Saturday, March 11, 2023

होली

हर्ष वर्धन त्रिपाठी Harsh Vardhan Tripathi 

लोकनाथ, प्रयागराज में कपड़ा फाड़ होली

 गाँव से लेकर शहर तक होली का मेरा अनुभव कभी ऐसा नहीं रहा, जैसा कुछ लोग चित्रित करके बेहूदगी से होली को लंफंगों, यौन कुंठित लोगों का त्योहार बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उनमें से अधिकतर का जीवन ही यौन कुंठाग्रस्त रहा है। उनके निशाने पर होली त्योहार हिन्दुओं पर निशाना साधने जैसा है। हमारे गाँव की होली में होलिका के लिए टूटी चारपाई से लेकर दूसरी लकड़ी और कंडी जुटाने से शुरुआत होती थी। पुराने सामान भी लोग होलिका में डाल आते थे। हमारे दुआर पर ही होली गाई जाती थी। झाँझ मंजीरा और भांग के साथ ठंडई भी रहती ही थी। होली में भौजाइयों के साथ जमकर होली भी खेली जाती थी। लेकिन एक भी अभद्रता का उदाहरण मेरे ध्यान में नहीं। किसी की नीयत खराब भी होती होगी तो परिवार के सामने इतना अमर्यादित होने का साहस किसी में नहीं था। कम से कम दो दिन होली जमकर खेली जाती थी। गाँव में जिससे झगड़ा है, उससे भी होली के दिन गले मिलते थे, होली खेलते थे। मिल भी जाते थे। होली साल भर की जड़ता को तोड़ने का सहज व्यवहार था। होली के बहाने प्रेम प्रस्ताव भी आगे बढ़ते रहे होंगे, लेकिन सबमें मर्यादा बनी रहती थी। लड़कों की टोली अलग निकलती तो तो मजाल कि, किसी महिला को रास्ते में छेड़ दे। घर सबको लौटना था। सबके परिवार को सब जानते थे। इलाहाबाद शहर में अल्लापुर से दारागंज गए तो भीषण वाली होली देखी। खींचकर लोग नाली, नाले में घसीट देते थे। वार्निश, पेंट जाने क्या-क्या पोत देते थे। चेहरा होली के कई दिनों बाद तक जलता रहता था, लेकिन यह सब भी लड़कों, पुरुषों के साथ ही होता था। इलाहाबाद में तो एक सप्ताह तक होली चलती। प्रयागराज के लोकनाथ की कपड़ा फाड़ होली का दो दिनों का वीडियो इस होली भी खूब जमकर वायरल हुआ। लड़कों, पुरुषों का पूरा शरीर रंग, गुलाल से रंगा और, शरीर के ऊपरी हिस्से का कपड़ा पूरी तरह फटकर ग़ायब हो जाता है। पहले होली के दिन निकलते डर लगता था कि, कहीं भी कीचड़, गोबर से पिच जाएँगे। अब तो घनघोर होली के बगल से गुजरने पर भी अपरिचित को कोई होली नहीं लगाता। हमारे मोहल्ले में एक दिन पुरुष जमकर होली खेलते हैं। अगर दिन महिलाएँ। यह तय होता है। शाम को एक दूसरे के घर में नया कपड़ा पहनकर होली मिलने, बड़ों से आशीर्वाद लेने एक दूसरे के घर जाते थे। गुझिया, पापड़ के साथ अब गुलाब जामुन दही बड़ा और, दूसरी खाद्य सामग्री जुड़ती जा रही है। पेट टाइट अवस्था में पहुँच जाता। होली हम भारतीयों के लिए ऐसी ही होती है। प्रतापगढ़ गाँव है, प्रयागराज से निकलकर कानपुर, मुम्बई और दिल्ली रहा। हर जगह ऐसा ही अनुभव रहा। हमारे गाँव और शहर जैसा। हर किसी के लिए उल्लास, जड़ता तोड़ने। सबसे मिलने, होली खेलने, जमकर खाने का पर्व। एक दिन भांग मिलाकर ठंडई पी जाने और अगले दिन देर तक सोने का अवसर भी। इस सबके बीच कुछ विक्षिप्त मानसिकता वाले बुरी हरकतें भी करते लेकिन अब धीरे-धीरे विक्षिप्त लोग कम होते जा रहे। समाज, महिलाएँ प्रतिकार तुरंत प्रतिकार करती हैं। पुलिस भी सक्रिय रहती है, लेकिन इस बार कुछ यौन कुंठित पत्रकार नये-पुराने वीडियो निकालकर होली पर्व को दूषित बताना चाह रहे हैं कि, हिन्दू ऐसा होता है। कुछ बेशर्म तो इतने बड़े हैं कि. पुराने वीडियो दिखाने को भी सही ठहरा रहे हैं। हिन्दू अपनी जरा सा भी बुराई को खत्म करेगा, करना ही होगा। लेकिन यौन कुंठित पत्रकारों के हिन्दू पर्वों को गलत तरीके से दिखाने पर प्रतिकार नहीं करेंगे तो उनका समाज विभाजक मन बढ़ जाएगा। हिन्दू पर्व, आस्था पर हमला उनके लिए राजनीतिक कुंठा निकालने का जरिया भी है। ऐसे कुंठितों को लानत भेजना आवश्यक। इसीलिए इसे लिखना पड़ा। होली का रंग चढ़ा रहे।

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