनप्रतिनिधि होना भाजपा की कमज़ोरियों को ढँक पाएगा क्या और साथ ही योगी आदित्यनाथ का गोरखपुर शहर से चुनाव लड़ना ब्रांड मोदी में कितना जोड़ पाएगा, अब भाजपा की पूरी उम्मीद इसी पर टिकी है। गोरखपुर से योगी आदित्यनाथ का चुनाव लड़ना स्वाभाविक पसंद है, लेकिन गोरखपुर शहर से योगी आदित्यनाथ के चुनाव लड़ने के पीछे एक वजह यह भी है कि, पूर्वांचल में समीकरण के लिहाज़ से भाजपा के लिए कठिन होती लड़ाई मुख्यमंत्री के चुनाव लड़ने से गोरखपुर सहित कुशीनगर, देवरिया और बस्ती ज़िलों में आसान हो सकती है। लंबे समय बाद पूर्वांचल को मुख्यमंत्री मिली है, यह भारतीय जनता पार्टी के लिए लाभकारी हो सकता है। पूर्वांचल में भारतीय जनता पार्टी के लिए सहूलियत यही है कि, यहाँ चुनाव आख़िरी चरणों में हैं और तब तक पश्चिम और अवध क्षेत्र की हवा पूरब की हवा पर प्रभाव डालेगी। इस सबके बावजूद दिख रहा है कि, पूरब में भारतीय जनता पार्टी की सीटें घटने जा रही हैं जबकि, उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के साथ 2014 से ही विकास योजनाओं में हिस्सेदारी मज़बूत हो गई थी और 2017 में उत्तर प्रदेश में भी भाजपा की सरकार बन जाने के बाद पूरब विकास के हर पैमाने पर पश्चिम के मुक़ाबले खड़ा हो गया। पूर्वांचल एक्सप्रेस वे हो या प्रयागराज से काशी का हाईवे-रेलवे हो या फिर हवाई यात्रा- पूरब की यात्रा भाजपा ने हर किसी के लिए आसान की है, लेकिन क्या भाजपा के लिए पूरब की राजनीतिक यात्रा भी उतनी आसान हो पाएगी। इसका उत्तर सहजता के साथ भाजपा के नेता भी नहीं दे पा रहे हैं। सब यही कह रहे हैं कि, पछुआ हवा अच्छी चली तो पूरब में भी राजनीतिक खेती ठीक हो जाएगी।

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