Tuesday, January 28, 2014

मनमोहिनी सिद्धांतों की कब्र पर होगी राहुल की ताजपोशी!


भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के रामलीला मैदान पर कहाकि दिल्ली आए थे कांग्रेसी कार्यकर्ता प्रधानमंत्री लेने और लेकर लौटे तीन गैस के बॉटल। नरेंद्र मोदी के मुंह से ये बात भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में निकली तो इस पर चर्चा भी शुरू हो गई। हालांकि, ये जुमला नरेंद्र मोदी के श्रीमुख से निकला था तो इसे सिर्फ कांग्रेस भाजपा के बीच के विरोधी बयान के तौर पर देखा जाना भी स्वाभाविक है। कुछ लोग इसे भाषण की तुकबंदी की तरह ही देख रहे हैं कि अच्छा लगता है इस तरह से अपने कार्यकर्ताओं के बीच में तुकबंदियां उछालना। और खुद राहुल गांधी 17 जनवरी की तालकटोरा वाली एआईसीसी बैठक में मान चुके हैं कि भाजपा और नरेंद्र मोदी की मार्केटिंग रणनीति इतनी अच्छी है कि वो गंजों को कंघी बेच देते हैं और अब तो उनका हेयर स्टाइल भी बनाने लगे हैं। बड़ा हिट हुआ था राहुल गांधी का ये वाला बयान और इतना ही हिट हुआ था राहुल गांधी का वो वाला बयान जिसमें वो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से चहकते हुए कह रहे थे कि प्रधानमंत्री जी 9 सिलिंडर से घर नहीं चलता। हमें 12 सिलिंडर चाहिए। जिन्होंने उस समय टीवी स्क्रीन देखा होगा उन्हें बगल में अतिप्रसन्न हो रही सोनिया गांधी की शक्ल भी दिखी होगी। हो भी क्यों ना। सोनिया गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष और एक बेटे की मां, दोनों ही रिश्तों से खुश होने की वजह दिख रही थी। बेटा और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पूरे फॉर्म में था। प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाने के लिए रुदन करते कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के सामने भाषणों के चौके-छक्के लगा रहा था। पहली बार लगा कि राहुल गांधी नेता हो गए हैं। और इस नेता होने वही दोनों लाइनें सबसे मददगार रहीं। अब नरेंद्र मोदी और भाजपा की मार्केटिंग रणनीति की राहुल गांधी बात करते हैं, काट निकालते हैं तो उसमें मुझे कोई तकलीफ नहीं होती। लेकिन, अर्थशास्त्र का विद्यार्थी होने के नाते राहुल गांधी का दूसरा बयान मुझे बेहद तकलीफ दे रहा है।


राहुल गांधी ने तो अपनी राजनीतिक इमारत की बुलंदी के लिए उछलकर कह दिया कि प्रधानमंत्री जी 9 सिलिंडर से काम नहीं चलेगा। 12 सिलिंडर चाहिए। प्रधानमंत्री न तो ऐसे बड़े मुद्दों पर बोलते हैं और न बोलने लायक बचे हैं। क्योंकि, अध्यादेश पर राहुल के बगावती तेवर ने उन्हें अंदर तक हिला दिया है। इसीलिए उन्होंने सत्ता के दो ध्रुवों के सफलतापूर्वक चलने की बात भी कह डाली। और अब अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में मनमोहन सिंह ये भी देख रहे हैं कि किस तरह से उनके सारे अर्थशास्त्री सिद्धांतों को बलि देकर एक मां अपने बेटे की राजनीतिक जमीन तैयार कर रही है। अर्थशास्त्र का विद्यार्थी होने के नाते राहुल गांधी का 9 की बजाय सब्सिडी वाले 12 सिलिंडर देने की जरूरत वाला बयान और उस पर तुरंत पेट्रोलियम मंत्री की प्रतिक्रिया की हम कैबिनेट में इस पर विचार करेंगे, बेहद खतरनाक संकेत दे रहा है। 2004 में जब आठ प्रतिशत से ज्यादा की तरक्की की रफ्तार विरासत में लेकर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने थे तो हर कोई ये आसानी से मान ले रहा था कि भले ये एनडीए ने काम किया लेकिन, इसकी बुनियाद नरसिंहा राव-मनमोहन की जोड़ी के देश को दुनिया के साथ जोड़ने वाले सुधारवादी फैसलों ने किया था। इसीलिए जब 2004 में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो देश ही नहीं दुनिया के लोगों को लगा कि अब हम बड़ी आसानी से दस प्रतिशत की तरक्की की रफ्तार हासिल कर लेंगे। नई पीढ़ी ये सपना देखने लगी थी कि अब हमारा भी जीवन अमेरिका-लंदन में रहने वालों जैसा होगा यानी हम विकासशील से विकसित देशों की कतार में पहुंच जाएंगे। लेकिन, हुआ क्या। हुआ ये कि 2004-2009 यानी यूपीए के पहले शासनकाल में तो तरक्की की रफ्तार आठ प्रतिशत पर बनी रही लेकिन, उस तरक्की की मजबूत बुनियाद में सीलन डाल दी सोनिया गांधी के प्रिय महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना ने। सब्सिडी से हटकर देश के लोगों को बाजार के सिद्धांतों के अनुकूल बनाकर तरक्की की मनमोहिनी योजना में ये पहला बड़ा छेद था। भ्रम ये फैलाया गया कि 2009 में लोगों ने इसी मनरेगा से मिलने 100 रुपये रोज की गारंटी पर यूपीए 2 के लिए वोट कर दिया। जबकि, सच्चाई ये थी कि दरअसल नौजवान वोटर, शहरों में कमाने निकला मध्यमवर्गीय परिवार यूपीए 2 के लिए इस गलतफहमी में वोट कर गया था कि मनमोहन सिंह हैं तो 10 प्रतिशत की तरक्की हम हासिल कर ही लेंगे। अर्थव्यवस्था की खराब हालत के लिए ठीकरा दुनिया की मंदी पर मनमोहन सिंह ने आसानी से फोड़ दिया। लोग भूलते जल्दी हैं इसलिए याद दिलाता हूं कि किस तरह से पी चिदंबरम ने और फिर प्रणब मुखर्जी ने वित्त मंत्री रहते हुए यूपीए सरकार की सब्सिडी का बोझ करने वाली योजना अमल में लाने की बात बजट भाषण के दौरान लगातार देश को बताई थी। उस भाषण पर ज्यादा नहीं लेकिन, सिर्फ एक महत्वपूर्ण बात कि धीरे-धीरे पेट्रोलियम उत्पादों से सब्सिडी कम कर दी जाएगी। और उसी योजना के तहत पेट्रोल को पूरी तरह बाजार के हवाले, डीजल को आंशिक तौर पर बाजार के हवाले और एलपीजी यानी रसोई गैस के सब्सिडी वाले सिलिंडरों की संख्या कम करने के ऐलान किए गए।

हालांकि, इस सब्सिडी खत्म करने के फैसले का राजनीतिक तौर पर कई बार इस्तेमाल भी किया गया। लेकिन, धीरे-धीरे इस सब्सिडी खत्म करके बाजार के सिद्धांतों पर पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत तय करने के सरकार के फैसले के अच्छे असर भी दिखने शुरू हो गए थे। पेट्रोलियम मंत्रालय से आने वाली साधारण प्रेस विज्ञप्तियों में से एक के आंकड़े असाधारण हैं। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर यानी DBTL योजना से जोरदार फायदा हो रहा था। लीकेज पर रोक लग रही थी। रसोई गैस की सब्सिडी का पैसा सीधे खाते में जाने की योजना अभी पूरी तरह लागू नहीं हुई है लेकिन,जितनी भी लागू हुई है उसका असर दिखना शुरू हो चुका है। जून 2013 को ये योजना शुरू हुई थीदेश में कुल 15 करोड़ रसोई गैस ग्राहक परिवार हैं। इनमें से दो करोड़ तीस लाख ग्राहक परिवार आधार, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर योजना के दायरे में आ चुके हैं। इसका मतलब ये हुआ कि 2000 करोड़ रु सीधे ग्राहकों के खाते में जा रहे हैं। देश के 54 जिलों में ये योजना पूरी तरह लागू है। अब इस योजना के फायदे देखिए 8लाख मल्टीपल कनेक्शन बंद किए गए हैं। सालाना 2500 करोड़ रुपये की बचत की बात की जा रही है। ये सुधार के सिद्धांतों का असर था। लोग रसोई गैस की बचत करना सीख रहे हैं। लोगों को लग रहा है कि ठीक से एक कनेक्शन ही घर में होना चाहिए। वजह ये कि अब सब्सिडी सीधे खाते में आएगी और बिना आधार कार्ड के नहीं मिलेगी। डुप्लिकेट रसोई गैस खाते बंद होंगे। इसके साथ एक और तथ्य समझना जरूरी है। वो तथ्य ये है कि किसी भी परिवार में रसोई गैस की जो खपत होती है लगभग वही पहले भी होती थी। फर्क सिर्फ इतना है कि अब उसके एक ही वैध कनेक्शन पर वो खपत है। पहले उसके 2-3 कनेक्शनों में उसकी खपत के अलावा सब कालाबाजारी का जरिया बन जाता था। और यही लीकेज है, भ्रष्टाचार है जो सुधारवादी सिद्धांतों से सुधर रहा था। 9 सिलिंडर एक परिवार के लिए पर्याप्त होते हैं। हां बड़े परिवारों में शायद जरूरत ज्यादा की होती हो। लेकिन, अच्छा था कि धीरे-धीरे लोग 80 प्रतिशत आयातक पेट्रोलियम उत्पाद वाले देश के लिहाज से संयमित भी हो रहे थे। कालाबाजारी पर रोक भी लग रही थी। लेकिन, अचानक एक युवराज की ताजपोशी का संकट देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के सामने आ खड़ा हुआ। और प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार युवराज को बनाने की चाहत लेकर आए देश भर के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और देश के दूसरे लोगों को भी 9 से 12 सस्ते सिलिंडर देकर ही युवराज को बिना घोषित किए प्रधानमंत्री बनाने का रास्ता तैयार करने की कोशिश हुई है। लेकिन, ये सबकुछ मनमोहन सिंह के सारे अर्थशास्त्री सिद्धांतों को कब्र में डालकर हो रहा है। सब्सिडी पर देश के लोगों का मत बन चुका था। अब देखना ये होगा कि 2009 में मनरेगा से चुनाव जीतने का भ्रम फैलाने वाली कांग्रेस क्या 2014 की लड़ाई तीन सस्ते सिलिंडर के भ्रम से जीत पाती है। 

(ये लेख दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में छपा है।)

Tuesday, January 21, 2014

तानाशाही विचारधारा के हैं अरविंद केजरीवाल!


अरविंद केजरीवाल मुझे बहुत लुभाते थे। गलत कह रहा हूं सच बात ये है कि अभी भी बहुत लुभाते हैं। बिना किसी बहस के अरविंद केजरीवाल का खुद में भरोसा गजब है। और ऐसा ही भरोसा हम  जैसे लोगों को भी अरविंद में दिखता है लेकिन, उससे भी ज्यादा भरोसा मुझे इस तर्क में दिखता है कि केजरीवाल कांग्रेस का विकल्प हो सकते हैं। या ये कहें कि दिखता था। लेकिन, अब उससे भी ज्यादा भरोसा इस तर्क में कि कांग्रेस की मदद ये मजबूती से करेंगे। ठंडी की एक रात में प्रदर्शन के दौरान जागने के बाद अरविंद केजरीवाल के ज्ञान चक्षु खुल गए हैं। पता नहीं ये दिव्य ज्ञान बीती रात ही हुआ या उससे पहले से ही है। ये दिव्य ज्ञान ये है कि आधा मीडिया नरेंद्र मोदी के साथ है और आधा राहुल गांधी के साथ। शोले फिल्म में अंग्रेजों के जमाने के जेलर असरानी की वो बात मेरे दिमाग में आ गई कि आधे दाएं जाओ, आधे बाएं जाओ- बाकी मेरे पीछे आओ। वो पिक्चर थी। कॉमेडी थी। लेकिन, अरविंद केजरीवाल तो मुख्यमंत्री हैं और प्रधानमंत्री बनने का सपना भी देखने लगे हैं। वो क्यों कॉमेडी कर रहे हैं। मीडिया के बारे में बार-बार बात होती है और ऐसा नहीं है। सोशल मीडिया पर और निजी बातचीत में अकसर राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी के समर्थक भी ये आरोप लगाते रहते हैं कि मीडिया उनके खिलाफ काम कर रहा है। देश की और राज्य की सरकारें भी अकसर ये दबे-छिपे कहती रहती हैं कि मीडिया उनकी सरकार अस्थिर करने में लगा हुआ है। लेकिन, श्रीमान अरविंद केजरीवाल का ये बयान कि आधा मीडिया नरेंद्र मोदी का है और आधा राहुल गांधी का थोड़ा चौकाने वाला है। मेरी जानकारी में तो इस तरह से मीडिया को बांटकर आरोप तो कभी खुद नरेंद्र मोदी या राहुल गांधी ने भी नहीं लगाया। जबकि, ये किसी से छिपी बात तो है नहीं कि मीडिया खासकर टीवी मीडिया नरेंद्र मोदी की कितनी विरोधी रिपोर्ट पेश करता रहा है। 12 सालों से अगर 2002 जिंदा है तो क्या लगता है कि तीस्ता सीतलवाड़ जैसी एनजीओ कार्यकर्ता या कुछ धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मोदी विरोध करने वालों की इतनी ताकत है। दरअसल गुजरात दंगा अगर नरेंद्र मोदी का पीछा नहीं छोड़ रहा है तो इसके पीछे मीडिया का मूलत: निष्पक्ष स्वभाव ही है। वही मीडिया नरेंद्र मोदी के विकास के एजेंडे की क्या जमकर तारीफ करता है। वही टीवी चैनल जो गुजरात दंगों पर गंदे से गंदे विश्लेषण के साथ रिपोर्ट चलाते हैं वही टीवी चैनल विकास के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी को महानतम विश्लेषणों से विभूषित करते हैं। मीडिया यही है। क्या कभी नरेंद्र मोदी ने ये कहा कि पूरे देश का मीडिया सिर्फ राहुल गांधी का है।


राहुल गांधी को भी मीडिया ने क्या-क्या नहीं कहा। अपनी ही बहन प्रियंका के सामने हर मौके पर ऐसे साबित किया कि राहुल तो सचमुच गली में खेलने वाला बच्चा है और प्रियंका गांधी राजनीति की चतुर खिलाड़ी। जबकि, सच्चाई क्या ये नहीं है कि इंदिरा गांधी की छवि दिखती है, राहुल, सोनिया की चुनावी प्रबंधक हैं इसके अलावा तीसरी सीट पर कभी प्रियंका जिताऊ फैक्टर नहीं साबित हुई हैं। लेकिन, हर कोशिश के बावजूद मीडिया में राहुल गांधी की कड़ी परीक्षा हर रोज होती रहती है। फिर भी क्या कभी राहुल गांधी ने ये कहा कि सारा मीडिया सिर्फ नरेंद्र मोदी का है। दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने में अरविंद केजरीवाल की जबरदस्त मदद पिछले करीब ढाई सालों से टीवी मीडिया में सबसे ज्यादा कवरेज ने की है। इससे भला कौन इंकार कर सकता है। लेकिन, इसके बावजूद मीडिया को इस तरह से खांचे में बांटकर देखने का साहस कौन राजनेता करता है। कार्यकर्ता और छुटभैये नेता कांग्रेस, बीजेपी या किसी पार्टी के हों मीडिया को अपनी सरकार, नेता के खिलाफ लिखने-बोलने पर गाली देते ही हैं। और ये होगा ही। लेकिन, सीधे-सीधे किसी पार्टी का शीर्ष नेता सारे ही मीडिया को विरोधी बता दे, आरोप लगा दे ऐसा कम ही होता है। किसी एक संपादक, अखबार, किसी एक बहस में किसी एक एंकर पर आरोप लगाना होता रहा है। लेकिन, अरविंद क्रांतिकारी हैं, अराजक हैं, खुद को वो ऐसे ही परिभाषित किया जाना पसंद करते हैं। इसलिए अरविंद ने पूरे मीडिया को आधा-आधा नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के पाले में भेज दिया।

श्रीमान अरविंद केजरीवाल "आआपा" की सफलता में मीडिया का कितना योगदान है ये आपको अच्छे से पता है। नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी के लिए इतना योगदान नहीं दिया। मोदी, राहुल पर भी मीडिया जमकर सवाल उठाता है लेकिन इन दोनों ने भी कभी मीडिया पर आरोप नहीं लगाया। आपके विचार तो अजब उत्पाती हैं कि आप पर सवाल उठाने का हक भी मीडिया से छीन लिया जाए। तानाशाही विचारों के असल प्रवर्तक दिख रहे हैं आप। लेकिन, आपकी तानाशाही "आआपा" में जुड़ने वालों पर चल सकती है मीडिया पर नहीं इसीलिए आपको लगता है कि सारा मीडिया अब आपका विरोधी है। अरविंद केजरीवाल खुद को बुद्धि का भंडार समझते हैं लेकिन, ये क्यों नहीं समझ पाते कि मीडिया मोदी, राहुल का होता तो ठंडी में, बारिश में भीगते, पुलिस की लाठियों के बीच से "आआपा" कार्यकर्ताओं को पिटता क्यों दिखाता? मीडिया मूलत: कितना निष्पक्ष है इसका अंदाजा इसी से लगाइए कि श्रीमान अरविंद केजरीवाल ने सुबह ही आधा-आधा मीडिया मोदी, राहुल का बता दिया फिर भी पूरा मीडिया रेल भवन पर रहा। अरविंद केजरीवाल गलतबयानी में आप माहिर हैं। ये तो अच्छे से समझते हैं कि मीडिया न मोदी का है न राहुल का। हां "आआपा" का भी नहीं इसीलिए मिर्ची लग रही है। और सबसे आखिर में अगर एकाध टीवी संपादकों के पार्टी में जाने से सारा मीडिया किसी पार्टी का हो जाता तो आशुतोष से बहुत बड़े-बड़े संपादक पहले से कांग्रेस-बीजेपी में हैं। श्रीमान अरविंद केजरीवाल गलतफहमी से बाहर निकलिए। लोग बार-बार ये कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी की विचार धारा क्या है। अब मैं पक्के तौर पर कह सकता हूं अरविंद तानाशाही विचारधारा के असल वाहक हैं।

Friday, January 17, 2014

सीधे राहुल के दिल से लाइव

तालकटोरा स्टेडियम में राहुल गांधी
आज सुबह से देश में बड़ी बेचैनी थी। बेचैनी इस बात की नहीं थी कि  राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के दावेदार बनेंगे या नहीं। बेचैनी इस बात को लेकर थी कि क्या-क्या नौटंकी होगी तालकटोरा स्टेडियम में। जिस तरह से कल से देश को ये दिखाने की कोशिश हो रही थी कि लोकतंत्र मतलब कांग्रेस है उसे कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के साथ तालकटोरा स्टेडियम से देश की जनता को लाइव देखने की बेचैनी थी। सुबह जब सोनिया गांधी के बोलते समय कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने राहुल-राहुल के नारे लगाने शुरू किए तो लगा कि क्रिकेट के स्टेडियम है, तालकटोरा स्टेडियम नहीं। राहुल गांधी को उठकर आना पड़ा और कहना पड़ा कि दोपहर 3.30 बजे वो अपने दिल की बात बोलेंगे। उस समय कांग्रेस प्रेसिडेंट सोनिया गांधी को देखकर, सुनकर लगा कि वो कांग्रेस अध्यक्ष नहीं, मां की तरह व्यवहार कर रही हैं जिसके लिए बेटा कभी बड़ा नहीं होता। या यूं कहें कि बेटे को वो तब तक घर से बाहर नहीं निकलने देती जब तक तय न हो जाए कि बाहर सब ठीक है। सोनिया गांधी चाहती हैं कि किसी तरह से कांग्रेस या यूपीए की तीसरी बार सरकार बनने की नौबत आ जाए और वो सीधे युवराज को राजा बना दें। खैर राहुल के साढ़े तीन बजे के भरोसे मैं भी दिल  लगाकर बैठ गया। साढ़े तीन क्या चार बज गया। बड़ी देर से प्रयास में हूं कि राहुल जी के दिल की बात सुनूं अभी तो दिमाग वाली वो चिल्लाकर बता रहे हैं। इंतजार कर रहा हूं। 

फिर राहुल गांधी के दिल से आवाज आई 15 सीटों पर जनता से पूछकर उम्मीदवार, जनता से पूछकर घोषणापत्र। तुरंत समझ में आ गया कि अरविंद केजरीवाल क्यों कांग्रेस से आगे निकल गया। सोचिए अरविंद केजरीवाल के पास न गुलाम कार्यकर्ताओं की फौज थी ना तो राहुल गांधी की तरह कांग्रेस ने देश बनाया, 21वी सदी में पहुंचाया दुहाई देने वाले तर्क थे। अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस सरकार से लड़ाई लड़ी अब नरेंद्र मोदी से भी लड़ने का हौसला बना लिया लेकिन, अरविंद केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी से लड़ने के लिए अपना तरीका अपनाया। सही गलत जो भी हो। राहुल गांधी केजरीवाल की नकल कर रहे हैं। यही है दिल की बात। अब सोचिए जब केजरीवाल की ही नकल कर रहे हैं तो केजरीवाल के पीछे ही चलेंगे ना। जब अरविंद केजरीवाल आम आदमी तक पहुंच जाएगा उसी रास्ते से ये भी बाद में पहुंचेंगे। 

तालकटोरा में  अद्भुत दृष्य था। राहुल गांधी दिल की बात बता रहे थे। राहुल गांधी पोडियम से दिल की बात बता रहे हैं। तालकटोरा स्टेडियम में नीचे कांग्रेसी कार्यकर्ता रुदन कर रहे थे। और पुराने कांग्रेसी नेता मंच पर बैठकर इस नौटंकी रुदन पर मंच पर मुस्कुरा रहे हैं। राहुल गांधी दिल से कह रहे थे लोकतंत्र एक व्यक्ति से नहीं चलता। मेरे सामने महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी सबकी तस्वीर एक झटके से घूम गई। राहल गांधी के दिल की बात सुनकर मेरे दिल ने सवाल किया कि क्या ये सारे कांग्रेसी नेता लोकतंत्र विरोधी थे। लोकतंत्र के हत्यारे थे। ये सारे नेता एक व्यक्ति थे जिनके पीछे देश खड़ा था।

मैं इससे उबर पाता कि फिर चीखती से मेरे काम में आ गई राहुल गांधी के दिल की बात। 12 सिलिंडर निकले राहुल गांधी के दिल से। मेरे मन में सवाल आया कि काश इस समय मैं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की शक्ल देख पाता। मनमोहन जी बोलते कम है। खुले में रो भी नहीं सकते। उनके अर्थशास्त्री सिद्धांत 10 साल में कब्र में चले गए। 2004 का सुधारवादी प्रधानमंत्री आज तालकटोरा में 2014 की शुरुआत में अर्थशास्त्र के सारे सिद्धांतों की बलि एक युवराज की ताजपोशी की वजह से चढ़ते हुए देख रहा था। राहुल गांधी का दिल दरिया हुआ जा रहा था और सामने भावनाओं का समंदर बह रहा था। मुझे तो लगा कि वो रोने भी वाले हैं लेकिन, शायद जो 500 करोड़ वाली एजेंसी थी उसने रुलाने के लिए रकम नहीं ली थी। लेकिन, इस सबके बीच मंच पर किलकारी मारती सोनिया गांधी को देखकर लगा मां ... मां ही होती है। राहुल जब दिल से पूरे उत्साह से भाषण दे रहे थे तो 12 सिलिंडर वाली लाइन पर लगा कि सोनिया अब उछलकर ताली बजा देंगी।
राहुल गांधी दिल से लगातार बोल रहे थे। दिल से वो बोले कि लोकतंत्र, संसदीय परंपरा के लिए वो प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं बने। जो भी कांग्रेसी सांसद चुनकर आएंगे वो उन्हें चुनेंगे। इससे एक बार तो मेरे दिल को ऐसा लगा कि दूसरे दलों के लोग प्रधानमंत्री बनते हैं तो उन्हें उनके सांसद नहीं कोई और चुनता है। हां, ये बात अलग है कि कांग्रेस में सांसद बनेंगे ही तभी जब राहुल गांधी दिल से चाहेंगे और दिल हो या न हो कांग्रेसी सांसद बन गए तो उन्हें राहुल गांधी को ही चुनना पड़ेगा। संविधान ने भी सांस रोककर राहुल के दिल की ये सारी बातें सुनी। कांग्रेसी सांसद बनेंगे तो टिकट राहुल गांधी तय करेंगे, सांसद बन जाएंगे तो उन्हें राहुल गांधी को ही प्रधानमंत्री चुनना है लेकिन, राहुल गांधी पहले दावेदार नहीं बनेंगे। संविधान का सम्मान बचा रहे इसके लिए चुने कांग्रेसी सांसदों को बाध्यता होगी कि उनके नेता राहुल गांधी ही हों। बाबा साहब भी क्या सोच रहे होंगे।  

एक देश, एक चुनाव से राजनीति सकारात्मक होगी

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। इसीलिए इस द...