नफरत फैलाने के लिए निकाली यात्रा से क्या हासिल होगा
हर्ष वर्धन त्रिपाठी Harsh Vardhan Tripathi
लगातार दो लोकसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार के लिए अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। ऐसा नहीं है कि, देश में कहीं भी कांग्रेस पार्टी को जीत नहीं मिल रही है। कई राज्यों में 2014 से 2022 के बीच हुए चुनावों में कांग्रेस पार्टी की अपनी सरकार बनी और कई राज्यों में दूसरे दलों के साथ मिलकर, लेकिन जहां कांग्रेस पार्टी जीती, वहाँ भी एक बात साझा रही कि, गांधी परिवार की वजह से कोई बड़ा मत प्रतिशत कांग्रेस पार्टी को नहीं मिल रहा था, जिससे यह लगने लगता कि, गांधी परिवार की राजनीतिक सत्ता को इस देश में प्रथम परिवार के तौर पर कोई चुनौती नहीं है। गांधी परिवार के प्रति देश की जनता को भरोसा ही नहीं रह गया है। हालिया हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव भी बिना राहुल गांधी के कांग्रेस पार्टी जीती और उसकी बड़ी वजह भारतीय जनता पार्टी के भीतर की लड़ाई ही रही। राहुल गांधी और उनकी अगुआई वाली कांग्रेस पार्टी पर जनता का भरोसा कितना टूट गया है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, गुजरात में आम आदमी पार्टी पर लोगों ने कांग्रेस को दरकिनार करके भरोसा कर लिया। और, ऐसा नहीं है कि, यह सब कांग्रेस पार्टी और सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी को पता नहीं है। खूब अच्छे से पता है। अपने-अपने क्षेत्र मेज़ दिग्गज कांग्रेसियों को भी यह बात इतने अच्छे से पता चल गई थी कि, देश की जनता गांधी परिवार पर भरोसा नहीं कर रही है। इसी वजह से कई कांग्रेसी दिग्गजों ने कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा का साथ पकड़ लिया और कई दिग्गज कांग्रेसी हाथ छोड़कर भाजपा में भले नहीं गए, लेकिन कांग्रेस के साथ रहने की वजह उनको खत्म सी दिखने लगी थी। यह सब गांधी परिवार को डराने लगा है। और, गांधी परिवार को यह लगता है कि, नरेंद्र मोदी राजनीतिक तौर पर, भारतीय जनता पार्टी एक पार्टी के तौर पर भले ही कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हों, लेकिन कांग्रेस पार्टी को लोगों के दिमाग से उतारने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सामाजिक कार्यों की बड़ी भूमिका रही है। गांधी परिवार को एक बड़ी चिंता यह भी सताती है कि, स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छवि जिस तरह से खराब करने की संस्थागत कोशिश की गई, वह कोशिश भी बेकार हो चली है। ऐसे में राहुल गांधी की अगुआई में कांग्रेस पार्टी ने यह तय किया कि, सत्ता के लिए भारतीय जनता पार्टी से लड़ाई तो होती रहेगी, लेकिन उससे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विरुद्ध नफरत का माहौल बनाना जरूरी है। राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी के साथ-साथ सत्ता से दूर हुए दूसरे राजनीतिक दल भी इसी अभियान में लग गए कि, किसी भी तरह से संघ विरुद्ध वातावरण तैयार करना होगा। अब, भारत जोड़ो यात्रा के आवरण में राहुल गांधी की यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विरुद्ध नफरत बढ़ाओ यात्रा ही चल रही है।
यात्राओं का, विशेषकर, राजनीतिक यात्राओं का विशेष महत्व होता है। इस यात्रा में किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जनता के बीच में जाकर उसके लिए वातावरण तैयार करने की कोशिश होती है। इसके साथ ही जनता के बीच में उस लक्ष्य को लेकर किस तरह की मनःस्थिति है, उसके लिहाज से यात्रा पर निकलने वाला स्वयं को भी तैयार करता है, अपने में सुधार करता है। कमाल की बात यह है कि, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा इस रास्ते पर चलती हुई क़तई नजर नहीं आती है। राहुल गांधी भले ही कहते हैं कि, देश में नफरत बहुत बढ़ गई है और इसीलिए नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोल रहे हैं। यह अलग बात है कि, लालकिले पर पहुँचकर राहुल गांधी ने स्वयं कहाकि, 2800 किलोमीटर की यात्रा के बाद उन्हें देश में कहीं नफरत नहीं दिखी। इसके बावजूद यात्रा आगे बढ़ी तो उसकी वजह यही है कि, राहुल गांधी को पता है कि, नफरत बढ़ाने का काम अभी पूरा नहीं हो पाया है। इसीलिए, पूरी यात्रा में हिन्दू धर्म के सन्दर्भों को लेकर राहुल गांधी देश को भ्रमित करने की कोशिश करते रहे। जयपुर में महंगाई के विरोध में हुई रैली में राहुल गांधी ने जिस तरह से हिंदू और हिंदुत्व का अंतर बताना शुरु किया। उसे आगे ले जाते हुए राहुल गांधी ने राम और शिव के बीच में भेद कराने की कोशिश की। कह दिया कि, संघ के लोग हर हर महादेव का नारा नहीं लगाते। जय श्री राम लगाते हैं, सीता जी को नारे से बाहर कर दिया। राहुल गांधी ने यह कह दिया कि, यह देश तपस्वियों का है, यह देश पुजारियों का नहीं है। राहुल गांधी ने यह भी कहाकि, संघ के लोग इक्कीसवीं शताब्दी के कौरव है आज के कौरव हाफ पैंट पहनते हैं, लाठी लेकर चलते हैं। महाभारत को बेतुका सन्दर्भ उद्धत करते राहुल गांधी ने बचकाने तरीके से पूछा कि, क्या पांडव नोटबंदी करते, गलत जीएसटी कानून लाते। संघ और भाजपा से लड़ने के लिए संघ और भाजपा की शक्ति को कैसे छीना जा सकता है, इसका अद्भुत चित्रण करके राहुल गांधी ने उसका वीडियो बनाकर जारी किया था, सबको याद होगा। नफरत बढ़ाने की कोशिश वाली राहुल गांधी की इस यात्रा में निशाने पर संघ के साथ हिन्दू धर्म से जुड़े सन्दर्भ इसीलिए हैं क्योंकि, राहुल गांधी उसकी व्याख्या कुछ इस तरह से करना चाहते हैं कि, संघ और भाजपा के विरुद्ध हिन्दू धर्म दिखने लगे। हालाँकि, राहुल गांधी यह बात भूल गए हैं कि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर गांधी हत्या का और स्वतंत्रता संग्राम में शामिल न होने का झूठा आरोप लगाकर कांग्रेस पार्टी ने बरसों सत्ता में अपने सामने कोई प्रतिद्वंद्वी ही नहीं खड़ा होने दिया, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ निरंतर हिन्दू समाज के साथ उनकी मुश्किलों को दूर करने के लिए काम कर रहा है। भले ही संघ स्वयंसेवक दो-दो बार देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी से लेकर देश के हर महत्वपूर्ण पद पर पहुँच चुका है, लेकिन संघ आज भी हिन्दू समाज के लिए ही काम करने को प्राथमिकता में रखता है। जब देश में कई राजनीतिक दल जातीय गणना कराकर अपनी-अपनी जाति को मतदाता समूह में बदलने की कोशिश में लगे हैं, उस समय में संघ एक कुआँ, एक मंदिर और एक श्मशान का अभियान चलाकर हिन्दुओं में गैर बराबरी को पूरी तरह से खत्म करने पर जुटा है। संघ के लिए प्राथमिकता हिन्दू समाज है तो भारतीय जनता पार्टी देश की अकेली राजनीतिक पार्टी है, जिसकी चार राज्यों की सरकार राम मंदिर के लिए चली गई। राहुल गांधी झूठ बोलते हैं कि, नरेंद्र मोदी हर हर महादेव का नारा नहीं लगाते तो सोशल मीडिया पर हर हर महादेव बोलकर भव्य काशी विश्वनाथ कॉरीडोर बनाते नरेंद्र मोदी के वीडियो तैरने लगते हैं। राहुल गांधी देश को भरोसा दिलाने के लिए यहाँ तक कह देते हैं कि, मैंने राहुल गांधी को मार दिया। राहुल गांधी अब सिर्फ आपके दिमाग में है। राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को पता है कि, देश की जनता अब राहुल गांधी पर बिल्कुल भरोसा नहीं करती। इसीलिए, राहुल गांधी कह रहे हैं कि, मैंने राहुल गांधी को मार दिया है। राहुल गांधी की हर बात बस इसी बात पर जाकर खत्म होती है कि, किसी तरह से देश में संघ के विरुद्ध नफरत का माहौल बनाया जा सके, लेकिन आधुनिक तकनीक के समय में झूठ बहुत देर तक टिकता नहीं। यही वजह है कि, राहुल गांधी पर भरोसा बनने के बजाय और कम होता जा रहा है। राहुल गांधी की नफरत फैलाने की हर कोशिश असफल होती दिख रही है।
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