Tuesday, March 08, 2011

ये किसका बजट है वित्त मंत्री जी!

वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने आखिरकार बजट पेश कर दिया। देश का बजट हर वित्त मंत्री को पेश करना होता है सो, वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने भी कर दिया। कम से कम मुझे तो एक क्षण के लिए भी नहीं लगा कि वित्त मंत्री एक ऐसे महान क्षण के लिए संसद में खड़े हैं जिसका इंतजार पूरा देश साल भर से करता रहता है और अगले साल भर तक का लेखा-जोखा जिसके आधार पर ही होता है। फिर वो, मामला चाहे देश के साल भर के बजट का हो या फिर हमारे-आपके घर के बजट का।



वित्त मंत्री ने जब बजट भाषण पढ़ना शुरू किया और उसके बाद जैसे-जैसे उनकी एक-एक लाइनें आती गईं। लगा जैसे उनकी साल भर की मीडिया से मुखातिब होने वाली हर प्रेस कांफ्रेंस को वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने सहेज कर रहा था और उसका एक संग्रह करके बजट भाषण तैयार करवा दिया। जिस एक एलान की वजह से वित्त मंत्री उम्मीद कर रहे हैं कि इस बजट को आम आदमी का बजट करार दिया जाए। उसकी ही चर्चा कर लेते हैं। वो, है टैक्स की सीधी छूट में बीस हजार रुपए की और छूट। एक अप्रैल 2012 से डायरेक्ट टैक्स कोड लागू होना है जिसमें 2 लाख रुपए तक की कमाई टैक्स फ्री है। और, उस लिहाज से एक लाख साठ हजार से एक लाख अस्सी हजार रुपए तक की कमाई को टैक्स से मुक्त करना सीधे-सीधे मुखर्जी का वही बयान लगता है जिसमें वो, ये कह चुके थे कि डायरेक्ट टैक्स कोड की तरफ सरकार धीरे-धीरे कदम बढ़ाएगी।



खेती के उत्पादन और महंगाई पर वित्त मंत्री के बजट भाषण को याद कीजिए। एक भी लाइन ऐसी नहीं दिखी जो, नई हो। पिछले करीब 3 सालों से 6 महीने में एकाध महीने के चक्र को छोड़कर जनता लगातार महंगाई से त्रस्त थी तो, बार-बार सरकारी बयान यही आ रहा था कि दरअसल ये सारी समस्या सप्लाई साइड को लेकर है। और, वो भी तब जब लगातार पिछले 4 सालों से देश में अनाज और दूसरी जरूरी चीजों का उत्पादन दे दनादन हो रहा था। इतना कि हम लाखों टन अनाज मजे से सड़ा दे रहे थे। शायद ये आजाद भारत के इतिहास का पहला बजट होगा जिसमें कोई वित्त मंत्री अलग-अलग एक-एक फसलों के उत्पादन बढ़ाने पर इतनी छोटी-छोटी रकमों के एलान से खुश हो रहा हो। यहां तक कि वित्त मंत्री जी शहर के पास मंडी जैसी योजनाओं के लागू करने का कोई ठोस तरीका नहीं बता पाए। आखिर हर शहर के नजदीक में एक बड़ी मंडी तो, पहले से ही है। अब नोएडा, गुड़गांव, मुंबई, ठाणे, कोलकाता या दूसरे बड़े शहर में सब्जी या दूसरी चीजों का उत्पादन तो होने से रहा।



कच्चे तेल के भाव में लगी आग पर सरकार कैसे पानी डालेगी ये भी वित्त मंत्री के बजट भाषण में कहीं नहीं था। पूरे बजट में इसका खास जिक्र ही नहीं आया। ऑयल प्रोडक्ट पर ड्यूटी घटाने की मांग तेल मार्केटिंग कंपनियों से लेकर राज्य सरकारों और आम आदमी तक सबकी थी। लेकिन, पता नहीं क्यों वित्त मंत्री इस मुद्दे पर चुप्पी साध गए। इसकी महंगाई आएगी तो, कैसे घटाएंगे पता नहीं। महंगाई दर सात प्रतिशत पर लाने का वादा या दावा कई बार ध्वस्त होने के बाद अब मार्च का इंतजार कर रहा है। और, पुराने बयानों में से निकालकर वित्त मंत्री जी ने रिकॉर्ड चला दिया कि रिजर्व बैंक के कदम शानदार रहे हैं उसका असर भी शानदार है और अब महंगाई दर काबू में आ जाएगी।



एक और मुद्दा काला धन। जिस पर उम्मीद थी कि वित्त मंत्री कुछ आगे बढ़ेंगे। लेकिन, जब बजट पेश करते हुए संसद में वित्त मंत्री बोल रहे थे तो, मुझे लग रहा था कि मैं काले धन पर वित्त मंत्री की शास्त्री भवन के पीआईबी कांफ्रेंस हॉल में हुई प्रेस कांफ्रेंस में बैठा हूं। सारी लाइनें वही थीं। वही कि हमने कई देशों के साथ गलत तरीके से बाहर गए धन की जानकारी का समझौता किया है। वही कि हमने 5 सूत्रीय एजेंडे पर काम शुरू किया है जिससे काला धन वापस आ जाएगा। अब उससे काला धन वापस आता तो, सुप्रीमकोर्ट को बार-बार सरकार को फटकार क्यों लगानी पड़ती। लोगों को उम्मीद थी कि एमनेस्टी या फिर काले धन के कुछ गुनहगारों को वित्त मंत्री बजट में बेनकाब करेंगे। लेकिन, ऐसा कुछ नहीं हुआ।



सरकार जो, यूपीए 1 के समय से कहती आ रही है कि विनिवेश और आर्थिक सुधाररफर Hfj हमारे एजेंडे में ऊपर है। वही सब फिर से कह डाला। इस वित्तीय वर्ष में विनिवेश से मिली कमाई और अगले वित्तीय वर्ष में 40 हजार करोड़ का विनिवेश लक्ष्य फिर से बता डाला। कुल मिलाकर करीब 4 दशक से कुछ-कुछ अंतराल पर बजट पेश करते वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी कुछ ऊबे से लग रहे थे। जैसे कोई एक ऐसे काम से ऊब जाता है जिसमें अब उसके पास करने के लिए कुछ नया न हो। लेकिन, करना तो है क्योंकि, वो उसकी ड्यूटी में शामिल है। पॉपुलिस्ट के बहाने रिफॉर्मिस्ट सा लगने वाला बजट वित्त मंत्री पेश करने की कोशिश में लगे रहे। रिफॉर्मिस्ट दिखने से बाजार ने उम्मीदों की हवा भी भरी। लेकिन, बाजार बंद होते-होते वो हवा भी निकल गई। अब ये किसका बजट है किसके लिए बजट है ये कैसे समझा जाए। अबूझ पहेली हो गई है। बस बजट पेश करना था सो, पेश हो गया।
(ये लेख जनवाणी के संपादकीय पृष्ठ पर छपा है)

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