Tuesday, August 23, 2011

टीवी देखने से काफी कुछ साफ रहता है, दिमाग भी!

रामलीला मैदान पर अन्ना का एक मुस्लिम समर्थक 
जो लोग इस आंदोलन में मुसलमानों की गैरमौजूदगी की बात कर रहे हैं। उन्हें टीवी चैनलों को ध्यान से देखना चाहिए। मेरे कैमरे पर भी कई मुसलमानों ने बुखारी की बददिमागी को नकारा है।

इस आंदोलन में दलितों की हिस्सेदारी कितनी ज्यादा है। ये रामलीला मैदान में एक बार आंख खोलकर घूमने से पता चल जाएगा। कल करोलबाग के अंबेडकर टोले से 400 दलित आए थे। सबसे मैंने कैमरे पर ये पूछा कि क्या आप लोग सिर्फ भावनाओं में बहकर यहां चले आए हैं। जबकि, तथाकथित दलित नेता तो, कह रहे हैं ये शहरी, इलीट सवर्णों का आंदोलन है। तो, सबका जवाब था- अन्ना को गरियाने वाले बेवकूफ हैं।

मैंने उनसे नाम के साथ वो, क्या कर रहे हैं। ये सब पूछा है। कुछ भी भुलावे में रखकर नहीं। ये तथाकथित एक धर्म, वर्ग, जाति के नेताओं को दुकान बंद होने का खतरा हमेशा ही सताता रहता है। और, उसमें ये बेवकूफियां भी करते रहते हैं।

5 comments:

  1. सच है इनकी दुकानदारियां बन्‍द हो जाएंगी।

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  2. आप सही कह रहे हैं,सहमत.

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  3. दलितों और मुसलमानों की रहनुमाई का दावा कने वालों की आंखें जितनी जल्दी खुल जाएं, उतना अच्छा है।

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  4. बौखला गये हैं और क्या ?

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  5. धीरे धीरे देश में फूट डालने वालों की दुकान बंद होगी।

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