Sunday, March 12, 2023

भ्रष्टाचार विरोधी अभियान से कर्नाटक प्रचार की भाजपा ने शुरुआत कर दी

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी



 तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणामों से इतना तो तय हो गया है कि, भारतीय जनता पार्टी किसी भी चुनाव के परिणाम हर हाल में अपने पक्ष में रखने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। पूर्वोत्तर के इन तीनों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी के लिए राह आसान नहीं थी। त्रिपुरा में पाँच वर्ष की सरकार के बाद कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ आने के बाद यह सबसे बड़ा प्रश्न था कि, क्या त्रिपुरा में 2018 की जीत भाजपा की जीत थी, या कम्युनिस्ट शासन से ऊबे राज्य में भाजपा के लिए सिर्फ तुक्का भर था। अब भाजपा ने पूर्ण बहुमत से त्रिपुरा जीतकर यह साबित कर दिया कि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तैयार की गई भूमि पर भारतीय जनता पार्टी ने भव्य राजनीतिक भवन तैयार कर लिया है। नागालैंड में नेफ्यू रियो के साथ गठजोड़ में भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बना ली और, अब तो वहाँ शरद पवार की पार्टी भी सरकार में गई और, नीतीश कुमार की पार्टी भी। अब खीझे नीतीश कुमार ने नागालैंड इकाई को ही भंग कर दिया। नागालैंड में सब सरकार में हैं, कोई विपक्ष है ही नहीं। यह कमाल रियो-भाजपा सरकार ने दोबारा करके दिखाया है। इसके अच्छे-बुरे पहलुओं पर अलग से बात की जा सकती है। मेघालय में भाजपा ने कोनराड संगमा से नाता तोड़कर चुनाव लड़ा, लेकिन प्रत्याशित सफलता नहीं मिली और, फिर से दोनों पार्टियाँ सरकार बनाने साथ गईं। अब यह कितना नैतिक है, इस पर अब भारतीय राजनीति में शायद ही चर्चा होती है। इन तीनों राज्यों के परिणामों ने यह भी साबित किया है कि, विपक्षी एकता बस नाम भर की ही है, काम की नहीं है। अब विपक्ष कर्नाटक को लेकर उम्मीद से है। 

इस वर्ष कुल नौ राज्यों के चुनाव होने हैं। इसमें पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के परिणाम गए हैं, लेकिन केंद्र की सत्ता से दूर विपक्षी पार्टियाँ कह रही हैं कि, पूर्वोत्तर के तीनों राज्य छोटे राज्य थे। भारतीय जनता पार्टी की असली परीक्षा तो कर्नाटक जैसे बड़े राज्य में होनी है। कुछ हद तक यह सच भी है कि, दक्षिण के दुर्ग के प्रवेश द्वार कर्नाटक में भाजपा सत्ता में कई बार गई है, लेकिन अकेले अपने बूते सत्ता प्राप्त करना इतना आसान नहीं हो पाया है। कांग्रेस और जेडीएस एक साथ आए तो भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी। इसीलिए विपक्षी पार्टियाँ, विशेषकर कांग्रेस को लग रहा है कि, कर्नाटक के परिणाम 2024 से पहले उसकी मृतप्राय हो रही उम्मीदों को संजीवनी दे सकता है। यही वजह है कि, कांग्रेस ने भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार को लेकर हमले तेज कर दिए हैं। यह अलग बात है कि, बीएस येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर होने से कांग्रेस के लिए भ्रष्टाचार को लेकर हमला करना उतना आसान नहीं हो रहा है। भले ही कांग्रेस पेसीएम कहकर बासवराज बोम्मई पर कमीशनखोरी का आरोप लगा रही हो, लेकिन बोम्मई की छवि उस तरह से भ्रष्टाचार करने वाले नेता की रही नहीं है। इसी बीच लोकायुक्त पुलिस ने भाजपा के एक भ्रष्टाचारी विधायक के बेटे के घर और कार्यालय से आठ करोड़ नकद पकड़े तो लगा कि, कांग्रेस को बैठे-बिठाए चुनाव से ठीक पहले बड़ा मुद्दा मिल गया, लेकिन थोड़ा गहरे उतरने पर समझ में आता है कि, भारतीय जनता पार्टी ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही चुनाव लड़ने का मन बना लिया है और, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही येदियुरप्पा का हाथ पकड़कर चल रहे हों, लेकिन भ्रष्टाचार के मुद्दे पर येदियुरप्पा के बेहद नजदीकी विधायक पर हुई लोकायुक्त पुलिस की कार्रवाई में उनकी भी सहमति है। 

कर्नाटक में भाजपा विधायक के घर से करोड़ों पकड़े जाने की कहानी सबको जानना चाहिए। क्या यह कार्रवाई नरेंद्र मोदी और अमित शाह के इशारे पर हुई है। क्या बासवराज बोम्मई अपनी सरकार पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों से इतने परेशान हो गए कि, उन्होंने इसके लिए स्वीकृति दे दी कर्नाटक हमेशा से भ्रष्टाचार के लिए चर्चा में आता रहा है। भाजपा के दिग्गज नेता बीएस येदियुरप्पा पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप रहे हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों में येदियुरप्पा जेल तक गए हैं, लेकिन प्रभावी लिंगायत नेता येदियुरप्पा को हटाकर भाजपा कर्नाटक में सत्ता से दूर ही रहती। इस मजबूरी के बावजूद नरेंद्र मोदी ने येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाया और केंद्रीय संसदीय समिति में स्थान देकर मान बनाए रखने का संदेश दिया। ऐसे में येदियुरप्पा के नजदीकी रहे विधायक और उसके बेटे पर पड़े लोकायुक्त पुलिस के छापों में समझना जरूरी हो जाता है कर्नाटक सोप्स एंड डिटर्जेंट के प्रमुख भाजपा विधायक विरुपक्षप्पा के बेटे को रिश्वत लेते लोकायुक्त पुलिस ने रंगे हाथों पकड़ा और, विधायक भगोड़ा रहा। बाद में न्यायालय से जमानत मिल गई। विरुपक्षप्पा भी लिंगायत नेता येदियुरप्पा के नजदीकी हैं और, मुख्यमंत्री बोम्मई की उपजाति से आते हैं। येदियुरप्पा ने ही विरुपक्षप्पा को KSDL का चेयरमैन बनाया था, भाजपा ने येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से 2021 में हटा दिया, लेकिन विरुपक्षप्पा बने रहे। इंडियन एक्सप्रेस समाचार पत्र की एक रिपोर्ट बताती है कि, विरुपक्षप्पा का ड्राइवर टीवी चैनलों पर येदियुरप्पा को हटाने पर रोते हुए खूब दिखा था। अब उसी विरुपक्षप्पा और उसके बेटे पर लोकायुक्त पुलिस की कार्रवाई भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की सहमति के बिना हो रहे हैं, ऐसा मानना थोड़ा मुश्किल है। ऐसा मैं क्यों कह रहा हूँ। इसे समझने के लिए यह तथ्य जानना आवश्यक है। दरअसल, 2015 में सिद्धारमैया ने लोकायुक्त पुलिस के अधिकार छीने थे और, अगस्त 2022 में कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के बाद लोकायुक्त पुलिस के अधिकार वापस मिले, लेकिन 2015 से 2022 तक लोकायुक्त पुलिस से अधिकार छीनने के बाद कांग्रेस, जेडीएस और भाजपा सरकार में भी किसी मामले पर आगे बढ़ने के लिए एसीबी पुलिस को स्वीकृति नहीं मिली थी। अब ऐसा लगता है कि, येदियुरप्पा को मना लिया गया है और, भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कर्नाटक में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कार्रवाई का मन बना चुका है। और, इस मुद्दे भुनाने की भी कोशिश भाजपा करेगी कि, कैसे लोकायुक्त पुलिस के अधिकार सिद्धारमैया की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार ने छीन लिया था। अब यह भी सवाल है कि, क्या लोकायुक्त अब सिद्धारमैया और डी के शिवकुमार जैसे दिग्गज कांग्रेसी नेताओं के भी पुराने भ्रष्टाचार के मामलों के नये सिरे से खोलेगी। और, ऐसा हुआ तो कांग्रेस नेता भाजपा पर लोकायुक्त पुलिस के दुरुपयोग का आरोप भी नहीं लगा सकेंगे। वर्ष 1994 से 2015 के बीच लोकायुक्त पुलिस ने भ्रष्टाचार के मामले में 67 नेताओं, 28 आईएएस अधिकारियों, 8 आईपीएस अधिकारियों पर कार्रवाई कर चुकी है, लेकिन सिद्धारमैया सरकार ने जब लोकायुक्त से अधिकार छीने तो उसके बाद से एसीबी पुलिस को किसी भी मामले में कार्रवाई की स्वीकृति ही सरकार से नहीं मिली। अब लोकायुक्त फिर से शक्ति पा गया है, भले ही उच्च न्यायालय के हवाले से, लेकिन लग रहा है कि, मोदी कर्नाटक में अपने घर की गंदगी भी साफ़ करने के मूड में हैं। और, चुनावी रैलियों में नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार पर कांग्रेस पर ही हमलावर होने वाले हैं। येदियुरप्पा भले ही मोदी के साथ खड़े रहेंगे, लेकिन अब कर्नाटक की राजनीति में येदियुरप्पा की भूमिका पर बस प्रतीकात्मक ही है। भावनात्मक तौर पर लिंगायत समूह को मनाने के लिए भाजपा को इतना पर्याप्त लगता है। क्योंकि, लिंगायत मतदाता वैसे भी भाजपा का ही मतदाता है, बस उसे अपने सबसे बड़े नेता येदियुरप्पा की सम्मानजनक विदाई चाहि थी और, नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय संसदीय समिति में येदियुरप्पा को शामिल करके वह सम्मान दे दिया है। कर्नाटक चुनाव में नरेंद्र मोदी और, भाजपा ने जिस तरह से रणनीति बदली है। उसका अनुमान कांग्रेस को अभी लग भी नहीं पा रहा है। चुनाव से ठीक पहले भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विमर्श अपने पक्ष में खड़ा करने की नरेंद्र मोदी की यह रणनीति चुनावों में पूर्वोत्तर की रणनीति की तरह काम करेगी, यही कर्नाटक नतीजों से तय होगा। अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों के लिहाज से कर्नाटक अत्यंत महत्वपूर्ण होने वाला है।

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