घर बैठे कुछ नहीं मिलता और ज्ञान तो बिल्कुल भी नहीं। ज्ञान कैसे मिला ये आगे बताऊंगा ज्ञान के साथ। सात नवंबर को बिटिया के जन्मदिन की वजह से इलाहाबाद जाना पड़ा। 6 को किसी ट्रेन में टिकट नहीं था लेकिन, दिवाली वाली रात इलाहाबाद दुरंतो में ढेर सारी सीटें खाली थीं तुरंत दुरंतो का टिकट कटा लिया। मुहूर्त ट्रेडिंग की वजह से सात बजे के बाद के बुलेटिन में बाजार पर लाइव देने के बाद घर निकला। नोएडा से वसुंधरा शिफ्ट करने का पहला नुकसान झेला। वसुंधरा के सहयोग अपार्टमेंट से आनंद विहार जाने के लिए कोई साधन नहीं था। एक मित्र मुंबई से आए थे उन्हें बुलाया वो, आए और आनंद विहार छोड़कर चले गए। मेट्रो स्टेशन के गेट पर ही एक साहब ने बताया कि आखिरी मेट्रो तो आठ बजे तक ही थी। घड़ी देखा तो, 8.10 हो रहे थे। उनके साथ लौटे, बस या कोई दूसरा साधन पकड़ने के लिए। मैंने उनसे फिर पूछा आप ऊपर तक गए थे क्या तो, उन्होंने कहा नहीं मुझे भी किसी दूसरे सज्जन ने बताया। तब तक मैंने देखा मेट्रो हॉर्न बजाती निकल रही थी। खैर, अब मेट्रो पकड़ी नहीं जा सकती थी वो, आखिरी मेट्रो थी। और, अगर मेट्रो मिल जाती तो, ये पोस्ट भी नहीं बनती।
स्टेशन से बाहर निकलकर सड़क पार की। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के लिए बस थी नहीं। और, दिवाली की रात होने से दूसरे साधन भी कम होने से मैंने ऑटो पकड़ने में ही भलाई समझी। ऑटो वाले ने कहा 100 रुपए। मैंने कहा – 80। उसने कहा- 90 देना हो तो चलो। जिन साहब की वजह से मेट्रो छूटी थी। वो, बगल ही खड़े थे। बोले मैं 70 में करा देता हूं। मुझे लक्ष्मीनगर छोड़ देना। उन्होंने एक दो असफल प्रयास किए। जो, 120 तक मांग रहे थे।मैंने जल्दी से 90 वाली ऑटो की सवारी कर ली। बस इसके बाद दिव्य ज्ञान प्राप्ति शुरू हो गई। जो, शायद पूरा बिहार चुनाव कवर करने पर भी इससे ज्यादा तो नहीं ही हो पाता। मैंने कहा – कहां से हो। वो, पूरे ठसके से बोला – बिहारी हूं। मैंने पूछा कहां के बिहारी हो। मुजफ्फरपुर के। मैंने पूछा – वोट देने नहीं गए। वो, फट पड़ा। किसको वोट देने जाएं। जिनकी वजह से यहां अपनी माटी छोड़कर दिल्ली आना पड़ा। सब साले ... बिहार को बर्बाद कर गए। ललुआ ने तो 15 साल में बिहार का वो हाल कर दिया कि बिहारी, बिहार में रहने लायक रहा नहीं और बाहर बिहारी ऐसा हो गया है कि उससे बास आने लगी है।
इतनी ज्ञान की बातें वो कर रहा था कि मुझे लगा कि अगर बिहार के चुनावी माहौल में वो किसी मंच पर इसी अंदाज में ये सब बोल रहा होता तो, वो बड़ा नेता हो जाता। लालू मसखरी करके इतने साल तक बिहारियों को बेवकूफ बनाए रहे। वो, ऑटो वाला तो ईमानदारी से बिहार और बिहारियों की तरक्की के रास्ते तलाशने की बात कर रहा था। मुझे डर लग रहा था वो, ऑटो तेज रफ्तार में चलाते हुए पीछे पलकटकर हाथ फेंककर गुस्से में मुझसे हड़काने के अंदाज में बात कर रहा था-बता रहा था। बोला बिहार में तो कुछ करने-धरने को है ही नहीं। अब एक गन्ना मिल लग जाए। हजार आदमी को काम मिल जाए। तो, पांच मिल में पांच हजार लोग और उनसे जुड़े-जुड़े पचीस हजार लोगों को काम। देखो यहां ओखला में, नरायणा में कैसे काम होता है। प्रोडक्ट (हां, यही कहा था उसने माल नहीं कहा था) बनता है। रिक्शा वाला, ट्रॉली वाला लाद के ले जाता है, स्टोर तक पहुंचता है आखिर सबका मेहनताना जोड़कर इतना बचता होगा ना। तभी तो। सबकी मजदूरी तो बिहारी ही करता है ना। फिर। यहां दिल्ली में साला काम करो और मजदूरी मांगो तो, मजदूरी काम के बदले मिलती है और लात बोनस में मिलती है। लेकिन, का करें। कम से कम लात बोनस में मिलने के बाद भी मजदूरी मिल तो जाती है। दिन भर ऑटो चलाकर सौ रुपया तो बचाकर घर ले जाते हैं ना।
बिहार में भी तो मजदूरी ही करते थे। लेकिन, बिहार में मजदूरी नहीं मिलता सिर्फ बोनस ही मिलता है। ... मजदूरी तुम्हारा लेकर भाग जाएंगे क्या। साला ... । मैंने फिर कुरेदा लेकिन, वोट देने तो जाना चाहिए था। क्यों जाएं। जहां से रोजी-रोटी चल रही है। वहीं के हैं। बिहारी, दिल्ली को गाली देते-देते अचानक दिल्ली का हो गया। फिर बोला वैसे घर परिवार सब वहां। अम्मी-अब्बू भी वहीं हैं। वहां काम मिले तो, कोई काहे यहां रहे। बिहारी सरमाएदार सब बाहर जाकर इंडस्ट्री लगाता है। बिहार में नहीं लगाता। कहते हैं ना चिराग तले अंधेरा। पहले लोग चिराग जलाते थे। फिर ज्यादा मिट्टी का तेल न जल जाए इसलिए खाना खाके या जरूरी काम करके बुझा देते थे। अब 24 घंटे बिजली चाहिए। दिल्ली में हम लोगों को झुग्गी में भी सरकार मुफ्त में बिजली पानी देती है। बिहार लौटते हैं तो, बिजली-पानी कुछ नहीं मिलता। और पानी जहां मिलता है। बाढ़ आ जाती है। गांव का गांव साफ हो जाता है।
फिर बोला मैंने तो किसी को वहां वोट ही नहीं दिया। तो, मैंने कहा जब वोट नहीं दिया तो, गाली भी तो मत दो। बोला- किसको वोट दें। सबने इलाके के सबसे बड़े गुंडे को टिकट दे दिया। मैंने कहा- कम गुंडे को जिताओ। अचानक फिर उसने ट्रैक बदल दिया। गुंडागर्दी कम हो जाए और बिजली-पानी मिले तो, सब ठीका जाए। मैंने पूछा वैसे नीतीश ने तो कुछ काम किया है ना। बोला – हम अभी गांव गए थे तो, लोग देसी में कह रहे थे। बोला मिथिला में लोग कहते हैं कि
लाल लै चले झोरा
नीतीश लै चले बोरा
मैं इसका मतलब ठीक से नहीं समझ पाया। तो, उसने बताया कि लालू के समय में इतना मिलता था कि झोला खाली बगल में दबाए घूम रहे हैं खाने तक को नहीं। अब नीतीश के राज में बोरा भरके है। खाने को तो दिक्कत नहीं है। स्कूल, कॉलेज में भी नीतीश ने बड़ा काम किया है। कॉपी, किताब भी दे रहा है। पैसा भी दे रहा है। मैंने पूछा कौन बिरादर हो। बोला मुसलमान हैं। वसीम नाम बताया। मैं समझ गया कि 14-15 साल से चल रहे गठजोड़ के बाद भी नीतीश को आखिर नरेंद्र मोदी के नाम से चिढ़ क्यों होने लगती है।
वसीम बोला नेता लोगों को समझना चाहिए कि अब कोई गोबर नहीं खाता। अब सब अन्न खाते हैं। सबको पता है कि कौन कितना बेवकूफ बना रहा है। वसीम लालू के शासन में ही दिल्ली आया था। वसीम जैसों ने तब लालू की मसखरी पर हंसते हुए लालू की तैयार की हुई सांप्रदायिकता के डर से लालू को सत्ता दी। अब वसीम बेवकूफ बनने से इनकार कर चुका है।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
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बहुत बढिया पोस्ट है, यदि टेम्प्लेट का रंग आंखों को तकलीफ़ न दे रहा होता तो और भी आनन्द मिलता.
ReplyDeleteबहुत बढिया पोस्ट है, यदि टेम्प्लेट का रंग आंखों को तकलीफ़ न दे रहा होता तो और भी आनन्द मिलता.
ReplyDeleteबहुत बढिया पोस्ट है,दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteकिसी को भी बहुत दिनों तक बेवकूफ़ नहीं बनाया जा सकता। लालू अपनी पारी खेल चुके हैं।
ReplyDeleteटेम्प्लेट वाकई आँखों को कष्ट दे रही है। लाइट बैकग्राउंड पर dark अक्षर ही सुविधाजनक होते हैं। अब बदल ही डालिए।
बिहार में अब सोगों को अच्छे राज्य का सुख मिल पा रहा है, लगता है।
ReplyDeleteवाह हर्षवर्धन जी , एक ही पोस्ट में साला पूरा बिहार , ऊ भी पिछला दो दशक का बिहार का नक्शा खींच कर रख दिए । अच्छा हुआ मेट्रो निकल मतलब छूट गई । और हां ऐसी एमरजेंसी के लिए हमेशा याद रखें ..खासकर जब रूट लक्षमीनगर वाला तो वहीं आसपास एक ब्लॉगर रहते हैं ...देखिए न क्या तो नाम है ....अरे धत मैं ही तो हूं । और हां बिहारी वाली बात पर ..एक बात याद आया ..। कहा जाता है कि जो हालत इंडियन अमेरिका का कर रखा है ,माने सब ठो नौकरी चाकरी पैसा नाम ले लिया है लेते जा रहा है वही हालत बिहारी भी भारत में किए हुए है ...कभी राज बाबू को कुरियाने लगता है माथा तो कभी अपना नॉर्थ ईस्ट एक्सप्रैस को ओवरलोडिंग होने लगता है ......मगर यकीन जानिए ...बिहारी ...जिसने कोई जंग न कभी भी हारी ....
ReplyDeleteअब वसीम ने बेवकूफ बनने से इंकार कर दिया है। बहुत अच्छी और बड़ी बात कह दी है। अब जनता को समझदार होना ही पड़ेगा नहीं तो आज लालू हैं तो कल और कोई होगा। यहाँ भी जो बिहारी मजदूर हैं वे ऐसा ही बोल रहे हैं। बिटिया को जन्मदिन पर बधाई।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletesir apko padhna khud waha hone jaisa he hai
ReplyDeleteबहुत शानदार। क्या कहने। सही बात है, जो होता है अच्छे के लिए ही होता है। देखिए कितना अच्छा हुआ मेट्रो छूटने से। आपका भी ज्ञान बढ़ा और अपने मेरा भी बढ़ा दिया। बहुत शुक्रिया। और हां बिटिया को देर से जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं मेरी तरफ से भी...
ReplyDelete"…14-15 साल से चल रहे गठजोड़ के बाद भी नीतीश को आखिर नरेंद्र मोदी के नाम से चिढ़ क्यों होने लगती है…"
ReplyDelete"ढोंग और पाखण्ड" के अलावा कोई और उत्तर किसी के पास हो तो बताएं… :)
Achcha hai janta bewakoof banane se inkar hee kare to achche log aayen rajneeti men kam karen. Gathjod to kursee ke liye hota hai. Agar kursi ko katra ho to chidh hee to hogi.
ReplyDeleteBahut achcha hua ke metro choot gaee warna itna badhiya lekh Bihar aur Biharee par kaise padhte .
हर्षवर्धन जी पोस्ट तो अच्छा लिखा आपने लेकिन यात्रा की तकलीफ और थकावट को भी इसी पोस्ट में उतार दिया आपने ...पोस्ट का शीर्षक बिहारियों को लात में बोनस मिलता है.....ये भी कुछ जमा नहीं ...क्योकि जहाँ तक मेरा कॉरपोरेट अनुभव बताता है की सिर्फ शरीफ इंसान को बोनस में लात मिलता है चाहे वो किसी भी स्टेट का क्यों ना हो ...लेकिन जो शरीफ नहीं है वो बोनस तो लेता ही है साथ में और भी बहुत कुछ लेता है कंपनी से और ऐसे ही लोगों से आजकल खुश भी रहतें हैं कम्पनी वाले....जहाँ तक कुव्यवस्था का प्रश्न है तो बिहार से ज्यादा बदतर अवस्था दिल्ली की है और इसकी जिम्मेवारी कांग्रेसी बीमारी भ्रष्टाचार है जिसने पूरे देश में ही इंसानियत को ख़त्म करने का प्रबंध कर दिया है........वैसे नितीश कुमार जी मेरे ख्याल से बिहार के अबतक के सबसे बेहतर मुख्यमंत्री साबित होंगे अगर उन्होंने कांग्रेसी बीमारी भ्रष्टाचार को अपने कार्य प्रणाली के ऊपर प्रभावी नहीं होने देने का प्रयास शुरू कर दिया इस चुनाव के बाद तो ........
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