Tuesday, March 31, 2009

अपराधियों की अर्धांगिनियों को भी रोकने की जरूरत

संजय दत्त चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। फिल्म अभिनेता संजय दत्त समाजवादी पार्टी से लखनऊ से प्रत्याशी थे। सुप्रीमकोर्ट ने ये अहम फैसला सुनाते हुए कहाकि वो पीपुल्स रिप्रजेंटेशन एक्ट के खिलाफ फैसला नहीं देंगे। पीपुल्स रिप्रजेंटेशन एक्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि किसी भी ऐसे व्यक्ति को चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं दी जा सकती जिसे किसी भी अदालत से दो साल से ज्यादा की सजा दी गई हो। और, संजय दत्त को टाडा कोर्ट ने मुंबई धमाकों के मामले में 6 साल की सजा सुनाई है।



ये फैसला इसलिए भी बेहद अहम है कि संजय दत्त को उस लखनऊ सीट से चुनाव मैदान में उतार रही थी। जहां से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लगातार कई बार से जीतकर संसद में पहुंच रहे थे। वाजपेयी के अस्वस्थ होने की वजह से बीजेपी ने लाजी टंडन को मैदान में उतार दिया है। लालजी टंडन को सिर्फ इसलिए टिकट दिया गया कि वो, वाजपेयी के बेहद नजदीकी थे और लखनऊ में वाजपेयी के प्रतिनिधि भी थे। संजय दत्त के खिलाफ बीएसपी के टिकट पर लड़ रहे अखिलेश दास की भी छवि कोई अच्छी नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री बनारसी दास गुप्ता को बेटे अखिलेश दास पैसे के जोर से कभी इस दल से तो कभी उस दल से सत्ता का सुख लेते रहे हैं। कुल मिलाकर इस सीट से लड़ने वाले दूसरे प्रत्याशी कोई बहुत बेहतर नहीं हैं। कांग्रेस ने सुनील दत्त का बेटा होने की वजह से अब तक कोई प्रत्याशी नहीं उतारा था। अब कांग्रेस भी प्रत्याशी उतारने जा रही है। लेकिन, संजय दत्त के चुनाव लड़ने पर रोक इस लिहाज से बेहद अहम है कि संजय दत्त उस गांधीगीरी की विरासत संभालने का नाटकीय भ्रम फैला रहे थे जिसके सारे उसूलों को संजय दत्त के कर्मों ने चूर-चूर कर दिया था। वैसे अभी भी संजय दत्त संसद पहुंचने की कोशिश करेंगे- मुखौटा भले मान्यता का होगा।




संजय दत्त के ऊपर जो मामला है वो, राष्ट्रद्रोह जैसा है। हालांकि, मुंबई धमाकों के सिलसिले में उन्हें आर्म्स एक्ट के तहत दोषी पाया गया। कुख्यात माफिया-अपराधियों की तरह संजय दत्त के पास से एके 47 जैसी खतरनाक राइफल पकड़ी गई थी। दाउद से लेकर भारत के खिलाफ हर तरह के कुकर्म करने वाले जाने कितने अपराधियों से संजय के याराने के सबूत मुंबई पुलिस को मिले थे। लेकिन, सुनील दत्त का बेटा होना और सफल फिल्म अभिनेता होने के साथ कांग्रेस और दूसरी राजनीतिक पार्टियों में अच्छे रिश्ते ने ऐसा माहौल बनाया कि देश की जनता संजय दत्त को अपराधी की बजाए गुस्साने के बजाए एक अजब सी सहानुभूति दिखाने लगी। बची-खुची कसर मुन्नाभाई के नाम के उस चरित्र ने कर दी जो, सारी समस्याओं का इलाज गांधीगीरी से कर देता था।




कमाल की बेशर्मी वाली याचिका था संजय दत्त की। वो, सुप्रीमकोर्ट से ये कह रहे थे कि टाडा कोर्ट के उस फैसले पर स्टे दे दे। जिसमें उन्हें दोषी ठहराया गया। वो, स्टे इसलिए नहीं कि वो दोषी नहीं हैं सिर्फ इसलिए कि इस स्टे के आधार पर वो लखनऊ लोकसभा सीट से जीतकर संसद पहुंच जाएं। यानी उस जगह पर जहां से सारे कानून बनते हैं। जहां से तय होता है कि देश कैसे चलेगा। ऐसा नहीं है कि संजय दत्त अकेले के न पहुंचने से संसद स्वच्छ हो जाएगी। लेकिन, संजय दत्त के खिलाफ आया ये फैसला अपराधियों को संसद में पहुंचने से रोकने की एक अच्छी शुरुआत हो सकता है।




वैसे ये शुरुआत अदालतों के बूते पहले ही हो चुकी है। सीवान, बिहार के कुख्यात अपराधी पूर्व सांसद शहाबुद्दीन को अदालत ने चुनाव लड़ने की इजाजत देने से इनकार कर दिया है। बिहार में एक जिलाधिकारी की हत्या के दोषी आनंद मोहन, कुख्यात माफिया सूरजभान सिंह और पप्पू यादव को भी अदालतों ने चुनाव लड़ने की इजाजत देने से इनकार कर दिया है। उत्तर प्रदेश में बीएसपी विधायक राजू पाल की हत्या के आरोपी अतीक अहमद भी जेल में हैं और, अदालत ने उन्हें चुनाव लड़ने की इजाजत तो दे दी है लेकिन, प्रतापगढ़ जाकर पर्चा भरने की इजाजत नहीं दी है। बनारस से बीएसपी टिकट पर चुनाव लड़ रहे मुख्तार अंसारी पर अभी कोई रोक नहीं लगी है।




ऐसा नहीं है कि इससे ये अपराधी पूरी तरह से राजनीति से बाहर हो गए हैं या हो रहे हैं। दरअसल इन सारे अपराधियों ने उसका भी रास्ता निकाल लिया है। शहाबुद्दीन, सूरजभान और पप्पू यादवव की पत्नियां, पति की चरण पादुका लेकर संसद में पहुंचेंगी। मुख्तार अंसारी की पत्नी ने सावधानी वश नामांकन दाखिल कर दिया है कि अगर उन पर कोई अदालती रोक लगे तो, पत्नी का मुखौटा लगाकर वो, संसद में पहुंच जाएं। खुद पर कोई आंच आने पर अतीक भी अपनी पत्नी को चुनाव लड़ाने की योजना बनाकर तैयार हैं।



कुल मिलाकर ऐसा नहीं है कि इन अदालती फैसलों से ये अपराधी पूरी तरह से राजनीति से बाहर हो गए हैं या हो रहे हैं। दरअसल इन सारे अपराधियों ने उसका भी रास्ता निकाल लिया है। शहाबुद्दीन, सूरजभान और पप्पू यादवव की पत्नियां, पति की चरण पादुका लेकर संसद में पहुंचेंगी। ये अपराधी जैसे पहले जेल से बैठकर गैंग चलाते थे। वैसे ही वो, अब जेल में ही गैंग चलाने के साथ-साथ संसद भी चलाएंगे।



लेकिन, ये एक शुरुआत भर है और चुनाव सुधारों- पीपुल्स रिप्रजेंटेशन एक्ट में एक नया क्लॉज जोड़ने की जरूरत भी बताता है कि सिर्फ दोषी अपराधी ही नहीं उनके उन निकट संबंधियों पर भी रोक कानून बने जिनसे सीधे तौर पर अपराधी जुड़ा हुआ है। लोकतंत्र में ये मांग थोड़ी अजीब हो सकती है। लेकिन, भारतीय लोकतंत्र जिस हद तक बिगड़ गया है उसे सुधारने के लिए कई बड़े सुधारों की जरूरत है जिसमें से एक ये है। कुल मिलाकर शुरुआत अच्छी है और हम सबको इस शुरुआत को और मजबूत करने की कोशिश करनी चाहिए। वो, ये कि आरोपी अपराधी न सही तो, कम से कम दोषी अपराधियों की पत्नियों को भी संसद में नहीं पहुंचने देंगे।

4 comments:

  1. बात तो आपने ठीक कही की "अपराधी ही नहीं उनके उन निकट संबंधियों पर भी रोक कानून बने जिनसे सीधे तौर पर अपराधी जुड़ा हुआ है" पर ऐसा करेगा कौन, बिल्ली के गले में घंटी बंधेगा कौन .

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  2. बहुत सारे कानून बदले जाने चाहिए ... पर बदलेगा कौन ?

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  3. अरे सर कुछ काम जनता के लिये भी छोड़ दीजिये।

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  4. Well done bro.....Keep it up...!!!
    India needs such motivation !!

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