दिल्ली में हालिया चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की हार की सबसे बड़ी वजह यही रही कि दिल्ली में भाजपा के पास कोई ऐसा नेता नहीं था जो सामने से अरविंद केजरीवाल से मुकाबला कर सके। इसे ज्यादा बेहतर तरीके से समझने के लिए यह भी कह सकते हैं कि 2015 के विधानसभा चुनाव के बाद बीते 5 वर्षों में अरविंद केजरीवाल के मुकाबले का कोई नेता भारतीय जनता पार्टी तैयार ही नहीं कर सकी थी। इसकी सबसे बड़ी वजह तो यही रही कि भारतीय जनता पार्टी ने अपने स्थापित नेता डॉक्टर हर्षवर्धन को चुका हुआ मान लिया था और किरन बेदी के चमत्कार के सहारे भी नैया पार नहीं हो सकी थी। 2015-20 के दौरान भी किसी को नेता के तौर पर विकसित नहीं किया। मनोज तिवारी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर राजनीतिक लड़ाई लड़ने की कोशिश कितनी कारगर रही, अब नतीजे स्पष्ट कर चुके हैं। विशुद्ध बयानबाजी से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी और सांसद प्रवेश वर्मा ने खुद को भविष्य का नेता साबित करने की कोशिश की, लेकिन जब नतीजे आये तो साफ दिखा कि दोनों में से कोई भी जमीन पर इस लड़ाई को आगे नहीं ले जा पा रहा था। अरविंद पर आरोप लगाते भाजपा नेता मनोज तिवारी पर अभिनेता मनोज तिवारी इस कदर हावी हो जाता था कि हनुमान जी की प्रतिमा बिना हाथ धुले छूने का आरोप हास्य बन गया और अरविंद ने टीवी मंच पर हनुमान चालीस गाकर खुद को हनुमान भक्त साबित कर दिया। चुनाव के दौरान ही मनोज तिवारी का प्रदेश अध्यक्ष का कार्यकाल पूरा हो चुका है, लेकिन चुनावों के दौरान पद से हटाना शीर्ष नेतृत्व ने उचित नहीं समझा। अब भाजपा प्रदेश अध्यक्ष खोज रही है और फिर से वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी, सांसद प्रवेश वर्मा, मीनाक्षा लेखी और पुराने नेता विजय गोयल जैसे नामों के इर्द गिर्द ही पूरी चर्चा हो रही है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी को एक बात समझना होगा कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के सामने एक पूर्णकालिक नेता चाहिए जो जमीन पर उतरकर लड़ सके।
क्या भारतीय जनता पार्टी के पास दिल्ली में कोई नेता ही नहीं बचा है। इसी सवाल का जवाब खोजने की कोशिश मैंने भी की। नेता खोजने का सबसे आसान तरीका है कि जनता को जब सबसे ज्यादा जरूरत हो, खासकर उस पार्टी के समर्थकों, उस समय सबसे आसानी से पार्टी का कौन सा नेता उपलब्ध है और उन समर्थकों, कार्यकर्ताओं के पक्ष की बात कौन सबसे ज्यादा मजबूती से रख पा रहा है और उनके लिए जमीन पर लड़ पा रहा है। इस आसान से मानक पर भारतीय जनता पार्टी के 2 नेता नजर आते हैं। एक मीनाक्षी लेखी और दूसरा कपिल मिश्रा। भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने संसद में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों पर चर्चा के दौरान विरोधी दलों को निरुत्तर कर दिया। तर्कों, तथ्यों के साथ बेहद प्रभावशाली भाषण से मीनाक्षी लेखी ने सदन में भाजपा की महिला नेताओं की मजबूत कतार को रेखांकित किया, साथ ही दिल्ली भाजपा में नेतृत्व की कमी वाली धारणा को भी धराशायी किया। मीनाक्षी लेखी सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता हैं और राहुल गांधी के चौकीदार चोर है वाले जुमले पर राहुल गांधी को सर्वोच्च न्यायालय में माफी मांगने के लिए विवश कर चुकी हैं। अब भाजपा का शीर्ष नेतृत्व मीनाक्षी को प्रदेश की राजनीति के लिए उपयोगी देखता है या फिर राष्ट्रीय राजनीति में दूसरी पांत के नेताओं में शामिल कर रहा है, इसका फैसला भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को करना है क्योंकि अभी भाजपा के नये अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को राष्ट्रीय कार्यकारिणी का भी गठन करना है। भाजपा अपना नया प्रदेश अध्यक्ष खोज रही है तो मीनाक्षी लेखी कई मानकों पर उपयोगी साबित हो सकती हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल के सामने लगातार जमीनी लड़ाई लड़ने में मीनाक्षी कितनी सहज होंगी, यह प्रश्न अभी भी भारतीय जनता पार्टी के लिए बना हुआ है। खासकर तब जब अरविंद प्रचण्ड बहुमत के साथ दोबारा सत्ता में आ चुके हैं। इमाम और मुअज्जिन की तनख्वाह बढ़ाकर और विधानसभा में एनआरसी, एनपीआर के विरोध में प्रस्ताव पारित करके मुसलमानों को पूरा भरोसा दिलाने के साथ चुनाव के दौरान हनुमान चालीसा पढ़कर भाजपा के हिंदू वोटबैंक को भी कुछ हद तक भ्रम में डालने में कामयाब रहे हैं। इतनी चतुर राजनीति करने वाले अरविंद केजरीवाल के सामने भाजपा के लिए दिल्ली में नेता खोजना बहुत आसान नहीं है, लेकिन दिल्ली के दंगों के बाद कपिल मिश्रा ने जिस तरह से दंगा पीड़ितों के लिए काम किया है, उस पर बहस हो सकती है, लेकिन नेता के तौर पर कपिल मिश्रा ने अपनी छवि दुरुस्त की है।
अमेरिकी
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के समय जाफराबाद मेट्रो के नीचे शाहीनबाग
की ही तरह सड़क पर कब्जा जमाए बैठे लोगों को हटाने की चेतावनी दी थी। उस भाषण के
आधार पर ही कपिल मिश्रा को सोशल मीडिया पर आतंकवादी तक कह दिया गया। जबकि सच यही
है कि दिल्ली के चुनाव के दौरान शाहीनबाग से लेकर अलग-अलग मंचों पर सबसे कम भड़काऊ
भाषण की श्रेणी में कपिल मिश्रा का जाफराबाद में दिया गया भाषण कहा जा सकता है। जिस
समय नागरिकता कानून विरोधी प्रदर्शन के नाम पर शाहीनबाग और शाहीनबाग की तर्ज पर
दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में लगातार अराजकता फैलाई जा रही थी, कपिल मिश्रा एक
ऐसे नेता के तौर पर उभरे हैं, जिसने आम शहरी के हक के लिए आगे आना तय किया। कपिल
मिश्रा के जाफराबाद में दिए भाषण को भाजपा विरोधी वर्ग भले ही दिल्ली दंगों की
बुनियाद बताने की असफल कोशिश कर रहा हो, लेकिन दिल्ली का एक आम शहरी और खासकर
भाजपा के मूल मतदाताओं को दिल्ली में बढ़ रही अराजकता के खिलाफ लड़ने वाले अकेले
नेता के तौर पर कपिल मिश्रा नजर आने लगे हैं। आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर
हुसैन और ढेर सारे ऐसे लोगों के दंगों में पूरी तैयारी के साथ शामिल होने के
प्रमाण आए तो दिल्ली के आम शहरी ने कपिल मिश्रा को अपना नेता मान लिया। कपिल
मिश्रा जब आम आदमी पार्टी में थे तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सबसे करीबी
मंत्रियों में से थे और कपिल मिश्रा की पहचान एक बेहतर मंत्री के तौर पर होती थी। अरविंद
केजरीवाल की तानाशाही के खिलाफ आम आदमी पार्टी छोड़कर जब कपिल मिश्रा भाजपा में आए
तो केजरीवाल के खिलाफ उन्हीं पैंतरों को आजमाया, जिसके लिए केजरीवाल विशेष तौर पर
जाने जाते हैं। उसी तीखे तरीके से सीधा हमला करना अरविंद की शागिर्दी में ही कपिल
मिश्रा ने सीखा होगा। कपिल मिश्रा सीधे तौर पर आरोपी ताहिर हुसैन के साथ मुख्यमंत्री
केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह की भूमिका पर सवाल खड़ा कर रहे
हैं। शाहीनबाग जैसे अराजक प्रदर्शन को खत्म कराने की मांग कपिल मिश्रा लगातार उठा
रहे हैं। एक तरफ जब दिल्ली की केजरीवाल सरकार दंगा पीड़ितों की मदद सरकारी तरीके
से कर रही है वहीं दूसरी तरफ दंगा पीड़ितों के लिए निजी प्रयासों से कपिल मिश्रा
ने एक करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम जुटाई है। क्राउडफंडिंग के जरिये कपिल मिश्रा ने
90 लाख जुटाने की बात लिखी तो मसान जैसी फिल्में बनाने वाले मनीष मूंदड़ा ने बाकी
10 लाख रुपये देने का एलान कर दिया। मनीष मूंदड़ा के यह कहते ही वामपंथी और रैडिकल
इस्लामिक गिरोह मनीष पर यह कहते टूट पड़ा कि सिर्फ हिन्दुओं के लिए कपिल मिश्रा
फंड जुटा रहे हैं। हालांकि, मनीष मूंदड़ा पर ऐसी टिप्पणी करने वालों को यह अनुमान
नहीं था कि मूंदड़ा जोधपुर के एसडीएम अस्पताल में 40 कॉटेज बनवाने के लिए करीब
साढ़े चार करोड़ रुपये की सहायता दे चुके हैं। कपिल मिश्रा ने दंगों के तुरन्त बाद
से पीड़ित हिन्दू परिवारों की मदद के लिए अभियान चलाया था और जुटायी रकम को
पारदर्शी तरीके से पीड़ितों को दे रहे हैं। कपिल मिश्रा ने सोशल मीडिया के जरिये
बताया कि जुटायी गयी रकम से 16 लुहार परिवारों के घर बनाए गए हैं। जमीन पर लोगों
के साथ और आगे खड़ा रहकर लड़ाई कैसे लड़ी जाती है, इसे कपिल मिश्रा ने आम आदमी
पार्टी में रहते भी साबित किया था और अब भारतीय जनता पार्टी के नेता के तौर पर भी
साबित कर रहे हैं और यह सब कपिल तब कर रहे हैं जब दिल्ली विधानसभा के हालिया चुनाव
में कपिल मिश्रा को हार मिली है। हारने के बाद कोई नेता कैसे व्यवहार करता है,
उससे उसकी आगे की राजनीति तय होती है। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव नतीजे के बाद
शिवराज सिंह चौहान का व्यवहार इसका बड़ा उदाहरण है। ऐसे में दिल्ली का प्रदेश
अध्यक्ष खोज रही भारतीय जनता पार्टी के लिए कपिल मिश्रा सर्वोत्तम नेता साबित हो
सकते हैं।
Bilkul sahi bat kapil mishra very good leader
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