Thursday, June 02, 2022

हमारी सोसायटी में कुत्ता घर और ज्ञानवापी “मस्जिद” विवाद

हर्ष वर्धन त्रिपाठी



देश समझना हो तो अपने आसपास का समाज समझ लीजिए, अच्छे समझ में आने लगेगा। कई बार राजनीतिक चर्चा होती है कि, हर बात के लिए नेहरू जी को दोष देकर भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी कब तक काम चलाएँगे। राजनीतिक, आर्थिक और, यहाँ तक कि, धार्मिक सन्दर्भों में भी यह जवाबी तीर राजनीतिक दलों के प्रवक्ता एक दूसरे पर चलाते हैं। एक और बात कही जाती है कि, जब आप विपक्ष में थे तो, यही बात मानते थे, लेकिन अब आप सत्ता में हैं तो उसके उलट बात कह रहे हैं या फिर इसे उल्टा कर दीजिए। यू टर्न आपको लेने को नहीं कह रहा हूँ, सिर्फ सत्ता पक्ष और विपक्ष में राजनीतिक दलों को एक दूसरे के स्थान पर रखकर देखने को कह रहा हूँ। आजकल काशी विश्वनाथ जी के दरबार का हिस्सा रहे ज्ञानवापी मेंमस्जिदको लेकर विवाद चल रहा है। स्पष्ट तौर पर दिखता है कि, मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई है। ऐतिहासिक तौर पर प्रमाणित सन्दर्भों में भी स्पष्ट उल्लेख है। एक नहीं कई-कई स्थानों पर, तत्कालीन लेखकों के लिखे में बताया गया है कि, औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़ा और, वहीं पर मस्जिद बनाई। यह सब प्रमाणित है। मालवे की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने बाबा विश्वनाथ का मंदिर फिर से बनवाया, इसके भी ऐतिहासिक प्रमाण, साक्ष्य, सन्दर्भ हैं। फिर भी एक कानून बनाया गया, Places of worship act 1991, इसमें कहा गया कि, 15 अगस्त 1947 को किसी भी धार्मिक स्थल का जो भी स्वरूप था, उसे किसी भी न्यायालय के आदेश से परिवर्तित नहीं किया जा सकता। 15 अगस्त 1947 की तारीख मंदिर तोड़कर बनाई गई मस्जिद बचाने के लिए तो कानून बनाकर पुख्ता कर दी गई, लेकिन इसी का हवाला देने वाले मुसलमानों को स्वतंत्र भारत में संविधाने के दायरे में एक कानून की बात करते ही भड़क जाते हैं।  इसे बनाने के पीछे हिन्दू-मुस्लिम के बीच संघर्ष हो, यह मूल बात कही गई है, लेकिन क्या गलत पर चुप रह जाने के लिए कानून बना देने से कभी सौहार्द, प्रेम का वातावरण तैयार हो सकता है। स्थाई तौर पर तो कतई नहीं। और, यही होता हुआ दिख रहा है। 

मुझे ज्ञानवापीमस्जिदपर चल रहा विवाद बहुत अच्छे से समझ गया, उसकी वजह है, हमारी सोसायटी में ठीक पहले की असोसिएशन की पहल पर आवारा कुत्तों के लिए बना कुत्ता घर और अभी करीब एक सप्ताह पहले एक ही दिन में चार लोगों को आवारा कुत्तों के काटने की घटना। बहुमंजिली इमारत के चारों तरफ दीवार बनाकर तैयार फ्लैट वाली परियोजनाओं में लोग रहना पसंद कर रहे हैं तो उसकी मूल वजह है कि, नये शहरों में घर-परिवार-समाज से कटकर ही लोग पहुँचते हैं और ऐसे में सबसे बड़ी बात होती है, किसी पर भी भरोसा होना। इस भरोसे की कमी से हर टावर की नीचे सुरक्षा गार्ड से लेकर मुख्य प्रवेश द्वार और हर संभव स्थान पर सोसायटी में गार्ड तैनात किए जाते हैं। सीसीटीवी कैमरे के जरिए सोसायटी के भीतर के हर स्थान को निगरानी में रखने की कोशिश होती है, लिफ्ट में भी। गेट और दीवार से पूरी तरह सुरक्षित दिखने वाली सोसायटी में इसके बावजूद इतनी असुरक्षा होती है कि, मां-बाप अपने बच्चों को अकेले भेजते डरते हैं, लेकिन हमारी सोसायटी में एक और बड़ा डर है, बच्चों को अकेले नीचे भेजने में और वह डर है, हमारी सोसायटी में निर्दुन्द घूमते आवारा कुत्तों का। आम्रपाली बिल्डर्स के प्रोजेक्ट में एक हमारी भी सोसायटी है। वैसे ही, हम लोगों को यहाँ रहने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। बिल्डर आधा-अधूरा प्रोजेक्ट छोड़कर, बिजली-पानी से लेकर प्राधिकरण तक के बकाए छोड़कर मौज करता रहा। सर्वोच्च न्यायालय में मामला पहुँचने की वजह से बिल्डर जेल में गया, लेकिन बरसों से हमारी सोसायटी की मुश्किल जस की तस बनी रहीं। करीब एक वर्ष पूर्व रजिस्ट्री शुरू हुई तो अब धीरे-धीरे मुश्किलें काफी कम हो रही हैं, लेकिन सोसायटी चलाने के लिए चुने जाते हैं प्रतिनिधि, जनप्रतिनिधि। ठीक वैसे ही, जैसे हम विधायक, सांसद चुनते हैं, सरकार बनती है और सरकार कानून बनाती है। और, यही कानून हम सब पर लागू होता है। 

हमारी सोसायटी में कुछ आवारा कुत्तों ने अपना घर बना लिया। पहले की असोसिएशन के पदाधिकारियों ने उन आवारा कुत्तों को निकालने के लिए अभियान चलाया तो सोसायटी के कुछ कुत्ता प्रेमी उनके मानवाधिकारों, माफ कीजिएगा, कुत्ताधिकारों को लेकर मैदान में उतर गए। सोसायटी में रहने वालों के पाले गए कुत्तों को लेकर तो कोई बहस थी ही नहीं। उनको भला कोई कैसे रोक सकता है, लेकिन अब बात आगे बढ़कर आवारा कुत्तों को सोसायटी में जगह देने की बात हो रही थी। बिल्डर ने सोसायटी बनाते समय जो हसीन ख्वाब दिखाए थे, उसके मुताबिक, बहुत सी सुविधाओं को ख्वाब से हकीकत में बदलते सोसायटी के लोग नहीं देख सके, लेकिन अब सोसायटी के भीतर ही एक स्थान आवारा कुत्तों के लिए उपलब्ध कराने पर कुत्ताप्रेमियों ने माहौल बना दिया। कुत्तों के समर्थक समूह ने और ढेर सारे नियम कानून तोड़ने वाले समूह ने असोसिएशन के चुनाव में उतरने का निर्णय लिया। अब तक बाकायदा तीन समूह हमारी सोसायटी में हो चुके थे। व्यक्तिगत तौर पर तीनों समूहों से मेरे अच्छे संबंध हैं और मेरे संबंधों के आधार पर ही नहीं, सामान्य व्यवहार में भी तीनों समूह के सदस्य बहुतायत अच्छे लोग ही हैं। सबकी चिंता सोसायटी को बेहतर करने की है। सबकी चिंता शांति सौहार्द बनाने की है। सबकी चिंता सामूहिकता की है और इसी चिंता जब पहले समूह ने चुनाव से बाहर रहने का निर्णय लिया तो नया समूह असोसिएशन में आया। जिसकी प्राथमिकता में आवारा कुत्तों के लिए सोसायटी में एक उपयुक्त स्थान खोजना था। बिल्डर ने एक बड़े स्थान को खुले स्टोर के तौर पर उपयोग में रखा था। कुछ लोगों ने उस स्थान पर मंदिर बनाने का प्रस्ताव दिया, लेकिन हम जैसे लोगों का पक्ष स्पष्ट था कि, हमारी सोसायटी के ठीक बगल में मंदिर है तो एक और मंदिर सोसायटी के भीतर बनाकर हम क्या करेंगे। और, मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है कि, सोसायटी के भीतर मंदिर-मस्जिद होना भी नहीं चाहिए। मंदिर सेक्टर में सामूहिक तौर पर बनना चाहिए। जिससे लोगों एक दूसरे से मिले, समाज जानें, समझें। अच्छा हुआ कि, हमारे जैसे लोगों का तर्क और उनकी भावनाएँ लोगों को समझ आईं और, अगल-बगल दूसरी मंदिर बनाने पर दबाव नहीं बना। अब नया असोसिएशन आया तो, उसे वही स्थान दो कामों के लिए दिखा। पहला- कूड़ा वहीं एकत्रित करके प्राधिकरण की गाड़ी के जरिये उसे निस्तारण के लिए भेजना। दूसरा- आवारा कुत्तों के लिए एक जालीदार स्थान बनवा देना। इसी के साथ अच्छी मंशा से नियम बना कि, वहीं जाकर आप कुत्तों को खिला सकते हैं। यह सब अच्छी मंशा से हुआ। 


हमारी सोसायटी में रहने वाले एक पूर्व कर्नल साहब तो कुत्तों को लेकर इतने संवेदनशील हैं कि, कई आवारा कुत्तों को अपने घर पर रखा है। उनकी सेवा करते हैं, डॉक्टर को दिखाते हैं, लेकिन हमारी सोसायटी के बच्चों, बड़ों पर इस तरह के लोगों की संवेदनशीलता भारी पड़ रही है। और, जो कुत्ता घर आवारा कुत्तों को सोसायटी की तरफ से कुत्ताधिकारों को संरक्षित रखने के लिहाज से दिया गया था, अब वही कुत्ताधिकार प्रदान करने वाले सोसायटी के लोगों पर भारी पड़ रहा था। आवारा कुत्ते बच्चों और बड़ों के लिए मुसीबत बन गए हैं। करीब दो दर्जन कुत्ते हो चुके हैं। अब कुत्ता घर में कोई कुत्ता नहीं रहता और जब कुत्ते वहाँ रहते ही नहीं तो आवारा कुत्तों के प्रेमी उनको खिलाने वहाँ कैसे जाएँ तो अब सोसायटी में जहां कहीं घूमते कुत्ते मिल जाते हैं, उन्हें कुत्ता प्रेमी खिला देते हैं। एक दिन एक कुत्ता प्रेमी बालिका ऐसे ही अपने नियम के मुताबिक, एक आवारा कुत्ते को खिला रही थी। सोसायटी के एक सज्जन ने टोंक दिया। इस पर बहस छीनाझपटी पर पहुँच गई। उन सज्जन ने सोसायटी के समूह पर पूरी घटना साझा की। उनके मुताबिक, आक्रामक बालिका ने उनको धमकाया भी। उन्हें संवेदना मिली। नयी बनी असोसिएशन के लोग भी उनके साथ सहानुभूति रख रहे थे, लेकिन कुत्ता प्रेमी बालिका/महिला आक्रामक थी। कुत्ताधिकारों पर उसकी आक्रामकता और हाल में आए किसी अदालती निर्णय से यह पाया गया कि, एक बार कुत्ते रहने गए तो उन्हें जबरी निकाला नहीं जा सकता। अब सोसायटी में दूसरी सोसायटी के सन्दर्भों पर बात हो रही थी। किसी सोसायटी का हवाला देते हुए बताया गया कि, वहाँ किसी ने एक पिल्ले को डंडे से मार दिया था तो मेनका गांधी से जुड़ी किसी पशुप्रेमी महिला ने FIR दर्ज करा दी। अब कुत्ता घर आवारा कुत्तों का कुछ उस तरह का अधिकार बन चुका था, जैसा संविधान में Fundamental Rights है। जिन सज्जन के साथ कुत्ता प्रेमी महिला/बालिका ने झगड़ा किया था और दुर्व्यवहार किया था, वह सज्जन अब शिकायत करते थक गए और उन्होंने कहाकि, अब मैं किसी को कहीं भी आवारा कुत्तों को खिलाने-पिलाने से नहीं रोकूँगा बल्कि, मैं भी कुत्तों को खुले में ऐसे ही खिलाऊँगा। यह सब तब हुआ जब असोसिएशन ने कहाकि, आप लिखित में शिकायत दर्ज कराइए। कानून पंसद एक नागरिक की मनःस्थिति ही बदल चुकी है। इस बीच जिस असोसिएशन के लोगों ने कुत्ता घर बनाया था, वही चुनौती दे रहे हैं कि, नया असोसिएशन आवारा कुत्तों को लेकर कुछ कर क्यों नहीं रहा। अब कुत्ता घर बना होता और उसी समय आवारा कुत्तों को सोसायटी से बाहर निकाल दिया गया होता तो भला आज यह नौबत ही क्यों आती, लेकिन कुत्ता घर बनाने वाले लोग भी नई असोसिएशन के लोगों को कह रहे हैं कि, समस्या का समाधान करने की इच्छाशक्ति नयी असोसिएशन में नहीं दिख रही है। देश की राजनीति भी कुछ ऐसी ही है। कई बार कहा जाता है कि, भाजपा और मोदी, हर बात के लिए नेहरू जी को ही क्यों दोषी ठहराते हैं, पहले की कांग्रेस सरकार के दौरान लिए गए निर्णयों को क्यों दोषी ठहराते हैं। अनुच्छेद 370 हटाना क्यों असंभव लग रहा था, यह देश अच्छे से जानता है। खैर, असंभव सा लगने वाला कार्य मोदी सरकार ने कर दिखाया। कमाल तो यह है कि, फिर से उसी समस्या को बरकरार रखने वाले बयान भी कांग्रेस सहित दूसरी पार्टियों के नेताओं की तरफ से रहे हैं। भारत में समस्याएँ बनाए रखकर राजनीति करने को शांति और सौहार्द की राजनीति कहा जाता है और, समस्या का सही समाधान खोजने को सांप्रदायिक राजनीति। खैर, मैं भी कहां, देश की राजनीति के चक्कर में पड़ गया। मूल मुद्दे पर वापस लौटते हैं, हमारी सोसायटी के आवारा कुत्ते और उनके प्रेमी मनुष्य।

 

अब असोसिएशन ने आवारा कुत्तों को कुत्ताधिकारों पर भी एक समिति बना दी है। यह भी प्रस्ताव आया है कि, लोगों को कुत्तों के साथ बिना डरे रहने के लिए तैयार किया जाए। अब कौन समझाए कि, कुत्तों के साथ हम रहते ही हैं। कुत्तों क्या, सभी जानवरों के साथ, लेकिन हमारी सोसायटी में आवारा कुत्तों का घर बन जाए, इसे कोई कैसे बर्दाश्त कर सकता है। कुत्ताप्रेमियों की आक्रामकता, कानून और वीरांगना महिला के आरोपों के डर से भले ही शांति बनी दिख रही हो, लेकिन ऐसा है नहीं क्योंकि, सामान्य सा सच अब विवादों की कसौटी पर कसा जा रहा है। समिति उन्हें समझाना चाह रही है, जो आक्रामक नहीं है, कानून नहीं तोड़ते और उनके लिए कानून की आड़ दे रही है, जो कानून तोड़ मरोड़ रहे हैं। कानून भी उन्हीं के पक्ष में बन रहे हैं। कमेटी चाहे भारत सरकार की हो, राज्य सरकार और यहाँ तक कि, सर्वोच्च न्यायालय की, उन कमेटियों से क्या निकलता है और कितना लागू होता है, हम सब अच्छे से जानते हैं। कमेटी बनाई ही तब जाती है, जब सरकार हो या न्यायालय उस पर सीधा निर्णय लेने से बचती है, कृषि कानूनों के संबंध में तो हमने यह भी देखा कि, डरती है। हमारे यहाँ भी हाल में चुनी गई असोसिएशन आवारा कुत्तों को सोसायटी से बाहर निकालने का निर्णय लेने से बच रही है। अलग-अलग उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों से कुत्ता घर को स्थाई रखने के तर्क पेश किए जा रहे हैं और, अपनी खून-पसीने की लाखों रुपये खर्च कर फ्लैट ख़रीदने वाले कह रहे हैं कि, आवारा कुत्ते, कुत्ता घर में रहते भी तो नहीं हैं। आवारा कुत्तों को स्वभाव कुत्ता घर में रहने का है ही नहीं। पालतू कुत्ते तो वैसे भी ढेर सारे फ्लैट्स में मजे से रह रहे हैं। ढेर सारे कानूनों और संख्या में बहुत कम कुत्ताप्रेमियों की एकजुटता से सिर्फ कुत्ताधिकार की बात तेज सुनाई दे रही है। मानवाधिकार फ्लैट खरीदने वाले और कुत्ता पसंद करने वालों का भी होता है, यह तो ईशनिंदा Blasphemy जैसा अपराध हो गया है। अब हमारी सोसायटी का उदाहरण देकर दूसरी सोसायटी में कुत्तों के घर स्थापित हो सकते हैं या विस्तारित किए जा सकते हैं। समिति में स्थान पाने के लिए दूसरी सोसायटियों के कुत्ता प्रेमी भी लालायित होंगे। जनप्रतिनिधि भी संवेदनशील मसलों पर निर्णय लेने से बचने के लिए समितियों में उन लोगों को शामिल करेंगे, जिन्हें जनता ने चुना नहीं है, लेकिन ऐसे लोग घनघोर आक्रामक हैं। लाखों खर्च कर फ्लैट खरीदने वाले शांत बैठे हैं कि, कभी तो ऐसे जनप्रतिनिधि आएँगे, जो इस पर बात करेंगे कि, सोसायटी हमारी है। कुत्तों की नहीं। यह अलग बात है कि, कुत्तों को सोसायटी से बाहर करने की दृढ़ इच्छा रखने वाला जनप्रतिनिधि भी बताएगा कि, यह समस्या तो पहले की है और इतनी कठिन बना दी गई है कि, उसे मजबूत आधार बनाकर ही किया जा सकता है। तब समस्या खड़ी करने वाले पहले की असोसिएशन के लोग उन पर टूट पड़ेंगे कि, देखिए बहाना बना रहे हैं और समस्या का समाधान मुश्किल होता चला जाएगा। तब तक कुत्ते बीच-बीच में सोसायटी के बच्चों, बड़ों और बूढ़ों को काटते रहेंगे। हर कोई जानता है कि, गेटेड सोसायटी के भीतर आवारा कुत्तों का होना गलत है, लेकिन अब कई नियम, कानून और समितियाँ है, जिससे यह मामला सीधा नहीं रह गया है, अब यह विवाद लंबा चलेगा और तब तक शांति सौहाद्र बनाए रखने की अपील लगातार होती रहेगी। देखिए, मैंने शुरू में लिखा था कि, ज्ञानवापीमस्जिदविवाद पर भी लिखूँगा, लेकिन अब लग रहा है कि, मैं उस पर क्या लिखूँगा, मैं कोई इतिहासकार या धर्माधिकारी तो हूँ नहीं। इतना विद्वान भी नहीं हूँ। अब आप ही बताइए, अलग से ज्ञानवापीमस्जिदविवाद पर मेरा कुछ लिखना ठीक होगा क्या। हमें अपनी सोसायटी वाला आवारा कुत्तों वाला विवाद दिखा, उसी पर लिख दिया, उसे ही आप समझ लीजिए।  

6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (03-06-2022) को चर्चा मंच      "दो जून की रोटी"   (चर्चा अंक- 4450)  (चर्चा अंक-4395)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

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  2. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-06-2022) को चर्चा मंच      "दो जून की रोटी"   (चर्चा अंक- 4450)  (चर्चा अंक-4395)     पर भी होगी!
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    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

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    1. धन्यवाद शास्त्री जी। आप नियमित, निरंतर हैं।

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  3. बात का बतंगड़ कैसे बनता है यह बहुत अच्छे से समझा दिया आपने।

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  4. Bahut badhiya lekh tha

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