हिंदी-अंग्रेजी का व्यवहार-बोलचाल हमें गजब का बदल रहा है। हिंदी के जिन शब्दों, क्रिया कलापों को हम हिंदी में सुनना नहीं चाहते वही अंग्रेजी भाषा में तब्दील होते ही अरुचिकर नहीं लगता। और, ये ऐसे घुस रहा है हमारे घर, परिवार, समाज में कि जाने-अनजाने हम भी इसका हिस्सा बनते जाते हैं। गालियों का तो है ही। बेहद आधुनिक दिखने वाले लड़के-लड़कियां ऐसे अंतरंग शब्दों को अंग्रेजी में सरेआम प्रयोग कर लेते हैं जिसे हिंदी में कह दिया जाए तो, असभ्य, जाहिल, जंगली जाने क्या-क्या हो जाएं। लेकिन, अंग्रेजी में उन्हीं शब्दों का इस्तेमाल करके स्मार्ट।
हिंदी की टट्टी गंदी लगती है उसमें से बदबू भी आती है लेकिन, अंग्रेजी की potty होते ही उसमें की गंध और गंदगी पता नहीं कहां गायब हो जाती है। और, हम इन शब्दों को बोलते वक्त भाव भी चेहरे पर ऐसे ही लाते हैं जाने या अनजाने। कैसे हो जाता है ये चमत्कार। हिंदी-अंग्रेजी किसी में भी बताइए ना ...
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
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सारा चमत्कार दैवी परमपवित्रा अंग्रेजी का है. इसके छूने मात्र से मूर्ख ज्ञानी लगने लगता है. फिर यह तो शब्द ही है.
ReplyDeleteदुसरा कारण यह है कि पराई थाली में घी ज्यादा नजर आता है. अतः दुसरी भाषा में शब्द उतने बूरे नहीं लगते.
पोट्टी शब्द बच्ची होते ही प्रयोग में आने लगा दिखता है :)
बहुत सही बात है। अपनी भाषा के शब्दों का प्रयोग उसके अर्थ के ज्यादा नजदीक ले जाता है स्वतःस्फूर्त प्रतीति होती है। नकल की हुई भाषा के शब्दों का अर्थ रटना पड़ता है और उनके प्रयोग से शायद किसी अन्य ‘शब्द’ का भाव ही उत्पन्न होता है न कि उस वस्तु का। एक अज्ञान का आवरण हमारी प्रतीति और उस वस्तु की वास्तविक धारणा के बीच आ जाता है। :)
ReplyDeleteक्या खूब उधाहरण दिया है आपने ..सच..मजा आ गया...
ReplyDeleteनीरज
वैसे उदारण छांट कर निकाला है आपने !
ReplyDeleteमन की बात छीन लेते हो..गुरु...भई वाह..!
ReplyDeleteभैया !
ReplyDeleteमानसिकता जैसे ही बदलती है वैसे ही
दुर्गुण को लोग सुगुण बना कर धारण कर
लेते हैं | वही बात एक भाषा में त्याज्य और
दूसरे में ग्राह्य हो जाती है | लोग ठहराव से
सोचते कहाँ हैं ? कहाँ तक कहूँ , मैं तो
बज्र देहाती हूँ लेकिन जो देखता हूँ वह
कुछ इस तरह है ---
अंगरेजी का पिज्जा हमारी छाछ को बात - बात
पर 'सिट ....' और 'फक ....' कहता है
और लोग इसे 'मॉडर्न सिविलईजेसन '( ? )कहते है...!..
और हां यही शब्द जब "शिट" बन जाता है तब भी हमें उतना बुरा नहीं लगता।
ReplyDeleteसचमुच अंग्रेजी में शब्दों को पवित्र करने की शक्ति है।
जै हो...
:)
बिलकुल यही बात हमें भी चौंकाती है - जैसे सब कुछ अंग्रेजी में जाकर अपने सहज-अर्थ बोध को खो बैठता है, और हमें तनिक भी कठिनाई नहीं होती इनके प्रयोग से ।
ReplyDeleteसिद्धार्थ जी ने तो स्पष्ट कर ही दिया है ।
हाय कितना क्लीन होता है शिट! :-)
ReplyDeleteवाह सही कहा है | और एक-आक उदाहरण देखिये .... अब हमारे घर मैं भी carrot, reddish ... नहीं बोलती .... शायद गाजर, मुली बोले तो इसके सारे गुण अवगुण मैं बदल जायेंगे ....
ReplyDeleteपता नहीं कौन सी प्रगति कर रहे हैं हम लोग ...!