हर्ष वर्धन त्रिपाठी
बिकरू
गांव का विकास दुबे आज के सन्दर्भों में राक्षस था और उसका अंत तो ऐसे ही होना था।
किसी दूसरे अपराधी की गोली से या फिर पुलिस की गोली से, लेकिन जिस तरह से उत्तर
प्रदेश पुलिस उसे पकड़ने में नाकाम रहने के बाद उज्जैन से लेकर आ रही थी और रास्ते
में एनकाउंटर कर दिया, उससे सवाल उठना स्वाभाविक है। अब उन सवालों पर बहुत बात हो
चुकी है, इसलिए उन सवालों से आगे बढ़कर मूल सवालों की तरफ बढ़ते हैं। उत्तर प्रदेश
और बिहार जैसे राज्यों में सबसे बड़ा सवाल यही है कि जातीय दंभ और उसके आधार पर
अपराधिक राजनीति को कौन बढ़ावा देता है। इस बड़े सवाल का जवाब कुकर्मी विकास दुबे
के खात्मे के साथ ही सामने आ गया है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और योगी
आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, इसलिए यही सवाल उठाया जा रहा है कि किसे
बचाने के लिए विकास दुबे का एनकाउंटर पुलिस ने कर दिया। इसका जवाब जानने के लिए
पहले इस घटनाक्रम को ध्यान में रखिए। इसे भले ही अब कोई मानेगा नहीं, लेकिन सच तो
यही है कि 2-3 जुलाई की रात उत्तर प्रदेश पुलिस विकास दुबे का एनकाउंटर करने ही गई
थी। विकास दुबे और उसके साथियों की पूछताछ में सामने आई बातें तो इसी ओर इशारा कर
रही हैं। जिस विकास दुबे पर बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के शासन में कभी
कोई कार्रवाई नहीं हुई, योगी आदित्यनाथ सरकार में उस अपराधी के खिलाफ कार्रवाई की
स्वीकृति दे दी गई। लंबे समय से चौबेपुर थाना क्षेत्र में अपराध कर रहे विकास दुबे
को जिंदा या मुर्दा लाने वाले ऑपरेशन की इजाजत दे दी गई थी। अब विकास दुबे के
एनकाउंटर के बाद भले ही सीधे तौर पर उसके अपराधों को बढ़ावा देने वालों का नाम
कागजों में न दर्ज हो सके, लेकिन विकास दुबे के पुलिसकर्मियों की हत्या और उसके
बाद विकास दुबे के मारे जाने के दौरान राजनीतिक पार्टियों ने जिस तरह का व्यवहार
किया, उसने उत्तर प्रदेश को झूठे जातीय दंभ के दलदल में फंसाकर जातिगत राजनीति
करने की इच्छा रखने वालों को जरूर बेनकाब कर दिया है।
समाजवादी
पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव तो एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में विकास
दुबे के एनकाउंटर की बात करते बोल गये कि निर्दोष लोगों का एनकाउंटर हो रहा है और
सरकार पर हमला करने की हड़बड़ी में शहीद पुलिसकर्मियों की संख्या एंकर के दुरुस्त
करने पर भी सही नहीं बता सके। समाजवादी पार्टी का राज पूरी तरह से जातीय गणित पर
टिका होता है, इसे समझने के लिए कोई वैज्ञानिक होने की जरूरत नहीं है और 2017 में
जातीय समीकरणों के ही पूरी तरह से शीर्षासन कर जाने की वजह से जातीय राजनीति करने
वाली पार्टियां न्यूनतम हो गईं, लेकिन समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता टीवी की बहसों
में अभी भी अपराधी विकास दुबे के बजाय ब्राह्मण विकास दुबे पर ज्यादा जोर से चर्चा
करते दिख रहे हैं। हर बहस में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के प्रवक्ता यह साबित
करने से नहीं चूक रहे कि योगीराज में ब्राह्मणों की हत्या हो रही है और कमाल की
बात यह कि विकास दुबे पर हो रही टीवी की बहस में भी समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता
एक ही सांस में विवेक तिवारी और कमलेश तिवारी की हत्या का भी जिक्र कर देते हैं।
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के सोशल मीडिया अभियानों से साफ समझ आता है कि योगी
आदित्यनाथ के खिलाफ कोई मुद्दा न खोज पाई समाजवादी पार्टी और कांग्रेस अब इसे
ठाकुर राज में ब्राह्मण की हत्या करार देना चाहती है। लोगों को बहुत स्पष्ट दिख
रहा था कि जब विकास दुबे पकड़ में नहीं आ रहा था और उसका घर गिर रहा था, उसके अपराधी साथियों
को पकड़ने के साथ उनका एनकाउंटर किया जा रहा था, उस समय समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के लोग योगी
राज में ब्राह्मणों की हत्या जैसी सूची साझा कर रहे थे और यह अभियान कांग्रेस और
समाजवादी पार्टी के सामान्य कार्यकर्ताओं तक सीमित नहीं है। समाजवादी पार्टी इसके
जरिये ब्राह्मणों को जातीय आधार पर भड़काकर उन्हें भाजपा से दूर करने की योजना बना
रही थी तो कांग्रेस पूरी तरह से उस ब्राह्मण मतदाता को अपने पाले में लाने का
प्रयास कर रही थी और कांग्रेस की तरफ से उत्तर प्रदेश की लड़ाई संभाल रहीं
प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ कांग्रेसी नेता जितिन प्रसाद ने मोर्चा संभाल रखा है।
समाजवादी
पार्टी की तरफ से कई ऐसे वीडियो और आंकड़े तैयार किए गए, जिससे योगी आदित्यनाथ की
सरकार को ब्राह्मणों के खिलाफ दिखाया जा सके और ऐसा ही एक वीडियो समाजवादी पार्टी
की प्रवक्ता, समाजवादी सरकार में महिला आयोग की सदस्य और आगरा से समाजवादी पार्टी
की प्रत्याशी रही डॉक्टर रोली तिवारी मिश्रा ने ट्विटर पर साझा करते हुए लिखा कि,
आप मुझे जातिवादी कहकर कोस सकते हैं, लेकिन सच यही है कि उत्तर प्रदेश में लगातार
ब्राह्मणों को हत्या हो रही है और सरकार चुप है। जातीय दंभ इस सपा नेता को इतना है
कि अपने नाम के आगे ट्विटर पर भी पंडित लगा रखा है। लखनऊ से कांग्रेस के टिकट पर
लोकसभा चुनाव लड़ने वाले आचार्य प्रमोद कृष्णन ने एक वीडियो डालते हुए लिखा कि
लखनऊ में अपने घर की छत पर लरगा भाजपा का झंडा फाड़ता भाजपा कार्यकर्ता। यहां तक
कि आचार्य प्रमोद कृष्णन ने इस बात पर भी सवाल खड़ा किया कि विकास दुबे का घर और
गाड़ियां क्यों तोड़ी गईं। पूरी कांग्रेस किस तरह से विकास दुबे जैसे अपराधी के
एनकाउंटर पर जनता को जातीय गणित समझाने का प्रयास कर रही थी कि मध्य प्रदेश में
बैठे दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह ने भी लिखा कि जिसका शक था वह हो गया। विकास दुबे
का किन किन राजनैतिक लोगों से, पुलिस व अन्य शासकीय अधिकारियों से उसका संपर्क था, अब उजागर नहीं हो
पाएगा। पिछले 3-4 दिनों में विकास दुबे के 2 अन्य साथियों का भी एनकाउंटर हुआ है
लेकिन तीनों एनकाउंटर का पैटर्न एक समान क्यों है? कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद तो बाकायदा
ब्रह्महत्या हैशटैग चला रहे हैं। जितिन प्रसाद से लेकर प्रियंका गांधी वाड्रा तक
विकास दुबे के एनकाउंटर की सीबीआई जांच मांगते हुए अपराधी विकास के नाम के आगे लगे
ब्राह्मण उपनाम की जातिवादी राजनीति को पुष्पित पल्लवित करने की कोशिश करते स्पष्ट
दिख रहे हैं। हर बात में ब्राह्मण और ब्राह्मणवाद को गाली देने वाले कांग्रेस नेता
उदित राज तो कई कदम आगे निकल गये और लिखा कि अगर विकास दुबे ठाकुर होता तो क्या
ऐसा ही व्यवहार होता। लेकिन जातीय रंग देकर ब्राह्मणों को भाजपा विरोध में खड़ा
करने की यह कोशिश बुनियादी तौर पर ही ध्वस्त हो गई और इसकी बड़ी पक्की वजहें हैं।
समाजवादी
पार्टी की सरकार के समय विधानसभा अध्यक्ष रहे हरिकिशन श्रीवास्तव को विकास दुबे
अपना राजनीतिक गुरू कहता था और अपने राजनीतिक गुरु के विरोधी रहे भाजपा नेता संतोष
शुक्ला की थाने में हत्या का बहुचर्चित आरोप विकास दुबे के ऊपर है। संतोष शुक्ला
के नजदीकी रहे लल्लन बाजपेयी को विकास दुबे ने जमकर पीटा था। संतोष शुक्ला से पहले
प्रधानाचार्य सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या में भी विकास का ही नाम आया। केबल
व्यवसायी दिनेश दुबे, अपने चचेरे भाई अनुराग दुबे पर भी हमले काब आरोप विकास पर ही
है। विकास दुबे के निशाने पर भी सीओ देवेंद्र मिश्रा ही थे और जिस मामले में विकास
दुबे को पकड़ने पुलिस टीम गई थी, वह रिपोर्ट भी राहुल तिवारी ने ही दर्ज कराई थी। विकास
की मां सरला देवी स्पष्ट बता चुकी हैं कि विकास हर दल में था, लेकिन अभी समाजवादी
पार्टी का सदस्य है और यह भी जाहिर तथ्य है कि मायावती की सरकार के समय ही विकास
दुबे की हिस्ट्रशीट फाड़ दी गई थी। कुल मिलाकर विकास दुबे एक राक्षसी प्रवृत्ति का
व्यक्ति था, जिसने अपराध करने में जाति कभी नहीं देखी और उसके सबसे ज्यादा शिकार
भी ब्राह्मण ही हुए, राजनीतिक दलों ने इस अपराधी विकास दुबे का जमकर इस्तेमाल किया
और अब विकास दुबे के एनकाउंटर पर हो रही राजनीति से स्पष्ट हो रहा है कि उत्तर
प्रदेश में जातीय राजनीति के असली संरक्षक कौन हैं और मुद्दों पर योगी सरकार को
घेरने में असफल विपक्षी राजनीतिक दल ठाकुर बनाम ब्राह्मण करके जातीय आग में उत्तर
प्रदेश को झोंकने की असफल कोशिश कर रहे हैं।
Apradhi keval apradhi hai na uski koi jati hai na dharm bilkul sahi vishleshan kiya hai apne sir
ReplyDeleteGreat Thinking
ReplyDeleteRight Sir
ReplyDeleteजी सही है। हम किसी को पूर्ण नहीं मान सकते, परन्तु योगी जी ने अपनी एक निष्ठ सेवा में कभी जाति नहीं देखी जितना मुख्यमंत्री कार्यकाल में स्पष्ट है। कोरोना काल में उनकी सेवा का स्तर अन्य तमाम मुख्यमंत्रियों से बेहतर रहा है। अभी तक हिन्दू मुस्लिम कर योगी जी को घेरने में लगी विपक्ष और संकीर्ण सोच को व्यक्त कर ब्राह्मण ठाकुर कर रही। आज के समय में देश की विचारधारा, सोच और आवश्यकताएं जातिगत ठेल ठाल से आगे बढ़ चुकी है। कुछ भाजपाईयों में यदि रोष है भी तो वो उदित राज और जितिन प्रसाद जैसों के बहकावे में तो नहीं ही आएंगे।।
ReplyDeleteBhai aapne bahut hi achhi tarah se poore ghatnachakra ke bare me bataya thanks bro
ReplyDelete