Thursday, May 26, 2016

विज्ञापन के डिब्बे में बंद खुलेआम घूस

27 मई को दैनिक जागरण में
नरेंद्र मोदी की सरकार को दो साल हुए और उस पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने किसी स्रोत के हवाले से ट्वीट करके कहा है कि मोदी सरकार ने दो साल के समारोह पर ही हजार करोड़ रुपये खर्च किए हैं। जबकि, दिल्ली सरकार ने पूरे साल में सिर्फ डेढ़ सौ रुपये खर्च किए हैं। विज्ञापन देकर अपनी योजनाओं की जानकारी जनता पहुंचाना हमेशा से होता रहे है। लेकिन, हाल के दिनों में जिस तरह से विज्ञापन मीडिया को साधने का जरिया बन गया है। उसमें अरविंद केजरीवाल का ये ट्वीट बड़ा महत्वपूर्ण है। सही भी है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ या फिर किसी और राज्य के मुख्यमंत्री या सरकार का विज्ञापन दिल्ली के अखबारों में प्रधानमंत्री को बधाई देते हुए क्यों होना चाहिए। आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता ट्वीट कर रहे हैं कि क्या मोदी सरकार के दो साल पर हो रहे खर्च पर मीडिया बहस करेगा। बड़ा जरूरी है कि इस पर मीडिया बहस करे। क्योंकि, मीडिया साधने के जरिए से विज्ञापन आगे बढ़ गया है। और ये आगे बढ़ाने का काम बखूबी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कर रहे हैं। सही मायने में समझें तो सीधे-सीधे मीडिया को विज्ञापन की रिश्वत दी जा रही है। हालांकि, रिश्वत देने का ये नया प्रयोग तो नहीं कहेंगे। लेकिन, ईमानदारी की पैकेजिंग में रिश्वत खुलेआम देने का ये नया प्रयोग ही है। 


इलाहाबाद में दिल्ली के प्राइवेट स्कूल ध्यान दें
दिल्ली की सरकार के कामों की तारीफ इलाहाबाद के अखबार में है। पूरा पन्ना और पूरा ही क्या, चार-चार पन्ने दिल्ली सरकार ने किसी तरह से स्कूलों को सुधार दिया है, इस तारीफ पर ही है। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों के प्रधानाचार्यों को हड़का रहे होते हैं। अब उससे इलाहाबाद में बदमाशी कर रहा निजी स्कूल का प्रधानाचार्य कैसे सुधरेगा, ये केजरीवाल जी ही बता सकते हैं। इलाहाबाद के प्राइवेट स्कूल वाले मनीष सिसोदिया की चिट्ठी से क्या समझेंगे। इन विज्ञापनों में सरकार की तारीफ को खबरों वाले अंदाज में लिखा गया है और उसकी बुनावट काफी हद तक किसी विभाग में एक मेज से दूसरी मेज तक अपनी ही पीठ थपथपाती हुई जाने वाली सरकारी फाइल जैसी ही है। अरविंद केजरीवाल विज्ञापन के जरिए मीडिया को खरीदने के अभिनव प्रयोग कर रहे हैं और काफी हद तक इसमें कामयाब भी दिख रहे हैं। कामयाबी की एक वजह शायद ये भी है कि पहले अरविंद ने सारे प्रेस, टीवी को सरकारों का ऐसा भोंपू बता दिया है कि अब वही प्रेस, टीवी इस सरकार का भोंपू बन जाना ही उचित समझ रहे हैं। इसका असर किस तरह हुआ है अंदाजा लगाइए कि पूरी तरह से नाकामयाब रहे ऑड ईवेन पर लंबे समय तक अखबारों ने सकारात्मक माहौल बनाए रखा। बाकायदा अखबारों ने अभियान ही चला दिया। और ये ज्यादातर वही अखबार थे जिन्होंने दिल्ली सरकार के चार-चार पन्ने के विज्ञापन कंज्यून कनेक्ट इनीशिएटिव लिखकर खबरों के अंदाज में अरविंद की ईमानदार सरकार का विज्ञापन पूरे देश में दिखाया, पढ़ाया। ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ अखबारों ने किया। टीवी में भी आम आदमी पार्टी की पसंद के चैनलों पर अरविंद केजरीवाल के विज्ञापन मजे से छाए रहे। यहां सवाल ये खड़ा किया जा सकता है कि आखिर देश की सरकार के साथ कौन सी ऐसी राज्य सरकार है, जिसने अपने विज्ञापन देश भर में न दिए हों। सही भी है। क्योंकि, जिस भारतीय जनता पार्टी के लोग आम आदमी पार्टी की दिल्ली की सरकार के विज्ञापन देश के दूसरे शहरों में दिए जाने के विरोध में टीवी पर चिल्लाते रहते हैं। उसी भाजपा की हरियाणा सरकार के मुख्यमंत्री तने हुए दिल्ली की सड़कों पर अपनी सरकार का बखान करते दिख जाते हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह, तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता से लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, कर्नाटक के सिद्धारमैया या ऐसे क्या नाम लें। पंजाब सिंध गुजरात मराठा कश्मीर से केरल तक सब राज्य इसी तरह के विज्ञापन दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी देश को बता रहे हैं कि उत्तर प्रदेश कैसे उन्नत प्रदेश हो गया है।

घूस लेकर काम करने की ये परंपरा अब तो काफी पुरानी हो चली है। 2007 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मित्र मनीष शुक्ला को जौनपुर की खुटहन विधानसभा सीट से टिकट मिल गया था। मैं उस समय सीएनबीसी आवाज मुंबई में हुआ करता था। लेकिन, विश्वविद्यालय के साथी को टिकट मिला, इसलिए मैं भी कुछ दिनों के लिए उस चुनाव में था। संयोग से उन्हीं कुछ दिनों में से एक दिन तब के गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा खुटहन विधानसभा में थी। उत्तर प्रदेश के सबसे ज्यादा देखे जाने वाले क्षेत्रीय टीवी के स्थानीय पत्रकार का मनीष के पास फोन आया कि रैली की कवरेज के सिलसिले में बात करनी है। कितनी कवरेज करानी है ये बता दीजिए। उसी लिहाज से विज्ञापन का पैकेज तय हो जाएगा। मनीष ने कहा आप इनसे बात कर लीजिए। मैंने उस स्थानीय संवाददाता से बात की। उसने कहा कि चैनल ने तय कर रखा है कि विज्ञापन की रकम के आधार पर ही खबरों की कवरेज होगी। स्थानीय संवाददाता ने कहा कि सर हमें तो सिर्फ कमीशन मिलता है। कोई पक्की तनख्वाह तो है नहीं। दिल्ली-मुंबई में बड़े चैनलों में पक्की तनख्वाह पर काम करते मेरे जैसे पत्रकार के लिए ये झटके जैसा था। लेकिन, यही सच्चाई थी। सिर्फ क्षेत्रीय टीवी चैनल ही नहीं, सारे अखबार भी इसी तरह से चुनावी खबरों को जगह दे रहे थे। मंत्र साफ था कि आप हमारी दिखाई, पढ़ाई गई खबर के आधार पर विधायक, सांसद होंगे, तो हमें भी कुछ लाभ मिलना चाहिए।  वही लाभ मिलना चाहिए वाली मानसिकता अब अंग्रेजी के अखबार मे कंज्यूमर कनेक्ट इनीशिएटिव हो गई है। और उसका लाभ देश में ईमानदार राजनीति की शुरुआत करने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी बड़े ही व्यवसायिक तरीके से ले रही है। उस समय प्रभाष जोशी और रामबहादुर राय की अगुवाई में पेड न्यूज के खिलाफ एक बड़ी मुहिम शुरू हुई थी। लेकिन, उस पर कोई नियम तय नहीं हो पाए।

पेड न्यूज कितना खतरनाक हो गया है कि बाकायदा इसके लिए कार्यक्रम बनाए जा रहे हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल का आम आदमी पार्टी ने बिग एफएम के साथ मिलकर ऐसा विज्ञापन तैयार किया, जिसमें लगता था कि बिग एफएम पर आने वाले सारे लोग आम आदमी पार्टी के ही पक्ष में मत दे रहे हैं। ठीक है कि 70 में से 67 सीटें आने के बाद ये कहा जा सकता है कि पूरी दिल्ली अरविंद की पार्टी के पक्ष में थी। लेकिन, ये तरीका गलत था। ये पेड न्यूज के खतरनाक होने का एक और चरण था। इसके आगे बढ़ा जब इसी बिग एफएम पर नीलेश मिश्रा ने उत्तर प्रदेश सरकार के साथ करार कर लिया। और यूपी की कहानियां, उत्तर प्रदेश सरकार के कामों के गुणगान की कहानियां बन गईं। सुनने वाले लोगों के साथ भी ये कितना बड़ा अन्याय है कि वो जिसे यूपी की कहानियां समझकर सुन रहे हैं, वो दरअसल उत्तर प्रदेश सरकार का विज्ञापन अभियान है।


हाल ही में नारद सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर बोलते हुए वित्त और सूचना प्रसारण मंत्री अरुण जेटली ने इस चिंता को जाहिर किया था। जेटली ने कहा कि तकनीक के भरोसे हमें ये लगने लगा था कि अब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खत्म करना संभव नहीं है। आपातकाल 2016 में नहीं चल पाता। लेकिन, अब कुछ लोगों ने नया तरीका ईजाद कर लिया है। मीडिया के रेवेन्यू के जरिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खत्म हो रहा है। रिश्वत देकर मीडिया को खरीदा जा रहा है। जेटली ने कहा कि ये एक राज्य कर रहा है। सारे राज्य यही करने लगेंगे, तो क्या होगा। अरुण जेटली इसे लेकर गंभीर हैं। और इसीलिए अब केंद्र सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय ने एक समिति बनाई है जो इस तरह के विज्ञापनों पर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त बीबी टंडन की अगुवाई में बनी इस समिति में इंडिया टीवी के प्रधान संपादक रजत शर्मा और एडमैन पीयूष पांडेय भी हैं। हालांकि, इस रिपोर्ट के आने के बाद इसके राजनीतिक हो जाने के खतरे बड़े हैं। क्योंकि, अरविंद केजरीवाल और अरुण जेटली के बीच चल रहे मुकदमे में रजत शर्मा भी एक पक्ष हो गए हैं। सूचना प्रसारण मंत्रालय इसीलिए अब राजनीतिक पार्टियों को नए चैनल की भी मंजूरी नहीं देना चाहता। क्योंकि, उसके दुरुपयोग का खतरा बड़ा हो रहा है। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यही है कि पेड न्यूज को लेकर मीडिया का सम्मान लोगों की नजरों में कम होता है। जबकि, राजनेता पेड न्यूज के जरिए ही अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ा ले रहे हैं। इसीलिए ये और जरूरी हो गया है कि घूस के बदले में बेहतर खबर की इस गंदी कोशिश को परंपरा समाज न मानने लगे। इसीलिए जरूरी है कि इस पर कुछ कड़े नियम जल्दी आएं और लागू हों। 

Wednesday, May 25, 2016

जैक का हिंदुस्तान प्रेम !

ये जैक रोजर हैं। अमेरिकी हैं। लेकिन, अब ये खुद को गढ़वाली कहलाना ही पसंद करते हैं। जैक के साथ काम करने वाले ज्यादातर गढ़वाली ही हैं। वो कहते हैं जैक साहब उनसे ज्यादा गढ़वाली हैं। जैक पहाड़ बचाना चाहते हैं और उनके मन में ये पक्का है कि बिना पहाड़ के लोगों की जेब में कुछ रकम हुए पहाड़ बचने से रहा। गढ़वाल के 5 जिलों में इनका संगठन महिला सशक्तिकरण के लिए काम कर रहा है। आधे साल से ज्यादा जैक गुप्तकाशी में ही रहते हैं। जैक के हाथ का रक्षा (कलावा) बता रहा है कि जैक हिंदू मान्यता से कितना बंध चुके हैं। ये अनायास है। कोई हिंदू संगठन इन्हें ये करने को नहीं कह गया। जैक के घर में केदारनाथ मंदिर भी है। जैक अमेरिका से 1966 में पहली बार आए थे।


जैक के हिंदुस्तान के प्यार में पड़ने की कहानी भी थोड़ा हटके है। जैक रोजर अपनी जवानी के दिनों में अमेरिका से भारत एक सरकारी कार्यक्रम के तहत आए थे। वो 1966 में अपना पहली बार भारत आना बताते हैं। हालांकि, उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति Lyndon B Johnson थे लेकिन, जैक अमेरिकी राष्ट्रपति John F. Kennedy का जिक्र करते हैं। अमेरिकी सरकार ने भारत-अमेरिका के लोगों के बीच संबंध बेहतर करने के लिए एक कार्यक्रम चलाया था। उसी में ढेर सारे अमेरिकी नौजवान भारत की अलग-अलग जगहों पर आए थे। जैक उत्तर प्रदेश के बदायूं आए थे। जैक हंसते हुए कहते हैं कि आप समझ सकते हैं कि भारत बदायूं से कैसा दिखता है। जैक आए और चले गए। बीच-बीच में कई बार वो भारत आए। जैक बताते हैं कि उन्होंने बीस साल तक कुछ नहीं किया। सिवाय विशुद्ध मस्ती के। फिर वो पौड़ी आए और वहां जैक ने लंबा समय बिताया। धीरे-धीरे गढ़वाल से उनका मोह बढ़ा। इतना कि वो साल के आधे से ज्यादा महीने गढ़वाल में ही बिताने लगे। फिर उन्होंने संस्था बनाई और उसके जरिए काम शुरू किया। जैक कहते हैं कि महिलाएं हमेशा बेहतर प्रबंधक होती हैं। साथ ही महिलाएं ढर्रे से हटकर काम जल्दी से सीखती हैं। और पहाड़ की अर्थव्यवस्था महिलाओं के ही हाथ में हैं। पुरुष तो रोजगार की तलाश में यहां से निकल लेता है। इसीलिए पहाड़ को बचाने और पहाड़ के लोगों के हाथ में कुछ कमाई का जरिया देने की नीयत से जैक ने ये काम शुरू किया। आज करीब दस हजार परिवारों में जैक की संस्था काम कर रही है। ऐसे छोटे-छोटे प्रयास से ही हिंदुस्तान चल रहा है। और कई बार जैक जैसे अमेरिकियों का प्रयास भी हिंदुस्तान को बचा रहा है, बना रहा है। कमाल ये कि जैक के इस प्रयास की बुनियाद एक सरकारी कार्यक्रम से हुई। जैक ने ये सबकुछ अच्छी हिंदी में ही बताया। 

Thursday, May 12, 2016

थर्ड डिग्री की राजनीति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पढ़ाई की विवाद गजब चर्चा का विषय है। चर्चा का विषय बना भी इसीलिए है कि आईआईटी खड़गपुर से पढ़ाई करके भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी से मैगसायसाय सम्मान विजेता और फिर दिल्ली के मुख्यमंत्री बने अरविंद केजरीवाल नरेंद्र मोदी की पढ़ाई पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। वो भी सवाल इस कदर खड़ा कर रहे हैं कि आम आदमी पार्टी के बड़े चेहरे पिछले कुछ समय से प्रधानमंत्री की डिग्री की पड़ताल में ही जैसे लगे हुए हों। संयोगवश बहुधा पत्रकारिता से राजनीति में गए लोग अरविंद केजरीवाल के इर्द गिर्द पार्टी में प्रभावी भूमिका में हैं। इसलिए शायद कुछ ज्यादा खोजी अंदाज में पार्टी आ गई है। निजी हमले करने में न तो नरेंद्र मोदी ने कभी कोई कमी छोड़ी है और न ही अरविंद केजरीवाल ने। लेकिन, अब तक निजी हमलों में वजहें सार्वजनिक जैसी होती रही हैं। अगस्ता वेस्टलैंड मामले में रिश्वत ली गई। इस मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके राजनीतिक सचिव अहमद पटेल पर हो रहा हमला भले निजी लग रहा हो। लेकिन, उसकी भी वजह सार्वजनिक है। क्योंकि, देश का एक रक्षा सौदा होता है जिसमें रिश्वत लेने के आरोप लग रहे हैं। लेकिन, ये पहले बार है कि जब देश के प्रधानमंत्री पर निजी हमले में वजह भी निजी है। वो भी एक ऐसी वजह जिस पर जाने कितनी चर्चा हो चुकी है कि व्यक्ति की डिग्री नहीं उसका किया हुआ काम मायने रखता है। लेकिन, शायद हम लोग ज्यादा बौद्धिक धरातल पर इस तरह की बातें करते हैं। अरविंद केजरीवाल आम आदमी के नाम पर बनी राजनीति करते हैं। इसीलिए आम आदमी की तरह ज्यादा निजी हमले ही करना पसंद करते हैं। लेकिन, सवाल ये है कि क्या प्रधानमंत्री की डिग्री के मामले में अरविंद केजरीवाल राजनीति की थर्ड डिग्री तक चले गए हैं।

दरअसल नरेंद्र मोदी का जिस तरह से भारतीय राजनीति में उत्थान हुआ है। उसमें उनके ज्यादातक दुश्मन ही हैं। दोस्त नहीं हैं। या यूं कह लें कि दिल्ली की गद्दी तक पहुंचने के लिए दुश्मन बढ़ाने के सिवाय मोदी के पास कोई रास्ता ही नहीं था। यही वजह है कि आज जब अरविंद केजरीवाल और उनकी पूरी पार्टी सिर्फ नरेंद्र मोदी की डिग्री पर टूट पड़ी है, तो सबकुछ जानते हुए कांग्रेस की तरफ से भी सिर्फ उस मुद्दे को बनाए रखने की कोशिश हो रही है। इससे बेहतर समय भी क्यो होगा कि जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सपरिवार सहित लोकतंत्र बचाओ मार्च करने को मजबूर हो चली हैं। ऐसे समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री पर ही दिल्ली का मुख्यमंत्री सवाल खड़ा कर दे रहा हो। और उस डिग्री पर एक टिप्पणी आती है कि फर्जी डिग्री भी थर्ड डिग्री की। अब प्रधानमंत्री की डिग्री के असल होने की बात तो दिल्ली विश्वविद्यालय और गुजरात विश्वविद्यालय से सामने आ चुकी है। और कौन सा नेता किस डिग्री में पास हुआ है। ये चर्चा अगर हो रही है और इसे करने वाले मुख्यमंत्री या दूसरे बड़े नेता लोग हैं। तो इसका इतना मतलब जरूर निकलता है कि देश की राजनीति थर्ड डिग्री में चली गई है। अच्छी बात है कि लगातार अरविंद केजरीवाल की प्रोपोगैंडा पॉलिटिक्स को देश में बदलाव की निगाह से देखने वाले मीडिया अरविंद के समर्थन में होता है। लेकिन, इस बार मीडिया भी स्क्रूटनी कर रहा है। और साफ दिख रहा है कि आम आदमी पार्टी अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में इस गैरजरूरी मुद्दे को लेकर राजनीतिक नंबर बढ़ाने में किस कदर लगी है। अरविंद पर भरोसा करने वाली जमात भी अंधभक्त जैसी ही है। इसलिए वो ये मानने को तैयार नहीं है कि दिल्ली विश्वविद्यालय और गुजरात विश्वविद्यालय की डिग्री असली है। डिग्री में नरेंद्र दामोदरदास मोदी के नाम और डिग्री मिलने की तिथि को लेकर संदेह खड़े किए जा रहे हैं। इस पर दोनों तरफ से काफी कुछ कहा, बताया जा चुका है। लेकिन, मुझे लगता है कि इन सारे तथ्यों से बड़ा तथ्य है कांग्रेस के अब के बड़े नेता और पूर्व में पत्रकार रहे राजीव शुक्ला का अपने कार्यक्रम रूबरू के लिए किया गया नरेंद्र मोदी का साक्षात्कार। नरेंद्र मोदी उस समय अशोक रोड के भाजपा कार्यालय के बगल के अरुण जेटली के घर में रहते थे। नरेंद्र मोदी उस समय राष्ट्रीय महासचिव थे। नब्बे के आखिर में मई 1998 में नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए। महासचिव रहने के दौरान ही राजीव शुक्ला ने नरेंद्र मोदी का वो साक्षात्कार लिया। जिसमें उन्होंने ये साफ कहा था कि हाईस्कूल तक की ही पढ़ाई वो कर सके थे। उसके बाद उन्होंने एक्सटर्नल एग्जाम देकर अपनी एमए तक की पढ़ाई पूरी की। उस साक्षात्कार का जरूरी हिस्सा-

राजीव शुक्ला - मोदी जी कहा जाता है कि आप बड़ा कंप्यूटर सेवी है। आपको कंप्यूटर पर काम करना, इटरनेट पर काम करना, अपनी वेबसाइट बनाना इन सबका बड़ा शौक है और बीजेपी में बहुत कम लोग हैं जो इस तरह से टेक्नोलॉजी का शौक रखते हैं।

नरेंद्र मोदी - पहली बात तो मैं कोई पढ़ा लिखा व्यकित नहीं हूं लेकिन, परमात्मा की कृपा है कि और उशके कारण शायद मुझे नई-नई चीजें जानने का बड़ा शौक रहा है
राजीव शुक्ला - कितना पढ़े हैं आप
नरेंद्र मोदी - वैसे तो मैंने 17 साल की आयु में घर छोड़ दिया स्कूली शिक्षा के बाद मैं घर से निकल गया। तब से लेकर आजतक मैं भटक रहा हूं। नई चीजें पाने के लिए
राजीव शुक्ला - सिर्फ स्कूल तक पढ़े हैं आप मतलब प्राइमरी स्कूल तक
नरेंद्र मोदी - हाईस्कूल तक बाद में हमारे संघ के एक बड़े अधिकारी थे उनके बड़े आग्रह पर एक्सटर्नल एग्जाम देना शुरू किया। फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी से मैंने बीए कर लिया एक्सटर्नल एग्जाम देकर। फिर भी उनका बहुत आग्रह रहा तो एमए कर लिया एक्सटर्नल एग्जाम देकर। मैंने कभी कॉलेज का दरवाजा देखा नहीं।
जब ये सॉफ्टवेयर मेरे सामने आया तो मैं उसका पोटेंशियल समझ गया। कंप्यूटर, इंटरनेट, इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी फिर तो मेरा मन उसमें इतना लग गया।
मैं हॉर्सराइडिंग करता हूं, ट्रैकिंग करता हूं
एवरेस्ट की हाइट है 29000 फीट तेईस हजार फीट तक मै हो आया हूं। मैं कैलाश मानसरोवर पैदल करके आया हूं
मैंने किताबें लिखी हैं। 6 किताबें मेरी प्रसिद्ध हो चुकी हैं। 3-4 किताबों का मैटेरियल वैसे का वैसा है।

राजीव शुक्ला - जितने भी बीजेपी के पदाधिकारी हैं। सबसे ज्यादा टिपटॉप, स्मार्ट, कपड़ों से, चश्मे से, पेन से, वेशभूषा से आप ही रहते हैं।

नरेंद्र मोदी - सबसे रहता हूं, ऐसी बात है तो मुझे अच्छा लगेगा लेकिन, मैं रहना चाहता जरूर हूं।


उस समय के ही साक्षात्कार में नरेंद्र मोदी ने बड़ी बेबाकी से अपनी शुरुआती कम शिक्षा को स्वीकार किया था। लेकिन, ये भी बताया कि कैसे उन्होंने अपने एमए तक की पढ़ाई पूरी की। ये दुर्भाग्य है कि थर्ड डिग्री की हो चली राजनीति के इस दौर में कोई भी न्यूज चैनल सीधे राजीव शुक्ला से ही ये सवाल क्यों नहीं पूछता है। या शायद अब राजीव शुक्ला भी क्यों सामने आना चाहेंगे। जब इस समय प्रधानमंत्री की डिग्री पर खड़े हो रहे सवालों के कोलाहल में अगस्ता वेस्टलैंड के घोटाले का शोर धीमा हो चला हो। प्रधानमंत्री की डिग्री पर सवालों का जवाब भारतीय जनता पार्टी दे रही है और देगी। लेकिन, इतना तो तय है कि इस तरह के निजी सवालों के उलझन में फंसी भारतीय राजनीति बमुश्किल ही थर्ड डिग्री से पास होती दिख रही है। 

Saturday, May 07, 2016

लघुकथा- ईमानदार अधिकारी

ईमानदार अधिकारी होने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि लोग आपकी ईमानदारी की बड़ी इज्जत करते हैं और सबसे बड़ा नुकसान ये कि धीरे-धीरे लोग ये भूलने लगते हैं कि ये अधिकारी भी है। जाहिर है फिर अधिकारी के तौर पर मिलने वाली इज्जत भी खत्म होती जाती है। #Honesty

एक देश, एक चुनाव से राजनीति सकारात्मक होगी

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। इसीलिए इस द...