लोगों की देखादेखी और खुद को लगा कि जाने कब गूगल ब्लॉगर बंद कर दे, इसलिए अपने नाम से URL बुक करा लिया और उसी पर लिखने-पढ़ने लगा, लेकिन 2 साल से ज्यादा समय के अनुभव से यह बात समझ में आई कि ब्लॉगिंग तो ब्लॉग पर ही होती है और इस अनुभव के बाद मैं फिर से अपने इस वाले ठिकाने को जागृत कर रहा हूं। कोशिश करूंगा कि शुरुआती दौर जैसी ही ब्लॉगपोस्ट ठेल सकूं। अच्छी बात यह रही है कि यहां ब्लॉगिंग घटी तो वीडियो ब्लॉगिंग यूट्यूब पर बढ़ गई है, आप वहां भी मुझे देख, सुुन सकते हैं। बात का बतंगड़ बनता रहेगा और अब फिर से पुराने वाले जोर और जोश के साथ। ब्लॉग केे अलावा दूसरे ठिकानों पर भी सक्रियता बनी रहेगी, वहां भी आइए।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
Thursday, October 10, 2019
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शिक्षक दिवस पर दो शिक्षकों की यादें और मेरे पिताजी
Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी 9 वीं से 12 वीं तक प्रयागराज में केपी कॉलेज में मेरी पढ़ाई हुई। काली प्रसाद इंटरमी...
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आप लोगों में से कितने लोगों के यहां बेटियों का पैर छुआ जाता है। यानी, मां-बाप अपनी बेटी से पैर छुआते नहीं हैं। बल्कि, खुद उनका पैर छूते हैं...
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हमारे यहां बेटी-दामाद का पैर छुआ जाता है। और, उसके मुझे दुष्परिणाम ज्यादा दिख रहे थे। मुझे लगा था कि मैं बेहद परंपरागत ब्राह्मण परिवार से ह...
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पुरानी कहावतें यूं ही नहीं बनी होतीं। और, समय-समय पर इन कहावतों-मिथकों की प्रासंगिकता गजब साबित होती रहती है। कांग्रेस-यूपीए ने सबको साफ कर ...