उत्तर
प्रदेश चुनाव के लिहाज से संदेश देने के लिए भाजपा ने इलाहाबाद अच्छी जगह चुनी। मुझे
लग रहा था कि राष्ट्रीय कार्यसमिति इलाहाबाद में करने के बावजूद जो संदेश इलाहाबाद
से भारतीय जनता पार्टी दे सकती थी। वो नहीं दे पा रही है। ये मुझे लगा, जब मैंने
देखा कि कार्यसमिति से आ रही मंच की तस्वीरों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के
अलावा लालकृष्ण आडवाणी और अरुण जेटली दिखे। इलाहाबाद ने भले डॉक्टर मुरली मनोहर
जोशी को चुनाव हरा दिया था और वो बनारस से होते कानपुर चले गए। लेकिन, ये भी सच है
कि इलाहाबाद डॉक्टर जोशी का शहर है। एक अजीब सा प्यार-नफरत का रिश्ता यहां के
लोगों का डॉक्टर जोशी के साथ है। इसलिए अच्छा होता कि इस शहर में जोशी जी को पूरा
सम्मान मिलता दिखता। इसीलिए मैंने लिखा कि उम्मीद है रैली स्थल पर डॉक्टर जोशी को सही
जगह मिलेगी। और मंच पर डॉक्टर जोशी को अपना प्रेरणास्रोत बताकर नरेंद्र मोदी ने ये
दिखा दिया कि उनकी फीडबैक मशीनरी कितनी दुरुस्त और स्वतंत्र है। इतना ही नहीं
इलाहाबाद की इस रैली ने लक्ष्मीकांत बाजपेयी के तौर पर भारतीय जनता पार्टी को एक
मजबूत ताकतवर ब्राह्मण नेता दे दिया है। ये बात मोदी और अमित शाह समझते हैं कि
डॉक्टर जोशी और कलराज मिश्र अब ज्यादा उम्र के हो चले हैं। जबकि, लक्ष्मीकांत
बाजपेयी अगले एक दशक तो भारतीय जनता पार्टी के अगुवा बने रह सकते हैं।
इसीलिए
मुझे लग रहा है कि इलाहाबाद में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति से बीजेपी जो संदेश
देना चाहती थी। वो काफी हद तक सफल रही है। ब्राह्मण यूपी में वोटबैंक बन रहा है।
उसमें काफी बेचैनी है। मंच का संचालन पूर्व यूपी बीजेपी अध्यक्ष लक्ष्मीकांत
बाजपेयी से कराकर और जोशी जी के अलावा कलराज मिश्र को भी सम्मान देकर मोदी ने उस
बेचैनी को कम करने की कोशिश की है। बेहद सादगी वाले नेता लेकिन, दबंग अध्यक्ष रहे
बाजपेयी के लिए मोदी-शाह की जोड़ी बड़ी भूमिका देख रही है। जबकि, उत्तर प्रदेश में
कुछ भाजपा नेता बाजपेयी को चुका हुआ बताने का कोई मौका छोड़ नहीं रहे थे। यही वजह
रही कि बाजपेयी अध्यक्ष पद से हटने के बाद थोड़ा किनारे-किनारे ही चल रहे थे।
लेकिन, फिर से इतने बड़े मंच के संचालन से बाजपेयी फिर से प्रदेश की राजनीति के
अगुवा नेता हो गए हैं। मंच पर एक घटना से समझा जा सकता है कि बाजपेयी का कद अभी
बीजेपी में बढ़ना ही है। मंच पर मौजूद और मंच देख रहे भाजपा के नेताओं, कार्यकर्ताओं
के लिए ये बड़ी घटना थी कि केंद्रीय नेतृत्व के कहने से लक्ष्मीकांत बाजपेयी की
कुर्सी दूसरी पंक्ति से पहली पंक्ति में आ गई। यूपी भाजपा के एक बड़े पदाधिकारी
खुद कुर्सी आगे लेकर आए। इसी से समझा जा सकता है कि पार्टी प्रदेश में ब्राह्मण
नेतृत्व अब बाजपेयी को ही बनाना चाह रही है।
इलाहाबाद
की भाजपा राष्ट्रीय कार्यसमिति से कई संदेश साफ हैं। भाजपा नेता स्थानीय स्तर पर
सांप्रदायिकता की बात करेंगे। लड़ेंगे। @AmitShah
कैराना की बात कर सकते हैं। लेकिन, @narendramodi सबका साथ सबका विकास
के अपने नारे पर कायम रहेंगे। यूपी चुनाव में भी भाजपा कतई हिंदुत्व को मुख्य
मुद्दा नहीं बनाएगी। संदेश देने के मामले में प्रधानमंत्री के मुकाबले का कोई नेता
नहीं है। इसका अंदाजा उससे भी लगा जब वो कार्यक्रम से इतर इलाहाबाद के कंपनी बाग
में शहीद क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद को श्रद्धासुमन अर्पित करने पहुंच गए। आजाद
के सामने झुके मोदी की ये तस्वीर बहुत कुछ कह देती है। कहते हैं कि एक तस्वीर हजार
शब्दों से ज्यादा बोल देती है। राजनीति में एक श्रद्धांजलि लाखों वोट दिला सकती
है। तस्वीर तो बोल ही रही है।
इलाहाबाद
की भाजपा कार्यसमिति से ये बात भी लगभग तय है कि उत्तर प्रदेश में पार्टी किसी
चेहरे को आगे नहीं करेगी और कम से कम उस चेहरे को तो कतई नहीं, जो दबाव बनाकर सीएम
का दावेदार बन जाना चाहता है। और यही बेहतर होगा, ये बात मैंने उत्तर प्रदेश कानया प्रदेश अध्यक्ष बनने के तुरंत बाद कही थी। क्योंकि, मायावती, अखिलेश के मुकाबले
चेहरा नहीं लड़ सकता। हां, बीजेपी जरूर सपा, बसपा से लड़ सकती है।
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