Sunday, October 04, 2015

सांप्रदायिकता खत्म करना है या बरकरार रखना है?

लड़ाई सांप्रदायिकता से लड़ने की तय होनी थी। लड़ाई अतिवाद से लड़नी थी। लड़ाई इंसान को बचाने की थी। लेकिन, देखिए क्या हो रहा है। विरोध उन्हें सांप्रदायिकता के नाम पर एक पार्टी बीजेपी का करना है। अतिवाद के नाम पर हिंदू का करना है। आगे बढ़कर हर ऐसे किसी काम के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को गरियाना है। लीजिए। अपनी प्रगतिशीलता के चक्कर में उन्होंने हिंदू अतिवादियों को पुष्पित-पल्लवित होने का अवसर दे दिया है। बहुतायत हिंदू बेचारा सिर्फ इसलिए गरियाया जा रहा है कि उसने भारतीय जनता पार्टी को मत क्यों दे दिया। @narendramodi की सरकार क्यों बना दी। जबकि, बहुतायत हिंदू और बहुतायत मुसलमान बात ही दूसरी करने लगा है। वो तरक्की चाह रहा है। वो अपने जीवन में थोड़ी बेहतरी चाह रहा है। लेकिन, इससे तो उन लोगों की पूरी "Constituency"ही खत्म होती दिख रही है। अब तक वो इंसानियत की बात करते थे। इस देश की तहजीब उन्हें लगती थी कि कभी किसी सांप्रदायिक ताकत का कब्जा नहीं होगा। वो ये रटे हुए थे। समय, सिद्धांत, समाज सब बदल गया। लेकिन, वो तो रटे थे। उन्होंने ठेका भी ले रखा था। सारे सारोकारों का। अभी भी वही पुरानी रटी बात बोल रहे हैं। कोई कह रहा है कि मैं भी गौमांस खाता/खाती हूं। बड़का संपादक से लेकर बड़की मैडम तक नाराज हैं। कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर के भाई और इकोनॉमिक टाइम्स के संपादक स्वामीनाथन अय्यर ने तो बाकायदा संपादकीय पृष्ठ पर गोमांस खाने वालों की तरफ से पूरी चिट्ठी लिख मारी है। कोई कह रहा है मुझे मार दो। कोई कह रहा है कि ये देश ही अभागा है। कई तो हो सकता है कि चिकन, मटन बनाकर उसकी तस्वीर लेकर सोशल मीडिया में डाल दें कि देखो मैंने भी गौमांस खाया है। दरअसल ये न सांप्रदायिकता खत्म करना चाहते हैं, न अतिवाद और न ही इंसान बने रहने, इंसानियत बचाने में इनकी कोई दिलचस्पी है। आसान राह से देश के नौजवान को बरगलाकर ये लंबे समय से सरोकारी होते हुए भी सत्ता के मजे ले रहे थे। अब चिरमिटी लग रही है। सब हाथ से निकल गया। सरोकारी तो रहे ही नहीं थे। अब सत्ता का साथ भी नहीं रहा। अब ये विक्षिप्त जैसा व्यवहार कर रहे हैं। लेकिन, किस ईश्वर, खुदा, गॉड से कहूं कि माफ करना इन्हें। सद्बुद्धि देना इन्हें। ये तो सबको सिगरेट के धुएं में कबका उड़ा चुके हैं। ये अनास्था के वाहक हैं। फिर भी हे ईश्वर माफ कर, सदबुद्धि देना इन्हें। क्योंकि, मेरी तो आस्था है ही।

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