Sunday, September 13, 2015

लाल बत्ती की जरूरत क्या है

देश में किसी भी समस्या के लिए सबसे आसानी से अगर किसी एक बात को दोषी ठहराया जाता है, तो वो है लालफीताशाही। देश के अंदर भी और देश के बाहर भी ये सामान्य धारणा है कि भारत में लालफीताशाही की वजह से चीजें अपनी रफ्तार में नहीं चल पाती हैं। हर सरकार लालफीताशाही खत्म करने की बात भी कहती है। लेकिन, देश में उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू हुए करीब ढाई दशक होने के बाद भी लालफीताशाही अपनी जगह बनी हुई है। नरेंद्र मोदी की सरकार जब बनी थी, तो नरेंद्र मोदी ने बार-बार ये कहा कि लालफीताशाही खत्म करना उनकी प्राथमिकता है। इसे और आगे ले जाते हुए उन्होंने कहा कि हम हर दिन एक गैरजरूरी कानून खत्म करेंगे। नरेंद्र मोदी ने धीरे-धीरे वो किया भी है। और अब नितिन गडकरी ने एक ऐसा प्रस्ताव आगे बढ़ाया है, जो लागू हुआ तो शायद लालफीताशाही को सही मायने में खत्म करने वाला सबसे बड़ा फैसला होगा। लालफीताशाही दरअसल किसी फाइल पर लाल निशान लगाने, काम को रोकने से संबंध रखती है। लेकिन, लालफीताशाही ये भी है कि देश में अंबैसडर कारों, आज के संदर्भ में दूसरी कंपनियों की कारों, एसयूवी पर चमकती लाल बत्तियां सड़कों पर एक खास प्रभुत्व के दर्शन कराती रहती हैं। देश को आजाद हुए करीब सत्तर साल हो गए। लेकिन, अंग्रेजों के जमाने की ये लाल बत्ती वाली सत्ता की निशानी देश में वीआईपी होने का सबसे बड़ा अहसास है। ऐसे में जब भूतल परिवहन मंत्री केंद्र सरकार में इस बात पर सहमति बनाने की कोशिश की है कि देश में लालबत्ती गाड़ियों की संख्या लगभग खत्म कर दी जाए। तो, लगता है कि नरेंद्र मोदी की इस सरकार में मंत्रियों का दृष्टिकोण बेहतर है। नितिन गडकरी नरेंद्र मोदी सरकार में सबसे ज्यादा कामकाजी मंत्रियों में से हैं। नितिन गडकरी अपने मंत्रालय में काम कर रहे हैं। और इसी काम करने में नितिन गडकरी ने लाल बत्तियों वाली कारों की संख्या सीमित करने प्रस्ताव आगे बढ़ाया है। इस प्रस्ताव में नितिन गडकरी ने राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को ही लाल बत्ती की विशेषाधिकार देने की बात की है। इसके अलावा राज्यों में लाल बत्ती वाली गाड़ी के इस्तेमाल का अधिकार सिर्फ राज्यपाल, मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को ही देने की बात की गई है। इसे कानून बनाने से पहले नितिन गडकरी ने सभी मंत्रालयों को भी ये प्रस्ताव भेजा है। और अच्छी बात ये है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस प्रस्ताव को लागू करने पर सहमति जताई है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी लाल बत्ती का इस्तेमाल कम से कम करने के इस प्रस्ताव पर सहमति जताई है। चर्चा है कि नितिन गडकरी ने जब प्रधानमंत्री से इस प्रस्ताव को लागू करने की बात की, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी मंत्रालयों से चर्चा करके इसे लागू करने की सलाह दी है। अब अगर ये कानून लागू हो जाता है, तो कल्पना की जा सकती है कि भारतीय सड़कों से इस वीवीआईपी क्लास के गायब होने से लालफीताशाही कितनी आसानी से कम की जा सकती है। इस प्रस्ताव को अलग तरीके से इसलिए भी देखना चाहिए क्योंकि, अकसर इस बात की चर्चा होती है। या ये कहें कि सांसदों, मंत्रियों की आलोचना होती है कि अपनी तनख्वाह, अपने भत्ते बढ़ाने के लिए खुद ही प्रस्ताव पास कर लेते हैं। लागू कर देते हैं। अब अगर एक सरकार अपने ही मंत्रियों को लाल बत्ती के विशेषाधिकार से बाहर कर रही है, तो इसकी चर्चा बड़े बदलाव के तौर पर होनी चाहिए। लाल बत्ती के इस प्रस्ताव के लागू होने के बाद खुद भूतल परिवहन मंत्री भी लाल बत्ती के अधिकारी नहीं रह जाएंगे। इसलिए भी इसे बड़े बदलाव के तौर पर देखा जाना चाहिए।


लाल बत्ती वाली गाड़ियों का इस्तेमाल किस कदर होता है। इसके बारे में भारत में किसी को शायद ही कुछ बताने की जरूरत हो। ज्यादातर भारतीयों को अपने जीवन में कई बार लाल बत्ती की महत्ता, सत्ता का अहसास होता ही होता है। राज्यों में तो लाल बत्तियों की महत्ता इस कदर होती है कि राजनीति में बरसों से लगे नेताओं में मंत्री न बन पाने के बाद किसी ऐसी संस्था का अध्यक्ष, उपाध्यक्ष बनने की होड़ लग जाती है जिसमें लाल बत्ती वाली गाड़ी जरूर मिल जाए। या फिर सरकार उनको दिए पद को ही राज्य मंत्री का दर्जा देकर उन्हें लाल बत्ती दे देती है। अब अगर केंद्र सरकार के मंत्री को भी लाल बत्ती का अधिकार नहीं रहेगा। तो, इस तरह से पिछले दरवाजे से लाल बत्ती के लिए कतार लगाए खड़े लोग भी हतोत्साहित होंगे। लाल बत्ती की सत्ता की महत्ता इस कदर कष्ट देने लगी थी कि 2013 में सर्वोच्च न्यायालय को सरकार से ये कहना पड़ा कि लाल बत्तियों की संख्या घटाई जाए। और नई सूची सर्वोच्च न्यायालय को सौंपी जाए। कमाल की बात ये है कि आजादी के सत्तर साल बाद देश के सर्वोच्च न्यायालय को गुलामी की प्रतीक लाल बत्तियों पर ये टिप्पणी करनी पड़ी। अच्छा है कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार लाल बत्ती के विशेषाधिकार को लगभग खत्म करने की सोच रही है। लाल बत्ती के साथ लगे हाथ लाल बत्ती के विशेषाधिकार वाली गाड़ियों में चलने वालों के लिए लगने वाले रूट का भी सिस्टम खत्म किया जाना चाहिए। रूट का मतलब ये कि ये लाल बत्ती वाले मंत्री लोग जिस रास्ते से जाते हैं उस रास्ते को पूरी तरह से लोगों के लिए रोक दिया जाता है। अच्छा लगता है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चंडीगढ़ में एक कार्यक्रम में जाते हैं। और लोगों से क्षमा मांगते हैं कि उनके कार्यक्रम की वजह से लोगों को कष्ट हुआ। लेकिन, ये सरकार नियमित व्यवहार का हिस्सा होना चाहिए। अगर ये हो पाया तभी शायद नरेंद्र मोदी के मिनिमम गवर्नमेंट मैक्सिमम गवर्नेंस की बात साकार हो पाएगी। इक्कीसवीं सदी में तो लाल बत्ती की ये लालफीताशाही बर्दाश्त के बाहर है। 

No comments:

Post a Comment

एक देश, एक चुनाव से राजनीति सकारात्मक होगी

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। इसीलिए इस द...