#StopIdentityPolitics #RohithVemula 4Dalit इतना आसान नहीं है भाई। जैसे आप लोग
समझ रहे हैं या फिर समझा रहे हैं। @RSSorg या @ABVPVoice कुछ भी अच्छा करें, वो खबर नहीं हो सकती। खबर तो छोड़िए उस पर बात भी
नहीं हो सकती। वामपंथी देश में कहीं नहीं बचे। लेकिन, स्थापित है कि सरोकार सिर्फ वामपंथी करते हैं।
देश की एक बहुत बड़ी समस्या है। कश्मीर से कम नहीं है। कश्मीर में मुसलमान हैं, तो इस बहाने बात हो जाती है। हालांकि, कश्मीरी पंडितों के लिए बात कम ही होती है। उत्तर पूर्व की बात कितनी होती है। इस देश में। कब होती है।
जब कोई उत्तर पूर्व का, दिल्ली में किसी की बद्तमीजी का शिकार हो जाता है। या तब
बात होता है जब कई दिनों तक उत्तर पूर्व के लोग अपने लिए लड़ते रहते हैं। तो कहीं
कोई छोटी सी खबर बन जाती है। इस समय भी बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र
संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के दबाव से आत्महत्या करने लेने की रोहित
वेमुला की खबर छाई हुई है। इसमें अब कोई छिपी बात तो है नहीं कि किस तरह से वामपंथ
ने रोहित को इस्तेमाल कर लिया। सारे तथ्य अब सामने हैं। एक छात्र की मौत बहुत दुखद
है। आत्महत्या शर्मनाक, दुखद है। उस पर एक ऐसा छात्र जिसकी संभावनाएं बस शुरू ही
हुईं थीं। एक ऐसा छात्र जो अपने मां-बाप को काफी कुछ दे सकता था। कम से कम इतना तो
दे ही सकता था कि उसके मां-बाप अपने कष्टों की परवाह किए बिना जितना उसके लिए करते
थे। उसकी कुछ भरपाई हो पाती। लेकिन, रोहित चला गया। अब उस रोहित के बहाने
वामपंथियों को ये मौका मिल गया है। विद्यार्थी परिषद पर हमला करने और उस बहाने संघ
को जातिवादी, सांप्रदायिक साबित करने का।
इलाहाबाद में उत्तर पूर्व के छात्रों का स्वागत करते परिषद कार्यकर्ता |
सोचिए उत्तर पूर्व के लोगों को देश के
लोगों के साथ जोड़ने का कोई काम संघ कर रहा है। क्या उसकी चर्चा कहीं कभी हुई
क्या। होगी भी नहीं। क्योंकि, इससे तो फिर संघ या उससे जुड़े संगठनों पर हमला करना
ही मुश्किल हो जाएगा। और ये काम कोई आजकल या भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने
के साथ संघ या विद्यार्थी परिषद ने नहीं शुरू किया है। ये काम होते पचास साल हो गए
हैं। ये तस्वीर जो उत्तर पूर्व के छात्र-छात्राओं की मुस्कुराते हुए दिख रही है।
उसी काम के पचास साल पूरे होने पर इलाहाबाद में ली गई है। #SEIL Student Experience in Interstate Living का ये कार्यक्रम परिषद पिछले पचास साल से चला रहा है।
जिसमें देश के दूसरे हिस्सों के छात्र-छात्राओं के घर में आकर उत्तर पूर्व के
छात्र-छात्राएं रहते हैं। इससे बड़ा सरकोरी काम क्या होगा। लेकिन, ये चूंकि संघ और
विद्यार्थी परिषद राष्ट्र को मजबूत करने के लिए करता है। तो ये राष्ट्र लगते ही
सांप्रदायिक हो गया। ये सरोकारी नहीं रह जाएगा। हालांकि, जनता अब वामपंथ के लाल
वाले चश्मे से टपकते खून को पूरी तरह से हटा देना चाहती है। काफी हद तक हटा भी
दिया है। लेकिन, भारतीय जनता पार्टी की सरकार आते ही हर बात के लिए सरकार के बहाने
संघ और उससे जुड़े संगठनों पर हमला करके वामपंथ फिर से नौजवानों की आंखों में वही
लाल खून उतारने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। करेगा भी। क्योंकि, वामपंथ या जाति के
आधार पर बने संगठन मुद्दों के आधार पर जनता के बीच स्वीकार्य नहीं हैं। ठुकराए जा
चुके हैं। ये ठुकराए लोगों का आर्तनाद है। जो असहिष्णुता, जातिवाद और
सांप्रदायिकता के नाम से सुनाई देता रहेगा।
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