मैं सोच रहा था आजकल के विज्ञापनों जैसी दुनिया हो जाए तो क्या बात हो। ऐसे-ऐसे विज्ञापन दिखते हैं कि लगता है कि शायद इसीलिए विज्ञापन बनाने वाले बेहद क्रिएटिव माने जाते हैं। कुछ दिनों पहले तक विज्ञापन बनाने वाले इतने क्रिएटिव हो जाते थे कि विज्ञापन का आम लोगों की दुनिया से कोई वास्ता ही नहीं रह जाता था। लेकिन, अब विज्ञापन हमारे-आपके बीच के आदर्श समाज की खाली जगह भरते नजर आते हैं।
सबसे जोरदार विज्ञापन है आइडिया का। पहले दिन ये विज्ञापन तेजी में आया और निकल गया मुझे समझ में ही नहीं आया। शायद इस तरह के किसी समाज की हममें कोई सोच ही नहीं बची है। शुरुआत ध्यान से देखा तो, लगा कि विज्ञापन कांग्रेस पार्टी ने गुजरात चुनाव में बीजेपी के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए बनाया है। विज्ञापन थोड़ा आगे बढ़ा तो, लगा यूपी के कुर्मियों और भूमिहारों की लड़ाई हो रही है। बाद में जब अभिषेक बच्चन कमाल का आइडिया लेकर आए कि अब यहां कोई अपनी जाति, धर्म और यहां तक कि नाम से भी नहीं जाना जाएगा। तब समझ में आया क्या विज्ञापन हैं। काश हमारा समाज ऐसा हो पाता।
समाज में जो बातें बन नहीं पा रही हैं, उन पर चोट करने वाले विज्ञापन भी हैं। ग्रीनप्लाई का, मुजरिम जीवनदास को सजा दिलाने में बूढ़े होते वकील, आरोपी और जज को दिखाने वाला विज्ञापन अदालतों में घिस-घिसकर मिलते न्याय पर की गई चोट है। हमसे आपसे जुड़ते दूसरे विज्ञापन भी हैं। ICICI प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस की जीते रहो सीरीज भी कुछ ऐसी है। पति-पत्नी की मीठी नोंक-झोंक में भविष्य बच्चे का करियर सुरक्षित रखने का संदेश बेहद खूबसूरती से दिया गया है। ऐसा ही एक और विज्ञापन है बैंक ऑफ बड़ौदा में सीनियर सिटिजंस के ख्याल रखने से जुड़ा। इसमें बहुत दिनों तक जब एक बुजुर्ग अपने अकाउंट का पता करने नहीं आता तो, बैंक का कर्मचारी खुद ही उनके घर पहुंच जाता है। ये लाइन की बैंक की सुविधाएं बढ़ जाने का ये मतलब थोड़े ना है कि आप ब्रांच में हमारा हालचाल लेने भी न आएं।
एमडीएच मसाले के विज्ञापन में युवा जोड़े मस्ती में झूम रहे होते हैं कि बुजुर्ग सामने आ जाते हैं। लड़की तुरंत सिर पर दुपट्टा डालकर बुजुर्ग का पैर छूती है। पीछे से आवाज आती है, हमारे संस्कार ही हमारी पहचान हैं। भारतीय संस्कारों को ही दिखाने वाला हमारा बजाज का विज्ञापन आजकल कुछ कम दिखता है। लेकिन, इसकी भी जबरदस्त अपील थी। बाइक पर घूमता नौजवान रास्ते में धार्मिक निशान देखकर बाइक उस पर जाने से बचाने में कामयाब होता है तो, खुश हो जाता है। बाइक पर लड़के से सटकर बैठी लड़की एक अधेड़ उम्र दंपति को देखकर लड़के की कमर से अपना हाथ हटा लेती है। रिलायंस का बोल इंडिया बोल सीरीज तो, कमाल की है ही। हम भारतीयों की आदत कुछ ज्यादा बोलने की, दूसरों को मौका मिलते ही ज्ञान देने की होती है। लेकिन, पैसा फूंकना अब भी हम भारतीयों की आदत में कम ही है। इसे रिलायंस के विज्ञापन में अच्छे से पकड़ा गया है। एयरटेल में दादाजी और पोते की मोबाइल के जरिए शतरंजबाजी भी कुछ ऐसी ही है। गहनों के तो, सारे ब्रांड गहने बेचने से ज्यादा जोर भावनाएं दिखाने में करते हैं।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का सिर्फ बैंकिंग और कुछ नहीं। स्प्राइट का सिर्फ प्यास बुझाए यार, बाकी सब बकवास। अपनी खास खूबी को बताने वाले विज्ञापन हैं। ये दोनों विज्ञापन ज्यादा समझ में इसलिए आते हैं कि अगर आपमें कोई खूबी तो उसी का इस्तेमाल कीजिए फालतू की हवा-हवाई बातों से बात बनती कम है, बिगड़ती ज्यादा है। ऐसे ढेर सारे विज्ञापन हैं। मुझे तो, बस यही सूझता है काश ऐसे आइडिए हमारी जिंदगी में भी काम कर पाते। हमारी दुनिया भी विज्ञापनों जितनी हसीन हो पाती।
सबसे जोरदार विज्ञापन है आइडिया का। पहले दिन ये विज्ञापन तेजी में आया और निकल गया मुझे समझ में ही नहीं आया। शायद इस तरह के किसी समाज की हममें कोई सोच ही नहीं बची है। शुरुआत ध्यान से देखा तो, लगा कि विज्ञापन कांग्रेस पार्टी ने गुजरात चुनाव में बीजेपी के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए बनाया है। विज्ञापन थोड़ा आगे बढ़ा तो, लगा यूपी के कुर्मियों और भूमिहारों की लड़ाई हो रही है। बाद में जब अभिषेक बच्चन कमाल का आइडिया लेकर आए कि अब यहां कोई अपनी जाति, धर्म और यहां तक कि नाम से भी नहीं जाना जाएगा। तब समझ में आया क्या विज्ञापन हैं। काश हमारा समाज ऐसा हो पाता।
समाज में जो बातें बन नहीं पा रही हैं, उन पर चोट करने वाले विज्ञापन भी हैं। ग्रीनप्लाई का, मुजरिम जीवनदास को सजा दिलाने में बूढ़े होते वकील, आरोपी और जज को दिखाने वाला विज्ञापन अदालतों में घिस-घिसकर मिलते न्याय पर की गई चोट है। हमसे आपसे जुड़ते दूसरे विज्ञापन भी हैं। ICICI प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस की जीते रहो सीरीज भी कुछ ऐसी है। पति-पत्नी की मीठी नोंक-झोंक में भविष्य बच्चे का करियर सुरक्षित रखने का संदेश बेहद खूबसूरती से दिया गया है। ऐसा ही एक और विज्ञापन है बैंक ऑफ बड़ौदा में सीनियर सिटिजंस के ख्याल रखने से जुड़ा। इसमें बहुत दिनों तक जब एक बुजुर्ग अपने अकाउंट का पता करने नहीं आता तो, बैंक का कर्मचारी खुद ही उनके घर पहुंच जाता है। ये लाइन की बैंक की सुविधाएं बढ़ जाने का ये मतलब थोड़े ना है कि आप ब्रांच में हमारा हालचाल लेने भी न आएं।
एमडीएच मसाले के विज्ञापन में युवा जोड़े मस्ती में झूम रहे होते हैं कि बुजुर्ग सामने आ जाते हैं। लड़की तुरंत सिर पर दुपट्टा डालकर बुजुर्ग का पैर छूती है। पीछे से आवाज आती है, हमारे संस्कार ही हमारी पहचान हैं। भारतीय संस्कारों को ही दिखाने वाला हमारा बजाज का विज्ञापन आजकल कुछ कम दिखता है। लेकिन, इसकी भी जबरदस्त अपील थी। बाइक पर घूमता नौजवान रास्ते में धार्मिक निशान देखकर बाइक उस पर जाने से बचाने में कामयाब होता है तो, खुश हो जाता है। बाइक पर लड़के से सटकर बैठी लड़की एक अधेड़ उम्र दंपति को देखकर लड़के की कमर से अपना हाथ हटा लेती है। रिलायंस का बोल इंडिया बोल सीरीज तो, कमाल की है ही। हम भारतीयों की आदत कुछ ज्यादा बोलने की, दूसरों को मौका मिलते ही ज्ञान देने की होती है। लेकिन, पैसा फूंकना अब भी हम भारतीयों की आदत में कम ही है। इसे रिलायंस के विज्ञापन में अच्छे से पकड़ा गया है। एयरटेल में दादाजी और पोते की मोबाइल के जरिए शतरंजबाजी भी कुछ ऐसी ही है। गहनों के तो, सारे ब्रांड गहने बेचने से ज्यादा जोर भावनाएं दिखाने में करते हैं।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का सिर्फ बैंकिंग और कुछ नहीं। स्प्राइट का सिर्फ प्यास बुझाए यार, बाकी सब बकवास। अपनी खास खूबी को बताने वाले विज्ञापन हैं। ये दोनों विज्ञापन ज्यादा समझ में इसलिए आते हैं कि अगर आपमें कोई खूबी तो उसी का इस्तेमाल कीजिए फालतू की हवा-हवाई बातों से बात बनती कम है, बिगड़ती ज्यादा है। ऐसे ढेर सारे विज्ञापन हैं। मुझे तो, बस यही सूझता है काश ऐसे आइडिए हमारी जिंदगी में भी काम कर पाते। हमारी दुनिया भी विज्ञापनों जितनी हसीन हो पाती।