Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी
काशी से तीसरी बार सांसद बनने के लिए नामांकन पत्र दाखिल करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी |
2004-10 तक सीएनबीसी आवाज में था। 04-08 तक मुम्बई में नॉन मार्केट बैंड का जिम्मा अपने ऊपर था। उसके बाद आवाज छूटने तक 2008 से दिल्ली डेस्क का जिम्मा अपने पास आ गया था। मुम्बई में डेस्क पर रहते हुए बीच-बीच में रिपोर्टिंग का कीड़ा काटने लगता था, लेकिन डेस्क पर एक बार गए तो चाहे जितने बड़े वाले प्रोड्यूसर हो जाइए, रिपोर्टिंग पर भेजना संस्थान को ठीक नहीं लगता। उस पर बिजनेस चैनल में तो गुंजाइश ही बड़ी कम होती है। जब 2007 उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव आए तो मैंने अपने संपादक संजय पुगलिया जी से कहाकि, मुझे यूपी चुनाव कवर करने जाना है। संजय जी उदार संपादक थे, उन्होंने सीधे मना नहीं किया। कहा- प्लान बनाकर सौरभ को दे दो। खैर, योजना बनाते-देते उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव निकल गया। उसी साल के अंत में गुजरात विधानसभा चुनाव आ गया। अचानक एक दिन सौरभ सिन्हा आए और उन्होंने कहा- संजय पूछ रहे हैं, गुजरात विधानसभा चुनाव कवर करने जाओगे। गुजरात मेरे लिए एकदम अनजाना था, लेकिन रिपोर्टिंग करने का अवसर कहां चूकता। शर्त यह थी कि, डेस्क का काम वहां से भी देखते रहोगे। उसमें कसर नहीं होनी चाहिए। आवाज में आउटपुट एडिटर धर्मेंद्र जी जैसे सरल ह्रदय व्यक्ति थे, मेरी रिपोर्टिंग उनको ही थी। थोड़ा कहने के बाद मान गए। मैंने गुजरात चुनाव मजे से कवर किया। गुजरात और नरेंद्र मोदी को अच्छे से समझने में 2007 के विधानसभा चुनाव ने बड़ी मदद की। संजय जी ने जाने से पहले बुलाया और मुझे कहा कि, रवीश कुमार की रिपोर्ट जैसी रिपोर्ट करना, बस राजनीतिक के साथ कारोबारी नजरिये से भी हो, अपना चैनल तो कारोबारियों का ही है। खैर, सबकी अपनी शैली होती है। मैंने भी अपनी शैली में खूब खबरें गुजरात से कीं। मुकेश अंबानी के चचेरे भाई विमल अंबानी और उनके परिवार के दूसरे सदस्यों से उसी दौरान पहली बार भेंट मुलाकात हुई। गुजरात एकदम ही अलग था। 2007 के बाद 2012, 2017, 2022 के विधानसभा चुनाव मैंने अपने तरीके से कवर किया। लगभग हर बार का मेरा अनुमान सटीक निकला। 2008 का अहमदाबाद धमाका भी आवाज के लिए मैंने कवर किया था। खैर, मतदान के दिन से पहले लौटकर मुम्बई आ गया। मेरी समझ से नरेंद्र मोदी अपने जीवन का सबसे कठिन चुनाव जीत चुके थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद @navikakumar नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू कर रहीं थीं। आलोक जोशी जी आवाज में इनपुट एडिटर थे। उन्होंने देखा- मेरे पास आए और बोले। तुम्हारा तो संघ और भाजपा में कनेक्शन है। मोदी जी का इंटरव्यू कर लाओ। कुछ देर सोचने के बाद मैंने कहा- इंटरव्यू हो जाएगा, लेकिन मुझे भेजिए अहमदाबाद। आलोक जी ने कहा- तुम्हीं चले जाना। 4 घंटे संपर्कों को खंगालने के बाद संजय भवसार का नंबर मिला, बात हुई। उन्होंने कहा- इंटरव्यू के लिए मेल कर दीजिए। मैं प्रसन्न था कि, अब मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का साक्षात्कार करने का अवसर मिलेगा। 10 मिनट भी नहीं बीते थे कि, अपने केबिन से संजय जी आए और कहा- आलोक, संजय भवसार को एक मेल भेज दो, कल मोदी जी का इंटरव्यू करना है। मैंने यह लंबी कहानी इसलिए लिखी कि, मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति ने उस समय भी बिना किसी बहुत बड़े संपर्क के 4 घंटे में Narendra Modi को साक्षात्कार के लिए लगभग तैयार कर लिया था। आज भी नरेंद्र मोदी PMO India होने के बावजूद लगभग 50 साक्षात्कार दे चुके हैं। एक मीडिया समूह से एक से अधिक लोगों को भी साक्षात्कार दे चुके हैं। रिपोर्टर, एंकर, संपादक सबको नरेंद्र मोदी सहज भाव में साक्षात्कार दे रहे हैं। इसके बावजूद मीडिया का एक बड़ा वर्ग नरेंद्र मोदी को तानाशाह और राहुल गांधी को सुलभ बताता है। ध्यान में रहे कि, राहुल गांधी ने अभी तक एक भी साक्षात्कार नहीं दिया है। नरेंद्र मोदी का साक्षात्कार भले मैं नहीं कर सका, लेकिन 2007 से अब तक उनको देखते, परखते बहुत हद तक समझ पाता हूं। काश! Narendra Modi का साक्षात्कार 2007 में मैं कर पाया होता तो अधिक प्रमाणिकता के साथ यह बात कह पाता। यूट्यूब और दूसरे माध्यमों से स्वतंत्र पत्रकारिता करते मेरे लिए अब शायद ही PMO India Narendra Modi का साक्षात्कार कर पाना संभव हो, लेकिन निस्संकोच कह सकता हूं कि, भारत का कोई प्रधानमंत्री मीडिया के लिए इतना सुलभ नहीं रहा। जितने सवालों के जवाब मोदी ने दिए हैं, उतने सवालों के जवाब किसी ने नहीं दिए। बाकी, लोगों का क्या, लोगों का काम है कहना।