दुनिया में 193 देश हैं, जो संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य हैं। और
दुनिया के 160 देश हैं, जो कर कानून के तौर पर जीएसटी लागू कर चुके हैं। 160 में
से 8 देश ऐसे भी हैं, जो भले ही संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य नहीं हैं। लेकिन,
उन्होंने भी अपने देश में कर सुधारों के तौर पर जीएसटी कानून को लागू किया है। दरअसल
इस जानकारी से शुरुआत करने से ये आसानी से समझ आ जाता है कि जीएसटी कर सुधार के
तौर पर कितना बड़ा और जरूरी है। और साथ ही ये भी हिन्दुस्तान के राजनीतिक दलों ने सारी
सहमति होने के बाद भी सिर्फ श्रेय दूसरे को न मिल जाए, इस लड़ाई में जरूरी कर
सुधार लागू करने में कितना पीछे कर दिया। ये कहना सही होगा कि दुनिया भर में
जीएसटी आसान कर प्रक्रिया के तौर पर लागू किया जा चुका है। फ्रांस ने सबसे पहले
1954 में जीएसटी लागू किया था। इसकी सबसे बड़ी वजह यही थी कि अलग-अलग स्तरों पर
लगने वाले कर की वजह से ज्यादातर लोग करों से बचने की कोशिश करते थे। एक विकसित
अर्थव्यवस्था होने की वजह से फ्रांस के लिए कर वसूली में आने वाली मुश्किलों को
खत्म करने के लिए जीएसटी की जरूरत हुई। जिससे हर स्तर पर किसी सामान या सेवा को
लेने वाले को उसी आधार पर कर देना होता है। इसीलिए इसे दुनिया भर में सबसे बड़े कर
सुधारों के तौर पर देखा जाता है। जिन देशों में कर वसूली का दायरा बढ़ाने की कोशिश
हुई और औद्योगीकरण तेजी से बढ़ा, उन सभी देशों ने एक-एक करके जीएसटी को अपनाया है।
यही वजह है कि आज दुनिया के 160 देशों में जीएसटी कर सुधार के तौर पर देखा जाता
है। हालांकि, कई देशों में संघीय ढांचे में असंतुलन की भी स्थिति बनी है। भारत में
जीएसटी के सर्वसहमति से लागे होने के बावजूद राज्यों को अपने अधिकार और राजस्व में
हिस्सेदारी को लेकर आशंका बनी हुई है।
जीएसटी कर प्रक्रिया में सुधार कैसे है?
जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स वसूलने की प्रक्रिया पारदर्शी
है। और सबसे बड़ी बात ये कि कर किसी भी सामान या सेवा पर होने वाले वैल्यू एडिशन
या मूल्य संवर्धन के आधार पर ही लिया जाता है। वैल्यू एडिशन या मूल्य संवर्धन पर
लगने वाले कर की ही वजह से दुनिया के कई देशों में इसे वैट यानी वैल्यू ऐडेड टैक्स
के तौर पर भी जाना जाता है। यानी इसका सीधा सा मतलब हुआ कि किसी भी सामान या सेवा
में हर स्तर पर जैसे ही उसमें कोई मूल्यवर्धन होता है, उस पर कर लग जाता है। इससे
आसानी से कर वसलूने वाले अधिकारियों के साथ ही कारोबारियों को भी पता होता है कि
कहां, कब और कितना कर लगना है या वसूला जाना है। जीएसटी को अंतिम पड़ाव पर लगने
वाले रिटेल टैक्स के तौर पर भी समझा जा सकता है। ग्राहक जब कोई सामान या सेवा लेता
है, तो उसी आधार पर उसे कर देना होता है।
भारत में जीएसटी कैसे काम करेगा?
दुनिया के ज्यादातर देशों में जीएसटी एक कर के तौर पर लागू है। लेकिन,
कई देशों में संघीय ढांचे में असंतुलन को रोकने के लिए दोहरी जीएसटी प्रणाली लागू
की गई है। इससे राज्यों के पास भी कर वसूलने का अधिकार बना रहता है। कनाडा और
ब्राजील जैसे देशों ने डुअल जीएसटी ही लागू किया है। भारत जैसे बड़े देश में जटिल
लोकतांत्रिक प्रक्रिया और केंद्र और राज्य सरकार के बीच राजस्व और अधिकारों की
जटिलता की वजह से दोहरी जीएटी पर ही सहमति बनी है। दोहरी जीएसटी में मूल रूप से
सीजीएसटी यानी सेन्ट्रल गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स और एसजीएसटी यानी स्टेट गुड्स
एंड सर्विसेज टैक्स है। सामान या सेवा पर केंद्रीय सरकार के हिस्से के वसूले जाने
वाले कर को सीजीएसटी कहा जाएगा। और जब सम्बन्धित राज्य सरकारें अपने राज्य में
किसी सेवा या सामान पर कर वसूलेंगी, तो वो एसजीएसटी होगा। लेकिन, इस व्यवस्था में ही
एक और कर व्यवस्था की गई है। जिसे आईजीएसटी यानी इंटर स्टेट गुड्स एंड सर्विसेज
टैक्स कहा गया है। ये कर केंद्र सरकार वसूलेगी जहां कर वसूली में दो राज्यों के
बीच कारोबार हुआ है। केंद्र सरकार द्वारा वसूले गए आईजीएसटी को जीएसटी परिषद की तय
व्यवस्था के आधार पर दोनों या जितने भी राज्यों के बीच वो कारोबार हुआ है, उनके
बीच बांटा जाएगा।
दुनिया के दूसरे देशों से भारत के लिए जीएसटी के सबक
भारतीय संविधान के 122वें संशोधन के साथ ही भारत भी गुड्स एंड
सर्विसेज टैक्स लागू करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो गया है। राष्ट्रपति की
मंजूरी के बाद अब जीएसटी काउंसिल इस सबसे बड़े कर सुधार की बारीकियों के नियम
तैयार कर रही है। ढेर सारे कर अब भारत में इतिहास की बात हो जाएंगे। सरकार हरसंभव
कोशिश कर रही है कि जीएसटी 1 अप्रैल 2017 से लागू कर दिया जाए। दुनिया के जिन
देशों में पहले से जीएसटी लागू हैं, उनको भी ध्यान में रखा जा रहा है। अभी हाल में
मलेशिया ने जीएसटी लागू किया है। 2009 में मलेशिया ने जीएसटी लागू करने की बात कही
थी। लेकिन, इसे मलेशिया में पिछले साल यानी 2015 में लागू किया जा सका है। ताजा
जीएसटी लागू करने वाले देश मलेशिया का उदाहरण भारत के लिए एक पक्का सबक हो सकता
है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह ये कि इतने बड़े कर सुधार को लागू करने के लिए लोगों
में जानकारी और सरकारी मशीनरी के पूरी तरह से तैयार न होने से मलेशिया में
कारोबारियों को बड़ी मुश्किलें हुईं और इसकी वजह से कारोबारियों और सरकारी
अधिकारियों के बीच बड़े विवाद हुए। मलेशिया की सरकार को छोटे कारोबारियों के बड़े
विरोध का सामना करना पड़ा था। क्योंकि, छोटे कारोबारियों को जीएसटी की बारीकियां
समझने में जबर्दस्त मुश्किलें हुई थीं। खासकर कौन कर वसूलने का अधिकारी होगा। किस
स्तर पर किस तरह से जीएसटी लगेगा। इसकी वजह से किसी भी सेवा या सामान पर लगने वाले
कर की गणना सबसे कठिन काम हो गया था। साथ ही कारोबारियों को रिफंड में बहुत सी
मुश्किलें हुईं थीं। उस पर मलेशिया में विपक्षी दलों ने भी इस मौके पर आग में घी
डालने का काम किया था। अच्छी बात ये है कि ढेर सारी मुश्किलों के बाद हिन्दुस्तान
में अब कम से कम सभी राजनीतिक दलों के बीच पूरी तरह से सहमति बनी है। राज्यों की
विधानसभा में रिकॉर्ड समय में जीएसटी बिल पारित हुआ। लेकिन, इस बात से भी इन्कार
नहीं किया जा सकता कि अगर केंद्र सरकार, जीएसटी परिषद जीएसटी की बारीकियों को
कारोबारियों खासकर, छोटे कारोबारियों को समझा न सकी, तो यहां भी ढेर सारे विवाद की
स्थिति बन सकती है। ताजा-ताजा जीएसटी लागू करने वाले देश मलेशिया का सबक भारत के
लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि, लगभग मलेशिया जैसा ही मल्टिपल जीएसटी भारत भी
लागू करने जा रहा है। हालांकि, मलेशिया में दुनिया का सबसे कम जीएसटी रेट 6% लगाया गया है।
मलेशिया से सबक लेते हुए सरकार को जीएसटी लागू करने में हड़बड़ी
दिखाने से बचना ठीक रहेगा। क्योंकि, राजस्व सचिव हसमुख अधिया के मुताबिक, इसके
लागू करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार के 60000 से ज्यादा अधिकारियों को
प्रशिक्षित करने की जरूरत है। दरअसल जीएसटी पूरी तरह से कर वसूलने और देने की
प्रक्रिया में एक ऐतिहासिक बदलाव है, जिसमें कर उत्पादक की बजाए ग्राहक के स्तर पर
लगेगा। इसके अलावा देशभर में तकनीकी तौर पर भी कर वसूली का तंत्र पूरी तरह से
दुरुस्त करने की जरूरत है। क्योंकि, इतना बड़ा कर सुधार बिना मजबूत तकनीकी जमीन
तैयार किए सलीके से लागू करना संभव नहीं होगा। मलेशिया के उदाहरण से भारत को एक और
जरूरी सबक ये मिलता है कि जीएसटी परिषद को अलग-अलग कारोबार के लिए बाकायदा अलग
गाइडेंस पेपर तैयार करना होगा। जिससे हर अलग-अलग क्षेत्रों के कारोबारियों की
मुश्किलों को उनके लिहाज से समझा जा सके और उसी आधार पर कर वसूलने की व्यवस्था
तैयार की जा सके। पहले से अलग-अलग क्षेत्रों के कारोबारियों की समस्या के लिहाज से
समाधान तैयार न कर पाने की वजह से जीएसटी लागू होने के 2 साल तक मलेशिया सरकार को
कारोबारियों को होने वाली अलग-अलग तरह की समस्या का समाधान लगातार खोजने में जूझना
पडा। भारत में ये समस्या इसलिए भी हो सकती है क्योंकि, भारत एक विशाल देश है।
नए-नए कारोबार बन रहे हैं, खड़े हो रहे हैं। साथ ही केंद्र सरकार ने 1 अप्रैल 2017
से जीएसटी लागू करने का मन बनाया है। इससे काफी कम समय में केंद्र और राज्य
सरकारों के कर वसूलने वाले अधिकारियों को तैयार करना होगा।
भारत के लिए सिंगापुर का सबक भी महत्वपूर्ण हो सकता है। क्योंकि,
सिंगापुर का उदाहरण दिखाता है कि जीएसटी लागू करने के बाद वहां शुरुआती सालों में
तेजी से महंगाई बढ़ी थी। हालांकि, सिंगापुर पूरी तरह से शहरी देश हैं। इसलिए वहां
महंगाई उतना बड़ा मुद्दा नहीं बन सकी। साथ ही कुछ वर्षों में धीरे-धीरे महंगाई पर
काबू भी पा लिया गया। लेकिन, भारत जैसे देश में महंगाई को लेकर सरकार को खास सतर्क
रहना होगा। उसकी सबसे बड़ी वजह ये कि भारत में खेती के उत्पादों पर कर है नहीं या
ना के बराबर है। इसलिए जीएसटी लागू होने से कई खेती के उत्पाद मूल्यवर्धन के बाद
महंगे होंगे। और खाने-पीने की सामानों की महंगाई भारत में बेहद संवेदनशील मुद्दा
है। हालांकि, अच्छी बात ये है कि भारत में अभी तक टैक्स रेट बहुत ज्यादा है। माना
जा रहा है कि 18-19 प्रतिशत के जीएसटी के बाद ढेर सारे सामान और सेवा पर कर घटेगा।
इससे कई सेवा, सामान सस्ते भी हो सकते हैं। कुल मिलाकर इस मोर्चे पर केंद्र सरकार
को राज्यों के साथ बेहतर समन्वय करके महंगाई असंतुलन को रोकना होगा। सिंगापुर के
अनुभव से भारत ये भी सबक ले सकता है कि खुदरा बाजार में कारोबारियों को बहुत
ज्यादा लाभ लेने से हतोत्साहित किया जाए, जिससे ग्राहकों पर महंगाई का ज्यादा असर
न पड़े। सिंगापुर ने एक और काम किया, जिससे भारत सबक ले सकता है। सिंगापुर ने
जीएसटी दर 1994 में 3% से धीरे-धीरे 7% तक कर दी है। लेकिन, साथ ही साथ सरकार ने आयकर में कटौती भी की। आम
करदाता और कॉर्पोरेट को सीधे आयकर में बड़ी छूट दी गई। भारत सरकार को इसके साथ कम
आमदनी वाले वर्ग और पेंशन पर आश्रित लोगों के लिए भी एक बेहतर व्यवस्था बनाने की
तरफ गंभीरता से सोचना होगा।
भारत जिस तरह की जीएसटी कर व्यवस्था लागू करने जा रहा है। लगभग वैसी
ही जीएसटी कर व्यवस्था कनाडा में भी लागू है। कनाडा ने 1991 में ही इस सबसे बड़े
कर सुधार को लागू कर दिया था। जब भारत, दुनिया के लिए अपनी अर्थव्यवस्था के दरवाजे
खोल ही रहा था। कनाडा में उस समय जीएसटी का काफी विरोध हुआ था। और इसकी सबसे बड़ी
वजह राज्यों के राजस्व को होने वाला नुकसान था। भारत में भी इसी मसले पर ढेर सारा
विरोध हुआ है। तमिलनाडु तो अंतिम समय तक इस कर सुधार के विरोध में रहा। और सिर्फ
तमिलनाडु ही नहीं ज्यादातर ऐसे राज्य जहां मैन्युफैक्चरिंग होती है, उनको जहां बिक
रहा है, वहां कर लगने वाली इस व्यवस्था से नुकसान उठाना पड़ रहा है। हालांकि,
केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को अगले 5 सालों तक होने वाले राजस्व नुकसान की भरपाई
का आश्वासन दिया है।
इसीलिए जरूरी है कि जीएसटी परिषद राज्यों के हितों का ख्याल रखे।
कनाडा में तो तीन राज्य- अलबर्टा, ओन्टारियो और ब्रिटिश कोलंबिया- संवैधानिक
अधिकारों के हनन के खिलाफ कनाडा की संघीय सरकार के खिलाफ अदालत में चले गए थे।
लेकिन, समय के साथ कनाडा ने कई तरह की जीएसटी व्यवस्था को लागू किया। इसमें
राज्यों को संघीय जीएसटी के साथ अपना भी मूल्यवर्धन कर वसूलने का अधिकार दिया गया।
साथ ही राज्य के अधिकारियों को ढेर सारे अधिकार भी दिए गए। जिसमें अपना कर वसूलने
के साथ संघीय जीएसटी वसूलने के लिए एक निश्चित फीस का भी प्रावधान किया गया।