Friday, January 01, 2010

अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा



भारत देख समझ लिया जाए तो, जीवन सफल हो जाए। अभी मेंहदीपुर के बालाजी हनुमान के दर्शन के लिए गया था। आगरा-जयपुर के शानदार हाईवे से होकर वहां के लिए रास्ता जाता है। मथुरा से इसके लिए रास्ता कटता है।



आगरा-जयपुर हाईवे पर घुसने के कुछ ही देर में हमारी नजर अगल-बगल के गांवों के नाम वाले बोर्ड पर पड़ी। लगा ये सारे नाम कुछ अलग हैं। कम से कम उत्तर प्रदेश के गांवों-शहरों में ऐसे नाम तो हमें नहीं दिखे। यूं ही लिखता चला गया। दरअसल इनके अर्थ वैसे ही होंगे जैसे दूसरे राज्यों के गांवो-कस्बों के नाम होते हैं। बस ये नाम राजस्थान की बदलती भाषा के लिहाज से भी बदल गए होंगे।


विनउवा
बहुआ का नगला
छौंकरवाड़ी
लुधावई
सेवला
पहरसर
रैना
डेहरा
नदबई
महवा
हंतरा
वैर
अरोडा
हलैना
नया गांव माफी
नसवारा
तिलचिवी
झालाटाला
बछरैन
खेडाली
गदसिया
रौत हंडिया
हिंडौन
समलेटी
पडाली
पीपलखेड़ा
टिकरी जाफरानी
उलूपुरा
लुलहारा
सिनपिनी

राजस्थान के उसमें भी खासकर दौसा जिले के कुछ ब्लॉगर होंगे तो, शायद इन जगहों के नाम के पीछे की कुछ कहानी बता पाएंगे तो, जानकारी बढ़ेगी। थोड़ी बहुत राजस्थानी भी बैठे बिठाए सीखने को मिलेगी।



7 comments:

  1. नववर्ष की अनेको हार्दिक शुभकामनाये और बधाई

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  2. आपको नव वर्ष 2010 की हार्दिक शुभकामनाएं।

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  3. bahut sundr,नए साल की शुभकामनायें.

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  4. बहुत रोचक नाम है....

    नववर्ष की शुभकामनाएं।

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  5. शेखावत जी शायद प्रकाश डालें.

    वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाने का संकल्प लें और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

    - यही हिंदी चिट्ठाजगत और हिन्दी की सच्ची सेवा है।-

    नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!

    समीर लाल
    उड़न तश्तरी

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  6. हाँ, अलग हैं ये नाम !

    नव वर्ष मंगलमय हो !

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  7. हर गाँव की अपनी कहानी होती है। मुझे नहीं लगता कि अधिकांश गांवों के नाम की कहानी उस गांव के लोगों को भी पता होगी।
    अब कोटा शहर को लीजिएं। नगर बसने के पहले दक्षिण में अकेलगढ़ नाम का स्थान था जहाँ भीलों के समूह का राज्य था जिस के सरदार का नाम कोट्या था। हाड़ा राजपूतों ने उन्हें पराजित कर कोट्या का वध कर दिया। इसी स्थान पर जहाँ कोट्या का वध हुआ बाद में गढ़ का निर्माण हुआ। गढ़ के मुख्यद्वार के पास आज भी भील सरदार कोट्या और उस के साथियों की समाधि मौजूद है। जिन्हें सिंदूर लगा कर पूजा जाता है। कोट्या के नाम से नगर का नाम कोटा पड़ा। है न विचित्र कथा। इस नगर का नाम विजेता के नाम पर नहीं अपितु पराजित भील सरदार के नाम पर रखा गया है।

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