Monday, October 12, 2015

पार्किंग के नाम पर भारतीय रेल की खुली लूट

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर पार्किंग का बिल
मुझे नहीं पता कि इस पर रेल मंत्री सुरेश प्रभु @sureshpprabhu और रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा  @manojsinhabjp कुछ करेंगे या नहीं करेंगे। कोशिश करूंगा इन लोगों से मिलकर भी ये बताने की। फिलहाल अभी आप लोगों से साझा कर रहा हूं। एक तो सबको ये पता हो इसके लिए। और दूसरा जितने ज्यादा लोग इसके खिलाफ आवाज बुलंद कर सकें, उसके लिए। मीडिया चौपाल में शामिल होने 10 अक्टूबर की सुबह भोपाल शताब्दी से ग्वालियर जाना था। और 11 की रात भोपाल शताब्दी से ही वापसी थी। मैंने सोचा टैक्सी से स्टेशन जाने से बेहतर है कि खुद की कार से चला जाए और स्टेशन पर ही कार खड़ी कर दी जाए। सुबह 5 बजे मेट्रो भी नहीं मिलती। सो अपनी कार से ही चला गया और स्टेशन पर एक प्रीमियम पार्किंग है। उसी में खड़ी कर दी। 100 रुपये उसका चार्ज है। सोचा अधिकतम कितना लगेगा। खैर, मेरी गलती ये कि न मैंने पर्ची देखी और न ही पूछा। गाड़ी लगाई। सीधे ट्रेन की ओर। दो दिन तो ग्वालियर की मीडिया चौपाल में इसका ख्याल भी नहीं रहा। जब वापस की, तो एक बार ध्यान में आया कि पर्ची देख लें। पर्ची देखी, तो होश उड़ गए। पहले दो घंटे के 100 रुपये, उसके बाद के हर घंटे के लिए 100 रुपये। अपना पर्स देखा, तो कुल जमा करीब ढाई हजार रुपया।

नोएडा में कई लोगों से कार्ड छीनकर जबर्दस्ती एटीएम से पैसे निककलाने की घटनाओं के बाद मैंने कार्ड रखना बंद कर दिया है। भली बात ये थी कि ग्वालियर से हम ढेर सारे लोग लौट रहे थे। इसलिए पैसे दूसरे से ले लिए। लेकिन, फिर भी लगा कि ये तो सीधी लूट है। खैर, पार्किंग में आए। पूछने पर पता चला कि 4200 रुपये पार्किंग के देने होंगे। शताब्दी समय पर आ जाती, तो 100 रुपये कम हो जाते। लेकिन, शताब्दी की करीब 25 मिनट की देरी ने मेरे पार्किंग बिल में 100 रुपये और जोड़ दिए। पार्किंग वसूल रहे लोगों से बात करने की कोशिश की, तो उन्होंने हाथ जोड़ लिया। साहब हम तो खुद ही 400 रुपये में 12 घंटे काम करते हैं। एक रुपया भी छोड़ा, तो वो हमारी जेब से जाएगा। मैंने कहा- किसी जिम्मेदार से बात कराओ। उसने कहा इतनी रात में किससे बात होगी। खैर, अपने पत्रकार होने का हवाला देते हुए जब मैंने कहाकि किसी से तो बात करानी ही होगी। तो, उसने पार्किंग मैनेजर पप्पू सिंह से फोन पर बात कराई। उसको बताया, तो उसने कहाकि सर मेरे हाथ में जो है वो मैं कर देता हूं। आप पत्रकार हैं। 4200 रुपये की जगह 3700 रुपये दे दीजिए। मैंने कहा पार्किंग जिसकी है। उससे बात हो सकती है। उसने भी हाथ खड़ा कर दिया।


पत्रकार मित्र अनिल पांडे और ऋषभ भी हमारे साथ थे। मैंने कहा इस पर तो रेलवे मंत्री से बात करनी होगी। ये तो विशुद्ध लूट है। ये सुनकर वहां पार्किंग वसूलने वाले तीनों ने कहा- आपकी बहुत कृपा होगी। यहां तो सर एक लड़के को 69000 रुपये भरना पड़ा। बेचारे के पिताजी की तबियत खराब थी। गाड़ी खड़ी करके चला गया। लौटकर आया तो, 69000 रुपये का बिल हो चुका था। बहुत से लोग इसमें फंसते हैं। हजारों रुपये पार्किंग फीस भरकर जाते हैं। अनिल पांडे ने कहा- ये तो रेलवे लोगों पर दबाव बना रही है कि वो टैक्सी से ही आएं। स्टेशन पर पार्किंग करके कहीं न जाएं। उसके बाद जब मैंने पूछा सामान्य पार्किंग का क्या चार्ज है। उसने जो बताया। वो ज्यादा खतरनाक है। उसने कहा- पहले 20 रुपये घंटा थी। अब पचास रुपया घंटा हो गई है। अब रेलवे मंत्री जी आप ही बताइए, ये लूट नहीं तो क्या है। और ये कोई निजी कंपनी नहीं कर रही है। आपके विभाग के ठेके पर निजी व्यक्ति वसूली कर रहा है। change.org पर मैंने ये याचिका डाली है। इसे आप समर्थन देंगे, तो बात आगे बढ़ेगी।

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