Friday, September 25, 2015

OROP किसका हक?

जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करते पूर्व सैनिक
बकरीद की छुट्टी के दिन दिल्ली की सड़कों पर सरसराता हुआ मैं दफ्तर पहुंच गया। संसद मार्ग तक का रास्ता इतना आसान आमतौर पर कहां होता है। प्रेस क्लब की बजाए आज नेशनल मीडिया सेंटर में गाड़ी खड़ी की। और पैदल दफ्तर के लिए चल पड़ा। जंतर-मंतर रास्ते में है। जंतर-मंतर पर हर रोज की तरह मारामारी तो नहीं थी। प्रदर्शनकारियों का एक नया मंच लग गया है। अगर सोमवार तक ये प्रदर्शन जारी रहा तो, उनकी बात करूंगा। लेकिन, आज बात उन सैनिकों की। जिनको अभी भी लग रहा है कि उनको देशसेवा के बदले में जो मिलना चाहिए वो नहीं मिल रहा है। पिछले कई दशकों से चली आई रही वन रैंक वन पेंशन की बहाली नरेंद्र मोदी की सरकार ने कर दी। उसके बाद भी पूर्व सैनिकों को लग रहा है कि हिस्सेदारी और ली जा सकती है। कम मिली है। थोड़ी देर रुककर मैंने उन लोगों को सुना। सुनने के बाद लगा कि अच्छा है यहां लोग कम ही हैं। या ये कहें कि जिनकी पेंशन बढ़नी है। वही कुछ पचास-सौ लोग हैं। क्योंकि, अगर रुककर आम लोग उनकी बातें सुन लें, तो सेना और सैनिकों की देश सेवा शब्द से चिढ़ होने लगे। जब मैंने सुना, तो दहाड़ रहे पूर्व सैनिक बता रहे थे कि कैसे वो तो वीर बहादुर थे। लेकिन, सरकार ने दुश्मनों पर गोली नहीं चलाने दी। मतलब अब वो इस तरह से सरकार को लानत भेज रहे थे। जैसे निजी दुश्मनी। अब पता नहीं किस सरकार के समय वो सेना में थे। उस पर भी इन्हें कौन समझाए कि सरकार कोई भी हो, लाख कहें कि सरकारें भी राजनीति करती हैं। लेकिन, ये तो मैं भी नहीं मान सकता कि सीमा पर सरकार राजनीति करती है। लेकिन, वो पूर्व सैनिक अपनी रौ में बहे जा रहे थे। ज्यादा देर तक मैं रुका नहीं।

जंतर-मंतर के आसपास बचे ये कुछ पोस्टर
जंतर-मंतर से संसद मार्ग की तरफ बढ़ा, तो ढेर सारे फटे पोस्टरों को देखा। वो, फटे पोस्टर थे आम आदमी पार्टी के एक विधायक के। आम आदमी पार्टी के विधायक सुरेंद्र सिंह कमांडो किसी पूर्व सैनिक संगठन के अध्यक्ष हैं, ये भी जानकारी इस पोस्टर से पता चली। वो, भी बेचैन दिख रहे थे कि आखिर पूर्व सैनिकों को उनका हक क्यों नहीं मिल रहा। हालांकि, ज्यादातर पोस्टर फट चुके हैं। लेकिन, दो पोस्टर साबुत दिखे, तो एक तस्वीर मैंने ले ली। इससे समझ में आ जाता है कि आखिर कौन से ये 100 के आसपास पूर्व सैनिक हैं, जो जंतर-मंतर पर अभी OROP का नारा बुलंद किए हुए हैं। जबकि, इस बात के लिए तो नरेंद्र मोदी की तारीफ होनी चाहिए कि उन्होंने पूर्व सैनिकों का सम्मान किया। जाहिर है राजनीतिक नफा-नुकसान का गणित काम कर रहा है।


OROP किसका हक?
खैर, जंतर-मंतर पर अभी कब तक ये पूर्व सैनिक अपने बुरे हाल की दुहाई देते रहेंगे। ये देखने वाली बात होगी। लेकिन, रोज दफ्तर आने के क्रम में एक पूर्व सैनिक जो मुझे दिखा। उसकी तस्वीर भी में चिपका रहा हूं। बुजुर्ग सरदार जी ड्राइविंग सीट पर थे। पूर्व सैनिक होंगे। ये अंदाजा मैंने इससे लगाया कि उनकी होंडा सिटी कार के पीछे OROP sadda haq Aithe Rakh! का स्टीकर चिपका हुआ था। ये तस्वीर बहुत अच्छी नहीं आ सकी। क्योंकि, कार चलाते आगे वाली कार की तस्वीर लेना इतना आसान नहीं था। लेकिन, ये तस्वीर बता देती है कि समय से पहले सेना से रिटायर हो जाने वाले पूर्व सैनिकों की जिंदगी कैसी है। फिर भी आंदोलन है, उसे चलाने के लिए सही मुद्दा किसे चाहिए। जंतर-मंतर है। पीछे से समर्थन देने वाले कुछ राजनेता हैं। अपना स्वार्थ है। बस इतना बहुत है। पूर्व सैनिकों को ज्यादा से ज्यादा पेंशन लेने के लिए। 

No comments:

Post a Comment

राजनीतिक संतुलन के साथ विकसित भारत का बजट

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तीसरा कार्यकाल पहले के दोनों कार्यकाल से कितना अलग है, इसका सही अनुम...