नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की आहट भर से भारतीय शेयर बाजार में जबर्दस्त तेजी देखने को मिली थी। पिछले तीन साल से लगातार सत्ताइस से अट्ठाइस हजार के बीच घूमने वाले सेंसेक्स ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में भरोसा दिखाते हुए तीस हजार का जादुई आंकड़ा पार कर लिया। लेकिन, संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण में कई अहम बिलों के पास न हो पाने और टैक्स संबंधी मामलों पर अनिश्चितता से ये सवाल खड़ा होता है कि शेयर बाजार के लिए नरेंद्र मोदी की सरकार कितनी अहम है। और क्या शेयर बाजार की अभी की गिरावट या प्रधानमंत्री बनने की आहट के समय की तेजी से सरकार के एक साल के कामकाज का आंकलन किया जा सकता है। इस सवाल का जवाब निश्चित तौर पर यही है कि भारत पी वी नरसिंहाराव के समय में जिस ग्लोबल विलेज में शामिल हुआ। उससे निश्चित तौर पर शेयर बाजार के संकेत अर्थव्यवस्था की मजबूती या कमजोरी का संकेत देते हैं। लेकिन, यहां एक बात समझनी होगी कि शेयर बाजार के एक दो दिन के कारोबार या एक दो महीने की गिरावट या तेजी से अर्थव्यवस्था में मजबूती या गिरावट का अंदाजा लगाना समझदारी नहीं होगी। नई सरकार के एक साल पूरे होने पर अगर हम शेयर बाजार के अभी के सूचकांकों के जरिये अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत तलाशने की कोशिश करेंगे तो हमें यूपीए के समय से भी ज्यादा निराशा हाथ लग सकती है। उसकी बड़ी वजह पिछले कुछ समय में बाजार में आई जबर्दस्त गिरावट है और इसकी वजह से शेयर बाजार की आशा भरी चमकती कहानी निराशा के बादल में छिपती दिखने लगती है। मोदी सरकार के एक साल के आखिरी एक महीने में शेयर बाजार में जो गिरावट आई है उसने पहले की सारी मजबूती को निगल लिया है। और अब अगर साल भर के शेयर बाजार के आंकड़े को देखें तो, सेंसेक्स और निफ्टी दोनों ही करीब ग्यारह प्रतिशत गिरे हुए नजर आ रहे हैं। तो क्या इंडिया ग्रोथ स्टोरी को मेक इन इंडिया की कहानी समर्थन नहीं दे रही है। मेक इन इंडिया में भरोसा जताने वाले, इंडिया ग्रोथ स्टोरी पर भरोसा जताने वाले खत्म हो गए हैं। इसका जवाब पूरी तरह से ना में है। इंडिया ग्रोथ स्टोरी की चमक अभी भी बनी हुई है। बावजूद इसके कि ढेर सारे आशंका के बादल इस पर मंडरा रहे हैं। और इस इंडिया ग्रोथ स्टोरी पर सबसे बड़ी खतरा तब होता है, जब संसद चल रही होती है। क्योंकि, राजनीतिक नफा-नुकसान का गुणा गणित विपक्ष को सरकार के उन फैसलों के भी खिलाफ खड़ा कर देता है। जिस पर खुद विपक्षी पार्टियां सरकार में होते हुए पूरी तरह आश्वस्त थीं। जीएसटी बिल का सेलेक्ट पैनल को भेजा जाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। भूमि अधिग्रहण बिल को भी इसी नजर से देखा जा सकता है। हालांकि, जिस तरह से संकेत मिल रहे हैं उसमें इन दोनों बिलों के कानून बनने में अड़चन तो होगी लेकिन, इसका पास होना तय है। शेयर बाजार के आंकड़े की बात करें तो भले ही साल भर में भारतीय बाजार का प्रदर्शन बेहतर नहीं दिख रहा है। लेकिन, सच्चाई ये है कि शेयर बाजार को मजबूती देने वाले जो बुनियादी तथ्य हैं वो बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं। पिछले महीने भर में इतनी गिरावट के बाद भी भारतीय शेयर बाजार के कारोबार अगर डॉलर के लिहाज से देखें तो ये दुनिया भर में तीसरा सबसे बेहतर बाजार है। सिर्फ ब्राजील और चीन के बाजार ही हैं जो भारतीय शेयर बाजार से बेहतर मुनाफा देने में कामयाब रहे हैं।
नरेंद्र मोदी की सरकार के एक साल के कामकाज की
समीक्षा करें तो सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या दस प्रतिशत की तरक्की का जो सपना
भारतीयों ने देखा था। उसकी बुनियाद पिछले एक साल में बनी है या नहीं। ये वो सपना
था जिसे मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री के तौर पर दिखाया था और मनमोहन सिंह के ही
प्रधानमंत्री रहते वो सपना ध्वस्त भी हो गया। दस प्रतिशत की तरक्की का सपना देखने
वाले भारत की तरक्की की रफ्तार साढ़े पांच प्रतिशत पर आकर अंटक गई थी। अब एकबार
फिर से वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दस प्रतिशत की तरक्की का सपना दिखाया है। भारत
सरकार ने 2015-16 के लिए आठ से साढ़े आठ प्रतिशत की तरक्की का
लक्ष्य रखा है। दस प्रतिशत की तरक्की का ये सपना भारतीयों के लिए इसलिए भी ज्यादा
महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि, इस सरकार के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के
गुजरात का मुख्यमंत्री रहते गुजरात ने 2003 से 2012 के दौरान लगातार दस प्रतिशत से ज्यादा की
तरक्की की थी। जबकि, उस दौरान भारत की औसत तरक्की की रफ्तार आठ
प्रतिशत के नीचे ही थी। और शायद ये नरेंद्र मोदी के पुराने कामों का भरोसा ही है
कि दुनिया की महत्वपूर्ण संस्थाओं को ये भरोसा भारत में दिख रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के अनुमान साफ कर चुके हैं कि इसी
वित्तीय वर्ष में भारत दुनिया का सबसे तेजी से तरक्की करने वाला देश बन जाएगा।
ज्यादातर अनुमानों में भारत की तरक्की की रफ्तार इस वित्तीय वर्ष में साढ़े सात
प्रतिशत या उससे ज्यादा रहने वाली है। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
दोनों का ही अनुमान है कि वित्त वर्ष 2016 में भारत की जीडीपी ग्रोथ साढ़े सात प्रतिशत से ज्यादा की होगी। हालांकि, सरकार ने साढ़े आठ प्रतिशत की तरक्की का अनुमान जताया है। जबकि, चीन पीछे छूटता दिख रहा है। चीन की तरक्की की रफ्तार सात प्रतिशत या उससे भी
कम रहने का अनुमान है। अनुमानों में चमकती इंडिया ग्रोथ स्टोरी को धरातल पर देखें
तो तस्वीर ज्यादा साफ होगी। धरातल पर भी हालात यही है कि सबसे तेजी से तरक्की करने
वाले देश में दुनिया के सारे निवेशक रकम लगाने को आतुर हैं। इमर्जिंग मार्केट्स में
भारत में ही सबसे ज्यादा विदेशी संस्थागत निवेशक आ रहे हैं। इस साल अब तक एफआईआई
यानी विदेशी संस्थागत निवेशक भारत में करीब साढ़े छे बिलियन डॉलर का निवेश कर चुके
हैं। इसके बाद मेक्सिको, ब्राजील, साउथ कोरिया और ताइवान का नंबर आता है। और ये भरोसा सिर्फ एफआईआई के मामले में
ही नहीं है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई के आंकड़े इंडिया ग्रोथ स्टोरी पर
ज्यादा भरोसा साबित करते हैं। नरेंद्र मोदी की सरकार के पहले दस महीने में कुल 25.25 बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ है। वित्तीय वर्ष 2013-14 में कुल 19 बिलियन डॉलर से कम का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ था।
दस प्रतिशत की तरक्की की रफ्तार के लिए बहुत
बड़े विदेशी निवेश की जरूरत है। फिर वो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हो या फिर संस्थागत
विदेशी निवेश। इसलिए किसी भी तरह का विदेशी निवेश अगर भारत में इस तेजी से आ रहा
है तो इसका सीधा सा मतलब है कि दुनिया के निवेशकों को इंडिया ग्रोथ स्टोरी भरोसे
लायक दिख रही है। इसमें बड़ी भूमिका इस बात की भी है कि भारत में नीतियों में भ्रम
की स्थिति अब नहीं रही है। नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार नीतियों के मामले
में यूपीए सरकार बहुत ज्यादा साफ और दृढ़ दिखती है। यही वजह है कि दुनिया की
रेटिंग एजेंसियां लगातार भारत की रेटिंग बेहतर कर रही हैं। मूडीज ने भारत की
क्रेडिट रेटिंग स्टेबल से पॉजिटिव कर दी है। रेटिंग बेहतर करने पर मूडीज का कहना
है कि भारत में रुके पड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट तेजी से पूरे होते दिख रहे
हैं। और वो अगले साल भर में फिर रेटिंग बढ़ा सकता है। हालांकि, दूसरी रेटिंग एजेंसियों की नजर में अभी भी भारत स्टेबल ही है। एस एंड पी और
फिच ने अभी तक भारत को पॉजिटिव रेटिंग नहीं दी है। हां, निगेटिव आउटलुक स्टेबल में बदला है।
नई सरकार के काम का असर साफ-साफ नजर आ रहा है।
फरवरी महीने में औद्योगिक रफ्तार पांच प्रतिशत रही है जो पिछले तीन महीने में सबसे
ज्यादा है। फरवरी महीने में कैपिटल गुड्स के उत्पादन की रफ्तार आठ प्रतिशत बढ़ी
है। इसका सीधा सा मतलब अगर समझें तो, बड़ी मशीनों का ज्यादा उत्पादन हो रहा है। मतलब निर्माण और दूसरी गतिविधियां
तेजी से बढ़ी हैं। मार्च महीने में कमर्शियल गाड़ियों की बिक्री में भी तेजी आई
है। किसी अर्थव्यवस्था में कारोबारी इस्तेमाल के वाहनों की बिक्री बढ़ने का सीधा
सा मतलब अर्थव्यवस्था में तेजी के अच्छे लक्षणों की तरह देखा जाता है। सर्विस
सेक्टर में भी बेहतरी के संकेत मिल रहे हैं। सर्विस सेक्टर में इस वित्तीय वर्ष के
पहले दस महीने में 2.64 बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ है।
कुल मिलाकर निर्माण हो या सेवा क्षेत्र, दोनों ही क्षेत्रों में फिलहाल बेहतरी के संकेत मिल रहे हैं। नरेंद्र मोदी सरकार के एक साल के कामकाज में एक बात जो बेहतर हुई है वो है काम
करने की आसानी। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कारोबारियों को ढेर सारे कागजी चक्करों
से मुक्त करने का। अभी तक कारोबार शुरू करने के लिए आठ अलग-अलग फॉर्म भरने पड़ते
थे। एक मई से किसी भी कारोबार को शुरू करने के लिए सिर्फ एक फॉर्म की ही जरूरत
होगी। कारोबार की राहत के लिए डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रोमोशन की
तरफ से तीन हजार करोड़ रुपये तक के विदेशी निवेश प्रस्तावों को कैबिनेट की मंजूरी
से छूट देने की भी मांग की है। अभी ये सीमा बारह सौ करोड़ रुपये ही है। भारत सरकार
का खजाना नई सरकार में ज्यादा समृद्ध हुआ है। सरकार का विदेशी मुद्रा भंडार 344 बिलियन डॉलर का हो गया है। ये अब तक का रिकॉर्ड है। जिस देश की सरकार को किसी
समय सोना गिरवी रखने की नौबत आ गई हो, उस देश के लोगों को ये जानकार राहत होगी कि देश के खजाने में इतनी बड़ी रकम
सुरक्षित रखी है।
यूपीए की सरकार में एक बड़ी समस्या नीतियों को
लेकर रही। जिसकी वजह से नए प्रोजेक्ट शुरू करने में कारोबारी डरने लगे थे। उनको डर
ये था कि प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद उससे संबंधित नीतियां बदल न जाएं। और इसका
असर पुराने प्रोजेक्ट पर भी पड़ रहा था। ढेर सारे प्रोजेक्ट इसी वजह से शुरू हो ही
नहीं पाए थे। अच्छी बात है कि मोदी सरकार में पुराने रुके पड़े प्रोजेक्ट को शुरू
करने में तेजी आई है। 2014-15 में करीब दो लाख करोड़ रुपये की रुकी योजनाएं
शुरू हुई हैं। जबकि, इससे पहले के साल में सिर्फ सत्ताइस हजार करोड़
रुपये की ही रुकी योजनाएं शुरू की जा सकी थीं। सिर्फ निर्माण क्षेत्र की शुरू हुई
योजनाओं की लागत करीब साठ हजार करोड़ है। जो, यूपीए के शासन से साढ़े पांच गुना ज्यादा है। यही बुनियादी परियोजनाओं की बात
करें तो करीब छिहत्तर हजार करोड़ रुपये की रुकी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं शुरू
हुई हैं। जो, 2013-14 से छे गुना ज्यादा है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये
है कि रुकी परियोजनाएं तेजी से शुरू हो रही हैं। साथ में नए प्रोजेक्ट भी तेजी से
शुरू हो रहे हैं। इसका सीधा सा मतलब हुआ कि लोगों को रोजगार के नए मौके मिलने वाले
हैं। मोदी सरकार के पहले दस महीने में करीब 1900 प्रोजेक्ट शुरू करने का एलान हुआ है। इन योजनाओं में करीब दस लाख करोड़ रुपये
का निवेश होगा। पिछले साल के मुकाबले यानी यूपीए दो शासन के आखिरी साल के लिहाज से
देखें तो ये अस्सी प्रतिशत ज्यादा है। सरकार नए भारत के निर्माण में कोई कसर नहीं
छोड़ना चाहती। देश के नौ शहरों में मेट्रो के विस्तार के लिए तिरासी हजार करोड़
रुपये का प्रावधान केंद्रीय सरकार ने किया है। लखनऊ, पुणे, नागपुर, अहमदाबाद, विजयवाड़ा जैसे शहरों के लोगों को जल्द ही
दिल्ली-एनसीआर और मुंबई की तरह विश्वस्तरीय मेट्रो सेवा का आनंद मिल सकेगा। ये
आंकड़े साफ बता रहे हैं कि दुनिया को ऐसे ही नहीं भारत के भरोसे अर्थव्यवस्था में
तेजी की उम्मीद नजर आ रही है।
किसी भी सरकार के बेहतर काम में सबसे बड़ी बात
होती है कि आखिर सरकार के अच्छे कामों से उनके अच्छे दिन आ रहे हैं या नहीं। लोगों
के लिए अच्छे दिन का सबसे बड़ा पैमाना होता है जरूरी सामानों की महंगाई।
पेट्रोल-डीजल के मामलें में लोगों को जबर्दस्त राहत मिली है। दूसरे जरूरी सामानों
की महंगाई के मामले में लोगों को बड़ी राहत मिली है। हर पैमाने पर महंगाई घटी है।
मार्च 2014 में कंज्यूमर प्राइस इंफ्लेशन करीब साढ़े आठ
प्रतिशत था जो, मार्च 2015 में घटकर सवा पांच प्रतिशत के आसपास रह गया है। ये रिटेल महंगाई के आंकड़े
हैं। यानी वो महंगाई दर जो हर बाजार में सामान खरीदने पर हमें महसूस होती है।
लेकिन, अगर थोक मंडी की बात करें तो, एक साल की इस सरकार में थोक महंगाई दर चमत्कारिक तरीके से घटी है। होलसेल
प्राइस इंडेक्स मार्च 2014 में 6 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ता दिख रहा था। जबकि, मार्च 2015 में होलसेल प्राइस इंडेक्स बढ़ने की बजाय घटता
दिख रहा है। मार्च 2015 में होलसेल प्राइस इंडेक्स निगेटिव 2 प्रतिशत रह गया है।
महंगाई
दर
|
मार्च
2014
|
मार्च
2015
|
CPI
|
8.31%
|
5.17%
|
WPI
|
6%
|
-2.06%
|
महंगाई घटी है और लोगों की जेब में पैसे भी आ
रहे हैं। इसका एक अंदाजा कार-मोटरसाइकिल की खरीद से मिलता है। दो साल से कम बिक्री
से जूझ रही ऑटो इंडस्ट्री को इस साल राहत मिली है। ऑटो बिक्री में चार प्रतिशत से
ज्यादा की तेजी देखी गई है। मारुति ने अप्रैल 2015 में पिछले साल के इसी महीने के मुकाबले सत्ताइस प्रतिशत ज्यादा कारें बेची
हैं। टोयोटा ने तिरसठ प्रतिशत, होंडा ने चौदह प्रतिशत, ह्युंदई ने दस प्रतिशत ज्यादा कारें बेची हैं। ये दिखा रहा है कि फिर से
भारतीयों की जेब में आने वाली रकम बढ़ी है।
गर्मियों के समय ही नरेंद्र मोदी की सरकार
सत्ता में आई थी। और अब गर्मियों में एक साल बाद इस सरकार की समीक्षा हो रही है।
ऐसे में बिजली की समस्या कितनी सुधरी, इसकी चर्चा के बिना सरकार के कामकाज की सही समीक्षा नहीं हो सकती। ऊर्जा
मंत्री पीयूष गोयल के मुताबिक, सरकार ने पिछले साल भर में साढ़े बाइस हजार
मेगावॉट बिजली उत्पादन का काम शुरू किया है। जिससे 2019 तक आपूर्ति होने लगेगी। ये बड़ी उपलब्धि है। सरकार के तौर पर गैस कीमतों को कुछ इसी तरह की उपलब्धि नितिन गडकरी का परिवहन मंत्रालय भी हासिल करने की
कोशिश कर रहा है। परिवहन मंत्रालय ने अगले दो साल में हर दिन तीस किलोमीटर सड़कें
बनाने का लक्ष्य रखा है। हालांकि, अभी सरकार इसके आधे लक्ष्य को भी हासिल नहीं कर
सकी है। लेकिन, यूपीए सरकार के प्रतिदिन 3-4 किलोमीटर आसत सड़क बनाने से इस सरकार का एक साल काफी बेहतर रहा है। बिना सड़क
और बिजली के प्रधानमंत्री का मेक इन इंडिया धरातल पर नहीं उतर सकता। इसलिए इन
दोनों क्षेत्रों में हो रहे काम से ये माना जा सकता है कि नरेंद्र मोदी सरकार के
पहले साल में दस प्रतिशत की तरक्की की रफ्तार हासिल करने की बुनियाद मजबूत रखने
में कामयाब रहे हैं। पक्की बुनियाद रखने का भरोसा नरेंद्र मोदी के विदेश दौर पर
साफ नजर आता है। जर्मनी के हनोवर व्यापार मेले में एक तस्वीर की
चर्चा भारतीय मीडिया में कम ही हुई। वो तस्वीर थी हनोवर मेले में फॉक्सवैगन की
वेंटो कार। वो वेंटो कार जिसको कंपनी भारत के पुणे में बनी कार के तौर पर शोकेस कर
रही थी। फॉक्सवैगन अगर जर्मनी के मेले में दुनिया को बता रहा है कि ये भारत में
बनी कार है तो ये मेक इन इंडिया की ताकत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ
भारत में बनी वेंटो कार की खूबियां जर्मनी की चांसलर भी समझ रही थीं। यही मेक इन
इंडिया की ताकत है कि बॉम्बार्डियर 450 मेट्रो कोच भारत से तैयार करके ऑस्ट्रेलिया भेज रहा है। दूसरी कंपनी एल्सटॉम
ने भी 132 मेट्रो कोच के लिए ऑस्ट्रेलिया से समझौता किया
है। ये सभी मेट्रो कोच भारत में ही बनेंगे।
आईएमएफ चीफ क्रिस्टीन लागार्ड ने ऐसे ही नहीं
कहा कि भारत काले घने बादलों के बीच चमकता सितारा है। दरअसल भारत में ये ताकत है
कि वो दुनिया की अर्थव्यवस्था के घने बादलों को साफ कर सके। लेकिन, इसके लिए एक जो सबसे जरूरी बात है कि सरकारी नीतियों में भ्रम या बार-बार
बदलाव की स्थिति न बने। वो देसी और विदेशी दोनों ही निवेशकों, कारोबारियों के लिए जरूरी शर्त है। अभी तक के नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले
देखें तो ये भरोसा बनता है। और अगर ये भरोसा बना रहा तो दस प्रतिशत की तरक्की का
मनमोहिनी सपना नरेंद्र मोदी की सरकार में पूरा होता दिख सकता है। हालांकि, सरकार के एक साल के आखिरी दो महीने में जो बाधाएं दिखीं वो साफ करती हैं कि इस
सरकार का दूसरा साल ज्यादा मुश्किल होगा।
(ये लेख योजना पत्रिका के जून अंक में छपा है।)