हर्ष वर्धन त्रिपाठी
पश्चिम बंगाल का चुनाव बाक़ी चार राज्यों के चुनावों पर भारी पड़ता दिख रहा है और पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी तेज़ी से बड़ी होती जा रही है। 2016 में मात्र 3 विधायकों वाली भारतीय जनता पार्टी के लिए तृणमूल कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर कह रहे हैं कि 100 से ज़्यादा सीटें जीतीं तो चुनाव प्रबंधन का काम छोड़ दूँगा। प्रशांत किशोर का यह बयान ही स्पष्ट कर देता है कि पश्चिम बंगाल का चुनाव क्यों सबसे ज़्यादा चर्चा में है और उसमें भी भारतीय जनता पार्टी की बढ़त की ही बात हर कोई क्यों कर रहा है। भारतीय जनता पार्टी बहुत बड़ी हो गई है, इसे लेकर भाजपा के घोर विरोधियों के मन में भी कोई संदेह नहीं है और संदेह की सुई अब ममता बनर्जी की तरफ़ घूम चुकी हैं कि तृणमूल कांग्रेस लगातार तीसरी बार सत्ता में आएगी या नहीं। और, यह संदेह तृणमूल कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर के बयान लगातार बदलती चुनावी रणनीति, नारे से ज़्यादा ही बढ़ता जा रहा है। प्रशांत किशोर ने आक्रामक ममता दीदी को अब व्हीलचेयर पर पैर लटकाए, दुर्गा पाठ और चंडी पाठ करती ममता बनर्जी बना दिया है। पश्चिम बंगाल की राजनीति में राजनीतिक हिंसा वामपंथियों के समय से ऐसे जुड़ गयी है कि लगता है कि इससे क्या कभी छुटकारा मिल सकेगा और इसी वजह से सत्ता और राजनीतिक हिंसा से आक्रामक तरीक़े से टकराने वाली पार्टी और उसके नेता को ही बंगाल की जनता विकल्प के तौर पर स्वीकारती रही है। वामपंथियों से सत्ता छीनकर तृणमूल कांग्रेस को देने की सबसे बड़ी वजह के तौर पर बंगाल की जनता ने ममता बनर्जी की उसी आक्रामकता को देखा था और नतीजा पश्चिम बंगाल से क़रीब साढ़े तीन दशक का वामपंथी शासन ख़त्म हो गया। अब ममता बनर्जी के समय में बढ़ गई राजनीतिक हिंसा के मुकाबले बंगाल के लोगों को भारतीय जनता पार्टी विकल्प के तौर पर दिख रही है। और, यह बात ममता बनर्जी भी समझ रही हैं।
ममता बनर्जी के ऊपर सत्ता हाथ से जाने का डर अब सार्वजनिक तौर पर दिखने लगा है। इसका सबसे पहला सार्वजनिक प्रदर्शन तब हुआ था, जब भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के काफिल हुए हमले के बाद भारतीय जनता पार्टी आक्रामक हुई और मंच पर सार्वजनिक तौर पर ममता बनर्जी ने चड्डा-फड्डा-नड्डा-भड्डा कह डाला। यह कोई रणनीति नहीं थी, यह ममता बनर्जी के मन में बढ़ते डर का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन था, इसके बाद हंबा-रंबा भी सबने सुना और सबको अब्बा-डब्बा-जब्बा सुनाई दिया। ममता बनर्जी की यह हालत बंगाल के लोगों को चौंका रही थी, लेकिन इसके साथ एक दशक की सत्ता का विकल्प की खोज की बुनियादी वजह भी मज़बूत कर रही थी। पश्चिम बंगाल के लोग, जिन्होंने 2011 में वामपंथी हिंसा, सिंडीकेट, कमीशनखोरी, वसूली से बचने के लिए आक्रामक, तीखे तेवर वाली, सादा जीवन जीने वाली ममता बनर्जी को चुना लिया था, लगभग उन्हीं वजहों से अब परिवर्तन की इच्छा रखने वाला भद्रलोक का मतदाता अब भारतीय जनता पार्टी को देख रहा है और इसका उदाहरण यह भी है कि तृणमूल कांग्रेस के ताकतवर स्तंभ रहे नेता अपनी राजनीतिक ज़मीन बचाने के लिए तृममूल कांग्रेस का साथ छोड़कर भारतीय जनता पार्टी के पाले में चले जा रहे हैं। शुभेंदु अधिकारी का भारतीय जनता पार्टी में जाना बंगाल में अवश्यंभावी हो चले बदलाव का चरण था। ममता बनर्जी का डर बहुत ज़्यादा हो गया था। लगातार कोशिश के बावजूद शुभेंदु अधिकारी तृणमूल कांग्रेस में नहीं रुके। इसका सीधा सा मतलब था कि उनको तृणमूल का भविष्य नहीं दिख रहा था। शुभेंदु ताकतवर मंत्री थे और उनका टिकट काटने की कोई स्थिति दूर-दूर तक नहीं थी। शुभेंदु अधिकारी ने ने सिर्फ़ तृणमूल कांग्रेस छोड़ी बल्कि ममता बनर्जी को नंदीग्राम में चुनौती दे दी। ममता बनर्जी ने रणनीतिक तौर पर यहीं बड़ी गलती कर दी। ममता बनर्जी, शुभेंदु अधिकारी के गृह क्षेत्र में यह सोचकर चुनाव लड़ने चली आईं कि शुभेंदु यहाँ से नहीं लड़ेंगे तो मनोवैज्ञानिक तौर पर उन्हें बढ़त लेने में आसानी हो जाएगी, लेकिन हुआ उनकी उम्मीदों से उल्टा। शुभेंदु ममता बनर्जी को और नंदीग्राम को बहुत अच्छे से जानते हैं। उन्होंने कहाकि ममता बनर्जी कम से कम पचास हज़ार मतों से हारेंगी।
शुभेंदु अधिकारी ने ख़ुद के लिए और भारतीय जनता पार्टी के लिए भी मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल कर ली थी। ममता बनर्जी नामांकन करने नंदीग्राम पहुँची तो भारतीय जनता पार्टी का डर ही था कि उन्हें मंदिर-मंदिर जाना पड़ा और मंच पर चंडीपाठ भी करना पड़ा। हालाँकि, शुभेंदु ने ग़लत चंडीपाठ का आरोप लगाकर ममता बनर्जी पर फिर हमला बोल दिया। ममता बनर्जी का वाहनचालक उतना सतर्क नहीं रह पाया और नामांकन के ही दिन ममता बनर्जी के पैर में चोट आ गई। भारतीय जनता पार्टी और शुभेंदु अधिकारी से लड़ाई से भयभीत ममता बनर्जी ने इस चोट को इस तरह पेश करने की कोशिश की, जैसे उन पर हमला हो गया है, लेकिन आज के अतिपारदर्शी समय में सबकुछ सामने आ जाता है। ममता बनर्जी की चोट के मामले में चश्मदीद और घटनाक्रम ने सब स्पष्ट कर दिया। दो दिन में ही प्लास्टर से पट्टी से बंधा ममता का पाँव और चुनाव आयोग की रिपोर्ट ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। ममता बनर्जी ख़ुद को हिंदू ब्राह्मण बता रही हैं। यह दिखा रहा है कि ममता बनर्जी राजनीतिक तौर पर जबदस्त डर का शिकार हो चली हैं, इसीलिए रणनीतिक तौर पर बेहतर निर्णय लेने में भी नाकाम हो रही हैं। एक तरफ़ ममता बनर्जी कह रही हैं कि भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीतने के लिए हिंदुत्व का उपयोग कर रही है, दूसरी तरफ़ ममता बनर्जी ख़ुद को हिन्दू ब्राह्मण बता रही हैं, मंदिर-मंदिर जा रही हैं। नामांकन से पहले राजनीतिक मंच से चंडी पाठ कर रही हैं और अब व्हीलचेयर पर बैठकर मंच से दुर्गा पाठ भी कर डाला। यह सब स्पष्ट तौर पर दिखाता है कि ममता बनर्जी की कोई भी रणनीति अब उनकी योजना से नहीं बन रही है, उनकी हर राजनीतिक रणनीति, भारतीय जनता पार्टी की रणनीति की काट के तौर पर दिख रही है और यही ममता बनर्जी के नेता होने पर सवाल खड़ा कर रहा है और दिखा रहा है कि ममता बनर्जी का डर बहुत बढ़ गया है। और, यह इतिहास बताता है कि पश्चिम बंगाल की जनता डरे हुए नेता को अपना नेता नहीं चुनती।
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