Friday, March 27, 2020

एकसाथ कोरोना और आर्थिक दुष्चक्र खत्म करने का मंत्र

5 बजे, 5 मिनट की ताकत से दुरुस्त हो सकता है आर्थिक चक्र


22 मार्च 2020, रविवार को विश्व इतिहास में एक ऐसी तारीख के तौर पर याद किया जाएगा, जिस दिन दुनिया ने भारतीयों की सामूहिक शक्ति का नाद सुना। पूरा हिन्दुस्तान ताली, थाली और शंखनाद के लिए एक साथ शाम 5 बजे 5 मिनट के लिए इकट्ठा हो गया। सबसे अच्छी बात यह रही कि कुछ मानसिक विकृति के शिकार लोगों को छोड़कर मोदी विरोध करने वाले भी ताली, थाली और शंख बजाते अपने वीडियो सोशल मीडिया पर जारी कर रहे थे। यह देश के एक साथ खड़े हो जाने का 5 मिनट था जो 5 बजे से पहले शुरू हो गया था और 5 बजकर 5 मिनट से भी बहुत देर तक चलता रहा। यह वो स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा थी जिसमें साथ खड़े होकर भी हर कोई आगे रहने की कोशिश कर रहा था। यह सामान्य बात नहीं है। दरअसल, देश को इस तरह से एकजुट होने की जरूरत बहुत लम्बे समय से थी। 2010 में जब देश के शीर्ष 10 उद्योगपतियों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिखकर सरकारी नीतियों में भरोसा न होने की बात लिखी थी, तभी से देश को एकजुट करने वाले एक मजबूत नेता की जरूरत थी। सोनियां गांधी ने सत्ता गांधी परिवार में इस तरह बनाए रखा था कि प्रधानमंत्री पद में देश का भरोसा लगभग शून्य हो चला था। उसी समय बड़े भ्रष्टाचार और घोटाले के मामलों पर कांग्रेस के दिग्गज नेता जीरो लॉस सिद्धान्त प्रतिपादित कर रहे थे, यह अलग बात है कि भरोसे के मामले में शून्य देश शून्य पर पहुंच चुका था। देश ने 2014 के आम चुनावों में नरेंद्र मोदी में भरोसा देखा जो देश को एकजुट कर सकता था और वही भरोसा दोबारा 2019 में भी देश की जनता ने देखा। 2014 से 2019 में नरेंद्र मोदी सरकार के किए गए निर्णयों पर ही देश की जनता ने 2019 के आम चुनावों में दोबारा भरोसा किया था और सबसे महत्वपूर्ण बात यही रही कि ज्यादातर फैसले आर्थिक नीतियों से जुड़े हुए थे। बरसों से लटके पड़े आर्थिक सुधारों को नरेंद्र मोदी की सरकार ने 2014 से 2019 के बीच बेहिचक लागू किया और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को मजबूती से लड़ा।
नरेंद्र मोदी को यह बात अच्छे से पता था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का सकारात्मक परिणाम लोगों को दिखने में समय लगेगा, लेकिन कमजोर लोगों पर भ्रष्टाचार के खिलाफ होने वाली लड़ाई का बुरा प्रभाव बहुत जल्दी नजर आने लगेगा। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का सबसे पहला दुष्प्रभाव काले धन के प्रभाव से चल रहे उद्योगों की रफ्तार में कमी आने के साथ दिखा और उसका असर भी कमजोर लोगों पर उनकी दिहाड़ी मजदूरी जाने से कार्यालय में बैठकर की जाने वाली नौकरियों में कमी के तौर पर दिखा। इसीलिए नरेंद्र मोदी ने कड़े आर्थिक सुधारों के साथ ही उन सुधारों के बुरे प्रभाव से लोगों को बचाने के लिए ढेर सारी सामाजिक योजनाएं शुरू कीं। इससे नरेंद्र मोदी के पक्ष में अच्छी बात यह हुई कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की लड़ाई से परेशान भ्रष्टाचारी वर्ग की मोदी सरकार के खिलाफ मुहिम बहुत कामयाब नहीं हो सकी। इसीलिए 2019 में आर्थिक रफ्तार कम होने, नौकरियों में कमी आने और दूसरे आर्थिक मानकों पर चिंताजनक तस्वीर देखने के बाद भी मध्यम और निम्न वर्ग ने नरेंद्र मोदी में भरोसा बनाए रखा और उसका परिणाम 2019 के नतीजों के तौर पर दिखा। 2019 में सरकार बनने के बाद मोदी सरकार ने 2 बड़े आंतरिक और बाहरी सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर फैसला लिया और दोनों ही मुद्दे भारतीय जनता पार्टी के घोषणापत्र में बुनियादी तौर पर रहते थे। भारतीय जनता पार्टी का वैचारिक कैडर 2014 से 2019 के बीच मोदी सरकार से इस बात को लेकर नाराज रहता था, लेकिन आश्वस्त भी था कि मोदी ही यह कर सकते हैं। भाजपा के वैचारिक समर्थकों का यह भरोसा होना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी, आश्चर्य की बात यह थी कि संघ, भाजपा और मोदी के घोर विरोधी भी यह बात दबे-छिपे मानते थे कि देश की समस्याओं का समाधान अगर मोदी नहीं कर पाया तो कोई नहीं कर सकेगा। हालांकि राजनीतिक सत्ता जाने से दुखी फासावादी वामपंथियों और कट्टर इस्लामिक ताकतों को समर्थकों और विरोधियों का नरेंद्र मोदी पर इतना तगड़ा भरोसा चुभ रहा था। इसी चुभन को उन्हें निकालने का अवसर मिल गया नागरिकता कानून के विरोध के बहाने। देश में मुसलमानों के मन-मस्तिष्क में जहर भरा गया। भरा गया जहर सिर्फ दिल्ली के शाहीनबाग या देश भर में बन गए छोटे शाहीनबाग की शक्ल में नहीं दिखा, दिल्ली में दंगों की भवायह शक्ल में भी यह दिखा। शाहीनबाग की जिद को ज्यादा जहरीला बनाने में फासावादी वामपंथियों और कट्टर इस्लामिक ताकतों के साथ वह सारे मोदी विरोधी नेता भी जुड़ गए, जिन्हें लग रहा था कि मोदी को कमजोर करके सत्ता हासिल करने का यही सही समय है। मोदी समर्थक भी ज्यादा कट्टर हो गए, पूरे देश में विभाजन की स्पष्ट रेखा खिंच गयी। इस विभाजन की रेखा से समाज में कटुता तो बढ़ी ही, देश का एकजुट होकर खड़े होने का भरोसा कमजोर हो रहा था। फिर 22 मार्च 2020, रविवार के दिन शाम 5 बजे 5 मिनट तक देश अचानक एकजुट खड़ा हो गया। उसी नेता के कहने पर जिसे 2010 के बाद बुरी तरह टूटे भरोसे में 2014 और 2019 में देश की जनता ने प्रचण्ड बहुमत से चुना था।
अब असली बात समझने की जरूरत है। दुनिया भर आर्थिक मुश्किलों और देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई की वजह से हिले आर्थिक तंत्र की वजह से पहले ही भारतीय अर्थव्यवस्था मुश्किल में थी और अब दुनिया में फैली इस महामारी से भारत को बड़ी आर्थिक चोट लगने वाली है। फिलहाल देश को कोरोना से बचाना है और इसके लिए देश में हर कोई अपने घर में रहे, यही सबसे जरूरी है। अपनी जान की चिंता और नरेंद्र मोदी जैसे नेता का आह्वान देश को एकसाथ अपने घर में रहने के लिए तैयार कर रहा है, लेकिन घर में रहने पर आर्थिक गतिविधि पूरी तरह से अवरुद्ध होती दिख रही है। भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की लड़ाई में सबसे ज्यादा मार जिस निम्न वर्ग पर पड़ी थी, कोरोना के खिलाफ लड़ाई में वही वर्ग बेहाल होता दिख रहा है। उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने शुरुआत की, उसके बाद दिल्ली, पंजाब और दूसरे राज्य भी राशन के साथ कुछ रकम भी कमजोरों के खाते मे सीधे दे रहे हैं। नोटबंदी के समय और जनधन अभियान की वजह से यह खाते आज कमजोरों के लिए वरदान बन रहे हैं, लेकिन समस्या बहुत बड़ी है और एक-दो दिन नहीं महीने-2 महीने या उससे भी ज्यादा चल सकती है। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोरोना से लड़ाई और देश के आर्थिक चक्र को दुरुस्त करने की नीति एक साथ बनाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कोविड 19 इकोनॉमिक टास्क फोर्स का गठन कर दिया है। अब प्रधानमंत्री को इसी टास्क फोर्स को अनुमानित बजट बनाने का जिम्मा सौंप देना चाहिए कि 30 मई तक देश के हर राज्य में कमजोर लोगों को 2 वक्त का खाना और उनके हाथ में एक तय रकम देने पर कितना खर्च आएगा। राज्य अपने बजट से जो करना चाहते हैं, कर सकते हैं, करते रहें, लेकिन पूरे देश में इस तरह का अनुमानित बजट बनने से केंद्र राज्यों को उसी अनुपात में रकम आवंटित कर सकता है। अब इतनी बड़ी रकम सरकार कैसे पाएगी, जब जीएसटी वसूली और दूसरे राजस्व एकदम से कम हो गए हैं। इसका बड़ा सीधा सा रास्ता है और यह रास्ता 5 बजे 5 मिनट के लिए साथ खड़े देश ने दिखाया है। कोविड 19 इकोनॉमिक टास्क फोर्स की रकम का अनुमान आने पर पर प्रधानमंत्री राहत कोष में योगदान के लिए लोगों से प्रधानमंत्री को अपील करना चाहिए और सभी योगदान देने वालों को डिजिटल प्रशस्ति पत्र देना चाहिए। वेदांता के अनिल अग्रवाल ने 100 करोड़ रुपये और महिंद्रा समूह के आनंद महिंद्रा ने आगे बढ़कर कोरोना से लड़ाई में मदद की योजना बताई है। दूसरे उद्योगपतियों को भी इसमें साथ लेना चाहिए।
इस तरह से कोरोना से लड़ाई में सरकार, उद्योगपति और जनता एक साथ खड़े हो रहे हैं। देश में आर्थिक सुस्ती को लेकर पहले भी यही मुश्किल रही है कि सरकार खर्च कर रही है, लेकिन निजी उद्योगपति आगे नहीं आ रहे हैं। जनता बुरे वक्त के लिए पैसे बचाकर रख रही है क्योंकि किसी को किसी पर भरोसा नहीं है। कोरोना से लड़ाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शाम 5 बजे 5 मिनट वाले भरोसा का प्रयोग देश में इसी भरोसे को फिर से पैदा करने के लिए करना चाहिए। अभी यह भरोसा कोरोना खत्म करने में काम आएगा और कोरोना खत्म होने के बाद यही भरोसा देश का आर्थिक दुष्चक्र खत्म करने के काम आएगा। जनता मांग बढ़ाएगी, उद्योगपति निवेश करेंगे और सरकार दोनों को साथ लेकर आर्थिक तरक्की का पहिया तेजी से घुमाएगी। जितनी बड़ी चुनौती होती है, उसे उतने बड़े अवसर में बदलने के लिए नरेंद्र मोदी जाने जाते हैं और कोरोना और उससे होने वाले नुकसान की चुनौती सबसे बड़ी है, इसलिए इसमें अवसर भी सबसे ज्यादा है। सरकार ने 1.70 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक पैकेज देकर इसकी शुरुआत कर दी है, लेकिन लड़ाई लंबी और बड़ी है।

No comments:

Post a Comment

एक देश, एक चुनाव से राजनीति सकारात्मक होगी

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। इसीलिए इस द...