भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के रामलीला मैदान पर कहाकि दिल्ली आए थे कांग्रेसी कार्यकर्ता प्रधानमंत्री लेने और लेकर लौटे तीन गैस के बॉटल। नरेंद्र मोदी के मुंह से ये बात भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में निकली तो इस पर चर्चा भी शुरू हो गई। हालांकि, ये जुमला नरेंद्र मोदी के श्रीमुख से निकला था तो इसे सिर्फ कांग्रेस भाजपा के बीच के विरोधी बयान के तौर पर देखा जाना भी स्वाभाविक है। कुछ लोग इसे भाषण की तुकबंदी की तरह ही देख रहे हैं कि अच्छा लगता है इस तरह से अपने कार्यकर्ताओं के बीच में तुकबंदियां उछालना। और खुद राहुल गांधी 17 जनवरी की तालकटोरा वाली एआईसीसी बैठक में मान चुके हैं कि भाजपा और नरेंद्र मोदी की मार्केटिंग रणनीति इतनी अच्छी है कि वो गंजों को कंघी बेच देते हैं और अब तो उनका हेयर स्टाइल भी बनाने लगे हैं। बड़ा हिट हुआ था राहुल गांधी का ये वाला बयान और इतना ही हिट हुआ था राहुल गांधी का वो वाला बयान जिसमें वो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से चहकते हुए कह रहे थे कि प्रधानमंत्री जी 9 सिलिंडर से घर नहीं चलता। हमें 12 सिलिंडर चाहिए। जिन्होंने उस समय टीवी स्क्रीन देखा होगा उन्हें बगल में अतिप्रसन्न हो रही सोनिया गांधी की शक्ल भी दिखी होगी। हो भी क्यों ना। सोनिया गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष और एक बेटे की मां, दोनों ही रिश्तों से खुश होने की वजह दिख रही थी। बेटा और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पूरे फॉर्म में था। प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाने के लिए रुदन करते कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के सामने भाषणों के चौके-छक्के लगा रहा था। पहली बार लगा कि राहुल गांधी नेता हो गए हैं। और इस नेता होने वही दोनों लाइनें सबसे मददगार रहीं। अब नरेंद्र मोदी और भाजपा की मार्केटिंग रणनीति की राहुल गांधी बात करते हैं, काट निकालते हैं तो उसमें मुझे कोई तकलीफ नहीं होती। लेकिन, अर्थशास्त्र का विद्यार्थी होने के नाते राहुल गांधी का दूसरा बयान मुझे बेहद तकलीफ दे रहा है।
राहुल गांधी ने तो
अपनी राजनीतिक इमारत की बुलंदी के लिए उछलकर कह दिया कि प्रधानमंत्री जी 9 सिलिंडर
से काम नहीं चलेगा। 12 सिलिंडर चाहिए। प्रधानमंत्री न तो ऐसे बड़े मुद्दों पर
बोलते हैं और न बोलने लायक बचे हैं। क्योंकि, अध्यादेश पर राहुल के बगावती तेवर ने
उन्हें अंदर तक हिला दिया है। इसीलिए उन्होंने सत्ता के दो ध्रुवों के सफलतापूर्वक
चलने की बात भी कह डाली। और अब अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में मनमोहन सिंह ये
भी देख रहे हैं कि किस तरह से उनके सारे अर्थशास्त्री सिद्धांतों को बलि देकर एक
मां अपने बेटे की राजनीतिक जमीन तैयार कर रही है। अर्थशास्त्र का विद्यार्थी होने
के नाते राहुल गांधी का 9 की बजाय सब्सिडी वाले 12 सिलिंडर देने की जरूरत वाला
बयान और उस पर तुरंत पेट्रोलियम मंत्री की प्रतिक्रिया की हम कैबिनेट में इस पर
विचार करेंगे, बेहद खतरनाक संकेत दे रहा है। 2004 में जब आठ प्रतिशत से ज्यादा की
तरक्की की रफ्तार विरासत में लेकर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने थे तो हर कोई ये
आसानी से मान ले रहा था कि भले ये एनडीए ने काम किया लेकिन, इसकी बुनियाद नरसिंहा राव-मनमोहन
की जोड़ी के देश को दुनिया के साथ जोड़ने वाले सुधारवादी फैसलों ने किया था।
इसीलिए जब 2004 में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो देश ही नहीं दुनिया के लोगों
को लगा कि अब हम बड़ी आसानी से दस प्रतिशत की तरक्की की रफ्तार हासिल कर लेंगे। नई
पीढ़ी ये सपना देखने लगी थी कि अब हमारा भी जीवन अमेरिका-लंदन में रहने वालों जैसा
होगा यानी हम विकासशील से विकसित देशों की कतार में पहुंच जाएंगे। लेकिन, हुआ
क्या। हुआ ये कि 2004-2009 यानी यूपीए के पहले शासनकाल में तो तरक्की की रफ्तार आठ
प्रतिशत पर बनी रही लेकिन, उस तरक्की की मजबूत बुनियाद में सीलन डाल दी सोनिया
गांधी के प्रिय महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना ने। सब्सिडी से हटकर
देश के लोगों को बाजार के सिद्धांतों के अनुकूल बनाकर तरक्की की मनमोहिनी योजना
में ये पहला बड़ा छेद था। भ्रम ये फैलाया गया कि 2009 में लोगों ने इसी मनरेगा से
मिलने 100 रुपये रोज की गारंटी पर यूपीए 2 के लिए वोट कर दिया। जबकि, सच्चाई ये थी
कि दरअसल नौजवान वोटर, शहरों में कमाने निकला मध्यमवर्गीय परिवार यूपीए 2 के लिए
इस गलतफहमी में वोट कर गया था कि मनमोहन सिंह हैं तो 10 प्रतिशत की तरक्की हम
हासिल कर ही लेंगे। अर्थव्यवस्था की खराब हालत के लिए ठीकरा दुनिया की मंदी पर
मनमोहन सिंह ने आसानी से फोड़ दिया। लोग भूलते जल्दी हैं इसलिए याद दिलाता हूं कि
किस तरह से पी चिदंबरम ने और फिर प्रणब मुखर्जी ने वित्त मंत्री रहते हुए यूपीए सरकार
की सब्सिडी का बोझ करने वाली योजना अमल में लाने की बात बजट भाषण के दौरान लगातार
देश को बताई थी। उस भाषण पर ज्यादा नहीं लेकिन, सिर्फ एक महत्वपूर्ण बात कि
धीरे-धीरे पेट्रोलियम उत्पादों से सब्सिडी कम कर दी जाएगी। और उसी योजना के तहत
पेट्रोल को पूरी तरह बाजार के हवाले, डीजल को आंशिक तौर पर बाजार के हवाले और
एलपीजी यानी रसोई गैस के सब्सिडी वाले सिलिंडरों की संख्या कम करने के ऐलान किए
गए।
हालांकि, इस सब्सिडी
खत्म करने के फैसले का राजनीतिक तौर पर कई बार इस्तेमाल भी किया गया। लेकिन, धीरे-धीरे
इस सब्सिडी खत्म करके बाजार के सिद्धांतों पर पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत तय करने
के सरकार के फैसले के अच्छे असर भी दिखने शुरू हो गए थे। पेट्रोलियम मंत्रालय से
आने वाली साधारण प्रेस विज्ञप्तियों में से एक के आंकड़े असाधारण हैं। डायरेक्ट
बेनिफिट ट्रांसफर यानी DBTL योजना से जोरदार फायदा हो रहा था। लीकेज पर रोक लग रही थी। रसोई गैस की सब्सिडी का पैसा सी धे खाते में जाने की योजना अभी
पूरी तरह लागू नहीं हुई है लेकिन,जितनी भी लागू हुई है उसका असर दिखना शुरू हो
चुका है। 1 जून 2013 को ये योजना शुरू हुई थी। देश में कुल 15 करोड़ रसोई गैस ग्राहक परिवार हैं।
इनमें से दो करोड़ तीस लाख ग्राहक परिवार आधार, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर योजना
के दायरे में आ चुके हैं। इसका मतलब ये हुआ कि 2000 करोड़ रु सीधे ग्राहकों के खाते में जा रहे हैं। देश के 54 जिलों में ये योजना पूरी तरह लागू है। अब इस योजना के
फायदे देखिए 84 लाख मल्टीपल कनेक्शन बंद किए गए हैं। सालाना 2500 करोड़ रुपये की बचत की बात की जा रही
है। ये सुधार के सिद्धांतों का असर था। लोग रसोई गैस की बचत करना सीख रहे हैं।
लोगों को लग रहा है कि ठीक से एक कनेक्शन ही घर में होना चाहिए। वजह ये कि अब
सब्सिडी सीधे खाते में आएगी और बिना आधार कार्ड के नहीं मिलेगी। डुप्लिकेट रसोई
गैस खाते बंद होंगे। इसके साथ एक और तथ्य समझना जरूरी है। वो तथ्य ये है कि किसी
भी परिवार में रसोई गैस की जो खपत होती है लगभग वही पहले भी होती थी। फर्क सिर्फ
इतना है कि अब उसके एक ही वैध कनेक्शन पर वो खपत है। पहले उसके 2-3 कनेक्शनों में
उसकी खपत के अलावा सब कालाबाजारी का जरिया बन जाता था। और यही लीकेज है,
भ्रष्टाचार है जो सुधारवादी सिद्धांतों से सुधर रहा था। 9 सिलिंडर एक परिवार के
लिए पर्याप्त होते हैं। हां बड़े परिवारों में शायद जरूरत ज्यादा की होती हो। लेकिन,
अच्छा था कि धीरे-धीरे लोग 80 प्रतिशत आयातक पेट्रोलियम उत्पाद वाले देश के लिहाज
से संयमित भी हो रहे थे। कालाबाजारी पर रोक भी लग रही थी। लेकिन, अचानक एक युवराज
की ताजपोशी का संकट देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के सामने आ खड़ा हुआ। और प्रधानमंत्री
पद का उम्मीदवार युवराज को बनाने की चाहत लेकर आए देश भर के कांग्रेसी
कार्यकर्ताओं और देश के दूसरे लोगों को भी 9 से 12 सस्ते सिलिंडर देकर ही युवराज को
बिना घोषित किए प्रधानमंत्री बनाने का रास्ता तैयार करने की कोशिश हुई है। लेकिन, ये
सबकुछ मनमोहन सिंह के सारे अर्थशास्त्री सिद्धांतों को कब्र में डालकर हो रहा है। सब्सिडी
पर देश के लोगों का मत बन चुका था। अब देखना ये होगा कि 2009 में मनरेगा से चुनाव
जीतने का भ्रम फैलाने वाली कांग्रेस क्या 2014 की लड़ाई तीन सस्ते सिलिंडर के भ्रम
से जीत पाती है।
(ये लेख दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में छपा है।)