Friday, July 27, 2012

नौजवानी सत्ता सुधारने में लगे तो, बेहतर

" राजनीति की समस्या यही है वोट बटोरने के लिए मायावती की मूर्तियां तोड़वाने और पार्क में अस्पताल खुलवाने का बयान जरूरी था। अब यही चुनाव के समय वोट बैंक की जरूरत सत्ता में आने के बाद अखिलेश की मुसीबत बन रही है। चलिए बनवाइए मूर्ति। देखिए कितने दिन संभाल पाते हैं। "

Friday, July 13, 2012

लड़की के कपड़े फाड़ने वाले ये मर्द !

गुवाहाटी में एक लड़की को अपमानित करते ये मर्द!
गुवाहाटी में एक महिला के साथ तथाकथित पुरुषों ने जो किया वो, शर्मनाक है और किसी भी संवेदनशील समाज में स्त्री-पुरुष संबंधों को बदतर करने वाला है। ये खबर जब मैंने प्राइम टाइम में एनडीटीवी इंडिया पर देखा तो, ---- "गुस्से में मैं भी था लेकिन, जैसे ही कुछ कहने के लिए मुंह खोला। पत्नी उबल पड़ी इन आदमियों को तो, औरत जैसे भी हो ये यही करेंगे। "  हर लड़की-औरत को ये गुस्सा आना जरूरी है। पुरुषों को हिकारत मिलनी जरूरी है। ऐसी ही एक घटना जब नए साल पर मुंबई के एक होटल के बाहर घटी थी। तो, मैं मुंबई में ही था। लेकिन, उनके "पौरुषी पुरुषों" के घर की महिलाओं ने तो, कुछ अलग ही दृष्य पेश किया था। यही मानसिकता असल जड़ है। इसी में मट्ठा डालने की जरूरत है।

Saturday, July 07, 2012

का भई अखिलेश, पिताजी के आगे नहीं बढ़ोगे ?

‎5 साल अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव के साथ उत्तर प्रदेश के समाजवादी मायावती की कुर्सी के पीछे पड़े रहे। आखिरकार मायावती वाली कुर्सी मुलायम ने अखिलेश को सौंप दी। सबने सोचा यूपी में नए जमाने का मुख्यमंत्री कुछ नया लाएगा। लेकिन, अभी जो, फैसले होते दिख रहे हैं उससे लग रहा है कि अगले 5 साल अखिलेश, उनकी सरकार और उनके समाजवादी मायावती सरकार के पिछले 5 साल के फैसले के पीछे पड़े रहेंगे। नतीजा- उत्तर प्रदेश तो, पीछे ही जाएगा। इससे बेहतर तो, बहन जी ही थीं। कम से कम आगे वाला काम तो, करती थीं। शाने अवध अब उनके लखनऊ के पार्क में बढ़िया अहसास कराती है। F 1 ट्रैक पर यूपी भी रफ्तार भरने का अहसास दिलाता है। बंद ही सही लेकिन, शानदार नोएडा का पार्क भी विकसित देशों के शहरों से टक्कर लेता दिखता है। यहां तो, बस सारी मेहनत अखिलेश की पलटने में ही जाती दिख रही है।

Monday, July 02, 2012

अनुराग की पिक्चर 'अनुराग' के लायक नहीं

फिल्म में बंगालन के चक्कर में बचपना करते मनोज
देख ली। चरित्र भी सॉलिड टाइप के हैं। हर चरित्र का दादागीरी अच्छी दिखी। लेकिन, बड़ी ही असफल कोशिश दिखी- गुंडई और आतंक का अतिरेक दिखाने की। गैंग्स ऑफ वॉसेपुर में फर्जी गैंगबाजी। फर्जी गोली-बम, कसाईबाड़ा। मांस के लोथड़े और, मोहल्ले स्तर की गालियां- उसमें भी कोई कलाकारी नहीं। इसीलिए A प्रमाणुपत्र भी मिल गया। अब बताइए विक्रम भट्ट-महेश भट्ट सेक्स, आतंक बेचें तो, बाजारू (कमर्शियल) फिल्म कहकर आलोचना हो। और, जब अनुराग कश्यप टाइप कोई थियेटर वाले अंदाज में वही सेक्स, आतंक बेचें तो, कला (आर्ट) फिल्म। पूरी फिल्म में ताना बाना, बुनावट काफी कमजोर दिखी। माफ कीजिए बेवजह तारीफ कर पाना आदत में ही नहीं है। #GOW #Anuragkashyap #hindicinema

प्रधानमंत्री का पत्रकार दीपावली मिलन और कुंठित, विघ्न संतोषी पत्रकारों की पीड़ा

  शुक्रवार, 17 नवंबर को भारतीय जनता पार्टी ने दीपावली मिलन आयोजित किया। पत्रकारों के साथ दीपावली मिलन में @PMOIndia   @narendramodi   सभी प...