उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती राज्य के विकास के लिए केंद्र सरकार से 80 हजार करोड़ रुपए मांग रही हैं। वो भी अखबारों में विज्ञापन देकर। शायद ये पहली बार हो रहा है कि कोई मुख्यमंत्री केंद्र सरकार से राज्य के विकास के लिए विज्ञापन के जरिए पैसे मांग रहा है। इस बार सरकार संभालने के साथ ही मायावती ने इस बात की कोशिश शुरू कर दी थी कि राज्य का विकास कैसे किया जाए (कम से कम बोलकर)। जब मायावती राज्य की मुख्यमंत्री बनी थीं, तभी से लोग इस बात का अंदाजा लगाने लगे थे कि आखिर मायावती केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार को समर्थन देकर क्या हासिल करना चाहती हैं। लोगों को लग यही रहा था कि केंद्र सरकार को मायावती का ये समर्थन कहीं सिर्फ राजनीतिक या व्यक्तिगत लाभ तक ही न सीमित रह जाए। लेकिन, इस बार मायावती साफ संदेश दे रही हैं कि वो लंबी पारी खेलने के मूड में है। और, वो उत्तर प्रदेश के जरिए पूरे देश में ये संदेश दे रही हैं कि उन्हें इस बात अच्छी तरह अहसास है कि जिस सर्वजन के फॉर्मूले पर चुनाव जीतकर वो यूपी में सत्ता में आई हैं, आगे के पांच साल का शासन सिर्फ उसी के बूते नहीं हो सकता।
मायावती के हाथ में एक ऐसे राज्य की बागडोर है जो, मानव संसाधन से तो, पूरी तरह संपन्न है। राज्य की आबादी 18 करोड़ हो चुकी है। लेकिन, इसके अलावा राज्य के पास ऐसा कुछ खास नहीं है जिससे वो विकास के मामले में दक्षिण और पश्चिम के राज्यों के आसपास भी खड़ा हो सके। उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य है जहां एग्री बेस्ड इंडस्ट्री ही अच्छे से चल सकती है। खेती पर आधारित उद्योग इसलिए भी सफल हो सकते हैं क्योंकि, उत्तर प्रदेश उन राज्यों में से है जो, जल संपदा के मामले में संपन्न हैं। देश की 9 प्रतिशत जमीन उत्तर प्रदेश के पास ही है। इसीलिए खेती पर आधारित चीनी उद्योग के मामले में उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर है। फल-सब्जियां उगाने के मामले में भी उत्तर प्रदेश आगे है। लेकिन, चीनी को लेकर सरकारों की गलत नीतियों के चलते सभी चीनी घाटा उठा रही हैं। हालात इतने बिगड़ गए हैं कि मायावती ने नफा-नुकसान का हिसाब लगाकर समझ लिया कि इन्हें चलाना अब सरकार के लिए किसी भी तरह से फायदे का सौदा नहीं है। इसलिए मायावती ने चीनी मिलों को उद्योगपतियों को बेचने का फैसला किया है। औद्योगिक सुधार की मायावती सरकार की नीति का ये पहला प्रभावी कदम है।
राज्य के विकास के लिए केंद्र से मांगे गए 80 हजार करोड़ रुपए में 22 हजार करोड़ रुपए मायावती ने बेहतर खेती की सुविधाओं पर खर्च करने के लिए ही मांगे हैं। राज्य की बड़ी आबादी अभी भी गांवों में रहती है इसलिए गांवों तक सभी सभी विकास योजनाएं समय से पहुंचे ये, राज्य के तेज विकास के लिए बहुत जरूरी है। गांव में पंचायती राज लागू करने और सुविधाएं बेहतर करने के लिए मायावती ने 6 हजार 5 सौ करोड़ रुपए मांगे हैं। खेती की सुविधा और गांव-पंचायती राज पर अगर 28 हजार 5 सौ करोड़ रुपए की ये रकम सलीके से खर्च हो पाई तो, शायद विकास की गाड़ी दौड़नी तो, शुरू हो ही जाएगी।
वैसे मुलायम सिंह यादव के राज में भी उत्तर प्रदेश के विकास के लिए उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम बना था। और, अमर सिंह, अमिताभ बच्चन और अनिल अंबानी के प्रभाव में देश के कई बड़े औद्योगिक घराने इसमें शामिल भी हो गए थे। लेकिन, अनिल अंबानी के दादरी प्रोजेक्ट को छोड़कर एक भी ऐसा प्रोजेक्ट सुनाई नहीं दिया जिससे राज्य की बेहतरी की उम्मीद की जा सकती। मुलायम सत्ता का सुख भोगकर सत्ता से बाहर भी हो गए लेकिन, राज्य का भला नहीं हो सका। राज्य की खराब कानून व्यवस्था की हालत की वजह से किसी भी उद्योगपति की राज्य में उद्योग लगाने की हिम्मत ही नहीं हुई। कानपुर, भदोही, बनारस, मुरादाबाद जैसे पुराने औद्योगिक नगर भी सिर्फ सरकारी वसूली का केंद्र बनकर रह गए। बची-खुची कसर पूरी कर दी केंद्र सरकार से खराब रिश्तों ने। जिससे केंद्र से आने वाली विकास की धारा भी रुक गई।
अब मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री हैं। सामाजिक समीकरण भी ऐसे बन गए हैं कि कहीं से भी मायावती के खिलाफत के स्वर अभी सुनाई नहीं दे रहे हैं। केंद्र सरकार से मायावती के रिश्ते राष्ट्रपति चुनाव के बाद और भी बेहतर हो गए हैं। लेफ्ट पार्टियों को संतुलित रखने के लिए मायावती सोनिया के लिए बेहतर साबित हो सकती हैं, इसलिए आगे भी मायावती और सोनिया मैडम के रिश्ते बेहतर होते ही दिख रहे हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, मायावती के सत्ता में आते ही दिल्ली और उत्तर प्रदेश के बीच बसों का विवाद सुलझ गया। ये सांकेतिक ही था लेकिन, दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सीमा जिस तरह से सटी हुई है, उसमें दिल्ली से अच्छे संबंध राज्य के विकास की गाड़ी दौड़ाने में मददगार हो सकते हैं।
मायावती के केंद्र से अच्छे रिश्तों की वजह से ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उत्तर प्रदेश में विकास की संभावनाएं खोजने के लिए एक कमेटी भी बना दी है। इस कमेटी की रिपोर्ट में जो सबसे जरूरी बात निकलकर आई है कि कानून व्यवस्था की हालत दुरुस्त हुए बिना राज्य में कोई भी पैसे लगाने को तैयार नहीं होगा। और, मायावती ने सत्ता संभालते ही ये दिखा दिया है कि कानून तोड़ने वाले बख्शे नहीं जाएंगे, चाहे वो कोई भी हों। उत्तर भारत के वीरप्पन कहे जाने वाले ददुआ ने पिछले तीस सालों में हर सरकार को ठेंगा दिखाया, वो मारा गया। इलाहाबाद की फूलपुर सीट से लोकसभा सांसद अतीक अहमद को हत्या के मामले में भगोड़ा घोषित कर दिया गया है। माफिया अतीक अहमद का छोटा भाई अशरफ भी बसपा के इलाहाबाद शहर पश्चिमी से विधायक रहे राजू पाल की हत्या के इसी मामले में आरोपी है। वैसे इन मामलों में लोग समाजवादी पार्टी से जुड़े हुए थे। लेकिन, मायावती के इस साहस का स्वागत किया जाना चाहिए। वैसे मायावती ने अपनी पार्टी के सांसद उमाकांत यादव को भी नहीं बख्शा है, जमीन कब्जे की कोशिश में वो जेल भेज दिए गए। कुल मिलाकर मायावती विकास की पहली जरूरी शर्त पूरी कर रही हैं। लेकिन, विकास की सबसे जरूरी शर्त है राज्य में सड़क-पानी-बिजली यानी बुनियादी सुविधाओं का ठीक होना। इन सभी मानकों पर उत्तर प्रदेश देश के दूसरे राज्यों से पीछे जाने की रेस लगाता दिखता है।
केंद्र सरकार की कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक, पश्चिमी उत्तर प्रदेश तो, विकास के मामले में फिर भी बेहतर है लेकिन, बुंदेलखंड और पूर्वांचल का हाल तो, एकदम ही बुरा है। इसीलिए मायावती ने पूर्वांचल के इलाकों में सड़क-बिजली-पानी की सुविधा ठीक करने के लिए 9 हजार 4 सौ करोड़ रुपए और बुंदेलखंड में इस काम के लिए 4 हजार 7 सौ करोड़ रुपए मांगे हैं। लेकिन, इन सबके साथ ही मायावती को एक काम जो, और विकास के लिए तेजी से करना होगा वो, है पहले से चल रही केंद्र की विकास योजनाओं को तेजी से पूरा करना। उत्तर प्रदेश और बिहार वो राज्य हैं जहां एनडीए के शासनकाल में शुरू हुई स्वर्णिम चतुर्भुज योजना का काम सबसे धीमे चल रहा है। दिल्ली से कोलकाता के 8 लेन वाले इस रास्ते में उत्तर प्रदेश का बड़ा हिस्सा आता है। कानपुर और बनारस जैसे औद्योगिक विकास की संभावनाओं वाले शहर इससे जुड़ रहे हैं।
अपने सर्वजन हिताय के चुनाव जिताऊ फॉर्मूले को ध्यान में रखकर मायावती ने राज्य में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले SC/ST/OBC और अल्पसंख्यकों के साथ ऊंची जातियों का जीवन स्तर बेहतर करने के लिए 23 हजार 8 सौ करोड़ रुपए मांगे है। ये अच्छा है कि लोगों की बेहतरी में जाति आड़े नहीं आ रही है। मायावती ने विज्ञापन के जरिए केंद्र सरकार से ये भी अपील की है कि देश में खाली पड़े सभी आरक्षित पदों को भरा जाए। चमत्कार ये है कि मायावती ने उसी विज्ञापन में गरीबी रेखा के नीचे की ऊंची जातियों को भी आरक्षण का लाभ देने के लिए संविधान में संशोधन की भी मांग की है। कुल मिलाकर मायावती और सोनिया मैडम की राजनीतिक जरूरतों के लिहाज से जो रिश्ते बन रहे हैं, उसमें ये रकम मायावती को आसानी से मिल जाएगी। क्योंकि, असली परीक्षा तो, यही होगी क्या मायावती उत्तर प्रदेश को BIMARU राज्य की श्रेणी से बाहर ला पाएगीं। उनके पड़ोसी नीतीश कुमार बिहार को इस दाग से बाहर निकालने के लिए जी-जान से जुटे हुए हैं।
वैसे उत्तर प्रदेश का विकास मायावती के साथ केंद्र सरकार की भी मजबूरी है। क्योंकि, देश के सबसे बड़े प्रदेश के पिछड़े रहने पर मनमोहन-चिदंबरम की जोड़ी देश की अर्थव्यवस्था को कैसे भी करके 10 प्रतिशत की विकास की रफ्तार नहीं दे पाएगी। लेकिन, राज्य के विकास की ज्यादा जरूरत मायावती के लिए इसलिए भी है कि पांच साल बाद सिर्फ ब्राह्मण, SC/ST, अल्पसंख्यक के जोड़ से उन्हें फिर सत्ता नहीं मिलने वाली। और, इससे पहले 2009 के लोकसभी चुनाव में उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं होगा। क्योंकि, गुंडाराज से मुक्त जनता को दो जून की रोटी भी चाहिए। और, अगर उत्तर प्रदेश के निवासियों को घर में ही दो जून की रोटी के साथ अच्छी सड़क, जरूरत का बिजली-पानी और उनके हिस्से की विकास की खुराद मिले तो, फिर भला मुंबई में टैक्सी चलाकर मराठियों की गाली और असम में मजदूरी करके उल्फा की गोली कौन खाना चाहेगा। कुल मिलाकर पिछले ढाई दशक में राजनीति ने उत्तर प्रदेश का बेड़ा गर्क कर दिया। अब शायद समय चक्र घूम चुका है। अब राजनीति की ही मजबूरी से उत्तर प्रदेश देश में अपना खोया स्थान पा सकेगा। लेकिन, इसमें भी अगर राजनीति हावी न हो गई तो......
मायावती के हाथ में एक ऐसे राज्य की बागडोर है जो, मानव संसाधन से तो, पूरी तरह संपन्न है। राज्य की आबादी 18 करोड़ हो चुकी है। लेकिन, इसके अलावा राज्य के पास ऐसा कुछ खास नहीं है जिससे वो विकास के मामले में दक्षिण और पश्चिम के राज्यों के आसपास भी खड़ा हो सके। उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य है जहां एग्री बेस्ड इंडस्ट्री ही अच्छे से चल सकती है। खेती पर आधारित उद्योग इसलिए भी सफल हो सकते हैं क्योंकि, उत्तर प्रदेश उन राज्यों में से है जो, जल संपदा के मामले में संपन्न हैं। देश की 9 प्रतिशत जमीन उत्तर प्रदेश के पास ही है। इसीलिए खेती पर आधारित चीनी उद्योग के मामले में उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर है। फल-सब्जियां उगाने के मामले में भी उत्तर प्रदेश आगे है। लेकिन, चीनी को लेकर सरकारों की गलत नीतियों के चलते सभी चीनी घाटा उठा रही हैं। हालात इतने बिगड़ गए हैं कि मायावती ने नफा-नुकसान का हिसाब लगाकर समझ लिया कि इन्हें चलाना अब सरकार के लिए किसी भी तरह से फायदे का सौदा नहीं है। इसलिए मायावती ने चीनी मिलों को उद्योगपतियों को बेचने का फैसला किया है। औद्योगिक सुधार की मायावती सरकार की नीति का ये पहला प्रभावी कदम है।
राज्य के विकास के लिए केंद्र से मांगे गए 80 हजार करोड़ रुपए में 22 हजार करोड़ रुपए मायावती ने बेहतर खेती की सुविधाओं पर खर्च करने के लिए ही मांगे हैं। राज्य की बड़ी आबादी अभी भी गांवों में रहती है इसलिए गांवों तक सभी सभी विकास योजनाएं समय से पहुंचे ये, राज्य के तेज विकास के लिए बहुत जरूरी है। गांव में पंचायती राज लागू करने और सुविधाएं बेहतर करने के लिए मायावती ने 6 हजार 5 सौ करोड़ रुपए मांगे हैं। खेती की सुविधा और गांव-पंचायती राज पर अगर 28 हजार 5 सौ करोड़ रुपए की ये रकम सलीके से खर्च हो पाई तो, शायद विकास की गाड़ी दौड़नी तो, शुरू हो ही जाएगी।
वैसे मुलायम सिंह यादव के राज में भी उत्तर प्रदेश के विकास के लिए उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम बना था। और, अमर सिंह, अमिताभ बच्चन और अनिल अंबानी के प्रभाव में देश के कई बड़े औद्योगिक घराने इसमें शामिल भी हो गए थे। लेकिन, अनिल अंबानी के दादरी प्रोजेक्ट को छोड़कर एक भी ऐसा प्रोजेक्ट सुनाई नहीं दिया जिससे राज्य की बेहतरी की उम्मीद की जा सकती। मुलायम सत्ता का सुख भोगकर सत्ता से बाहर भी हो गए लेकिन, राज्य का भला नहीं हो सका। राज्य की खराब कानून व्यवस्था की हालत की वजह से किसी भी उद्योगपति की राज्य में उद्योग लगाने की हिम्मत ही नहीं हुई। कानपुर, भदोही, बनारस, मुरादाबाद जैसे पुराने औद्योगिक नगर भी सिर्फ सरकारी वसूली का केंद्र बनकर रह गए। बची-खुची कसर पूरी कर दी केंद्र सरकार से खराब रिश्तों ने। जिससे केंद्र से आने वाली विकास की धारा भी रुक गई।
अब मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री हैं। सामाजिक समीकरण भी ऐसे बन गए हैं कि कहीं से भी मायावती के खिलाफत के स्वर अभी सुनाई नहीं दे रहे हैं। केंद्र सरकार से मायावती के रिश्ते राष्ट्रपति चुनाव के बाद और भी बेहतर हो गए हैं। लेफ्ट पार्टियों को संतुलित रखने के लिए मायावती सोनिया के लिए बेहतर साबित हो सकती हैं, इसलिए आगे भी मायावती और सोनिया मैडम के रिश्ते बेहतर होते ही दिख रहे हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, मायावती के सत्ता में आते ही दिल्ली और उत्तर प्रदेश के बीच बसों का विवाद सुलझ गया। ये सांकेतिक ही था लेकिन, दिल्ली और उत्तर प्रदेश की सीमा जिस तरह से सटी हुई है, उसमें दिल्ली से अच्छे संबंध राज्य के विकास की गाड़ी दौड़ाने में मददगार हो सकते हैं।
मायावती के केंद्र से अच्छे रिश्तों की वजह से ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उत्तर प्रदेश में विकास की संभावनाएं खोजने के लिए एक कमेटी भी बना दी है। इस कमेटी की रिपोर्ट में जो सबसे जरूरी बात निकलकर आई है कि कानून व्यवस्था की हालत दुरुस्त हुए बिना राज्य में कोई भी पैसे लगाने को तैयार नहीं होगा। और, मायावती ने सत्ता संभालते ही ये दिखा दिया है कि कानून तोड़ने वाले बख्शे नहीं जाएंगे, चाहे वो कोई भी हों। उत्तर भारत के वीरप्पन कहे जाने वाले ददुआ ने पिछले तीस सालों में हर सरकार को ठेंगा दिखाया, वो मारा गया। इलाहाबाद की फूलपुर सीट से लोकसभा सांसद अतीक अहमद को हत्या के मामले में भगोड़ा घोषित कर दिया गया है। माफिया अतीक अहमद का छोटा भाई अशरफ भी बसपा के इलाहाबाद शहर पश्चिमी से विधायक रहे राजू पाल की हत्या के इसी मामले में आरोपी है। वैसे इन मामलों में लोग समाजवादी पार्टी से जुड़े हुए थे। लेकिन, मायावती के इस साहस का स्वागत किया जाना चाहिए। वैसे मायावती ने अपनी पार्टी के सांसद उमाकांत यादव को भी नहीं बख्शा है, जमीन कब्जे की कोशिश में वो जेल भेज दिए गए। कुल मिलाकर मायावती विकास की पहली जरूरी शर्त पूरी कर रही हैं। लेकिन, विकास की सबसे जरूरी शर्त है राज्य में सड़क-पानी-बिजली यानी बुनियादी सुविधाओं का ठीक होना। इन सभी मानकों पर उत्तर प्रदेश देश के दूसरे राज्यों से पीछे जाने की रेस लगाता दिखता है।
केंद्र सरकार की कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक, पश्चिमी उत्तर प्रदेश तो, विकास के मामले में फिर भी बेहतर है लेकिन, बुंदेलखंड और पूर्वांचल का हाल तो, एकदम ही बुरा है। इसीलिए मायावती ने पूर्वांचल के इलाकों में सड़क-बिजली-पानी की सुविधा ठीक करने के लिए 9 हजार 4 सौ करोड़ रुपए और बुंदेलखंड में इस काम के लिए 4 हजार 7 सौ करोड़ रुपए मांगे हैं। लेकिन, इन सबके साथ ही मायावती को एक काम जो, और विकास के लिए तेजी से करना होगा वो, है पहले से चल रही केंद्र की विकास योजनाओं को तेजी से पूरा करना। उत्तर प्रदेश और बिहार वो राज्य हैं जहां एनडीए के शासनकाल में शुरू हुई स्वर्णिम चतुर्भुज योजना का काम सबसे धीमे चल रहा है। दिल्ली से कोलकाता के 8 लेन वाले इस रास्ते में उत्तर प्रदेश का बड़ा हिस्सा आता है। कानपुर और बनारस जैसे औद्योगिक विकास की संभावनाओं वाले शहर इससे जुड़ रहे हैं।
अपने सर्वजन हिताय के चुनाव जिताऊ फॉर्मूले को ध्यान में रखकर मायावती ने राज्य में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले SC/ST/OBC और अल्पसंख्यकों के साथ ऊंची जातियों का जीवन स्तर बेहतर करने के लिए 23 हजार 8 सौ करोड़ रुपए मांगे है। ये अच्छा है कि लोगों की बेहतरी में जाति आड़े नहीं आ रही है। मायावती ने विज्ञापन के जरिए केंद्र सरकार से ये भी अपील की है कि देश में खाली पड़े सभी आरक्षित पदों को भरा जाए। चमत्कार ये है कि मायावती ने उसी विज्ञापन में गरीबी रेखा के नीचे की ऊंची जातियों को भी आरक्षण का लाभ देने के लिए संविधान में संशोधन की भी मांग की है। कुल मिलाकर मायावती और सोनिया मैडम की राजनीतिक जरूरतों के लिहाज से जो रिश्ते बन रहे हैं, उसमें ये रकम मायावती को आसानी से मिल जाएगी। क्योंकि, असली परीक्षा तो, यही होगी क्या मायावती उत्तर प्रदेश को BIMARU राज्य की श्रेणी से बाहर ला पाएगीं। उनके पड़ोसी नीतीश कुमार बिहार को इस दाग से बाहर निकालने के लिए जी-जान से जुटे हुए हैं।
वैसे उत्तर प्रदेश का विकास मायावती के साथ केंद्र सरकार की भी मजबूरी है। क्योंकि, देश के सबसे बड़े प्रदेश के पिछड़े रहने पर मनमोहन-चिदंबरम की जोड़ी देश की अर्थव्यवस्था को कैसे भी करके 10 प्रतिशत की विकास की रफ्तार नहीं दे पाएगी। लेकिन, राज्य के विकास की ज्यादा जरूरत मायावती के लिए इसलिए भी है कि पांच साल बाद सिर्फ ब्राह्मण, SC/ST, अल्पसंख्यक के जोड़ से उन्हें फिर सत्ता नहीं मिलने वाली। और, इससे पहले 2009 के लोकसभी चुनाव में उनके पास कहने के लिए कुछ नहीं होगा। क्योंकि, गुंडाराज से मुक्त जनता को दो जून की रोटी भी चाहिए। और, अगर उत्तर प्रदेश के निवासियों को घर में ही दो जून की रोटी के साथ अच्छी सड़क, जरूरत का बिजली-पानी और उनके हिस्से की विकास की खुराद मिले तो, फिर भला मुंबई में टैक्सी चलाकर मराठियों की गाली और असम में मजदूरी करके उल्फा की गोली कौन खाना चाहेगा। कुल मिलाकर पिछले ढाई दशक में राजनीति ने उत्तर प्रदेश का बेड़ा गर्क कर दिया। अब शायद समय चक्र घूम चुका है। अब राजनीति की ही मजबूरी से उत्तर प्रदेश देश में अपना खोया स्थान पा सकेगा। लेकिन, इसमें भी अगर राजनीति हावी न हो गई तो......