दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण 3 अक्टूबर 2015 |
हाल के
दिनों की कुछ घटनाएं देखिए। साफ समझ में आ जाएगा कि कैसे संघ को सांप्रदायिक और
पिछड़ा साबित करने की बेहूदी कोशिशें हो रही हैं। महाराष्ट्र में गोविंद पानसारे
और कर्ऩाटक में एम एम कलबुर्गी की हत्या होती है। कुछ बेहद अतिवादी हिंदुओं के नाम
से संगठन चलाने वालों ने शायद पानसारे और कलबुर्गी की हत्या की है। निश्चित तौर पर
ऐसे अतिवादियों के खिलाफ भारतीय कानूनों के अनुसार अधिकतम दंडात्मक कार्रवाई होनी
चाहिए। महाराष्ट्र में अगर लंबे समय के बाद भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई है, तो
हो सकता है कि तथाकथित धर्मनिरपेक्ष, प्रगतिशील लोगों को ये लगे कि महाराष्ट्र
सरकार पानसारे के हत्यारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं करेगी। उनके शक की अपनी तय
बुनियाद है कि संघ और स्वयंसेवक सांप्रदायिक ही हैं। और प्रगतिशील विचार के
समर्थकों की हत्या के पक्षधर हैं। ये वही बुनियाद है, जो बड़े सलीके से नाथूराम
गोडसे को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जोड़ देती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और
उसके स्वयंसेवकों की, हर तरह की सामाजिक से लेकर राजनीतिक, स्वीकार्यता सर्वोच्च
होने के बाद भी यही बुनियाद हर बहस में संघ को सांप्रदायिक बता देती है। लेकिन,
क्या महात्मा गांधी की हत्या में संघ या उसके किसी स्वयंसेवक का हाथ होने की बात
आज तक साबित हो पाई है। इसका जवाब नहीं में है। उसी तरह से यूपीए के शासनकाल में
गोविंद पानसारे की हुई हत्या में जो शक के दायरे में आ रहे हैं। वो मुंबई से सटे
ठाणे में काम करने वाले एक गुमनाम अतिवादी हिंदू संगठन सनातन संस्था है। सनातन
संस्था पहले भी विस्फोट के एक मामले में शक के दायरे में है। इसका भी दूर-दूर तक
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन, सिर्फ हिंदू लग जाने से
किसी भी अतिवादी हिंदू संगठन के कुकृत्यों को संघ से जोड़ देने की लगातार चलती
साजिश का ये नमूना है। सोचिए कोई हिंदू किसी तरह का कुकर्म, अतिवाद करे तो संघ के
ऊपर ठीकरा फोड़ दिया जाता है। इसका उल्टा करके देखिए मुसलमान तुष्टीकरण, उनको
पिछड़ा बबनाए रखने वाली कांग्रेस से लेकर सारी तथाकथित प्रगतिशील पार्टियों पर
क्या कभी मुसलमान के आतंकवादी होने की वजह से सांप्रदायिक होने की बात उठी। नहीं
वो पार्टियां धर्मनिरपेक्ष रहती हैं। वामपंथ धर्मनिरपेक्ष रहता है। आतंकवादी
मुसलमान हो जाता है। इस साजिश ने बड़ी आसानी से एक रेखा खींची और रेखा के बाएं तरफ
सरोकारी, धर्मनिरपेक्ष, अल्पसंख्यकों के हितों की चिंता करने वाला वामपंथ खड़ा हो
गया, वामपंथ के साथ वो सब आ गए जो दक्षिणपंथी नहीं थे। रेखा पर खड़े लोग या रेखा
के दोनों तरफ पैर करके खड़े लोग भी सरोकारी, धर्मनिरपेक्ष और वामपंथी टाइप ही रहे।
हां, दायीं तरफ अकेला संघ रह गया। और रह गए संघ विचार पर काम करने वाले उसके
अनुषांगिक संगठन। सब मिल-मिलाकर लंबे समय तक संघ को घेरकर उसे और उसके अनुषांगिक
संगठनों को सांप्रदायिक, पिछड़ा साबित करके एक कोने में ही बांध देने की कोशिश की।
यानी सारी सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिक बदलाव की जिम्मेदारी से ही संघ और उससे
जुड़े अनुषांगिक संगठनों को बेदखल करने की कोशिश की गई। संघ का स्वयंसेवक बहुत
अच्छा है लेकिन, संघ सांप्रदायिक है। इस जुमले को ही तथ्य बना देने की प्रयास हुआ,
काफी हद तक सफल रहा। इस तरह की प्रोपोगैंडा मशीन निरंतर चलाने वाले तथाकथित
प्रगतिशीलों ने एक और जुमला तथ्य की तरह स्थापित कर देने की कोशिश की कि संघ ही
प्रोपोगैंडा मास्टर है। इसे तथ्य के तौर पर साबित करने का सीधा सा मकसद था कि
वामपंथी गैंग के हर आरोप का जवाब देने के संघ के हर प्रयास को पहले ही प्रोपोगैंडा
या अफवाह साबित कर दिया जाए।
अब एम
एम कलबुर्गी की हत्या में शक के दायरे में आए आरोपियों की बात कर लें। यहां
बंगलुरू के पब में मारपीट के बाद देश भर में सुर्खियों में आए श्रीराम सेना के
प्रमोद मुतालिक के साथी रहे और फिर उससे अलग होकर अपना एक जिले का संगठन चलाने
वाले पर कलबुर्गी की हत्या में शामिल होने के आरोप लग रहे हैं। अच्छी बात है
तथाकथित धर्मनिरपेक्षों, प्रगतिशीलों की सर्वप्रिय कांग्रेस की सरकार यहां है।
इसलिए वो ये सोच सकते हैं कि स्वयंसेवक के मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री न होने से उनके
लिहाज से कार्रवाई हो जाएगी। अब जरा याद करिए कितनी कोशिश की गई थी कि श्रीराम
सेना को संघ का ही संगठन साबित कर दिया जाए। उस श्रीराम सेना के प्रमोद मुतालिक के
गोवा में घुसने पर मनोहर पर्रिकर ने प्रतिबंध लगा दिया। मनोहर पर्रिकर स्वयंसेवक
हैं। तब गोवा के मुख्यमंत्री थे। गोवा में किसी तरह की शांतिभंग नहीं हुई। लेकिन,
इसकी चर्चा मीडिया ने इतने सकारात्मक तरीके से नहीं की। ये भी एक बड़ा उदाहरण है
कि कैसे संघ को किसी भी तरह से सांप्रदायिक साबित करने के लिए हिंदू नाम पर होने
वाली हर गलत गतिविधि का श्रेय संघ को दे दिया जाता है। वहीं अगर हिंदू के नाम पर
बहुत कुछ सकारात्मक संघ कर रहा है, तो भी उसे सिर्फ हिंदुओं के लिए काम करने वाली
संस्था के तौर पर खांचा बनाकर कमतर साबित करने की कोशिश होती है। ये इसके बावजूद
है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ही प्रेरणा से कश्मीर में तीन सौ से ज्यादा
प्रकल्प मुस्लिम समाज की बेहतरी के लिए काम कर रहे हैं। ये इसके बाद भी है कि जम्मू
कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी सरकार बने और हिंदू-मुस्लिम के बीच की खाई कम हो, इसकी
जमीन तैयार करने का काम संघ के प्रचारक रहे और अब भारतीय जनता पार्टी के महासचिव
राम माधव ने जमकर किया। निष्पक्ष रिपोर्ट सामने आ रही हैं कि मुसलमान बिहार में कई
इलाकों में नक्सलवाद, सामंतवाद से त्रस्त होकर भारतीय जनता पार्टी के पाले में आ
रहा है। फिर भी शायद तथाकथित प्रगतिशील विचारक खुद के खत्म होने तक ये उद्घोष करते
रहेंगे कि संघ सांप्रदायिक है।
यही
तथाकथित प्रगतिशील विचारक ये भी बताते हैं कि संघ हिंदू समाज को प्रगतिशील नहीं
होने दे रहा है। हिंदू समाज को इसलिए क्योंकि, मुसलमानों को तो वो प्रगतिशील बताने
में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। और यही ठप्पा लगाकर वो मुसलमानों को हिंदू का डर
दिखाकर फंसाए रखना चाहते हैं उनकी खोखली प्रगतिशीलता के चक्कर में। पिछड़े होने और
प्रगतिशील होने की बहस के शीर्षासन का एक अद्भुत उदाहरण अभी देखने को मिला है। दुनिया
भर में शाकाहार को बढ़ावा देने के अनोखे तरीके से प्रयास करने वाले संगठन की छवि
निश्चित तौर पर प्रगतिशील संगठन की है। वो शायद बिना कपड़ों की महिलाओं का
इस्तेमाल करके भी तथाकथित प्रगतिशील बना जाते हैं। लेकिन, अगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक
संघ शाकाहार को बढ़ावा देने की बात करता है, तो वो पिछड़ा है। संघ विचार से
प्रेरित राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी की सरकार अगर सिर्फ कुछ दिनों के लिए जैन
पर्व की वजह से मांसाहार बंद करने की बात करता है, तो फिर वो पिछड़ा साबित हो जाता
है। मानवाधिकार तक यहां खतरे में पड़ जाता है। कई विद्वान तो जैन पर्व पर शाकाहार
की बात करने को संघ का छिपा एजेंडा तक घोषित कर देते हैं। वो ये साबित करने की
कोशिश कर रहे हैं कि इस कुछ दिनों के प्रतिबंध को लागू करके दरअसल संघ हिंदू
एजेंडा लागू कर रहा है। अच्छी बात ये है कि संघ ने आगे की रणनीति के लिहाज से जो
ढेर सारे अच्छे काम किए। उन्हीं में तकनीक को समझना भी शामिल रहा। भारत सहित
दुनिया भर में निकले स्वयंसेवक ही आज तथाकथित वामपंथी प्रगतिशीलता का भांडा फोड़
रहे हैं। साजिश शीर्षासन कर गई है।