27 मई को दैनिक जागरण में |
इलाहाबाद में दिल्ली के प्राइवेट स्कूल ध्यान दें |
घूस लेकर काम करने की ये परंपरा अब तो
काफी पुरानी हो चली है। 2007 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में इलाहाबाद
विश्वविद्यालय के मित्र मनीष शुक्ला को जौनपुर की खुटहन विधानसभा सीट से टिकट मिल
गया था। मैं उस समय सीएनबीसी आवाज मुंबई में हुआ करता था। लेकिन, विश्वविद्यालय के
साथी को टिकट मिला, इसलिए मैं भी कुछ दिनों के लिए उस चुनाव में था। संयोग से
उन्हीं कुछ दिनों में से एक दिन तब के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा
खुटहन विधानसभा में थी। उत्तर प्रदेश के सबसे ज्यादा देखे जाने वाले क्षेत्रीय टीवी
के स्थानीय पत्रकार का मनीष के पास फोन आया कि रैली की कवरेज के सिलसिले में बात
करनी है। कितनी कवरेज करानी है ये बता दीजिए। उसी लिहाज से विज्ञापन का पैकेज तय
हो जाएगा। मनीष ने कहा आप इनसे बात कर लीजिए। मैंने उस स्थानीय संवाददाता से बात
की। उसने कहा कि चैनल ने तय कर रखा है कि विज्ञापन की रकम के आधार पर ही खबरों की
कवरेज होगी। स्थानीय संवाददाता ने कहा कि सर हमें तो सिर्फ कमीशन मिलता है। कोई
पक्की तनख्वाह तो है नहीं। दिल्ली-मुंबई में बड़े चैनलों में पक्की तनख्वाह पर काम
करते मेरे जैसे पत्रकार के लिए ये झटके जैसा था। लेकिन, यही सच्चाई थी। सिर्फ
क्षेत्रीय टीवी चैनल ही नहीं, सारे अखबार भी इसी तरह से चुनावी खबरों को जगह दे
रहे थे। मंत्र साफ था कि आप हमारी दिखाई, पढ़ाई गई खबर के आधार पर विधायक, सांसद
होंगे, तो हमें भी कुछ लाभ मिलना चाहिए। वही
लाभ मिलना चाहिए वाली मानसिकता अब अंग्रेजी के अखबार मे कंज्यूमर कनेक्ट इनीशिएटिव
हो गई है। और उसका लाभ देश में ईमानदार राजनीति की शुरुआत करने का दावा करने वाली
आम आदमी पार्टी बड़े ही व्यवसायिक तरीके से ले रही है। उस समय प्रभाष जोशी और
रामबहादुर राय की अगुवाई में पेड न्यूज के खिलाफ एक बड़ी मुहिम शुरू हुई थी।
लेकिन, उस पर कोई नियम तय नहीं हो पाए।
पेड न्यूज कितना खतरनाक हो गया है कि
बाकायदा इसके लिए कार्यक्रम बनाए जा रहे हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान
अरविंद केजरीवाल का आम आदमी पार्टी ने बिग एफएम के साथ मिलकर ऐसा विज्ञापन तैयार
किया, जिसमें लगता था कि बिग एफएम पर आने वाले सारे लोग आम आदमी पार्टी के ही पक्ष
में मत दे रहे हैं। ठीक है कि 70 में से 67 सीटें आने के बाद ये कहा जा सकता है कि
पूरी दिल्ली अरविंद की पार्टी के पक्ष में थी। लेकिन, ये तरीका गलत था। ये पेड
न्यूज के खतरनाक होने का एक और चरण था। इसके आगे बढ़ा जब इसी बिग एफएम पर नीलेश
मिश्रा ने उत्तर प्रदेश सरकार के साथ करार कर लिया। और यूपी की कहानियां, उत्तर
प्रदेश सरकार के कामों के गुणगान की कहानियां बन गईं। सुनने वाले लोगों के साथ भी
ये कितना बड़ा अन्याय है कि वो जिसे यूपी की कहानियां समझकर सुन रहे हैं, वो दरअसल
उत्तर प्रदेश सरकार का विज्ञापन अभियान है।
हाल ही में नारद सम्मान समारोह में मुख्य
अतिथि के तौर पर बोलते हुए वित्त और सूचना प्रसारण मंत्री अरुण जेटली ने इस चिंता
को जाहिर किया था। जेटली ने कहा कि तकनीक के भरोसे हमें ये लगने लगा था कि अब
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खत्म करना संभव नहीं है। आपातकाल 2016 में नहीं चल पाता।
लेकिन, अब कुछ लोगों ने नया तरीका ईजाद कर लिया है। मीडिया के रेवेन्यू के जरिए
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खत्म हो रहा है। रिश्वत देकर मीडिया को खरीदा जा रहा है।
जेटली ने कहा कि ये एक राज्य कर रहा है। सारे राज्य यही करने लगेंगे, तो क्या
होगा। अरुण जेटली इसे लेकर गंभीर हैं। और इसीलिए अब केंद्र सरकार के सूचना प्रसारण
मंत्रालय ने एक समिति बनाई है जो इस तरह के विज्ञापनों पर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। पूर्व
मुख्य चुनाव आयुक्त बीबी टंडन की अगुवाई में बनी इस समिति में इंडिया टीवी के
प्रधान संपादक रजत शर्मा और एडमैन पीयूष पांडेय भी हैं। हालांकि, इस रिपोर्ट के
आने के बाद इसके राजनीतिक हो जाने के खतरे बड़े हैं। क्योंकि, अरविंद केजरीवाल और
अरुण जेटली के बीच चल रहे मुकदमे में रजत शर्मा भी एक पक्ष हो गए हैं। सूचना
प्रसारण मंत्रालय इसीलिए अब राजनीतिक पार्टियों को नए चैनल की भी मंजूरी नहीं देना
चाहता। क्योंकि, उसके दुरुपयोग का खतरा बड़ा हो रहा है। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यही
है कि पेड न्यूज को लेकर मीडिया का सम्मान लोगों की नजरों में कम होता है। जबकि,
राजनेता पेड न्यूज के जरिए ही अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ा ले रहे हैं। इसीलिए ये और
जरूरी हो गया है कि घूस के बदले में बेहतर खबर की इस गंदी कोशिश को परंपरा समाज न
मानने लगे। इसीलिए जरूरी है कि इस पर कुछ कड़े नियम जल्दी आएं और लागू हों।