Wednesday, May 24, 2023

भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई जारी है

हर्ष वर्धन त्रिपाठी Harsh Vardhan Tripathi






इस बार आठ बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश के नाम संबोधन नहीं हुआ, लेकिन रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की तरफ से जारी सूचना देश के नाम प्रधानमंत्री के संबोधन का छोटा संस्करण जैसी ही थी। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने दो हजार रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया है। हालाँकि, इस बार नोटों को चलन से बाहर करने की सूचना के साथ राहत यह है कि, हर किसी को एक बार में दो हजार रुपये के दस नोट यानि बीस हजार रुपये बदलने की सुविधा तुरंत के साथ दी गई है। इसके पीछे मूल यही है कि, लोगों में किसी भी तरह का हड़कंप मच जाए। साथ ही बैंकों में कितने भी दो हजार रुपये के नोट जमा किए जा सकते हैं। नोटबंदी के आलोचक मैदान में फिर से कमर कसकर कूद गए हैं। उन आलोचकों का वही घिसा पिटा राग सामने रहा है कि, नोटबंदी से क्या मिला था और, अब इससे क्या मिलेगा। सबका उत्तर एक ही है कि, देश को भ्रष्टाचार दीमक की तरह खा रहा है और, इस दीमक का जब तक पक्का वाला इलाज नहीं होगा, तब तक देश में सामान्य लोगों, जिन्हें संविधान में हम भारत के लोग के तौर पर परिभाषित किया गया है, को लोकतंत्र का अहसास नहीं होगा। 2016 में जब नोटबंदी की गई थी और, रात आठ बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन के तुरंत बाद ही पाँच सौ और हजार रुपये के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया था तो बहुत बड़ी मुश्किल थी। हर किसी के पास नोट थे। अचानक नोट बंद करने से अर्थव्यवस्था में ठहराव गया। यह भी कह सकते हैं कि, अर्थव्यवस्था एकदम से रुक गई, लेकिन यह स्थिति ठीक वैसी ही थी जैसे, किसी नाली में कचरा बहुत अधिक हो जाता है तो थोड़ा-थोड़ा कचरा निकालने से बात नहीं बनती। पूरा कचरा निकालने के लिए एक बार कुछ समय के लिए नाली में आने वाले जल का प्रवाह रोकना ही होता है। अर्थव्यवस्था में नकदी के चलन में काले धन का चलन भी कुछ उसी तरह से था। अचानक प्रवाह रुका तो लोगों में हड़कंप मचना स्वाभाविक था, लेकिन करीब दो महीने की मशक्कत के बाद सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इस मुश्किल से लोगों को राहत देनी शुरू कर दी थी। हालाँकि, इसका प्रभाव लंबे समय तक भारतीय अर्थव्यवस्था में रहा, लेकिन नाली का कचरा एक झटके में साफ हो चुका था। वित्त मंत्रालय की फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट के अधिकारियों का काम कई गुना बढ़ गया था। अनाप-शनाप काला धन रखने वाले पकड़े जा रहे थे। लाखों कंपनियों को सिर्फ नकदी को काला-सफेद करने के लिए चलाया जा रहा था। भ्रष्टाचार को संगठित तरीके से कारोबार की तरह चलाने वाले चिल्ला रहे थे कि, सरकार देश के गरीब लोगों को परेशान कर रही है। देश का गरीब खुश हो रहा था कि, भ्रष्टाचारी अमीर पहली बार इस तरह से हलाकान हो रहा था। देश की जनता को लगा कि, इसी के लिए तो उसने नरेंद्र मोदी को चुना था। भ्रष्टाचार के विरुद्ध इस लड़ाई के अपेक्षित परिणाम आए। भारत डिजिटल लेनदेन के मामले में दुनिया में अव्वल बन गया। नकद लेकर और, खाते में डालकर उसे सफेद कर देने वाले कम हो गए। आर्थिक समावेशन हर भारतीय की पहुँच में गया था। फर्जी नोट चलाने वालों का कारोबार भी खत्म सा हो गया।

पिछली बार हुई नोटबंदी ने देश में भ्रष्टाचारियों के मन में बड़ा डर पैदा कर दिया था,  लेकिन एक जायज प्रश्न उस समय भी नरेंद्र मोदी की सरकार से पूछा जा रहा था कि, जब पाँच सौ और एक हजार रुपये के नोट बंद किए जा रहे हैं तो फिर भ्रष्टाचारियों के लिए अधिक सुविधाजनक दो हजार रुपये के नोट क्यों छापे जा रहे हैं। इसका उत्तर सीधे सरकार की तरफ से नहीं दिया गया, लेकिन अर्थशास्त्र समझने वाले और, सामान्य समझ के लिहाज से भी यह कोई बड़ी पहेली नहीं थी कि, जब देश में चलन में रही करीब नब्बे प्रतिशत मुद्रा चलन से बाहर हो गई तो उसकी भरपाई इतनी तेजी में कैसे हो पाएगी। आपने ध्यान दिया होगा कि, उस समय रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने  दो दर्जन से भी अधिक बदलाव नियमों में किया था क्योंकि बहुत कोशिश करके भी लोगों की नकदी की समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा था। दो महीने में भी सरकार और, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया राहत ही दे पाए थे। यह भी इसीलिए हो सका था क्योंकि, भारत सरकार ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को दो हजार रुपये के नोट उसी अनुपात में छापने के निर्देश दिए थे। जैसे ही नकदी का संतुलन बना रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने दो हजार रुपये के नोट छापने बंद कर दिए थे। सरकार ने संसद में 2020 बताया था कि, तीन वर्ष पूर्व ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने दो हजार के नोटों की छपाई बंद कर दी थी। धीरे-धीरे पाँच सौ रुपये के नोटों से उसकी भरपाई की गई। संतुलित, दीर्घकालिक योजना पर सरकार काम कर रही थी। दुनिया के किसी देश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध ऐसी लड़ाई का उदाहरण नहीं मिलता है। सबसे बड़ी बात यह थी कि, जनता का भरोसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर था कि, भ्रष्टाचार के मामले में नरेंद्र मोदी समझौता नहीं कर सकते, लेकिन भ्रष्टाचार मनुष्य की प्रवृत्ति में शामिल रहता है। कहीं कम, कहीं ज्यादा। इसको इस तरह से भी समझ सकते हैं कि, नाली की सफाई कितने भी अच्छे से कर दी जाए, लेकिन एक बार की सफाई से काम नहीं चलता है। हर कुछ समय बार सफाई करना ही पड़ता है। भ्रष्टाचार के मामले में भी ऐसा ही है और, हम भारत के लोग, इस बार पर खुश हो सकते हैं कि, चुनाव जीतने और, सरकारी योजनाओं के जरिये सुशासन लाने में भ्रष्टाचार के विरुद्ध नियमित लड़ाई की बड़ी आवश्यकता है, इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समझकर लोगों को समझा भी दिया है। दो हजार रुपये की नोट चलन से बाहर करने की रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की सूचना में स्पष्ट लिखा है कि, दो हजार रुपये के 89 प्रतिशत नोट मार्च 2017 से पहले छपे हैं। इन नोटों की आयु करीब पाँच वर्ष है। इसका सीधा सा मतलब यह भी हुआ कि, सरकार ने इन नोटों को इतने समय के लिए ही छापा था। हम सबको ध्यान में है कि, दो हजार के गुलाबी नोटों के बहुत हल्के होने को लेकर भी खूब चर्चा हुई थी कि, यह नोट कितने समय तक चल पाएँगे। दरअसल, उन नोटों को लंबे समय तक चलाना ही नहीं था। एक मुश्किल अवश्य है कि, सामान्य लोगों के पास भी जो दो हजार के नोट गलती से रह गए होंगे, उन्हें दुकानदार अब नहीं लेंगे, लेकिन यह 2016 जैसी समस्या नहीं है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध नियमित लड़ाई से ही देश बेहतर बन सकता है और, हम भारत के लोग, इस बात पर प्रसन्न हो सकते हैं कि, देश का प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के विरुद्ध नियमित लड़ाई के लिए मन बनाकर बैठा है। उसका साथ दीजिए। और, निजी जीवन में काला धन कमाने की प्रवृत्ति भी कम कीजिए क्योंकि, कब कौन सी मुद्रा चलन से बाहर हो जाएगी, उसके बाहर होने का सिर्फ एक आधार होगा कि किस नोट को सफेद से काला धन बनाकर रखा जा रहा है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध यह लड़ाई अभी लंबा चलने वाली है।

1 comment:

  1. Above 100 all denomination notes should be banned immediately if there is sincerity to abolish corruption from the country.why can not Modiji try once and last attempt.there are so many loopholes in current announcement.

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