Friday, April 08, 2022

माले मुफ्त, दिले बेरहम की राजनीति देश के लिए घातक

हर्ष वर्धन त्रिपाठी



प्राचीन भारतीय दार्शनिक चार्वाक का एक दर्शन सूत्र है, जिसका ज़िक्र बहुतायत भारतीय गाहे-बगाहे करते ही रहते हैं या सुना तो लगभग सबने होगा। यावज्जीवेत सुखं जीवेद ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत, भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः एक बार मृत्यु हो गई तो श्मशान में जलकर राख ही हो जाना है तो जब तक जियो सुख से जियो, ऋण लेकर घी पियो। अब चार्वाक का यह दर्शन व्यक्ति के तौर पर हो सकता है कि, बहुत से लोगों के लिए प्रेरक हो जाए, लेकिन किसी समाज या राष्ट्र के लिए यह दर्शन कतई प्रेरक नहीं हो सकता क्योंकि, समाज या राष्ट्र की आयु नहीं होती। क़र्ज़ लेकर घी पीने की प्रवृत्ति रखने वाले लोगों के फर्जीवाड़े की कहानियों से देश के समाचार पत्र भरे पड़े होते हैं।  इसीलिए कर्ज लेकर घी पीने की प्रवृत्ति अस्थाई तौर पर तो अल्हड़, फक्कड़ के तौर पर काम सकती है, लेकिन लंबे समय में यह उस तरफ ले जाती है, जिसकी तरफ इशारा देश के क़रीब दो दर्जन सचिवों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बैठक में किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ देश की अलग-अलग योजनाओं पर चर्चा, समीक्षा, सुधार की नौवीं बैठक में क़रीब दो दर्जन सचिवों ने कहाकि, क़र्ज लेकर घी पीने वाली प्रवृत्ति से देश के कई प्रदेश बर्बादी की कगार पर खड़े हैं। वर्तमान सन्दर्भों में श्रीलंका का चीन से लिया क़र्ज़ उस पर भारी पड़ रहा है। श्रीलंका में आर्थिक बदहाली यहाँ तक पहुँच गई है कि, राजपक्षा सरकार को आपातकाल घोषित करना पड़ा। श्रीलंका की जनता सड़कों पर है और चारों तरफ़ हाहाकार मचा हुआ है। 

देश के वरिष्ठ सचिवों की राज्यों की बिगड़ती आर्थिक स्थिति पर व्यक्त की गई चिंता यूँ ही नहीं है। अभी पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों में लगभग सभी राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में राज्य की अर्थव्यवस्था दुरुस्त करने के उपाय कम ही थे, लेकिन राज्य में मुफ़्त देने की घोषणाओं का अंबार लगा हुआ था। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कहीं किसी लड़ाई में दूर दूर तक नहीं थी, लेकिन ढेर सारी नौकरियों से शुरुआत करके मुफ़्त स्कूटी, बिजली और ढेर सारे लुभावने वादों का दिवास्वप्न दिखाने में प्रियंका गांधी वाड्रा की अगुआई में कांग्रेस क़तई पीछे नहीं रही। कमाल की बात यह भी थी कि, यही कांग्रेस पार्टी पंजाब में आम आदमी पार्टी से पूछ रही थी कि, आख़िर महिलाओं को हर महीने एक हज़ार रुपये देने के लिए और तीन सौ यूनिट मुफ़्त बिजली देने के लिए रक़म कहां से लाएगी, लेकिन उत्तर प्रदेश में यह बात कांग्रेस को याद नहीं रही। गोवा में ममता बनर्जी की अगुआई वाली तृणमूल कांग्रेस भी किसी लड़ाई में भले नहीं थी, लेकिन चुनाव के समय भला कौन किसी पार्टी की दावेदारी ख़ारिज कर सकता है। आक्रामक तेवरों के लिए पहचानी जाने वाली ममता बनर्जी की पार्टी ने तो बाक़ायदा लोगों से फ़ॉर्म भरवाया कि, सरकार बनते ही खाते में पाँच हज़ार रुपये दिए जाएँगे। अच्छा हुआ कि, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस किसी लायक़ रह गई और ही गोवा में तृणमूल कांग्रेस, लेकिन पंजाब में प्रचंड बहुमत के साथ आम आदमी पार्टी सरकार में गई। सरकार आई तो लगा कि, सरकार में आने के लिए अपने वादों को आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री भगवंत मान पूरा करेंगे, लेकिन वादों को पूरा करने के बजाय भगवंत मान दिल्ली आए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात में राज्य के लिए अगले दो वर्षों तक पचास हज़ार करोड़ रुपये प्रतिवर्ष की माँग कर डाली। जबकि, चुनावों के दौरान भगवंत मान बार-बार यही कह रहे थे कि, राज्य में पैसे की कमी नहीं है, बस माफियाओं के ख़ज़ाने का मुँह सरकारी ख़ज़ाने की तरफ़ मोड़ना है। अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान को दूसरे नेता बार-बार याद दिला रहे थे कि, क़र्ज़ के मामले में पंजाब के हालात देश में सबसे ख़राब राज्यों में सबसे ऊपर है। क़र्ज़ और राज्य के सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के मामले सबसे ख़राब हालात पंजाब के हैं राज्य में क़र्ज़ और सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात 53.3 प्रतिशत है। इसके बाद राजस्थान 39.8, पश्चिम बंगाल 38.8, केरल 38.3 और आंध्र प्रदेश का अनुपात 37.7 प्रतिशत है। राज्य की इतनी ख़राब आर्थिक स्थिति होने के बावजूद आम आदमी पार्टी ने माले मुफ़्त दिले बेरहम वाली राजनीति ही की। इसी पर देश के सचिव भारत के कई राज्यों में श्रीलंका जैसी आर्थिक अव्यवस्था होने की आशंका जता रहे हैं। मुफ़्त की राजनीति को नये सिरे से जीवन देने वाले अरविंद केजरीवाल की सबसे बड़ी उपलब्धि ही यही है कि, बिजली पानी मुफ़्त दे रहे हैं। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं है और केंद्र की मदद का दुरुपयोग करके अरविंद केजरीवाल मुफ्तउवा राजनीति वाला दिल्ली मॉडल सफलतापूर्वक चला ले रहे थे, लेकिन जैसे ही पूर्ण राज्य पंजाब में वादे पूरा करने की बात आई तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद माँगने भगवंत मान पहुँच गए। हालाँकि, दिल्ली जाने से पहले ही भगवंत मान ने 35000 संविदा कर्मियों को नियमित कर दिया। उनके नियमितीकरण पर खर्च होने वाली रक़म कहां से आएगी, इसकी कोई योजना सामने नहीं आई है। मान को लगा होगा कि, केंद्र से एक लाख करोड़ रुपये मिल जाएँगे तो उसी से सब हो जाएगा। क़र्ज़ में डूब राज्य पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, केरल और आंध्र प्रदेश केंद्र से मिल रहे अनुदान के ही भरोसे चल पा रहे हैं। कमाल की बात यह भी है कि वायरस के संकट काल में भी राज्य अपनी आर्थिक संरचना दुरुस्त करने को तैयार नहीं हैं। केरल में एक अनोखा मामला सामने आया कि, केरल की वामपंथी सरकार अपने कैडर को पीए, पीएस जैसी नियुक्ति पर दो साल के लिए रखती है और फिर उन्हें पेंशन का हक़दार बनाकर त्यागपत्र दिलाकर पार्टी के लिए काम करने पर लगा देती है। केरल के राज्यपाल मोहम्मद आरिफ़ खान नहीं होते तो शायद यह देश के सामने ही नहीं पाता। कोरोनाकाल में देश के 31 में से 21 प्रदेशों का क़र्ज़ और घरेलू उत्पाद का अनुपात आधा प्रतिशत से सात प्रतिशत से अधिक बढ़ा है। यह चिंताजनक स्थिति है, जिसकी बात वरिष्ठ सचिवों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से की। अच्छी बात है कि, देश के प्रमुख औद्योगिक राज्यों में शामिल महाराष्ट्र और गुजरात ने क़र्ज़ और राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात सँभाल रखा है। महाराष्ट्र 20 प्रतिशत और गुजरात 23 प्रतिशत अनुपात के साथ एन के सिंह की अगुआई वाली वाली राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम समिति की शर्तों के लिहाज़ से आर्थिक संरचना दुरुस्त कर रखी है। राजकोषीय घाटे के प्रबंधन और उसमें पारदर्शिता के लिए इसे 2003 में लाया गया था, लेकिन तय अवधि के लक्ष्य तय कर पाने से इसका कोई लाभ नहीं हुआ। 2016 में एन के सिंह की अगुआई में समीक्षा की गई कि, तय किए गए लक्ष्य प्राप्त करने योग्य हैं या नहीं। 2021 में इस समिति ने लक्ष्य भी निर्धारित कर दिए हैं। 

ऐसे में जब राज्य आर्थिक संरचना दुरुस्त करने के बजाय माले मुफ़्त दिले बेरहम वाले अंदाज में अनाप अनाप मुफ़्त की घोषणा करते हैं तो आर्थिक व्यवस्था के लिहाज़ से बिगड़ते हालात को दुरुस्त करना दूभर होने लगता है। लोक लुभावन घोषणाओं के ज़रिये चुनाव जीतने की एक कोशिश कृषि र्जमाफी और सब्सिडी के ज़रिये भी होती थी। 2008 के बजट में तत्कालीन यूपीए सरकार के वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कृषि क़र्ज़ माफ़ी का सबसे बड़ा एलान किया। बजट के बाद वित्त मंत्री  लगभग सभी टीवी चैनलों को साक्षात्कार देकर बजट के बारे में बताते हैं। उस समय देश के सबसे बड़े मीडिया घराने में से एक के संस्थापक पत्रकार को वित्त मंत्री पी चिदंबरम का साक्षात्कार करने का अवसर मिला। बिज़नेस टेलीविजन के सबसे बड़े पत्रकार टीवी चैनलों के समूह के मालिक होने के बाद से वर्ष में बजट के बाद एक ही साक्षात्कार वित्त मंत्री का किया करते थे। 28 फ़रवरी 2008 के बजट के बाद वित्त मंत्री पी चिदंबरम का साक्षात्कार उस मीडिया समूह के हिंदी बिज़नेस चैनल पर लाइव चल रहा था। साक्षात्कार शुरू ही हुआ था कि अचानक वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने माइक निकाल दिया और उठकर खड़े हो गए। तमतमाए हुए चिदंबरम को टीवी समूह के संस्थापक संपादक  ने सँभालने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे। दरअसल, उन्होंने वित्त मंत्री पी चिदंबरम से बजट में क़र्ज़ माफ़ी से देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव और बैंकों को होने वाले घाटे की भरपाई के इंतज़ाम से सवालों की शुरुआत कर दी थी और दो बार चिदंबरम ने उस सवाल को टालने की कोशिश की, लेकिन तीसरी बार जब संस्थापक संपादक के घुमाकर सवाल पूछने पर चिदंबरम बुरी तरह से नाराज़ हो गए और माइक निकालकर उठकर चल दिए। इसके बाद बड़ी मुश्किल से चिदंबरम दोबारा साक्षात्कार देने को तैयार हुए और उस प्रश्न को साक्षात्कार से बाहर रखने की शर्त पर ही तैयार हुए। देश का हर अर्थशास्त्री यह बात लगातार कहता रहा कि कृषि क़र्ज़ माफ़ी से किसानों का भला नहीं होने वाला और इससे बैंकिंग तंत्र भी ध्वस्त हो जाता है। इसी से समझा जा सकता है कि कृषि क़र्ज़ माफ़ी कितना बड़ा चुनावी कार्यक्रम था और इससे किसानों का क़तई भला नहीं होता था। वरना तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम तो खुश होते कि इस पर तीन प्रश्न ही क्यों, पूरा साक्षात्कार ही इसी पर होना चाहिए। कृषि क़र्ज़ माफ़ी की ही तरह ढेर सारे ऐसे लोक लुभावन एलान चुनावी लड़ाई जीतने के लिए नेता कर जाते हैं, जिसका दुष्प्रभाव राज्य के ख़ज़ाने पर पड़ता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने माले मुफ़्त दिले बेरहम वाली राजनीति को काफ़ी हद तक क़ाबू करने का प्रयास किया, लेकिन यह जिन्न एक बार फिर बाहर निकलता दिख रहा है। कुछ भारतीय राज्यों के हालात श्रीलंका जैसे बन सकते हैं, यह सिर्फ़ सचिवों की चिंता नहीं है। एक ऐसा भयावह सच है, जिसमें सुधार हुआ तो उस ख़तरनाक सच का सामना करने के लिए हमें तैयार रहना होगा। 





क़र्ज़ के जाल में फँसा श्रीलंका कैसे बर्बाद हुआ

विश्व के सभी देशों में विकसित होने की होड़ रहती है और इसके लिए दो ही तरीक़े होते हैं। पहला- देश को आत्मनिर्भर बनाने के साथ विदेशी निवेश के लिए अच्छा आधार तैयार किया जाए। दूसरा- ऐसे देश, जिनके पास धन की कमी नहीं है, उनके निवेश से देश में बुनियादी परियोजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ाया जाए। अधिकतर साधनहीन देशों के लिए विकास का दूसरा रास्ता ही आसान दिखता है। पहले अमेरिका ही विश्व के ऐसे देशों को मदद देने के नाम पर वहाँ की नीतियाँ प्रभावित करता था और उस देश की सत्ता में हस्तक्षेप करके विश्व पटल पर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका बनाए रखता था, लेकिन बदलते विश्व परिदृष्य में चीन एक ऐसी ताक़त बनकर उभरा जो ऐसे देशों को लंबे समय के लिए सस्ता क़र्ज़ देने के नाम पर लुभाने लगा। अमेरिका से मुक़ाबले के लिए चीन ने दुनिया का कारोबारी रास्ता तैयार करने की अति महत्वाकांक्षी योजना वन बेल्ट वन रोड तैयार की। पाकिस्तान सहित दुनिया के कई देश उसकी इस योजना के जाल में फँसे भी, लेकिन भारत के इस योजना से पूरी तरह से बाहर रहने के सख़्त निर्णय ने वन बेल्ट वन रोड परियोजना को रणनीतिक तौर पर कमजोर कर दिया और अब पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर बनी चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की स्थिति भी ख़राब होने लगी। ऐसे में चीन ने पाकिस्तान सहित नेपाल और श्रीलंका जैसे उन देशों पर नज़र दौड़ाई जहां घरेलू राजनीतिक अस्थिरता से निपटने के लिए उन देशों का नेतृत्व चीन की शर्तों पर तैयार हो जाए। चीन को पाकिस्तान, श्रीलंका और नेपाल तीनों ही आसान शिकार लगे। इन तीनों देशों को तेज़ी से विकास का सपना दिखाकर वहाँ की परियोजनाओं के ज़रिये चीन देश में घुस गया। बलूचिस्तान का ग्वादर बंदरगाह भी एक ऐसी परियोजना है, जिसका कोई लाभ पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को नहीं मिलने वाला है। ऐसे ही श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह की चर्चा अक्सर होती है, लेकिन बंदरगाह से क़रीब 18 किलोमीटर दूर मट्टाला राजपक्षा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे की चर्चा कम ही होती है। बंदरगाह और हवाई अड्डा दोनों चीन ने ही तैयार किया। चीन हम्बनटोटा बंदरगाह का मालिक है और मट्टाला राजपक्षा हवाई अड्डे का उपयोग सिर्फ़ उसी बंदरगाह तक पहुँचने के लिए किया जाता है। राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षा के कार्यकाल में चीन ने बंदरगाह और हवाई अड्डा बनाने के लिए चाइनीज़ एक्जिम बैंक से महँगा क़र्ज़ दिया। कहने के लिए चीन का श्रीलंका पर क़र्ज़ का हिस्सा कुल विदेशी क़र्ज़ का दस प्रतिशत से कम ही रहा, लेकिन हम्बनटोटा पर मालिकाना हक़ चीन का है और मट्टाला हवाई अड्डा दुनिया के सबसे कम उपयोग में आने वाले हवाई अड्डों में शामिल है, इसी से समझा जा सकता है कि, चीन के क़र्ज़ का दुष्चक्र कैसे कमजोर आर्थिक स्थिति वाले देशों को फँसाता है। चीन ने श्रीलंका को कुल 4.8 बिलियन डॉलर का क़र्ज़ दिया, उसमें से सिर्फ़ 1 बिलियन डॉलर का क़र्ज़ रियायती 2 प्रतिशत ब्याज पर मिला है, बाक़ी क़र्ज़ पर ब्याज की दर 6 प्रतिशत है। 

(यह लेख 8 अप्रैल 2022 को दैनिक जागरण में छपा है)

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-04-2022) को चर्चा मंच       "हे कवि! तुमने कुछ नहीं देखा?"  (चर्चा अंक-4395)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  2. चिंताजनक स्थिति

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  3. इस तरह मुफ्तखोरी की परंपरा को बंद किया जाना चाहिए । चिंतनीय ।
    सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय ।

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  4. कड़वी सच्चाई यही है कि सिर्फ निजी हित के लिए दूरगामी परिणामों को नजरंदाज किया जा रहा है

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