Monday, January 20, 2020

तथाकथित उदारवादियों को बेनकाब कर रहा शाहीन बाग


नागरिकता कानून के विरोध में देश की सबसे बड़ी आवाज शाहीन बाग बन गया है। तथाकथित उदारवादी खेमे की ओर से शाहीन बाग के आन्दोलन को देश का सबसे बड़ा आन्दोलन बताया जा रहा है। बुजुर्ग मुस्लिम महिलाएं इस आन्दोलन की शुरुआत में ही टीवी की प्राइम टाइम बहस का चेहरा बनीं और फिर सलाम शाहीन बाग, शाहीन बाग की महान औरतें जैसे नारों के साथ प्रतिदिन वहां से नये तरीके के विरोध को देशव्यापी बनाने की कोशिश की जाने लगी। शाहीन बाग में हो रहे विरोध ने सरकार के साथ सुरक्षा एजेंसियों के कान भी खड़े कर रखे हैं। पहले शाहीन बाग के प्रदर्शन में 500-1000 रुपये देकर प्रतिदिन के लिए प्रदर्शनकारियों को लाने वाला वीडियो आया और उसके बाद बेहद खतरनाक जहरीला वीडियो आया, जिसमें छोटे बच्चे को नागरिकता कानून के जरिये मुसलमानों को कैंपों में ठूंस दिया जाएगा, कपड़े नहीं पहनने दिया जाएगा और खाना भी सिर्फ एक समय खाने को मिलेगा जैसी बातें कहते देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के लिए अपशब्द के साथ उन्हें मारने तक की बात चीखते हुए कहते सुना जा सकता है। इस आन्दोलन का चेहरा महिलाओं को बनाया गया है और बुजुर्ग मुस्लिम महिलाओं को टीवी की प्राइम टाइम बहस का हिस्सा बनाने से हुई शुरुआत को 6 महीने और 21 दिन के सबसे कम उम्र के प्रदर्शनकारी बच्चे तक पहुंचाय गया। शाहीन बाग से यह आवाज मजबूत करने की कोशिश की जा रही है कि देश में फासीवाद आ गया है। हिटलर हमें कुचल देगा। मुस्लिमों को मारा जाएगा, कैंपों में ठूंस दिया जाएगा। इस तरह का झूठ लगातार बोलते अब एक महीने से ज्यादा हो गया है, लेकिन दिल्ली पुलिस और सरकार शान्तिपूर्वक शाहीन बाग की मुस्लिम महिलाओं को सड़क छोड़ने की अपील कर रही है। तथाकथित उदारवादी मुस्लिम महिलाओं को आगे करके इस आन्दोलन को आजाद भारत का सबसे रचनात्मक आन्दोलन बता रहे हैं, लेकिन इसी रचनात्मकता की आड़ जब खत्म होती है तो इस प्रदर्शन का असली वीभत्स चेहरा सामने आने लगता है।
बच्चों के जहरीले वीडियो वायरल हो गये हैं, लेकिन उसकी विश्वसनीयता साबित होने तक उसे छोड़ भी दें तो पाकिस्तान के लाहौर में मोदी और शाह के बीच मतभेद की खबर देकर आए कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर का बयान उदारवादियों का चेहरा बेनकाब कर देता है। इतिहासकार कहे जाने वाले रामचंद्र गुहा का बयान तथाकथित उदारवादियों के चेहरे को ज्यादा स्पष्ट दिखा देता है। रामचंद्र गुहा कह रहे हैं क्या देश के एकमात्र मुस्लिम बहुल जम्मू कश्मीर राज्य से अनुच्छेद 370 खत्म करके उसे केंद्रशासित प्रदेश बनाने से भारतीय जनता पार्टी के कट्टर हिन्दू आधार वाले मतदाता को संतुष्टि नहीं मिली है। क्या अयोध्या विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय के भव्य राममंदिर बनाने वाले निर्णय ने उन्हें और संतुष्ट नहीं किया है। इसके बाद रामचंद्र गुहा लिखते हैं कि क्या हिन्दू मतदाता इतना लोभी है कि उसके सामने इन दो के बाद तीसरी हड्डी भी तुरन्त फेंकने की जरूरत पड़ती है। मणिशंकर अय्यर और रामचंद्र गुहा का शर्मनाक बयान छोटे बच्चे के वायरल हो रहे जहरीले वीडियो को सच साबित करने के लिए पर्याप्त हो जाता है। दरअसल, तथाकथित उदारवादी खेमे की तरफ से राममंदिर बनने और अनुच्छेद 370 हटाने के निर्णय पर ऐसे ही बयान लगातार आ रहे थे और इस भड़काऊ बयानबाजी ने देश के मुसलमानों के दिमाग में जहर भर दिया है। देश के मुसलमान इतना ज्यादा जहर भरने के बावजूद नागरिकता कानून में बदलाव को स्वीकार करने के लिए मन बना चुका था क्योंकि इतना तो स्पष्ट है कि रामंदिर निर्माण का सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय हो या फिर 370 खत्म करने का केंद्र सरकार का फैसला, दोनों पर ही कोशिश करके भी असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक होने का आरोप भी नहीं लगाया जा सकता था। नागरिकता कानून के मामले में भी देश के दोनों सदनों से बाकायदा चर्चा कराकर मतदान कराने के बाद अध्यादेश को मंजूरी मिली और कानून बना। संवैधानिक दायरे में आएए निर्णयों की वजह से देश का मुसलमान मन में भले ही दुखी हुआ हो जाहिर तौर पर इनमें से किसी भी फैसले के खिलाफ खड़ा नहीं हुआ।
देश के तथाकथित उदारवादी, प्रगतिशील और जाहिर तौर पर डेढ़ दशक से नरेंद्र मोदी विरोधी और जन्मना संघ, भाजपा विरोधी खेमे को अपनी प्रासंगिकता ही खत्म होती दिख रही थी। इस खेमे को हमेशा यह गुमान रहा कि भारत में सिर्फ और सिर्फ उसी तरह से वैचारिक बहस चल सकती है जैसा उनका खेमा चाहता है। अपनी प्रासंगिकता खोने से कष्टित खेमे ने नयी रणनीति निकाली। उसी नयी रणनीति के तहत देश के विश्वविद्यालयों के छात्रों को तैयार किया गया। जेएनयू में कब्जा जमाये बैठे वामपंथियों को पूरा भरोसा था कि यहां चल रहे छात्र आन्दोलन को देशव्यापी बनाया जा सकेगा। जब उसमें कामयाबी नहीं मिली तो मुस्लिम विश्वविद्यालयों – जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय- को सरकार के खिलाफ खड़ा किया गया। यह आसान भी था, मुसलमानों को समझाया गया कि आपके सारे अधिकार छीन लिए जाएंगे। यही कोशिश नदवा कॉलेज लखनऊ में भी की गयी थी, लेकिन पुलिस प्रशासन की चौकसी ने उनकी रणनीति पर पानी फेर दिया। जामिया में यह कोशिश सफल रही और नागिरकता कानून विरोधी आन्दोलन को छात्र आन्दोलन में बदला गया। देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में छात्रों के हाथ में विरोधी तख्तियां पकड़ाकर उन्हें सरकार के खिलाफ खड़ा किया गया। परिसरों में ज्यादातर छात्र इस बात के लिए हमेशा तैयार रहते हैं कि सरकारी, पुलिसिया दमन के खिलाफ लड़ना है, इस स्वाभाविक मानसिकता का फायदा उठाकर आन्दोलन को छात्र आन्दोलन में बदला गया। उधर, उत्तर प्रदेश में पीएफआई और दूसरे कट्टर इस्लामिक संगठनों के साथ हिंसक आन्दोलन की रणनीति बनायी गयी। काफी हद तक यह रणनीति कामयाब भी रही, लेकिन उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने बाकायदा वीडियो प्रमाण के आधार पर दंगाइयों पर मामला दर्ज करके उनसे वसूली शुरू की तो खेमे की चुनौती बड़ी हो गयी। अचानक सब शान्त हो गया, लेकिन राष्ट्रीय विचार विरोधी, एकांगी विचार पोषक तथाकथित उदारवादी खेमे की बेचैनी बढ़ गयी और उसमें शाहीन बाग का विचार आया। शाहीन बाग की बहादुर मुस्लिम महिलाओं को प्राइम टाइम की बहस में बैठाया गया। ऐसा इसलिए भी किया गया क्योंकि जामिया छात्र आन्दोलन का चेहरा बनी लदीदा शकलून और आयशा रेन्ना की असलियत 24 घंटे बीतते सबके सामने आ गयी थी। उनके चेहरे को पीछे करके शाहीन बाग की बुजुर्ग मुस्लिम महिलाओं को आगे लाया गया। दुधमुंहे बच्चों को सबसे कम उम्र के प्रदर्शनकारी का खिताब दिया गया। इसके बाद हर शहर शाहीन बाग का नारा देकर दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाकों और देश के दूसरे शहरों के मुस्लिम बहुल इलाकों में इस विरोध प्रदर्शन को ले जाया जा रहा है। खेमेबंदी और मोदी-शाह को अपनी ताकत दिखाने में मशगूल इन तथाकथित उदारवादी, संघ-भाजपा विरोधी बुद्धिजीवियों को यह समझ में न आ रहा है कि इससे मुसलमानों पर देश संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ खड़ा होने का आरोप चस्पा हो रहा है, लेकिन मूल रूप से फासीवादी इन खेमेबाजों को यह बात भला क्यों समझ में आए।
अपने विचार के विरुद्ध किसी को भी बर्दाश्त न करने वाले इस खेमे को लग रहा है कि हमने देशव्यापी आन्दोलन तैयार कर लिया है। इसमें जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र अपनी कुलपति से अभद्रता करने लगें और उनसे सवाल करने लगें कि कक्षाओं में हम तब आएंगे, परीक्षा तब देंगे, जब कुलपति यह बता देंगी कि नागरिकता कानून के विरोध में हैं या नहीं। तथाकथित उदारवादी, प्रगतिशील पूर्णत: फासीवादी खेमे के भरे जहर का प्रभाव है कि जामिया के बच्चे अपने प्रॉक्टर को गालियां देते हैं और जूता दिखाते हैं। जेएनयू के वामपंथी छात्र अपने कुलपति के घर को तब घेर लेते हैं जब घर में कुलपति नहीं होते हैं, घर में सिर्फ कुलपति की पत्नी होती हैं। शाहीन बाग से छोटे बच्चों का जहरीला वीडियो इसी सबकी परिणति है। वामपंथी और कट्टर इस्लामिक गठजोड़ के जहरीले विचारों का प्रभाव मेरठ में दिखा जब अनीस उर्फ खलीफा ने पुलिस पर ही गोली चला दी और सीसीटीवी में पकड़े जाने पर कहाकि मेरे भाई को 1987 के दंगे में पुलिस की गोली लगी थी, मैं उसी का बदला ले रहा था। देश में बरसों से फैलाए जा रहे जहर की साक्षात तस्वीर है शाहीन बाग का आन्दोलन। शाहीन बाग से दिल्ली एनसीआर लाखों लोगों का जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है, लेकिन मोदी-शाह विरोध में इस आन्दोलन की उम्मीद से बैठे लोगों को यह कीमत बहुत छोटी लग रही है। अच्छी बात यह है कि बरसों से निष्पक्ष बुद्धिजीवी का चोला ओढ़े बैठे खेमेबाजों के चेहरे का परदा हट गया है। शाहीन बाग को इसलिए भी ऐतिहासिक माना जाएगा कि देश में जहरीले विचारों के पोषक, जनता के सामने बेनकाब हो गये।

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