Tuesday, July 15, 2025

महिला सशक्तीकरण को प्राथमिकता के एक दशक

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी 



प्रतिवर्ष एक जुलाई से लोगों की दिनचर्या में आवश्यक कई सुविधाएं बदलती हैं, रेलवे की समय सारिणी से लेकर बहुत कुछ बदलता है, लेकिन 2025 की एक जुलाई को इन नियमित परिवर्तनों से हटकर एक परिवर्तन का समाचार आया। केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल में इंस्पेक्टर जनरल की रैंक पर तैनात अधिकारियों में से आधी महिलाएं थीं। केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के महत्वपूर्ण पदों पर महिलाओं के होने का यह समाचार सामान्य समाचार जैसा ही लगता है, लेकिन यह समाचार सामान्य नहीं है। यह एक दशक में केंद्र सरकार की महिलाओं को समान अवसर देने की नीति को मजबूती से लागू करने का परिणाम था। सीआईएसएफ की पूर्वी क्षेत्र की इंस्पेक्टर जनरल शांति जयदेव, डीएई और डीओएस की आईजी ज्योति सिन्हा, तकनीक और प्रावधान (मुख्यालय) की आईजी प्रतिभा अग्रवाल और मध्य क्षेत्र की आईजी नीलिमा रानी की तैनाती मोदी सरकार की उसी नीति का सशक्त प्रमाण थी। एक जुलाई को यह समाचार आया था तो 4 जुलाई 2025 को देश में आस्था पुनिया छाई हुई थी। देश की बेटी आस्था पुनिया भारत की पहली महिला फाइटर बन गई थी। भारत में G20 की बैठक हुई और भारत को अध्यक्षता करने का अवसर मिला तो भारत ने महिला नेतृत्व को 'महिला केंद्रित विकास' के रूप में विश्व मंच पर रखा गया। महिला स्वास्थ्य, STEM में भागीदारी और नेतृत्व क्षमता को वैश्विक मंच पर प्रमोट किया गया। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हर योजना के केंद्र में मातृ शक्ति होती है। नरेंद्र मोदी अकसर यह बात कहते भी हैं। ऐसे में 11 वर्ष की मोदी सरकार के कार्यों की समीक्षा करते हुए सबसे महत्वपूर्ण मानक नारी शक्ति संपन्नता, स्त्रियों के लिए सुविधा, संपन्नता की हो सकती है। प्रधानमंत्री बनने के साथ ही नरेंद्र मोदी ने 2015 में 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' योजना की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य लिंगानुपात में सुधार और बेटियों की शिक्षा को बढ़ावा देना था। यह योजना हरियाणा के पानीपत से शुरू हुई और धीरे-धीरे देश भर में लागू हुई। कई जिलों में लिंगानुपात में सुधार हुआ और सामाजिक दृष्टिकोण बदला। यह योजना महिलाओं को सशक्त करने का पहला और सबसे आवश्यक कदम था। अगर जन्म लेने से पहले ही बच्चियों को मार दिया जा रहा था तो उनकी सुरक्षा और समृद्धि के लिए कोई बात करने का आधार ही नहीं बनता था। मोदी सरकार बच्चियों की गर्भ में ही हत्या जैसा गंभीर पाप रोकने के लिए देशव्यापी अभियान चलाया गया। इसका प्रभाव भी देखने को मिला। बेटियों के बिना बेटे भी नहीं हो सकते, लेकिन दुर्भाग्यवश बेटियों की संख्या हमेशा ही बेटों से कम रही। नरेंद्र मोदी ने इस अनुपात को बेहतर करने के लिए बड़ा अभियान चलाया। इसका परिणाम यह रहा कि, 2014 में प्रति 1000 पुरुष 918 महिलाओं से बढ़कर 2024 में प्रति 1000 पुरुष 1024 महिलाएं हो गईं। महिलाओं को योजना का लाभ ठीक से मिले, इसके लिए अति आवश्यक था कि, महिलाओं का जीवन बेहतर हो, बच्चियों को गर्भ में मारा जाए और गर्भावस्था में महिलाओं को पोषक आहार मिले। जन औषधि केंद्रों के जरिये एक रुपये में सैनिटरी पैड उपलब्ध कराने की भारत सरकार की योजना का महिलाओं ने पूरा लाभ उठाया। अब तक 77 करोड़ से अधिक सैनिटरी पैड महिलाओं को मात्र एक रुपये में उपलब्ध कराया गया है। सुरक्षित मातृत्व अभियान मोदी सरकार की प्राथमिकता में रहा। इसी के तहत 6 करोड़ गर्भवती महिलाओं का मुफ्त परीक्षण किया गया। लगभग चार करोड़ गर्भवती महिलाओं को प्रधानमंत्री मातृ वंदन योजना के तहत 18,593 करोड़ रुपये की सहायता दी गई। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के अंतर्गत पहली बार माँ बनने पर ₹5,000 की सहायता दी जाती है। मिशन इंद्रधनुष के माध्यम से गर्भवती महिलाओं और बच्चों को कई बीमारियों से बचाने के लिए टीकाकरण किया गया। जननी सुरक्षा योजना ने संस्थागत प्रसव को प्रोत्साहित किया और मातृ मृत्यु दर में कमी लाई। पोषण अभियान के तहत गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और किशोरियों के पोषण पर विशेष ध्यान दिया गया। स्वच्छ भारत मिशन के तहत 10 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण हुआ जिससे महिलाओं की गरिमा, सुरक्षा और स्वास्थ्य को लाभ मिला। महिलाओं के स्वास्थ्य की चिंता के साथ ही मोदी  सरकार ने नारी सशक्तिकरण पर भी विशेष ध्यान दिया। मोदी सरकार के एक दशक से अधिक के समय में 14 करोड़ 72 लाख महिलाओं को 35 करोड़ 38 लाख रुपये का कर्ज मुद्रा योजना के जरिये दिया गया। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत ₹10 लाख तक के बिना गारंटी ऋण दिए गए। इसमें लगभग 68% लाभार्थी महिलाएं रहीं। स्टैंड-अप इंडिया योजना के तहत महिला उद्यमियों को ₹10 लाख से ₹1 करोड़ तक का ऋण दिया गया। महिला -हाट पोर्टल के माध्यम से महिलाओं को अपने उत्पाद ऑनलाइन बेचने की सुविधा मिली। स्वयं सहायता समूहों (SHGs) की संख्या 2014 में 2.35 करोड़ से बढ़कर 2024 में 9 करोड़ से अधिक हो गई। इन समूहों से जुड़ी लाखों महिलाएं अब आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। लखपति दीदी अभियान के तहत महिलाओं को 1 लाख सालाना आमदनी वाला प्रशिक्षण दिया जा रहा है। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान इस सरकार के शक्तिशाली अभियानों में से एक रहा है और बेटियां पढ़कर जब रोजगार के अवसरों को प्राप्त कर लें तो उनके लिए संवेदनशील रहना भी इस सरकार ने तय किया। नरेंद्र मोदी की सरकार के पहले महिलाओं को गर्भावस्था में और उसके बाद 12 सप्ताह की छुट्टी मिलती थी, अब 26 सप्ताह की मैटर्निटी लीव मिलती है, जिससे महिलाएं अपने बच्चों को अधिक समय देने के साथ ही अपने स्वास्थ्य को भी बेहतर करके कार्य पर प्रभावी तरीके से वापस लौट सकें। कई बार बच्चे होने के बाद कम समय मिलने की वजह से ढेरों महिलाएं कार्यस्थल पर वापस नहीं लौट पातीं थीं और उनके मन में हमेशा कसक रह जाती थी कि, थोड़ा और समय मिला होता तो हम घर के साथ काम भी कर पाते, अच्छे से सँभलकर, सँभाल पाते। महिलाएं कार्यस्थल पर सुरक्षित रहें, ऐसा वातावरण बनाना भी आवश्यक था। महिलाओं को सुरक्षा का अहसास दिलाने के लिए, महिलाओं की सहायता के लिए 181 महिला हेल्पलाइन शुरू की गई जो 24x7 सहायता प्रदान करती है। साथ ही 'वन स्टॉप सेंटर' (सखी केंद्र) की शुरुआत की गई, जहाँ हिंसा की शिकार महिलाओं को एक ही स्थान पर कानूनी, पुलिस, मेडिकल और काउंसलिंग सहायता मिलती है।  महिला यात्रियों की सुरक्षा के लिए स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स में स्ट्रीट लाइट्स, सीसीटीवी, और महिला फ्रेंडली बस स्टॉप बनाए गए। पुलिस और अर्धसैनिक बलों में महिलाओं को 33% आरक्षण देने की पहल की गई। महिलाओं को अब NDA में प्रवेश मिला है। थलसेना, नौसेना, और वायुसेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन दिया गया है। फाइटर पायलट और युद्धपोतों में महिलाएं तैनात की जा रही हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग को डिजिटल रूप से और अधिक सशक्त किया गया। शिकायतों की ऑनलाइन सुविधा, महिला जागरूकता कार्यक्रम और मिशन शक्ति जैसे अभियानों ने महिला सशक्तिकरण को गहराई दी। महिला सुरक्षा के हर पहलू पर पिछले एक दशक में ठीक से काम किया गया है। मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक एक बड़ी सामाजिक समस्या थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी पर हमेशा यह आरोप लगता है कि, इनकी राजनीति महिला विरोधी है, लेकिन मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक जैसे अमानवीय प्रचलन को समाप्त  करने का काम मोदी सरकार ने किया। यह आसान काम नहीं था। कट्टर मुसलमान, मुस्लिम पुरुषों का बड़ा वर्ग और फर्जी सेक्युलर राजनीतिक दल महिलाओं का जीवन बेहतर होने की राह में सबसे बड़ा अड़ंगा थे। तीन तलाक पर कानून बनाने का देश भर में खूब विरोध किया गया, लेकिन मोदी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं का जीवन बेहतर करने के लिए हर जोखिम लेना स्वीकार किया। कमाल की बात यह भी थी कि, इससे भारतीय जनता पार्टी को मतों का लाभ नहीं होने जा रहा था। नरेंद्र मोदी सरकार ने तीन तलाक को अपराध घोषित कर दिया। नए कानून के तहत एक साथ तीन तलाक देने पर 3 साल की जेल का प्रावधान किया गया है। महिला सशक्तिकरण के लिहाज से तीन तलाक को समाप्त करना मोदी सरकार का ऐतिहासिक निर्णय रहा। इससे मुस्लिम महिलाओं का नर्क हो रहा जीवन सुधारने में मदद मिली। इसे सांप्रदायिक जामा पहनाकर विरोध की भी खूब कोशिश हुई, लेकिन नीयत सही थी तो इसे स्वीकृति मिल गई। 

बच्चियों के साथ होने वाले अपराधों पर सरकार बेहद सख्त रही है। 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार पर मृत्युदंड का प्रावधान किया गया। निर्भया फंड का प्रभावी उपयोग करते हुए फास्ट ट्रैक कोर्ट, बसों में पैनिक बटन, सीसीटीवी कैमरे, महिला डेस्क जैसी सुविधाएं बढ़ाई गईं। राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल पर महिलाओं से संबंधित साइबर अपराधों की ऑनलाइन शिकायत संभव हुई। महिलाओं के लिहाज से अत्यंत सरल तरीके से आसानी से समझ में आने वाली उज्ज्वला योजना थी, जिसके जरिये देश की करोड़ों महिलाओं का जीवन आसान बन गया। प्रतिदिन के श्रम और अपनी आंखों को खराब करने के लिए अभिशप्त महिलाओं के जीवन में उज्ज्वला से रोशनी गई। 2014 में देश भर में 14 करोड़ 52 लाख रसोई गैस कनेक्शन थे जो 2025 में 32 करोड़ 94 लाख तक पहुँच गए हैं। इसे दो तरह से समझिए, पहला- नरेंद्र मोदी के एक दशक से अधिक के शासन में रसोी गैस कनेक्शन की संख्या दोगुना से अधिक बढ़ गई और दूसरा- जितने रसोई गैस कनेक्शन 65 वर्षों से अधिक समय में पहुंचे, उससे लगभग सवा दो गुना अधिक सिर्फ एक दशक से अधिक समय में। अब इन परिवारों की युवा और बुजुर्ग महिलाओं की आंखों की रोशनी धुएं का शिकार नहीं होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी मां हीराबेन को बचपन में चूल्हे पर खाना बनाते और उससे होने वाली परेशानी को देखा था। यही वजह रही कि, स्वच्छ ईंधन उपलब्ध कराने का अभियान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में ही प्रमुखता से शुरू कर दिया था। यहां तक कि, देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत की भाजपा सरकार बनाने में रसोईघरों में स्वच्छ ईंधन की उपलब्धता सबसे बड़ा कारण माना गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह अच्छे से ध्यान में था कि, महिलाओं की स्थिति बेहतर किए बिना भारत की स्थिति बेहतर नहीं की जा सकती है। उज्ज्वला योजना के जरिये रसोई घरों में स्वच्छ ईंधन पहुंचाना उसकी पक्की वाली बुनियाद थी। महिलाओं के जीवन के हर पहलू को ध्यान में रखकर पिछले एक दशक से अधिक समय में सरकार ने खूब काम किया है। नरेंद्र मोदी सरकार की प्राथमिकता में महिला सशक्तिकरण हर दृष्टिकोण से करने की समग्र योजना तैयार की गई। इसीलिए सिर्फ रसोई गैस पहुंचाने तक ही सरकार का ध्यान नहीं था। मोदी सरकार ने एक गृहणी या कामकाजी महिला के जीवन के हर पहलू को बेहतर करने के लिए काम किया। इन 11 वर्षों में देश में रसोई गैस आने से ही घर के लोगों की आंखों की रोशनी बची, ऐसा नहीं है। आंखों की रोशनी बचाए रखने में घर-कार्यालय में पहुंचे एलईडी बल्ब ने भी बड़ी भूमिका निभाई है। अब हर घर-कार्यालय में एलईडी बल्ब और ट्यूबलाइट ही लगते हैं। कमजोर आय वर्ग के लोगों के घरों के लिए सरकार ने इन 11 वर्षों में 36 करोड़ 87 लाख एलईडी बल्ब बांटे।  सरकार ने 5 जनवरी 2015 को सभी के लिए एलईडी (उजाला) योजना की शुरुआत की थी। सड़कों पर भी अब एलईडी लाइट ही लगती है। एक दशक से अधिक के कार्यकाल में 99 लाख एलईडी बल्ब लगाए गए। रोशन सड़के महिला सुरक्षा के लिहाज से कमाल साबित हुई हैं। 

चंद्रयान का सफल परीक्षण हुआ तो भारत ने नारी शक्ति का प्रभाव देखा। चंद्रयान-3 मिशन में 100 से अधिक महिलाओं ने अपनी प्रतिभा से इस मिशन को सफल बनाया। भारत में आज सर्वाधिक महिला पायलटों की संख्या है। देश की नेशनल डिफेंस अकादमी के दरवाजे पहली बार महिलाओं के लिए खुले और महिलाओं को भी परमानेंट कमीशन दिया जा रहा है। सैनिक स्कूलों में भी लड़कियों को प्रवेश दिया जा रहा है। आमतौर पर इंजीनियरिंग का क्षेत्र पुरुषों के लिए एकाधिकार वाला माना जाता है। लड़कियां IIT की पढ़ाई में कम ही जाती रही हैं, लेकिन पिछले एक दशक में बड़ा परिवर्तन आया है। 2016 में IIT में छात्राओं की संख्या 8% थी जो 2024 में बढ़कर 20% हो गई है। लगभग हर क्षेत्र में मातृक्ति का प्रदर्शन और सहभागिता नरेंद्र मोदी सरकार में नारी शक्ति वंदना का बड़ा प्रमाण है। भारत की जनता ने राजनीतिक नेतृत्व के मामले स्त्री-पुरुष में भेदभाव नहीं किया। शक्तिशाली महिला नेता हमारे समाज को स्वीकार्य रहे, लेकिन मुगलों और अंग्रेजों की गुलामी के कालखंड ने हमारे समाज को दूषित किया और स्वत: प्रक्रिया में महिलाओं को जनप्रतिनिधित्व नहीं मिल सका। बेहतर यह होता कि, राजनीतिक दल बिना आरक्षण के महिलाओं को उनका हिस्सा मिलता, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। कमाल की बात यह रही कि, कांग्रेस पार्टी सैद्धान्तिक तौर पर आरक्षण का विरोध करती रही और बिना आरक्षण के अपने दल में जनप्रतिनिधित्व में महिलाओं को शामिल भी नहीं किया। उत्तर प्रदेश के चुनाव में प्रियंका गांधी वाड्रा की अगुआई में कांग्रेस ने लड़की हूं, लड़ सकती हूं का नारा दिया था, लेकिन लड़कियों को प्रतिनिधित्व पार्टी में दिया और ही जहां पर कांग्रेस की सरकारें बनीं, वहीं दिया। नरेंद्र मोदी के महिला सशक्तीकरण का मंत्र स्पष्ट था, जहां भी संभव है, आधी आबादी को उनका अधिकार दे दो। प्रधानमंत्री आवास योजना में भी यही किया गया। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर महिला के नाम पर पंजीकृत करने की प्राथमिकता दी गई। अब करोड़ों महिलाओं को घर का कानूनी स्वामित्व मिला है, जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ने के साथ उनकी सामाजिक स्थिति सुदृढ़ हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का महिला सशक्तीकरण का यह मंत्र कितना कारगर है, यह हमने अपने घर में भी देखा है। हालांकि, भारत के बड़े हिस्से में महिला के नाम पर संपत्ति खरीदने का चलन रहा है। हमारे पिताजी स्वर्गीय कृष्ण चंद्र त्रिपाठी अकसर कहा करते थे, घर तोहरे अम्मा के नाम अहै। हमारी माताजी का नाम जानकी देवी है और हमारे मोहल्ले में सबके घर का पता अलग श्रृंखला में था, लेकिन पिताजी ने हमारे घर के पते में जे जुड़वा दिया। जे का मतलब जानकी देवी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अकसर कहते हैं कि, उन्होंने अपनी मां को जीवन में बहुत सी कठिनाइयों से जूझते देखा है, इसलिए उनकी योजनाएं देश की हर महिला के जीवन से कठिनाइयों को न्यूनतम करना है। 

मोदी सरकार के एक दशक से अधिक की महिला सशक्तीकरण की यह यात्रा इसी को प्रमाणित करती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेटियों के नाम पर बैंकों में बचत खाता खुलवाने पर सर्वाधिक ब्याज दिया। आज देश भर सबसे अधिक ब्याज दर वाली छोटी बचत योजना सुकन्या समृद्धि में डेढ़ करोड़ से अधिक खाते खोले गए हैं। बेटियों को प्राथमिकता देने वाली नीति का ही परिणाम है कि, विद्यालयों में बेटियों के नामांकन की दर 92% से अधिक हुई है। छात्रवृत्ति, छात्रावास और साइकिल वितरण जैसी योजनाएं भी लागू की गईं। स्किल इंजिया अभियान के तहत डेढ़ करोड़ से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षण दिया गया है। डिजिटल साक्षरता अभियान के तहत महिलाओं को मोबाइल, ऐप्स, बैंकिंग, और सरकारी सेवाओं के डिजिटल उपयोग के लिए प्रशिक्षित किया गया। डिजिटल इंडिया अभियान के ढेर सारे लाभों में से एक अप्रत्यक्ष लाभ यह भी है कि, मोबाइल के जरिये महिलाओं को घर बैठे तकनीक की मदद से हर तरह की सुविधा का लाभ लेने का अवसर मिल गया। उमंग, डिजीलॉकर, भीम और दूसरे ऐसे ऐप्स की मदद से महिलाओं को घर के पुरुषों की मदद के बिना हर तरह की सुविधा आसानी से मिल जा रही है। डिजिटल इंडिया और डीबीटी के तहत सीधे खाते में उनको मिलने वाली रकम आने से बिचौलियों के साथ ही घर के पुरुषों का भी हस्तक्षेप उनको मिलने वाली रकम पर बहुत कम रह गया, इसका लाभ उनके जीवन स्तर और आत्मविश्वास स्पष्ट तौर पर देखने को मिला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेशी दौरे पर जाते हैं या फिर विदेशी राष्ट्राध्यक्ष भारत आते हैं तो उनको भारतीय कारीगरी से बने स्वदेशी उत्पाद ही प्राथमिकता के तौर पर देते हैं। पिछले कुछ वर्षों में ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्र की महिलाओं द्वारा संचालित स्वयं सहायता समूहों ने देश में कमाल का काम किया है। ग्रामीण और आदिवासी महिलाएं अब GI टैग वाले उत्पाद जैसे मधुबनी पेंटिंग, चंदेरी साड़ी आदि बनाकर बाजार में बेचती हैं। इससे उनकी आमदनी और पहचान दोनों बढ़ी है। वन धन योजना के तहत लघु वनोपज को इकट्ठा करने और उसे स्वयं सहायता समूहों द्वारा बेचना शुरू हुआ। इससे लाखों आदिवासी महिलाएं आय अर्जित कर रही हैं। -श्रम पोर्टल पर असंगठित क्षेत्र की महिला श्रमिकों को पंजीकृत कर सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से जोड़ा गया है। भारत के हर क्षेत्र महिलाओं की विशेष भूमिका रही है, लेकिन पाठ्यक्रमों में महिला नायकों को उस तरह से प्रमुखता नहीं दी गई। नरेंद्र मोदी की सरकार ने स्कूलों के पाठ्यक्रम में महिला नायकों जैसे रानी दुर्गावती, रानी चेन्नम्मा और झलकारी बाई के कृतित्व के बारे में विशेष रूप से जोड़ा। मोदी सरकार के घनघोर विरोधी भी मानते हैं कि, पद्म पुरस्कारों का लोकतांत्रीकरण हुआ है और भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान अब असल हकदारों को मिलने लगे हैं। इसका सबसे बड़ा लाभ देश के विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं को हुआ है।  खेल, विज्ञान, समाजसेवा और संस्कृति में महिलाओं को अधिक पहचान मिली है। न्यायालयों में पिछले एक दशक में महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ी है। यह भी संयोग होगा कि, भारत के सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश बीवी नागरत्ना 2027 में प्रथम महिला मुख्य न्यायाधीश बनने जा रही हैं।

नई संसद बनकर तैयार हुई तो पहले सत्र में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुप्रतीक्षित महिला आरक्षण विधेयक प्रस्तुत कर दिया और नई संसद में पहला कानून महिला आरक्षण पर ही बना। महिलाओं को जन प्रतिनिधित्व देने में हमने कोताही बरती। वजह चाहे जो रही हो, लेकिन महिलाओं को जन प्रतिनिधित्व उस तरह से नहीं मिल सका। यह सच है कि, भारत में महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 1966 में ही बन गईं थीं, 2007 में पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा सिंह पाटिल बन गईं थीं और अभी देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू हैं, लोकसभा में भी 2009-14 तक कांग्रेस नेता मीरा कुमार और 2014-19 तक भाजपा नेता सुमित्रा महाजन अध्यक्ष के पद पर आसीन रहीं, लेकिन इस सबके बावजूद लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व उस अनुपात में नहीं पहुँच सका। 2019 की 17वीं लोकसभा में 78 महिला सांसद चुनी गईं, जो अब तक का सर्वोच्च आंकड़ा है। जन प्रतिनिधि के तौर पर महिलाओं की हिस्सेदारी को उचित अनुपात में करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 106वें संविधान संशोधन के जरिये महिलाओं को संसद में और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण का अधिनियम पारित कराया। 20 सितंबर 2023 को लोकसभा और 21 सितंबर 2023 को राज्यसभा में नारी शक्ति वंदन अधिनियम, 2023 पारित हुआ और 29 सितंबर 2023 को राष्ट्रपति ने उसे स्वीकृति देकर कानून बना दिया। अब जनगणना के बाद परिसीमन के साथ ही 2029 के लोकसभा चुनावों में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण के साथ लोकसभा चुनाव कराए जाने की संभावना है। 

महिला सशक्तीकरण को प्राथमिकता के एक दशक

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी  प्रतिवर्ष एक जुलाई से लोगों की दिनचर्या में आवश्यक कई सुविधाएं बदलती हैं , रेलवे की...