कई महीनों बाद मुंबई जाने का अवसर हाथ आया था तो, ऐसा हो ही नहीं सकता था कि मैं इसे छोड़ देता। दरअसल, अनीताजी के मन में सेमिनार कराने की इच्छा ने मुझे ये अवसर प्रदान किया था। अनीताजी के ब्लॉग पर सेमिनार की चर्चा है। इसी सेमिनार के लिए दिल्ली से मुंबई की रेलयात्रा का विवरण बतंगड़ पर है। मैंने सोचा कि सेमिनार में दिया गया मेरा भाषण भी अब पोस्ट किया जा सकता है।
The Role of MEDIA in Financial Market Awareness
Money … Market .. mudra ये कुछ ऐसे शब्द हैं जो, एक दूसरे के समानार्थी यानी synonymus हैं। और, इन सबको आम लोगों तक पहुंचाने में एक और M यानी Mumbai … का बड़ा रोल रहा है। दरअसल यहां विषय रखा गया है The Role of MEDIA in Financial Market Awareness। लेकिन, मुझे लगता है कि MEDIA से भी पहले अगर किसी ने फाइनेंशियल मार्केट के बारे में सबसे ज्यादा लोगों को Aware किया उन्हें जानकार बनाया तो, वो है ये शहर मुंबई।
मुंबई शहर की पहचान मायानगरी के तौर पर होती है और वैसे भले लोग इसे INDIA’S FINANCIAL CAPITAL बोलते हैं लेकिन, जब सपने पूरे करने की बात होती है तो, ज्यादातर माना यही जाता है कि यहां आने वालों के सपने सिर्फ रुपहले पर्दे के जरिए ही पूरे होते। लेकिन, सच्चाई ये है कि इस शहर के एक किनारे में दिखती गोल सी इमारत है जो, देश के बड़े हिस्से के सपने पूरे करने में मददगार बन रही है। बांबे स्टॉक एक्सचेंज- इस इमारत के बिना इस शहर की बात अधूरी रह जाएगी। बांबे स्टॉक एक्सचेंज की इमारत शेयर बाजार का प्रतीक बन गई है ये अलग बात है कि बांबे स्टॉक एक्सचेंज से ज्यादा शेयरों का खरीदना बेचने इसी शहर के .....
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के जरिए होता है।
खैर, इन स्टॉक एक्सचेंजों और फाइनेंशियल मार्केट की ताकत सही अर्थों में पूरे देश को पता लगी तो, वो थी बिजनेस मीडिया के जरिए। ज्यादा समय नहीं बीता है सिर्फ एक दशक का मामला है। 1999 से 2009 के सफर में मीडिया ने फाइनेंशियल मार्केट के बारे में जिस तरह से लोगों को काबिलेतारीफ बनाया। वो, है भारत के ग्लोबल विलेज में बनी बड़ी ताकत की कहानी। ये वो कहानी है जिसने भारत को दुनिया का सबसे आकर्षक बाजार बना दिया है। और, यहां के उद्यमियों को दुनिया का अगुवा।
अब अगर मैं ये कह रहा हूं कि मीडिया, मार्केट के बढ़ने में मददगार रहा है तो, वो मैं ऐसे सिर्फ बयानों या तुकबंदी बिठाने के लिए नहीं कह रहा हूं। मेरे पास इसके पक्ष में जबरदस्त आंकड़े हैं। करीब डेढ़ दशक पहले तक शेयर बाजार या यूं कहें कि पूरा का पूरा फाइनेंशियल मार्केट, देश के बड़े हिस्से के लोगों को सट्टा या फिर कुछ एक खास जमात – जिन्हें आज ट्रेडर या फिर ब्रोकर के तौर पर जाना जाता है – के निजी कारोबार से ज्यादा कुछ नहीं था। फिजिकल ट्रेडिंग होती थी। रिंग में खड़े होकर लोग बोली लगाते थे। और, एक दूसरे से शेयर-खरीदते बेचते थे। जिसका बाकायदा एक प्रमाणपत्र जैसा मिलता था। ये एक ऐसी प्रक्रिया थी जो, सामान्य लोगों को न तो समझ में आती थी और न ही उन्हें लगता था कि इसे समझकर कुछ खास हासिल किया जा सकता है।
1996 से 1999 के बीच में दो बड़ी घटनाएं हुईं जिन्होंने फाइनेंशियल मार्केट और इसके पूरे सिस्टम को बदल दिया। 1996 में शेयरों का डीमैट फॉर्म में आना। यानी डिजिटल फॉर्मेंट में शेयरों को खरीदने-बेचने का सर्टिफिकेट मिलने लगा। और, 1999 में शुरू हुआ देश का पहला बिजनेस चैनल सीएनबीसी टीवी 18। देश के पहले बिजनेस चैनल सीएनबीसी टीवी 18 के शुरू होने का साफ प्रभाव नए डीमैट अकाउंट खुलने की संख्या से लगाया जा सकता है। 1998 तक सिर्फ 1 लाख डीमैट अकाउंट थे। 1999 में देश का पहला बिजनेस चैनल – जोकि, अंग्रेजी में था- सीएनबीसी टीवी 18 शुरू होने के साल भर के भीतर यानी साल 2000 तक डीमैट अकाउंट होल्डरों की संख्या 25 लाख पहुंच गई। और, दिसंबर 2002 तक देश में 50 लाख लोगों के पास डीमैट अकाउंट हो गए। यानी इतने लोग शेयरों को खरीदने-बेचने में शामिल हो गए।
लेकिन, टीवी 18 के अंग्रेजी में होने की वजह से एक जो, मुश्किल थी कि ये चैनल मेट्रो शहरों और ज्यादा पढ़े-लिखे लोगों तक ही फाइनेंशियल मार्केट को पहुंचा पा रहा था। 1999 से 2004 तक न तो कोई नया बिजनेस चैनल खुला और न ही कोई बड़ा बिजनेस अखबार। अमर उजाला कारोबार जैसी कुछ कोशिशें हुईं लेकिन, वो सफल नहीं हो सकीं। लेकिन, मनमोहन सिंह की उदारीकरण की नीति की वजह से 1991 के बाद ग्लोबल विलेज का हिस्सा बन गए इंडिया में जनवरी 2004 तक 60 लाख लोगों के पास डीमैट अकाउंट हो चुके थे। और, 2005 की शुरुआत में टीवी एटीन ग्रुप ने हिंदी का बिजनेस चैनल सीएनबीसी आवाज़ शुरू किया। इसी के आसपास जी बिजनेस हिंदी में और एनडीटीवी का PROFIT अंग्रेजी में शुरू हुआ। सीएनबीसी आवाज पर स्टॉक 20-20 और क्योंकि, सास-बहू भी अब इन्वेस्टर हैं जैसे शोज ने बिजनेस जर्नलिज्म को नए आयाम दिए।
इस बीच दुनिया को भारतीय घरेलू बाजार की ताकत समझ में आने लगीं। दुनिया भर की कंपनियों की प्रोडक्ट स्ट्रैटेजी में भारतीय बाजार और उपभोक्ता खास महत्व पाने लगा यानी भारतीय उपभोक्ताओं के लिए दुनिया की बड़ी कंपनियां प्रोडक्ट तैयार करने लगीं। लगे हाथ भारतीय कंपनियां भी दुनिया की कंपनियों के मुकाबले में हर तरह के प्रोडक्ट बनाने लगीं थीं। और, इंडियन कंज्यूमर के बीच इनवेस्टरों की एक बड़ी जमात भी तैयार हो रही थी। मीडिया के जरिए ये जमात फाइनेंशियल मार्केट समझने लगी थी। कंपनी की बैलेंसशीट और कंपनी के सही-गलत फैसलों पर मीडिया के जरिए इस निवेशक जमात की कड़ी नजर हो गई थी।
इस निवेशक जमात के बूते भारतीय शेयर बाजारों ने 2004 के बाद जो, दौड़ लगाई तो, वो 2008 तक बिना रुके चलती रही। तेजी का आलम ये था कि सितंबर से नवंबर 2007 के तीन महीनों में सेसेंक्स चार हजार प्वाइंट्स ऊपर भाग गया। इस तेजी के तीन महीने में हाल ये था कि डीमैट अकाउंट खोलने का अधिकार रखने वाली NSDL और CDSL में हर महीने करीब दो लाख नए अकाउंट खुले।
आज देश भर में करीब एक करोड़ साठ लाख लोगों के पास डीमैट अकाउंट हैं। यानी एक सामान्य गणित लगाएं तो, 1996 में डीमैट फॉर्म में शेयरों के शुरू होने के बाद लगभग हर रोज 3620 अकाउंट खुले हैं। और, ये मीडिया में खासकर हिंदी बिजनेस मीडिया का असर था कि आज देश के लगभग हर कोने में ट्रेडिंग करने वाले लोग मिल जाएंगे। देश के सभी पिन कोड के 78 परसेंट से ज्यादा हिस्से के लोगों के पास डीमैट अकाउंट है।
ऐसा नहीं है कि लोगों ने सिर्फ डीमैट अकाउंट खोल लिए। मीडिया ने लोगों में जागरुकता बढ़ाई। इस जागरूकता का ही असर था कि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, मंडी और उत्तर प्रदेश के बांदा, बहराइच, देवरिया छोटे और मुंबई से दूर के शहरों में भी डीमैट अकाउंट धड़ाधड़ खुले। इलाहाबाद जैसे शहर में साल भर पहले तक करीब 35 ट्रेडिंग आउटलेट खुले हुए थे।
मीडिया के जरिए लोगों में अवेयरनेस बढ़ा साथ में ट्रांसपैरेंसी। ये ट्रांसपैरेंसी ही थी जिसके बाद लोगों को किसी कंपनी में पैसा लगाने, न लगाने का फैसला लेने में आसानी होने लगी। ट्रांसपैरेंसी की ही वजह से लोगों में पैसा लगाने का भरोसा बना। ये भरोसा मेट्रो के शहरी लोगों के साथ उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हिमाचल जैसे राज्यों के छोटे शहरों तक पहुंचा। महाराष्ट्र, गुजरात के लोग तो शुरुआती दौर में भी शेयर बाजार की ताकत समझते थे। लेकिन, मीडिया की जागरूकता ने इनके भी भरोसे को और मजबूत बनाया।
मीडिया की वजह से फाइनेंशियल मार्केट में आई ट्रांसपैरेंसी का ही असर था कि FII निवेशकों ने जमकर पैसा लगाया। दुनिया के किसी भी हिस्से के बड़े निवेशक को भारतीय बाजार पैसा कमाने का सबसे अच्छा जरिया दिखने लगे। वॉरेन बफेट और जिम रोजर्स जैसे विदेशी आर्थिक जानकार कहने लगे कि भारत विकासशील देशों में सबसे ज्यादा मुनाफा कमाकर देगा। आज साल भर की मंदी का दौर लगभग बीतने को है।
ये मीडिया के जरिए फाइनेंशियल मार्केट पर जमा लोगों का भरोसा ही है कि लोग सोच समझकर मंदी के दौर में भी भारतीय कंपनियों पर पैसा लगाते रहे। मंदी के बाद सबसे तेजी से रिकवरी वाले बाजारों में भारतीय बाजार शामिल हैं। अभी हाल ये हो गया है कि हजार- दो हजार प्वाइंट की सेंसेक्स की गिरावट भी यहां निवेशकों में डर नहीं पैदा करती। मीडिया ने लोगों को फाइनेंशियल मार्केट के बारे में इतना जागरूक बना दिया है कि निवेशक अब कंपनी में पैसा लगाने से पहले फंडामेंटल और टेक्निकल नजरिए से जांचने-परखने की बात करने लगा है।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
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१. आप मुम्बई में नहीं, यह आज लगा।
ReplyDelete२. आप मीडिया को फिनांस के क्षेत्र में ट्रांसपैरेंसी लाने का तमगा दे रहे हैं। थोड़ा उससे कम चीज लगती है।
भाई कुल मिलकर आपने बढिया लिखा है | पर एक बात कहना चाहता हूँ की मीडिया ने लोगों मैं शेयर बाजार के प्रति जागरूकता नहीं फैलाई है, फिनान्सिअल मीडिया ने अपने फायदे के लिए ही लोगों को शेयर मार्केट को चकाचौंध दिखाया | और समय समय पर यही फिनान्सिअल मीडिया ने लोगों को गलत जानकारी देकर कंगाल भी बनाया | ढेर सारे मामलों मैं फिनान्सिअल मीडिया ने उसी कंपनी मैं पैसा लगाने की सलाह दी जिससे उस फिनान्सिअल मीडिया को प्रत्यक्ष aप्रत्यक्ष फायदा होता हो |
ReplyDeleteबढ़िया। ज्ञान बढ़ाया।
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