हर्ष वर्धन त्रिपाठी
संसद में रेलवे मंत्री पीयूष गोयल ने कहाकि, महाराष्ट्र सरकार ने मुम्बई-अहमदाबाद बुलेट
ट्रेन परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अतिमहत्वाकांक्षी मुम्बई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना पर ग्रहण लग गया है। रेलवे मंत्री पीयूष गोयल ने संसद में कहाकि, इस परियोजना के लिए गुजरात ने अपने हिस्से में आने वाली 95 प्रतिशत ज़मीन का अधिग्रहण कर लिया है, लेकिन महाराष्ट्र में नयी सरकार ने कुछ भी नहीं किया। राजनीतिक लड़ाई में राज्यों का विकास पीछे रह जाने का यह पहला उदाहरण नहीं है और इस समय राज्यों और केंद्र के बीच हो रहा संघर्ष जिस तरह से निजी महत्वाकांक्षा का संघर्ष बन गया है, उसमें लगातार ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिसमें आर्थिक तरक़्क़ी की परियोजनाओं को बदला, बंद किया जा रहा है। महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना एक साथ मिलकर लड़े थे, लेकिन मुख्यमंत्री पद की लड़ाई इतनी बढ़ गयी कि शिवसेना ने भारतीय जनता पार्टी का साथ छोड़कर शरद पवार की पार्टी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली। राजनीति में सत्ता के लिए एक पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी के साथ चले जाना कोई नयी और अनोखी बात नहीं है और, इससे जनता को ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता। कार्यकर्ताओं का भरोसा भले टूटे, लेकिन जनता को मुश्किल होने लगती है, जब राजनीतिक सत्ता की लड़ाई आर्थिक विकास, जनता की सहूलियत की योजनाओं पर भारी पड़ने लगे। मुम्बई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना को महाराष्ट्र सरकार की ओर से ठंडे बस्ते में डालना उसी ओर जा रहा है।
महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली सरकार ने सिर्फ़ भारतीय जनता पार्टी से लड़ाई नहीं ली है बल्कि भाजपा की अगुआई वाली केंद्र की सरकार के हर फ़ैसले के उलट जाने की नीति भी अपना ली है। और, इसी नीति की वजह से देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई के लोगों के जनजीवन पर प्रभाव डालने वाली परियोजनाओं में देरी हो रही है। मुम्बई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना जैसी ही एक और परियोजना है, मेट्रो का निर्माण। मेट्रो की तीसरी लाइन का निर्माण राजनीतिक रस्साकशी में लगातार देर होता जा रहा है। उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री बनने के बाद क़रीब सात लाख करोड़ रुपये की ऐसी परियाजनाओं को रोककर उनकी समीक्षा करने का आदेश दे दिया था, जो पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के समय में शुरू की गयीं थीं। सत्ता हासिल करने के लिए नेता कुछ भी करते हैं, अपने पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों के शुरू किए काम पर अपना ठप्पा लगाकर श्रेय लेते हैं, लेकिन इस सबके बावजूद राजनीतिक ज़रिये से ही देश के आर्थिक विकास की कहानी आगे बढ़ाई जा सकती है। उत्तर प्रदेश इसका शानदार उदाहरण है कि अखिलेश यादव के महत्वाकांक्षी आगरा लखनऊ एक्सप्रेस वे के बचे हुए काम को योगी आदित्यनाथ की सरकार ने तेज़ी से पूरा कराया। ऐसे ही लखनऊ मेट्रो के काम की शुरूआत भी अखिलेश यादव के समय में हुई, लेकिन उसे तेज़ी से पूरा योगी आदित्यनाथ की सरकार ने करवाया। अखिलेश यादव कई बार आरोप भी लगाते हैं कि योगी सरकार उनके ही शुरू किए कामों का फ़ीता काट रही है, लेकिन पहले की सरकारों में जिन एक्सप्रेस वे और विकास परियोजनाओं की कल्पना हुई और नहीं भी हुई, उनको भी योगी आदित्यनाथ की सरकार तेज़ी से पूरा करा रही है। इसीलिए राज्य की जनता को इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता कि परियोजना किसके समय में शुरू हुई और किसके समय में पूरी हुई। पूर्वांचल एक्सप्रेस वे को एक अप्रैल से शुरू करने की योजना है। गंगा एक्सप्रेस वे और बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे के ज़रिये पूरे राज्य को एक्सप्रेसवे से जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना की वजह से योगीराज में उत्तर प्रदेश की पहचान हाईवे प्रदेश के तौर पर होने लगी है। बरेली हवाई अड्डे की शुरुआत के साथ ही उत्तर प्रदेश में अब आठ हवाई अड्डे हो गए हैं। लखनऊ और वाराणसी के अलावा आगरा, प्रयागराज, गोरखपुर, कानपुर और गाजियाबाद में हिंडन हवाई अड्डे से उत्तर प्रदेश का हर हिस्सा जुड़ चुका है। इसी वजह से उत्तर प्रदेश तेज़ी से देश के विकसित राज्यों के मुक़ाबले खड़ा हो गया है, लेकिन उत्तर प्रदेश जैसा उदाहरण राजनीति में बहुत कम राज्यों में देखने को मिलता है।
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की भारतीय जनता पार्टी से राजनीतिक लड़ाई का परिणाम विकास परियोजनाओं पर पड़ रहा है तो पंजाब में कैप्टन अमरिंदर की सरकार कृषि क़ानूनों पर भावनात्मक उबाल की आड़ में निजी कंपनियों के ख़िलाफ़ लोगों को भड़काकर राज्य का ही नुक़सान कर रही है। सीधे लाभार्थी के खाते में रक़म पहुँचने से भ्रष्टाचार कम होता है और इससे MSP की पूरी रक़म पारदर्शी तरीक़े से किसानों के खाते में बिना किसी बिचौलिये के पहुँच सकती है, लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर इसका भी विरोध कर रहे हैं। यह सीधे तौर पर विकास की परियोजना भले न दिखे, लेकिन किसानों के विकास के लिए यह अतिआवश्यक है। रेलवे, राष्ट्रीय राजमार्ग पर टोल वसूली के साथ ही पंजाब के उद्योगों को हाल बुरा हो गया है। उद्योग संगठनों के अनुमान के मुताबिक़, प्रतिदिन 3 हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा का नुक़सान किसानों के नाम पर हो रहे आंदोलन की वजह से हो रहा है। दिल्ली और उससे जुड़े राज्यों की सीमा पर उद्योगों की स्थिति ख़राब हो रही है, लेकिन राजनीतिक लड़ाई जीतने की कोशिश में दिल्ली और राजस्थान के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और अशोक गहलोत आंदोलन को भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। कमाल की बात यह है कि कैप्टन अमरिंदर हों, केरीवाल हों या फिर अशोक गहलोत, हर किसी ने कृषि क़ानूनों को किसानों के लिए ज़रूरी और निजी निवेश लाने के लिए आवश्यक क़ानून बताया था, लेकिन राजनीतिक अहंकार की लड़ाई में महाराष्ट्र से लेकर दिल्ली तक राजनीतिक दल जनता के हित की परियोजनाओं का विरोध करके विकास की रफ़्तार रोक रहे हैं। हरियाणा की विधानसभा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने साहस दिखाते हुए किसानों के साथ खड़े रहकर कृषि क़ानूनों को वापस लेने की माँग को ठुकरा दिया और विधानसभा में कांग्रेस नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा का लाया अविश्वास प्रस्ताव 32 के मुक़ाबले 55 मतों से गिरा दिया। हरियाणा विधानसभा में लठतंत्र पर लोकतंत्र की जीत हुई है। सभी नेताओं को अधिकार है कि सत्ता हासिल करने के लिए दूसरे राजनीतिक दल का जमकर विरोध करें, लेकिन विकास परियोजनाओं और आधुनिक व्यवस्था का विरोध करके देश को पीछे ले जाने से बचना चाहिए। हो सकता है कि तुरन्त ऐसी विकास विरोधी हरकतों का लाभ मिले, लेकिन लंबी राजनीति में इसका नुक़सान होना तय है क्योंकि, पब्लिक है यह सब जानती है।
(यह लेख https://hindi.moneycontrol.com/news/country/bullet-train-politcs-holding-back-development-maharashtra-gov-vs-narendra-modi_258555.html पर छपा है)
बहुत ही रोचक एवम राजीनीति से विकाश का काम का रुकना किसे कहते है इसको पढ़ कर समझ आ गया है
ReplyDeleteमहाराष्ट्र में उद्धव सरकार की सरकार नहीं वहां कांग्रेस के राजकुमार की सरकार है जो देश को आए दिन गाली दे रहा है।
ReplyDeleteयही हाल ममता बनर्जी का भी है , सारी विपछि सरकारों को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शाशन लगा देना चहिये
ReplyDeleteSir, ye politician bhul jaate hai ki inke in actions ye, badi companies aur investers ka vishwas india par kam hota hai, aur isse investment par assar hota hai, investment kam hone se raojgar par assar Partha hai aur economy par bhi.
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