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मायावती को उनके प्रदेश के अपराधी डराते हैं। कहा जाता है कि अगर कोई किसी को कभी झापड़ भी मार दे तो, झापड़ खाने वाला चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए, झापड़ मारने वाले से हमेशा डरता रहता है। यही मायावती के साथ हो रहा है। वैसे मायावती का अतीक से डरना बेवजह नहीं है।
मायावती को लखनऊ के वीवीआईपी गेस्ट हाउस में समाजवादी पार्टी के रमाकांत, उमाकांत यादव और अतीक अहमद की बदसलूकी आज भी डराती होगी। वैसे जब मायावती ने अतीक से अपनी जान का खतरा बताया तो, पहले से ही उत्तर प्रदेश से भगोड़ा घोषित किए जा चुके अतीक की पुलिस मुठभेड़ में हत्या की आशंका बलवती हो गई। लेकिन, न तो कल्याण सिंह का जमाना था और न ही अतीक अहमद, शिव प्रकाश शुक्ला की तरफ सिर्फ अपराधी था। अतीक माननीय सांसद हैं और आने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस, सपा के लिए काम की ताकत बन सकते हैं।
अब अगर दिनदहाड़े हुई हत्या के बाद भी अतीक जैसा बदमाश मुस्कुराते हुए मुख्यमंत्री पर आरोप लगाकर मजे से जेल जा सकता है तो, मारे गए बीएसपी विधायक राजू पाल की विधवा पूजा पाल और राजू की मां रानी पाल का डरना तो बेवजह नहीं ही है। उनके पास तो मुख्यमंत्री जैसी सुरक्षा भी नहीं है। राजू पाल हत्याकांड में गवाह उमेश की तो जैसे सांस ही रुक गई है।
इधर, दिल्ली पुलिस के बड़े-बड़े कारनामे कर रही है। बड़े-बड़े भगोड़े बदमाशों को दिल्ली पुलिस धर दबोच रही है, सलाखों के पीछे पहुंचा दे रही है। खासकर उत्तर प्रदेश के भगोड़े बदमाशों के लिए तो दिल्ली पुलिस काल बन गई है। खबरों को देखकर पहली नजर में तो ऐसा ही लगता है। दो दशक से भगोड़े पांच लाख के इनामी बदमाश बृजेश सिंह के बाद इलाहाबाद का कुख्यात भगोड़ा माफिया सांसद भी दिल्ली पुलिस की गिरफ्त में आ गया है।
लेकिन, एक बड़ा इत्तफाक दिख रहा है जिससे सवाल भी खड़े हो सकते हैं कि आखिर उत्तर प्रदेश के अपराधी दिल्ली पुलिस की ही पकड़ में क्यों आ रहे हैं। बृजेश सिंह के भुवनेश्वर से पकड़े जाने के बाद जब अतीक अहमद दिल्ली से पकड़े गए तो, मुझे लगने लगा कि कहीं मायावती सही तो, नहीं कह रही थी। मायावती ने कुछ दिन पहले ही प्रेस कांफ्रेंस करके कहा था कि समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुना गया भगोड़ा सांसद अतीक अहमद उनकी हत्या करने की फिराक में हैं। और केंद्र की कांग्रेस सरकार उसकी मदद कर रही है। वैसे तो इतनी तगड़ी सिक्योरिटी में रहने वाली मुख्यमंत्री को कोई अपराधी कैसे मार सकता है। लेकिन, आरोप जब मुख्यमंत्री खुद लगा रही हो तो, उस पर कुछ तो यकीन करना ही पड़ता है।
अतीक का दिल्ली पुलिस की गिरफ्त में आना कई सवाल खड़े करता है। क्या उत्तर प्रदेश पुलिस में अतीक का जाल इतना मजबूत हो चुका है कि अतीक की सारी बातचीत रिकॉर्ड होने के बाद भी पुलिस उसे पकड़ नहीं सकी। कहते हैं कि फरारी में अतीक ने 65 से ज्यादा सिमकार्ड इस्तेमाल किए। अतीक का भाई अशरफ और हमजा अभी भी पुलिस की पकड़ में नहीं आए हैं। साफ है माहौल ठीक होते ही ये दोनों भी दिल्ली पुलिस की गिरफ्त से यूपी की जेल में महफूज हो जाएंगे। अतीक ने दिल्ली पुलिस (मुझे साफ मिलीभगत लगती है) को खुद को सौंपने से पहले दिल्ली में टीवी चैनलों को जिस ठाट से इंटरव्यू दिया था वो, देखने लायक था। साफ दिख रहा था कि दिल्ली में किसी सांसद आवास पर इंटरव्यू दिया गया था।
एक और बात छोटे-छोटे मामलों में आजकल पुलिस अपराधियों से सच उगलवाने के लिए नारको टेस्ट का सहारा लेने लगी है। फिर अतीक को इससे क्यों बख्शा जा रहा है। साफ है अगर बेहोशी में अतीक ने सारी सच्चाई उगली तो, राजू पाल का हत्यारा साबित होने के साथ वो कई बड़े नेताओं और उत्तर प्रदेश पुलिस के कई बड़े अफसरों को भी नाप लेगा। इलाहाबाद शहर और अतीक के संसदीय क्षेत्र फूलपुर में तो सबकी बोलती सी बंद हो गई है। सब कह रहे हैं कि जेल में बैठा अतीक तो अब वहीं से किसी की भी हत्या करवा सकता है।
अब सोचिए कि मायावती क्या कर लेंगी अगर सपा और कांग्रेस दोनों को अतीक नेता लग रहे हैं अपराधी नहीं। मुझे तो लगता है कि मायावती सच ही कह रही हैं कि केंद्र की कांग्रेस सरकार भी अतीक की मदद कर रही है। और, अगले लोकसभा चुनाव में नेहरू-गांधी की विरासत की मलाई खा रही सोनिया अम्मा की कांग्रेस अतीक अहमद को नेहरू जी की लोकसभा सीट फूलपुर से अपना प्रत्याशी बना सकती है। जीतने में कोई दिक्कत तो है ही नहीं।
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