Friday, January 28, 2011

इस मौलाना की बात सुननी जरूरी है


मौलाना गुलाम मोहम्मद वास्तनवी

केंद्र सरकार पिछले काफी समय से बार-बार जिस एक शब्द का जमकर इस्तेमाल कर रही है वो, इनक्लूसिव ग्रोथ। हिंदी में ये समग्र विकास बनता है। यानी ऐसी विकास की रफ्तार जो, सिर्फ आंकड़ों में ही न हो। हर किसी को उस विकास का फायदा हो। देवबंदियों के सबसे प्रतिष्ठित शिक्षा के केंद्र दारुल उलूम में मौलाना गुलाम मोहम्मद वास्तनवी ने मोहातिम (वाइस चांसलर) के तौर पर कुर्सी संभाली तो, गुजरात के सूरत का होने की वजह से उनसे ये सवाल होना तय था कि आखिर वो, मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के राज वाले गुजरात को कैसे देखते हैं- खासकर मुसलमानों के विकास की दृष्टि से।

मौलाना वास्तनवी बेहद पढ़े-लिखे हैं। एमबीए की डिग्री हासिल की है। प्रगतिशील है। आधुनिक हैं। दारुल उलूम के गुजरात और महाराष्ट्र में चलने वाले शिक्षा संस्थानों को आधुनिक रूप देने के अगुवा रहे हैं। वास्तनवी का ही कमाल है कि देवबंदी शिक्षा संस्थानों में इंजीनियरिंग और मेडिकल पढ़कर मुसलमान देश की तरक्की का हिस्सा बन रहे हैं। उन्हीं वास्तनवी ने कह दिया कि नरेंद्र मोदी के गुजरात में सब फल-फूल रहे हैं। उन्होंने कहाकि गुजरात में अल्पसंख्यकों के खिलाफ कोई भेदभाव नहीं हो रहा है। भारत की प्रमुख इस्लामिक संस्था देवबंद के शिक्षा केंद्र दारुल उलूम के मुखिया का ये बयान नरेंद्र मोदी के लिए तो, अब तक की सबसे बड़ी तारीफ था लेकिन, वास्तनवी के लिए मोदी का ये समग्र विकास उल्टा चला तीर साबित हो गया। देश भर से मौलानाओं ने नरेंद्र मोदी के गुजरात के समग्र विकास और मोदी की तारीफ के लिए वास्तनवी के खिलाफ खुली जंग छेड़ दी। आखिरकार मौलाना वास्तनवी को इस्तीफे की पेशकश करनी पड़ गई। हालांकि, उन्होंने अभी तक कुर्सी छोड़ने का एलान नहीं किया है।


 वास्तनवी ने इस्तीफे की पेशकश के साथ ये भी कहा कि उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया और समझा गया। सच्चाई भी यही है। वास्तनवी ने मोदी के गुजरात के समग्र विकास की तारीफ के साथ ही ये भी कहा था कि गुजरात के दंगों को आठ बीत चुके हैं और अब हमें आगे बढ़ना चाहिए। वास्तनवी ने कहा कि गुजरात या दुनिया में कहीं भी, दंगे हों ये मानवता के लिए खराब है और ये कभी नहीं होना चाहिए। गुजरात के दंगे कंलक हैं और इसके दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। मोदी के गुजरात में समग्र विकास की तारीफ करने वाले वास्तनवी का बयान ये बताता है कि वास्तनवी मानवतावादी हैं, आधुनिक हैं और समय के साथ चलने में यकीन रखते हैं। इसीलिए वास्तनवी के दारुल उलूम का मोहातिम बनने के बाद देवबंद के प्रगतिशील रास्ते पर चलने की उम्मीद लोगों की थी।


मौलाना ने साफ कहा था कि मौलवियों को फतवा जारी करते समय ये बताना होगा कि फतवा जारी करने के पीछे का तर्क क्या है। देवबंदी विचार को मानने वाले मुसलमान भारत सहित पाकिस्तान, अफगानिस्तान और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में हैं। अच्छा हुआ कि वास्तनवी ने फिलहाल इस्तीफे की पेशकश वापस ले ली है। वरना, लड़कियों के जींस न पहनने जैसे विवादित फतवे के लिए जानी जाने वाली देवबंदी जमात के आधुनिक रास्ते पर चलने की राह में भी बड़ी रुकावट आती दिख रही थी। वास्तनवी ने ये भी कहा था कि गुजरात के बारे में जितना बुरा सुनाई देता है उतना है नहीं। वास्तनवी की मानें तो, गुजरात दंगों के राहत में सरकार मुसलमानों के साथ कोई भेदभाव नहीं कर रही है। गुजरात की तरक्की से प्रभावित वास्तनवी ने मुसलमानों से अच्छी पढ़ाई करने की अपील की। क्योंकि, वो मानते हैं कि राज्य सबको रोजगार देना चाह रहा है।


लेकिन, एक गुजराती मुसलमान की बात सुनने के बजाए उस पर देश भर के परंपरावादी राशन-पानी लेकर चढ़ गए। वास्तनवी गुजरात में हैं तो, उनका गुजरात की तरक्की से प्रभावित होना आंकड़ों की वजह से बिल्कुल नहीं होगा। वो, तो अपने आसपास के विकास से ही ये बयान जारी कर रहे होंगे। लेकिन, आंकड़े भी बताते हैं कि वास्तनवी ने बेवजह नरेंद्र मोदी के गुजरात की तारीफ नहीं की। अब वास्तनवी के खिलाफ राशन-पानी लेकर चढ़ने वाले मौलानाओं को ये अंदाजा नहीं है कि देश काफी आगे बढ़ चुका है। अब हिंदू हो या मुसलमान बेवजह सड़कों पर किसी के पक्ष में इस्तेमाल आसानी से नहीं होने वाला। अयोध्या पर फैसले के मामले में ये साफ दिख चुका है।


इस साल के वाइब्रैंट गुजरात के दौरान कुल 20.83 लाख करोड़ रुपए के निवेश समझौते हुए हैं। ये देश की GDP का करीब आधा है। ये सारे समझौते अगर जमीन पर उतरते हैं यानी इन पर काम शुरू होता है तो, 52 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा। यानी राज्य के लगभग सभी काम करने वालों की चाहत पूरी हो जाएगी। गुजरात की विकास दर पिछले पांच सालों से 11 परसेंट के ऊपर है। जबकि, देश के लिए अभी दस परसेंट की तरक्की की रफ्तार को छूना सपना ही रहा है। गुजरात की आबादी 5 करोड़ से ज्यादा है।



गुजरात में ढाई करोड़ से ज्यादा यानी आधी से ज्यादा आबादी के पास मोबाइल फोन है। पूरे देश के मोबाइल उपभोक्ताओं की 5% से ज्यादा हिस्सेदारी गुजरातियों के ही पास है। गुजरात के शहरी इलाकों में 100 प्रतिशत मोबाइल की पहुंच है। और, ऐसा नहीं है कि गुजरात का विकास सिर्फ शहरी या उद्योगों का विकास है। खेती के मामले में भी गुजरात इंडस्ट्री की ग्रोथ से बेहतर कर रहा है। गुजरात की कृषि विकास की दर 12.8% रही है। जबकि, पूरे देश की खेती की विकास दर 2.8% है। 2002-03 के सूखे के बाद गुजरात ने जबरदस्त विकास किया है। बिजली की लगातार आपूर्ति, नर्मदा नदी की बेहतरी और छोटे-छोटे बांधों ने गुजरात में सिंचाई की स्थिति अच्छी की है। करीब ढाई लाख छोटे तालाब गुजरात में हैं। गुजरात की ये तरक्की देखकर ही पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने देश के दूसरे राज्यों को गुजरात से सीख लेने की सलाह दी थी।


उद्योगों के राज्य के तौर पर जाने जाने वाले गुजरात में खुद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का जोर यही रहता है कि जो, जहां है जो, कर रहा है उसे वहीं रहने-करने की सहूलियत मिले। और, इसीलिए गुजरात सरकार की कृषि रथ यात्रा इस साल भी राज्य के सभी 25 जिलों से होकर गुजरी। जिसमें किसानों को बीज, सिंचाई, खेती के चक्र और तकनीक के बारे में जागरूक किया गया।

दारुल उलूम के करीब दो शताब्दी के इतिहास में पहली बार कोई गुजराती वाइस चांसलर बना। इस गुजराती की बात सुनना देश हित में है। क्योंकि, देश को बांटने वाले सबसे ज्यादा तर्क गुजरात की ही धरती से खोद-खोदकर लाए जाते हैं। और, अब जब खुद एक गुजराती मुसलमान ने आगे बढ़ने की बात की तो, उसे पीछे ले जाया जा रहा है। गुजरात और गुजराती मुसलमान 2002 से कब का आगे निकल चुका है। लेकिन, 2011 में भी कुछ लोग जाने किस हित के लिए 2002 के आगे के गुजरात को न देखना चाहते हैं, न सुनना चाहते हैं। लेकिन, अब इस गुजराती मौलाना की सुनना जरूरी है ये किसी नरेंद्र मोदी या सिर्फ गुजरात की बात करता भले दिख रहा हो लेकिन, ये बात उस भारत की कर रहा है जो, विश्वशक्ति बनने का दम भर रहा है। ये मौलाना जानता है कि मुसलमानों का भला इसी में है कि वो, अच्छा पढ़ें और देश के साथ अच्छे से बढ़ें। पढ़ने-बढ़ने का महत्व तो, आजकल अमेरिकियों को ओबामा बताने में भी जुटे हैं। सुनिए वरना ये GDP ग्रोथ, तरक्की, विश्वशक्ति- सब सपना ही रह जाएगा। क्योंकि, मुसलमानों को देश की तरक्की में हिस्सेदार बनाने के बजाए उन्हें सिर्फ देश में वोटबैंक के तौर पर इस्तेमाल करना किसी के हित में नहीं है।

5 comments:

  1. बेहद सन्तुलित आलेख!
    वैसे कुछ हद तक डॉ कल्बे सादिक भी इसी तरह के प्रगतिशील विचारधारा वाले लगते हैं।

    ReplyDelete
  2. धर्मान्धता ने बहुत निचोड़ लिया है देश का सत्व, अब प्रगतिशीलता को स्वर मिले।

    ReplyDelete
  3. @@मुसलमानों का भला इसी में है कि वो, अच्छा पढ़ें और देश के साथ अच्छे से बढ़ें। पढ़ने-बढ़ने का महत्व तो, आजकल अमेरिकियों को ओबामा बताने में भी जुटे हैं। सुनिए वरना ये GDP ग्रोथ, तरक्की, विश्वशक्ति- सब सपना ही रह जाएगा। क्योंकि, मुसलमानों को देश की तरक्की में हिस्सेदार बनाने के बजाए उन्हें सिर्फ देश में वोटबैंक के तौर पर इस्तेमाल करना किसी के हित में नहीं है।...
    सही है.

    ReplyDelete
  4. बद अच्छा बदनाम बुरा। नरेंद्र मोदी विघटन की राजनीति करने वालों से जुड़े हैं। अतः उनकी तारीफ़ करने वालों को कुछ तो झेलना पड़ेगा ही चाहे कितने ही साफ-पाक क्यों न हों। आखिर सीता को भी तो अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी।

    ReplyDelete
  5. गुजरात और नरेन्‍द्र मोदी को गाली दे-देकर ही तो राज कर रही है कांग्रेस। तब कैसे इतने बड़े वोट बैंक को खसक जाने दें? अच्‍छा आलेख।

    ReplyDelete

एक देश, एक चुनाव से राजनीति सकारात्मक होगी

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। इसीलिए इस द...