Sunday, January 16, 2022

पिताजी कहे- तू का करब्या रुकके, जा चैनल, काम करा

हर्ष वर्धन त्रिपाठी



#पिताजी के साथ मौज का यह आखिरी चित्र है। उनके साथ इस तरह से मौज करने की हमारी इच्छा अधूरी ही रह गई। हालांकि, उन्होंने अपने मन का सब काम हमसे करा लिया। सीधे किए तो सीधे, वरना उन्होंने उंगली टेढ़ी करने में भी देरी नहीं लगाई। अपने मन का सब किया। कई बार गम्भीर बीमारियों के समय उनके आसपास लोग जब आशंकित रहते थे तो मृत्युद्वार से मौज लेकर, लौटकर ऐसे निकलकर सबको आश्चर्यचकित करने चले आए। इच्छाशक्ति ऐसी कि, 2-2 बार brain hemorrhage और पेसमेकर लग जाने के बावजूद एकदम झमाझम रहते थे, लेकिन किडनी की बीमारी ने परेशान करना शुरू किया तो गड़बड़ शुरू हुई। मन का करते थे। खाने और घूमने में ही मन लगता था। मन का करने पर रोक लगी तो कमजोर होने लगे, लेकिन कमजोरी भी उनको मन का करने से बहुत रोक नहीं पाती थी। हम लोग उनके स्वास्थ्य की चिंता में उनको मन का करने से ही रोकने लगे थे। अच्छा यही रहा कि, श्रीमद्भागवत सुनने की उनकी इच्छा उन्होंने करना है तो करना है वाली प्रवृत्ति से करा लिया। अब लग रहा है, कितना बेहतर हो गया। यह उनकी निर्णय लेने की क्षमता थी। उन्हें संभवत: शरीर पूर्ण होने का अहसास भी हो गया होगा। श्रीमद्भागवत सुनने के दौरान दूसरे ही दिन उनकी रिपोर्ट में creatinine तेजी से बढ़ी दिखी। हम लोगों को लगा कि, भागवत के दौरान ही डायलिसिस करानी पड़े। उन्होंने कहा, श्रीमद्भागवत पूरा होने तक कहीं जाएँगे। सब भगवान देख लेंगे। हम लोगों को क्या पता था कि, उन्हें सब पता है। जिस तेज़ी से creatinine बढ़ा था, लगभग उसी तरह से वापस हो गया। श्रीमद्भागवत की शुरुआत में उन्होंने कहाकि, संकल्प करा देंगे, तुमको ही बैठना, पूजा सुनना, करना पड़ेगा, लेकिन यह तो उन्होंने ऐसे ही कह दिया था। पूरी पूजा- श्रवण से लेकर कर्म तक- ख़ुद ही किया। सब परेशान थे और पिताजी मौज में थे। उनकी यात्रा संभवत: श्रीमद्भागवत श्रवण के साथ ही शुरू हो चुकी थी। सब अच्छे से हो गया और मैं फिर से नोएडा लौट गया। 

11 जनवरी को छोटा भाई Jaivardhan Tripathi जब इस बार लखनऊ मेदांता ले गया तो इतना ही था कि, डायलिसिस होना है और थोड़ा इंफ़ेक्शन है जो 2-4 दिन में ख़त्म हो जाएगा और वापस घर। हम भी श्रीमद्भागवत की कर्म प्रधानता का ही निर्वहन कर रहे थे। 13 जनवरी की सुबह छोटे भाई Anand Vardhan Tripathi का फ़ोन आया कि वेंटिलेटर के लिए कह रहे हैं और थोड़ी ही देर में फ़ोन आया कि, नियति के सामने किसी का वश नहीं चलता तो, हम भला अपवाद कैसे होते। शाम तक पिताजी का पार्थिव शरीर लेकर दोनों छोटे भाई पहुँचे और देर शाम तक हम। 14 जनवरी को नागवासुकि-दशाश्वमेध घाट पर अंतिम संस्कार हुआ। घर-परिवार, गाँव-समाज, मित्रहर कोई यह अहसास हमें दिला रहा था कि, हम तीनों भाइयों के सामने कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी छोड़कर पिताजी गए हैं। कहा जाता है कि, पिता का जूता पुत्र के पैर में आने लगे तो बराबरी का मसला हो जाता है, लेकिन उनके पासंग खड़े होने की सामर्थ्य दिख पा रही। इतना कह सकते हैं कि, हम तीनों कोशिश अवश्य करेंगे। करना ही पड़ेगा, हम लोगों के पास विकल्प नहीं है। कुछ लिखने-पढ़ने-बोलने की मन नहीं हो रहा था, लेकिन कल से ही लग रहा है कि अभी होते तो कहते कि, तोहका करे का बा, ख़ाली अहा तो करा जउन करै होए। लेख लिखा, वीडियो बनवा, तोहका के रोके बा। और, सही बात मुखाग्नि देने के बाद से हमारे पास एकादशाह तक कार्य ही क्या है। घर के बरामदे में ख़ाली ही तो बैठा हूं। गंगा स्नान करके सुबह शाम तिलांजलि और दीपक जलाने के अलावा कार्य ही क्या है। पिताजी अब तक धकिया दिए होते कि, कुछ तो करा, ख़ाली बइठा अहा। बहाना बनवै होए तो बात अलग नाहीं तो करा जउन करै को होए, हम रोके अही का। हाल के वर्षों में उनकी इच्छा रहती थी कि, हम भी पत्नी और बेटियों के साथ अधिकतर समय उनके साथ ही रहें, लेकिन मुझे धकियाते भी रहते थे कि जा, काम का नुक़सान होई चाही। वैसे तो अधिकतर लोगों को यह जानकारी हो चुकी है, लेकिन हमारे सामाजिक परिवार के बहुत से सदस्यों को सूचना मिल सकी होगी। मेरे पास संदेश रहे हैं कि, 4 दिन से कोई वीडियो नहीं आया। कुछेक टीवी चैनलों से डिबेट में शामिल होने के लिए या राजनीतिक घटनाक्रम पर बाइट देने के लिए फ़ोन भी गया। लग रहा है, जैसे पिताजी कह रहे हों कि, हमारे बहाने काहिल जी होई जा, ओपन काम करा। 

कैसे धकियाते थे, इसका एक क़िस्सा आप लोगों से साझा करता हूँ। मुम्बई सीएनबीसी आवाज़ में था। हमारी सगाई हो चुकी थी, लेकिन विवाह नहीं हुआ था। पिताजी सब लोगों को लेकर गोवा भ्रमण जा रहे थे तो बम्बई से ही यात्रा तय की। इस बहाने उन्हें अपने पुत्र की ससुराल के बारे में भी पूरी पड़ताल करना था। कहते थे कि, किसी के बारे में उसके घर पर जाकर ही जाना जा सकता है। ज़ाहिर है, सगाई हो चुकी थी तो मिलने में कोई समस्या नहीं थी, लेकिन फिर भी ठाणे ससुराल जाने का बहाना रुचिकर ही था। हम लोअर परेल अपने चैनल के नज़दीक रहते थे। पूरे परिवार को हवाई अड्डा से लेकर ठाणे पहुँचे और हमने लगभग मान लिया था कि अब चैनल में फ़ोन कर दूँगा कि नहीं रहा हूँ, लेकिन हम भूल गए कि, हमारे पिताजी को इससे क्या वास्ता कि, सगाई से विवाह के बीच ससुराल में रुकना मुझे रुचिकर लगेगा। एक और कमाल की बात की कि, मुम्बई रहते और उसके बाद भी आज तक हम Kanchan Tripathi को गोवा लेकर जा सके, देखते हैं, कब जा पाते हैं। खैर, उन्होंने ठाणे पहुँचते नाश्ता करते पूछा, का , सीएनबीसी केतने बजे जाब्या। हमने कहा, चले जाएँगे या बोल देंगे कि, आज नहीं पाएँगे, पिताजी। लोग आए हैं। पिताजी का जवाब था, तो हम सब आए अही तो तू का करब्या। जा आपन काम करा। बहुत ही खीझते, गुस्साते बिना कुछ कहे मैंने नाश्ता ख़त्म किया और चल पड़े आपन काम करै। उस दिन मुम्बई-ठाणे में कोई प्रदर्शन था और पेट्रोल पंप बंद थे। ससुराल की गाड़ी छोड़ने के लिए चली और घोड़बंदर रोड से मुम्बई की तरफ़ मुड़ते कि ड्राइवर ने बताया, इस गाड़ी में डीज़ल कम है। खीझ, ग़ुस्सा और बढ़ गया क्योंकि, मुम्बई से चिढ़ की बड़ी वजहों में एक लोकल में संघर्ष करना था। इसीलिए मैंने अपना वन रूम, किचेन फ़्लैट एकदम कमला मिल के सामने ही लिया। लोकल से यात्रा के बराबर करता था। लोवर परेल से ठाणे तक मैं टैक्सी से जाता था। मेरे मित्र कहते थे कि, तुम्हारी भी रईसी ग़ज़ब है। ऐसे मुम्बई में रह पाओगे। दोस्तों की बात सच निकली और मुम्बई चार वर्ष ही रह पाया। लोकल में देह विमर्श मुझे बहुत चिढ़ाता था, लेकिन उस दिन लोकल का देह विमर्श पिताजी ने मेरी नियति में लिख दिया था। ड्राइवर ने बता दिया था कि, डीज़ल कम है और पंप बंद। ऑटो लिया और ठाणे स्टेशन से लोकल पकड़कर लोवर परेल गया। पिताजी ने कर्म प्रधानता को हमेशा प्रमुखता दी। उनकी कर्म प्रधानता का घनघोर प्रभाव हमारे ऊपर कैसे पड़ा है, मेरी व्यथा कथा से आपको थोड़ा बहुत अनुमान लग ही गया होगा। फिर से उनकी आवाज़ रही है कि, दाग़ दइके ख़ाली बइठा अहा, कुछ तो करा। ज़ाहिर है, फ़िलहाल एकादशाह तक केतने धकियाए, कुछ अउर कइ पाउच, लेकिन बताऊँ ज़रूरी अहै कि, चाचा, करब, बहाना लइके ख़ाली बइठा रहब, बताउब तो लगातार कहिहैं, तब तक कहिहैं जब तक चिढ़के, गुस्साइके हम कुछ करए लागी। करइन परी करबै करब। जहां अहा, मउज करत रहा। हमहूं सब करे रहब, मउज के सा


16 comments:

  1. Shok santapt.main khud bhi is peeda aur avsaad se Vartman me kassht m hu.prabhu sambal de.

    ReplyDelete
  2. ताऊ जी की पुण्यात्मा को प्रणाम ॐ शान्ति,🙏
    ईश्वर आपको व परिवार को इस दुःख को सहन करने की शक्ति प्रदान करे

    ReplyDelete
  3. ईश्वर आपको ये दुख सहने की शक्ति दे. बहुत भावपूर्ण है आपका ये लेख.

    ReplyDelete
  4. unki atma ko shri ji ke charno me sthan mile

    ReplyDelete
    Replies
    1. Jankar Dukh hua iswar unki atma ko Santi de .

      Delete
  5. Ohhh no.🕉️ Shanti

    ReplyDelete
  6. हर्षवर्धन जी इस दुखद समाचार से मन व्यथित हो गया हम और हमारा परिवार के साथ है चार महीने पुर्व इस पीड़ा से गुजरे जब माताजी का साथ छुट गया

    ReplyDelete
  7. Bhgwaan aapke babu g ko apne Sri charano me asthan de

    ReplyDelete
  8. जब हम अपने जीवन में अपने सबसे प्यारे व्यक्ति को खो देते हैं तो समय थमा हुआ सा प्रतीत होता है लेकिन यह जरुरी है कि आप खुद को व परिवार को संभालें और बाकी का कार्य हौसलों के साथ शुरू करें , ताकि उनकी आत्मा को सुकून मिले और वो स्वर्ग में शांति से विराजें।

    ReplyDelete
  9. 🙏ॐ शांति🙏

    ReplyDelete
  10. प्रभु पवित्र आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें और आप सबों को इस दुख को सहने का संबल दें।

    ReplyDelete
  11. Om shanti 🙏🙏💐💐

    ReplyDelete
  12. Om शांति 🙏🙏🙏🙏🙏🙏

    ReplyDelete

हिन्दू मंदिर, परंपराएं और महिलाएं निशाने पर क्यों

हर्ष वर्धन त्रिपाठी Harsh Vardhan Tripathi अभी सकट चौथ बीता। आस्थावान हिन्दू स्त्रियाँ अपनी संतानों के दीर्घायु होने के लिए निर्जला व्रत रखत...