मेरी याद की पहली दीवाली है जिसका उत्साह कम से कम मीडिया के जरिए तो काफी ठंडा नजर आ रहा है। कई चैनलों पर तो लुढ़कते शेयर बाजार की वजह से काली दीवाली तक चमकता नजर आया। मुंबई में नौकरियां जाने के बाद हंगामा करते डेंटेड-पेंटेड जेट के कर्मचारी चैनलों पर काली दीवाली की नींव पुख्ता कर रहे थे। ये अलग बात है कि नरेश गोयल की आत्मा की आवाज ने फिर से मंदी में नौकरी जाने की स्टिंग के विजुअल में से इन कर्मचारियों को निकालने पर मजबूर कर दिया।
ये दीवाली ऐसी आई है कि दुनिया के सबसे जवान देश के चेहरे की झुर्रियां और गहरी होती जा रही हैं। अखबारों-चैनलों की खबर की शुरुआत कुछ इस तरह से हो रही है कि बुरी खबरों का सिलसिला अभी बंद नहीं हुआ है.. एक और बुरी खबर ये है.. अंतरराष्ट्रीय बाजार से लगातार बुरी खबरें आ रही हैं.. घरेलू मोरचे से भी बुरी खबरें आ रही हैं.. । हाल कुछ ऐसा कि जवान भारत अगर मीडिया के जरिए अपनी (बीमारी) के बारे में पता करना चाहता है तो, उसे लगता है कि देश तो, ICU में जाने लायक हो गया है।
कभी-कभी तो बीमारी लाइलाज लगने लगती है। 60 साल में बेकारी-बदहाली का मर्ज भी इतना खतरनाक नहीं लगा जितना एक अंकल सैम की बीमारी ने 60 साल के जवान भारत को बीमार कर रखा है। बेरोजगारी के आंकड़े अमेरिका में आते हैं तो, भारत में अच्छा भला लाख-पचास महीने पाने वाला भी डरने लगता है। इसी साल की 11 जनवरी तक उत्साह से सेंसेक्स के पचीस हजार जाने और रिलायंस को 3500 रुपए के भाव पर खरीदने की सलाह देने वाले बाजार के जानकार (पता नहीं कितना) कह रहे हैं बाजार के बॉटम का अंदाजा लगाना मुश्किल है। अब, भइया जब इतने बुड़बक थे तो, ऊपर वाला लेवल कहां से ले आए थे।
लीमन ब्रदर्स डूबते हैं तो, ICICI बैंक के डूबने का कयास हम खुद लगा लेते हैं। AIG लाइफ इंश्योरेंस का अमेरिका में दिवाला निकलता है तो, AIG के साथ भारत में इंश्योरेंस का कारोबार शुरू करने वाले टाटा की साख पर बट्टा लगने लगता है। किसी को टाटा की कई पीढ़ियों के कारोबारी कौशल पर भरोसा ही नहीं रह जाता। ये भी नहीं सोचते कि यही टाटा- कोरस से लेकर जैगुआर-लैंड रोवर तक टाटा का फौलादी ठप्पा जड़ चुके हैं।
6 महीने तक अर्थशास्त्र के विद्वानों, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह-वित्तमंत्री पी चिदंबरम-योजना आयोग उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया, की तिकड़ी ये भुलावा देती रही कि भारतीय अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल बहुत मजबूत हैं उसे कोई खतरा नहीं। अब ये तो बड़े जानकार हैं फिर भी इन्हें पता नहीं कैसे समझ में नहीं आया कि फंडामेंटल जिस वजह से मजबूत थे उन्हीं वजहों की जब बुनियाद दरक रही है तो, फंडामेंटल मजबूत कैसे रह जाएंगे। खैर, ये इनको नहीं समझ में आया आम आदमी को समझ में गया। ये आम आदमी (भारत का नहीं शेयर बाजार में इसे रिटेल इन्वेस्टर कहते हैं) कौड़ियों के भाव पर भी मजबूत फंडामेंटल वाली कंपनियों के शेयर खरीदने को तैयार नहीं हुआ।
बाजार गिर रहा है, लोकसभा (कई राज्यों के विधानसभा चुनाव भी) चुनाव सिर पर हैं, नौकरियां जा रही हैं, कंपनियों के नतीजे खराब हो रहे हैं जो, अच्छे भी हैं वो, बाजार की उम्मीदों से कम हैं (बाजार की उम्मीद दूल्हे का लालची बाप हो गया है जिसको कितना भी दहेज कम लगता है), बाजार की इसी उम्मीद पर खरे न उतरने की वजह से कंपनियां अपनी बढ़ने की योजना रोक रही हैं, कर्मचारियों की छंटनी कर रही हैं, 2 साल में 3 गुना मुनाफा दने वाली प्रॉपर्टी इधर 6 महीने में बढ़ने को छोड़िए रुपए में चवन्नी कम हो गई, प्रॉपर्टी से मुनाफा कमाने की इच्छा रखने वाले की चवन्नी घटी तो, उसे प्रॉपर्टी में चवन्नी लगाने का इरादा भी त्याग दिया, खरीदने वाले मन मारकर बैठ गए लेकिन, घर बनाने वाले लगे पड़े रहे इंडिया ग्रोथ स्टोरी के चक्कर में, फिर आधे पड़े प्रोजेक्ट को बैंकों ने कर्ज देने से मना कर दिया, अमेरिका का गोलमाल भारत में आकर गोलमाल रिटर्न हो गया। एक नजर में तो भारत का हाल एकदम अमेरिका जैसा दिख रहा है। उनकी तरक्की में हम उनके जैसे नहीं बन पाए। बदहाली में उनके इशारे पर ता-ता- थैया कर रहे हैं। बड़ी मुश्किल से अमेरिकी भी ये मानने लगे हैं कि उनके नीति नियंता कुछ गलत भी करते हैं।
मैं भी मुंबई में एक निजी कंपनी में नौकरी करता हूं। मैंने भी शेयर बाजार में पैसे लगाए हैं। मैं भी इंडिया ग्रोथ स्टोरी से प्रभावित हूं। मैं भी मीडिया के जरिए देश की अर्थव्यवस्था का हाल देखता-समझता हूं। मैं डर गया हूं। लेकिन, 34 घंटे के मुंबई से इलाहाबाद के सफर ने मेरा डर खत्म कर दिया। अरे, भई मैं राज ठाकरे के डर से मुंबई से इलाहाबाद नहीं आया। इलाहाबाद मेरा घर है और मैं यहां अपनी दीवाली हमेशा की तरह रोशन करने आया हूं।
मुंबई में प्रॉपर्टी मार्केट क्रैश हो रहा हैं। यहां अब भी जमीन महंगी ही हो रही है। यहां किसी ने घर करोड़ो में खरीदकर ताला नहीं बंद किया है। यहां 10-20-50 लाख का जो, भी घर खरीदा या तो उसमे रह रहे हैं या किराए पर उठा है। सिविल लाइंस में कार्निवाल (मेला) लगा है तो, रामबाग के सेवा समिति विद्या मंदिर में वर्ल्ड फन फेयर लगा है। धनतेरस के दिन सिविल लाइंस में गाड़ियों की कतारों से जाम लगा हुआ था। दूसरे दिन अखबार में खबर थी – धनतेरस पर साढ़े आठ करोड़ की कारें, चार करोड़ की मोटरसाइकिलें बिकीं। धनतेरस के बहाने साल भर से मिक्सी, फ्रिज से लेकर बाइक, कार- सबका प्लान रुका हुआ था। ये कंजरवेटिव भारत है जो, जरूरत की चीज साल भर टाल देता है। धनतेरस पर घर में आया नया सामान सबको खुश कर देता है।
मुंबई में बड़ी प्लाज्मा टीवी किसी भी दिन अचानक आ जाती है। विलासिता का एक सामान जुड़ता है लेकिन, खुशी नहीं आती। इलाहाबादी बड़ी टीवी खरीदकर मेगा इलेक्ट्रॉनिक्स से टीवी पैक करते-करते ही दोस्तों-रिश्तेदारों को बता देता है धनतेरस पर बड़ा टीवी लिया। बस पैक कर रहा है बस दुई मिनट में घर पहुंच रहे हैं। 125 करोड़ के आसपास के तरक्की वाले भारत में सिर्फ 2 करोड़ से कुछ ज्यादा लोग शेयर बाजार के जरिए तरक्की कर रहे थे। बचा 123 करोड़ कंजरवेटिव भारत है। अब इसी कंजरवेटिव भारत के सहारे ICICI बैंक के CEO&MD के वी कामत को भी भरोसा है कि हम पर खास असर नहीं पड़ेगा क्योंकि, हम बहुत कंजरवेटिव सिस्टम में काम करते हैं। ये बात उन्होंने सीएनबीसी आवाज़ संपादक संजय पुगलिया से खास मुलाकात में कही।
मैं भी मुंबई के मुक्त बाजार से इलाहाबाद के कंजरवेटिव भारत आ गया हूं। कोई डर नहीं लग रहा- सब मस्त हैं। कंजरवेटिव भारत में सब ठीक चल रहा है। न तो, किसी कमर्शियल या रेजिडेंशियल प्रोजेक्ट के धीमे होने की खबर है ना तो, किसी की नौकरी जाने की खबर है। बल्कि, कंपनियां तो, अब कंजरवेटिव भारत से कारोबार जुगाड़ने के लिए URGENT PLACEMENT की मुद्रा में धड़ाधड़ नियुक्तियां कर रही हैं। दीपावली पर उतनी ही आतिशबाजी-धूम-पटाका है। सबके घर में छोटी-बड़ी लक्ष्मी गणेशजी की मूर्तियां आई हैं। दीवाली पर सिर्फ रोशनी है।
इस रोशनी में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह-वित्तमंत्री पी चिदंबरम-योजना आयोग उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया, की तिकड़ी के भारतीय अर्थव्यवस्था के फंडामेंटल मजबूत होने के दावे सही लगने लगे हैं लेकिन, ये इस तिकड़ी के ग्लोबल विलेज का हिस्सा बने भारत की वजह से नहीं है। ये कंजरवेटिव भारत की ग्रोथ स्टोरी है। ये सचमुच बहुत मजबूत हैं और उसे कोई खतरा नहीं। सबको शुभ दीपावली और आइए इस दीप पर्व पर ये संकल्प लें कि, कंजरवेटिव भारत को इतना तो बचाए ही रखेंगे कि अमेरिका की सेहत खराब होने से हम ICU में न पहुंच जाएं।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
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