हर्ष वर्धन त्रिपाठी Harsh Vardhan Tripathi
25 जून 1975, स्वतंत्र भारत के इतिहास की अकेली तारीख है, जब लोकतंत्र को पूरी तरह से कुचल दिया गया था। इसका एलान 26 जून को हुआ कि, आपातकाल लग गया है। आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे के बहाने लोकतंत्र के सवाल खूब उछाले जा रहे हैं तो यह देश के लोगों को ध्यान दिलाना आवश्यक है कि, कैसे इंदिरा गांधी की तानाशाही ने देश के लोगों की स्वतंत्रता छीन ली थी, लेकिन एक बात चौंकाती भी है और, परेशान भी करती है। आज के समाचार पत्रों में आपातकाल पर लेख ना के बराबर हैं। नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्री जो सरकार की योजनाओं की प्रशंसा में लिखे लेखों को समाचार पत्रों में छपवाने के लिए अपनी शक्ति का पूर्ण उपयोग करते हैं, आपातकाल पर कुछ भी लिख न पाए या कहें कि, उन्हें याद ही नहीं रहा। सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर की एक खबर हिंदुस्तान में पढ़ी। मुझे उम्मीद ती कि, पानीपत, हरियाणा के इस कार्यक्रम में उन्होंने आपातकाल की याद अवश्य दिलाई होगी, लेकिन यहां भी निराशा ही हाथ लगी। उन्होंने आपातकाल का जिक्र किया होता तो अवश्य ही वही छपता, लेकिन उसमें विपक्षी पार्टियों के गठजोड़ को "ठगबंधन" कहकर अनुराग ठाकुर ने महान कार्य कर लिया है। टाइम्स ऑ इंडिया में एक समाचार दिखा कि, प्रसार भारती आपातकाल के विरुद्ध लड़ाई में संघ की भूमिका को चिन्हित कर रहा है और, आपातकाल के विरुद्ध नरेंद्र मोदी की महत्वपूर्ण भूमिका को कांग्रेस के विरुद्ध हथियार के तौर पर भारतीय जनता पार्टी इस्तेमाल करेगी। सूचना प्रसारण मंत्री के नाते अनुराग ठाकुर की जिम्मेदारी थी कि, इस महत्वपूर्ण दिन पर मीडिया में यह समाचार प्रमुखता से आए। मीडिया का जमकर दमन हुआ था, मीडिया को भी आपातकाल की याद देश को दिलाना चाहिए था, लेकिन सूचना प्रसारण मंत्री और, उनके मंत्रालय को जैसे यह याद ही न रहा। जबकि, मोदी सरकार पर आए दिन मीडिया पर दबाव बनाने का आरोप विपक्षी दल, विशेषकर कांग्रेस, लगाते रहते हैं। नरेंद्र मोदी सरकार की उपलब्धियाँ कमाल की हैं और, इस पर पूरी सरकार और, संगठन को प्राणपण से जुटा ही रहना चाहिए, लेकिन वैचारिक स्थापना कमजोर होने पर समाज में कैसे धीरे-धीरे जुड़ाव में कमजोरी आ जाती है, इसका अहसास बहुत देर से होता है।सबसे बड़ी बात यह भी है कि, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऊपर विपक्षी पार्टियाँ इसी बात को लेकर हमलावर हैं कि, मोदी सरकार भारत में संविधान और, लोकतंत्र पर हमला कर रही है, उस समय में 25 जून 1975 का सन्दर्भ बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है। और, सूचना प्रसारण मंत्री को यह भी ध्यान में नहीं है तो उनकी इसके अलावा क्या उपयोगिता हो सकती है। अभी आदिपुरुष फिल्म पर हिन्दू समाज में तीखी प्रतिक्रिया के बावजूद जिस तरह से सूचना प्रसारण मंत्रालय ने मनोज मुंतशिर शुक्ला को IFFI की स्टीयरिंग कमेटी में नामित किया, वह भी लापरवाही की हद दिखाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आपातकाल के विरुद्ध आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका पर ही सूचना प्रसारण मंत्रालय समाचार पत्रों में लेख और, टीवी चैनलों पर डॉक्यूमेंट्री बनवाता, लेकिन वैचारिक स्थापना से सूचना प्रसारण मंत्रालय का जैसे लेना-देना ही नहीं रह गया है। खैर, आपातकाल की याद दिलाना किसी एक पार्टी का काम नहीं है। कांग्रेस के अलावा सभी राजनीतिक दलों को यह तारीख याद रहना चाहिए, यह अलग बात है कि, लोकतांत्रिक तौर पर शक्तिशाली हो चुकी भारतीय जनता पार्टी और, नरेंद्र मोदी से लड़ने के लिए आपातकाल के शिकार रहे दलों ने भी उस तारीख को भुला दिया है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की सरकार, उसके मंत्रियों, नेताओं को यह तारीख क्यों याद नहीं है। भारतीय जनता पार्टी संगठन के तौर पर हर जिले में आपातकाल की याद में कार्यक्रम आज भी कर रही है, पांचजन्य ने इस बार का विशेषांक ही आपातकाल पर रखा है। पांचजन्य के इस विशेष अंक में आपातकाल भोगने वालों के लेख छापे गए हैं। आपातकाल में जेल जाने वाले पत्रकार पद्मश्री रामबहादुर राय का महत्वपूर्ण लेख भी इसमें छपा है, लेकिन मीडिया में जिस तरह से उसका जिक्र होना चाहिए था, वैसा नहीं दिख रहा है। इसीलिए, जरूरी है कि, हम सबको यह तारीख हमेशा याद रहे, जिससे भारतीय लोकतंत्र को बंधक बनाने की कल्पना भी, किसी प्रधानमंत्री के मन में न आए। हम भारतीय स्वभाविक रूप से लोकतंत्र के पक्षधर हैं और, मजबूती से इस लोकतंत्र को, अंग्रेजों से लड़कर मिली स्वतंत्रता को बचाकर रखेंगे। यही स्वतंत्रता आंदोलन में और, उसके बाद भी देश को श्रेष्ठ बनाने के लिए अपनी आहुति देने वाले राष्ट्र नायकों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।