कई बार मैं सोचता था
कि एक साथ देश के सारे चुनाव हों। और 5 साल तक चुनावी चकल्लस से मुक्ति रहे। देश अच्छे से चले। लेकिन,
अब मुझे ये लगता है कि देश अच्छे से
चलने के लिए जरूरी है कि अलग-अलग समय पर अलग-अलग चुनाव होते ही रहें। अब मेरी ये
धारणा धीरे-धीरे मजबूत हुई है कि लोकतंत्र की असल खूबसूरती ही यही है कि जनता को
सबको ठीक रखने का अवसर मिलता रहे। और एक समय में जीते चुनाव की समीक्षा के लिए या
फिर जीत हार के आनंद या दुःख के लिए 6 महीने का भी समय नहीं मिले। देखिए न भाजपाई बौराने लगे तो
दिल्ली में साफ हो गए। लेकिन, जब
दिल्ली के बहाने पूरे देश के सड़े-गले, राजनीति में अस्तित्व खोजने वाले भी मोदी लहर
की समाप्ति का एलान कर बैठे तो असम के स्थानीय निकायों में कमल जबरदस्त तरीके से
खिल गया। यही लोकतंत्र है। और खूबसूरत है। पूरे कार्यकाल के बीच में प्रतिनिधि
वापस बुलाने के कानून की जरूरत ही नहीं। वैसे ही जनता सबका बल-मनोबल तोड़ती-जोड़ती
रहती है और रहेगी। राजनीति में साबित करने का दबाव निरंतर बना रहना चाहिए।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
Saturday, February 14, 2015
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