देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
Friday, July 27, 2012
Friday, July 13, 2012
लड़की के कपड़े फाड़ने वाले ये मर्द !
गुवाहाटी में एक लड़की को अपमानित करते ये मर्द! |
Saturday, July 07, 2012
का भई अखिलेश, पिताजी के आगे नहीं बढ़ोगे ?
5 साल अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव के साथ उत्तर प्रदेश के समाजवादी मायावती की कुर्सी के पीछे पड़े रहे। आखिरकार मायावती वाली कुर्सी मुलायम ने अखिलेश को सौंप दी। सबने सोचा यूपी में नए जमाने का मुख्यमंत्री कुछ नया लाएगा। लेकिन, अभी जो, फैसले होते दिख रहे हैं उससे लग रहा है कि अगले 5 साल अखिलेश, उनकी सरकार और उनके समाजवादी मायावती सरकार के पिछले 5 साल के फैसले के पीछे पड़े रहेंगे। नतीजा- उत्तर प्रदेश तो, पीछे ही जाएगा। इससे बेहतर तो, बहन जी ही थीं। कम से कम आगे वाला काम तो, करती थीं। शाने अवध अब उनके लखनऊ के पार्क में बढ़िया अहसास कराती है। F 1 ट्रैक पर यूपी भी रफ्तार भरने का अहसास दिलाता है। बंद ही सही लेकिन, शानदार नोएडा का पार्क भी विकसित देशों के शहरों से टक्कर लेता दिखता है। यहां तो, बस सारी मेहनत अखिलेश की पलटने में ही जाती दिख रही है।
Monday, July 02, 2012
अनुराग की पिक्चर 'अनुराग' के लायक नहीं
देख ली। चरित्र भी सॉलिड टाइप के हैं। हर चरित्र का दादागीरी अच्छी दिखी। लेकिन, बड़ी ही असफल कोशिश दिखी- गुंडई और आतंक का अतिरेक दिखाने की। गैंग्स ऑफ वॉसेपुर में फर्जी गैंगबाजी। फर्जी गोली-बम, कसाईबाड़ा। मांस के लोथड़े और, मोहल्ले स्तर की गालियां- उसमें भी कोई कलाकारी नहीं। इसीलिए A प्रमाणुपत्र भी मिल गया। अब बताइए विक्रम भट्ट-महेश भट्ट सेक्स, आतंक बेचें तो, बाजारू (कमर्शियल) फिल्म कहकर आलोचना हो। और, जब अनुराग कश्यप टाइप कोई थियेटर वाले अंदाज में वही सेक्स, आतंक बेचें तो, कला (आर्ट) फिल्म। पूरी फिल्म में ताना बाना, बुनावट काफी कमजोर दिखी। माफ कीजिए बेवजह तारीफ कर पाना आदत में ही नहीं है। #GOW #Anuragkashyap #hindicinema
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शिक्षक दिवस पर दो शिक्षकों की यादें और मेरे पिताजी
Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी 9 वीं से 12 वीं तक प्रयागराज में केपी कॉलेज में मेरी पढ़ाई हुई। काली प्रसाद इंटरमी...
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आप लोगों में से कितने लोगों के यहां बेटियों का पैर छुआ जाता है। यानी, मां-बाप अपनी बेटी से पैर छुआते नहीं हैं। बल्कि, खुद उनका पैर छूते हैं...
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हमारे यहां बेटी-दामाद का पैर छुआ जाता है। और, उसके मुझे दुष्परिणाम ज्यादा दिख रहे थे। मुझे लगा था कि मैं बेहद परंपरागत ब्राह्मण परिवार से ह...
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पुरानी कहावतें यूं ही नहीं बनी होतीं। और, समय-समय पर इन कहावतों-मिथकों की प्रासंगिकता गजब साबित होती रहती है। कांग्रेस-यूपीए ने सबको साफ कर ...